oscillator principle of operation in hindi दोलित्र का सिद्धांत क्या है समझाइए परिभाषा चित्र सहित
दोलित्र का सिद्धान्त (PRINCIPLE OF AN OSCILLATOR)
दोलित्र सक्रिय वैद्युत परिपथ होते हैं जो आवर्ती वोल्टता या धारा के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। श्रव्य आवृत्ति दोलित्र (audio frequency L oscillators) कुछ Hz से 20 kHz तक के संकेत उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त होते हैं व रेडियो आवृत्ति दोलित्र ( Radio frequency R oscillators) kHz से MHz तक ( 10 — 107 ) की आवृत्ति के संकेत उत्पादन के लिये प्रयुक्त होते हैं। ये दोलित्र रेडियो व टी. वी. संचार व्यवस्था के आवश्यक अंग होते हैं।
दोलित्र स्वतः उत्तेजित सक्रिय परिपथ (self excited active circuits) होते हैं क्योंकि इनके निवेशी परिपथ में कोई बाह्य संकेत आरोपित नहीं किया जाता है। सिद्धान्ततः इनमें दिष्ट धारा ऊर्जा का आवर्ती धारा ऊर्जा में रूपांतरण होता है।
समान्तर- क्रम में संयोजित एक प्रेरक L व एक संधारित्र C एक सरल दोलनी परिपथ की रचना करते हैं व ऐसे परिपथ को टैंक परिपथ (tank circuit) कहते हैं। यदि संधारित्र को किसी स्रोत से आवेशित कर दिया जाये तो उसमें वैद्युत ऊर्जा के रूप में ऊर्जा संग्रहित हो जाती है। आवेशित संधारित्र का प्रेरक L के द्वारा अनावेशन होता है जिससे प्रेरक में प्रवाहित धारा में समय के साथ वृद्धि होती है। इस प्रकार संधारित्र में संग्रहित वैद्युत ऊर्जा प्रेरक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन से उसमें फैराडे व लैंज के नियमानुसार वि.वा. बल प्रेरित हो जाता है। इस वि. वा. बल के द्वारा संधारित्र विपरीत दिशा में आवेशित होता है। आवेशित संधारित्र का पुनः प्रेरक कुण्डली के द्वारा अनावेशन होता है व प्रेरित वि. वा. बल से संधारित्र का आवेशन होता है। इस प्रकार यदि ऊर्जा ह्रास न हो तो यह दोलनी प्रक्रम निरंतर चलता रह सकता है । परन्तु परिपथ में उपस्थित प्रतिरोध के कारण अथवा उच्च आवृत्तियों पर विकिरण द्वारा ऊर्जा हानि से दोलनों का आयाम समय के साथ घटता जाता है अर्थात् दोलन अवमंदित होते हैं चित्र (6.1-2) | यदि जिस दर से परिपथ में ऊर्जा की हानि हो रही हो उसी दर से उसे ऊर्जा प्रदान की जाये तो दोलन पोषित (maintained ) रहेंगे व दोलन आयाम नियत बना रहेगा।
सामान्यतः दोलित्र के परिपथ में एक प्रवर्धक होता है जिसके निवेश अथवा निर्गम परिपथ में या दोनों परिपथों में दोलनी परिपथ (टैंक परिपथ) प्रयुक्त किये जाते हैं। परिपथ में किसी भी वैद्युत प्रतिक्षेप (electrical jerk) (जैसे विद्युत प्रदायक के स्विच को ऑन ( On ) स्थित में लाना) से टैंक परिपथ में अत्यल्प आयाम के वैद्युत दोलन प्रारंभ हो जाते है। प्रवर्धक इन दोलनों का प्रवर्धन करता है और यदि निर्गत वोल्टता के कुछ अंश का धनात्मक पुनर्निवेश किया जाये तो दोलनों का आयाम बढ़ता है। एक स्थिति में पुनर्निवेश द्वारा प्रदान की गई शक्ति दोलनी परिपथ में शक्ति ह के बराबर हो जाती है। इस स्थिति में दोलन आयाम नियत हो जाते हैं। ऐसे दोलित्र को पुनर्निवेश दोलित्र (feed back oscillator) कहते हैं। इस प्रकार पुनर्निवेश दोलित्र एक धनात्मक पुनर्निवेशी प्रवर्धक होता है जिसकी परिणामी वोल्टता लब्धि अनंत होती है।
यदि दोलनी परिपथ में शक्ति ह्रास के स्रोत व प्रतिरोध को प्रभावहीन करने के लिये ऐसी युक्ति प्रयुक्त की जाय जिसके कारण धारा घटने पर वोल्टता बढ़े अर्थात् जिसका गतिक प्रतिरोध ऋणात्मक हो तो भी नियत आयाम के दोलन प्राप्त किये जा सकते हैं। ऋणात्मक प्रतिरोध युक्ति प्रयुक्त करने वाले दोलित्र ऋणात्मक प्रतिरोध दोलित्र (negative resistance oscillator) कहलाते हैं।
दोलित्र से प्राप्त तरंग प्रारूप ज्यावक्रीय (sinusoidal ) अथवा ज्यावक्रेतर (non-sinusoidal ) हो सकता है। तरंग प्रारूप के आधार पर दोलित्र ज्यावक्रीय दोलित्र (sinusoidal oscillators) या ज्यावक्रेतर (विश्रांति) दोलित्र (non- sinusoidal or relaxation oscillator) कहलाते हैं।
इस अध्याय में हम ज्यावक्रीय पुनर्निवेश दोलित्रों के सिद्धान्त व कार्य विधि का ही वर्णन करेंगे।
पुनर्निवेशी दोलित्रों में दोलनों के लिये पुनर्निवेशी आवश्यकता REA(FEED BACK REQUIREMENTS FOR OSCILLATION IN FEED BACK OSCILLATORS)
पिछले अध्याय में हमने पुनर्निवेश व उसके प्रभावों के विषय में विस्तृत अध्ययन किया था। ऋणात्मक पुनर्निवेश से प्रवर्धक की लब्धि में मात्रात्मक हानि होती है परन्तु अनेक गुणात्मक लाभ होते हैं जिससे ऋणात्मक पुनर्निवेश का प्रवर्धकों में विशेष उपयोग होता है। धनात्मक पुनर्निवेश से प्रवर्धक की लब्धि में वृद्धि होती है व प्रवर्धक के रूप में यह अस्थिर हो जाता है। उपयुक्त मान के धनात्मक पुनर्निवेश के द्वारा लब्धि का मान अनंत हो सकता है अर्थात् प्रवर्धक में निविष्ट संकेत पूर्णतः उसी के द्वारा प्रदान किया जाता है। ऐसी स्थिति में प्रवर्धक दोलित्र के रूप में व्यवहार करता है।
यदि निर्गत वोल्टता Vo के अंश BVo का पुनर्निवेश किया जाता है तो परिणामी निवेश
Vif = Vi + Vf
परन्तु Vo = AVif जहां A प्रवर्धक की खुले पाश की लब्धि है, तथा Vf = BVo
जिससे पुनर्निवेशी प्रवर्धक की परिणामी लब्धि
Af = Vo /Vi = A/1 – AB…………………….(1)
प्रवर्धक की लब्धि A तथा पुनर्निवेशी गुणांक B सम्मिश्र (complex) राशि हो सकती है।
यदि
AB = (1 + j0)……………..(2)
तो Arअनंत हो जायेगा। इस स्थिति में Vi = 0 व Vif = Vf अर्थात् प्रवर्धक के लिये निवेश पूर्णत: पुनर्निवेश द्वारा प्रदान किया जायेगा। पुनर्निवेशी प्रवर्धक इस अवस्था में दोलित्र का कार्य करेगा। अतः प्रवर्धक में स्वतः उत्तेजित दोलनों के लिये समी. (2) से
(i) पुनर्निवेश गुणक ( feed back factor) का परिमाण एकांक होना चाहिये, अर्थात् |ABI = 1.
(ii) प्रवर्धक-पुनर्निवेश परिपथ पाश में कुल कला का विस्थापन (phase shift) शून्य अथवा 2 का पूर्ण गुण होना चाहिये अर्थात् पुनर्निवेश धनात्मक होना चाहिये।
पुनर्निवेश पर उपरोक्त प्रतिबंध स्वत: उत्तेजन के लिये बार्कहाउजन कसौटी (Barkhausen Criterion) कहलाते हैं।
वास्तविकता में दोलन प्रारंभ होते समय |AB| > 1 जिससे दोलन आयाम में तेजी से वृद्धि होती है तत्पश्चात् दोलन पोषित रखने के लिये |AB| = 1 हो जाता है। दोलित्र में यह समायोजन स्वतः होता है। दोलन आयाम अधिक होने के कारण अरैखिक विरूपण से सनांदियों की उत्पत्ति भी होती है परन्तु उच्च Q मान के दोलनी परिपथ के उपयोग से लगभग शुद्ध तरंग की प्राप्ति संभव होती है।
स्वतः उत्तेजित दोलनों के लिये परिपथीय आवश्यकता (CIRCUIT REQUIREMENTS FOR SELF EXCITED OSCILLATIONS) चित्र (6.3-1) में पुनर्निवेशी दोलित्र का मूल परिपथ प्रदर्शित किया गया है। इस परिपथ में तीन प्रतिघाती अवयव ( reactive elements) Z1. Z2 तथा Z3 प्रयुक्त किये गये हैं जिनके द्वारा पुनर्निवेश प्राप्त होता है। इस परिपथ के द्वारा निर्गत संकेत तथा पुनर्निवेशी संकेत में ( 180°) का कलान्तर उत्पन्न होता है इसके साथ ही प्रवर्धक के द्वारा निविष्ट व निर्गत संकेत में का कलान्तर प्राप्त होता है। इस प्रकार पूर्ण पाश में 2(360°) का कलान्तर उत्पन्न होता है जो कि बार्कहाउजन कसौटी का एक प्रतिबन्ध है।
चित्र (6.3–1) में A प्रवर्धक है। लोड प्रतिबाधा ZL, समान्तर क्रम में जुड़े Z2 व (Z 1 + Z3) के तुल्य है। निर्गत वोल्टता Z2 अथवा (Z3 + Z1 ) के सिरों के मध्य प्राप्त होती है। Z1 के सिरों के मध्य वोल्टता पुनर्निवेश के लिये प्रयुक्त होती है।
यदि उभयनिष्ठ उत्सर्जक ट्रांजिस्टर प्रवर्धक (common emitter transistor amplifier) का उपयोग किया जाता है तो चित्र (6.3-1 ) के टर्मिनल 1, 2 व 3 क्रमशः आधार (Base), संग्राहक (collector ) तथा उत्सर्जक (emitter) को निरूपित करेंगे, तथा तुल्य निर्गम परिपथ चित्र (6.3-2) के अनुरूप होगा । दोलित्र के तुल्य परिपथ में यह माना गया है कि ट्रॉजिस्टर का प्राचल he उपेक्षणीय है और अन्तरणचालकता (transconductance) gm = hfe/hie एवं निर्गम प्रतिरोध Ro = 1/hoe है।
इस परिपथ के लिये
प्रतिबन्ध (8) के लिये X1 व X2 एक ही प्रकृति के (एकं ही चिन्ह युक्त) प्रतिघात होने चाहिये अर्थात् दोनों धारितीय अथवा दोनों प्रेरणिक प्रतिघात होने चाहिये, साथ ही प्रतिबन्ध (7) के अनुसार Z3 की प्रकृति Z1 व Z2 के ‘विपरीत होनी चाहिये अर्थात् यदि Z1 व Z2 धारितीय है तो Z3 प्रेरणिक होना चाहिये तथा यदि Z1 व Z2 प्रेरणिक हैं तो Z3 धारितीय होना चाहिये ।
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