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organic growth factors for bacteria in hindi , कार्बनिक वृद्धि कारक क्या है , जीवाणुओं में

जानिये organic growth factors for bacteria in hindi , कार्बनिक वृद्धि कारक क्या है , जीवाणुओं में ?

कार्बनिक वृद्धि कारक (Organic growth factors)

हापकिंस (Hopkins, 1906) ने सर्वप्रथम इस ओर वेज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया कि वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइट्रेट, खनिज, जल तथा ऑक्सीजन के अतिरिक्त भी ऐसे यौगिक है जो मानव पोषण हेतु आवश्यक होते हैं । इस प्रेक्षण से फुंक (Funk, 1912 ) द्वारा किये गये विटामिनों के आविष्कार को प्रेरणा मिली । विल्डिर्यस (Williards, 1901) ने मानव पोषण के लिये कुछ कारकों की आवश्यकता के आधार पर कवकों हेतु वृद्धिवर्धक बायोस (bios) की खोज की। –

बायोस, विटामिन बी जटिल, पैन्टोथेनिक अम्ल, पिरिडाक्सीन, बायोटिन तथा इनॉसिटॉल सहित अनेक जल-घुलनशील विटामिन का मिश्रण हैं।

विभिन्न वृद्धि कारकों के प्रति अलग-अलग प्रकार के जीवाणुओं में भिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया पायी जाती है। आन्त्र में पाये जाने वाले जीवाणु विटामिन B जटिल के अनेक विटामिनों का संश्लेषण करने में सक्षम होते हैं। एक्टिनोमाइसिटीज थाइमिन का तथा एशेरिकिया कोली फॉलिक अम्ल का संश्लेषण करता है। प्रयोगशाला में ताजे माध्यमों पर बार-बार उपसंवर्धित करके कुछ विटामिनों बिना भी जीवाणुओं को वृद्धि करने हेतु अनुकूलित किया जा सकता है।

जीवाणुओं द्वारा अधिकतर जिन वृद्धि कारकों को आवश्यकता होती है इनमें थाइऐमीन क्लोराइड, बायोटिन, पैन्टोथेनिक अम्ल, रिबोफ्लेविन, पिरिडॉक्सीन, निकोटिनिक अम्ल तथा P- ऐमीनो बैन्जोइक अम्ल सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त बहुत से विविध यौगिक, अनिवार्यतः सभी जीवाणुओं के लिये नहीं वरन् कुछ के लिये आवश्यक पाये गये हैं। इनमें कुछ निकोटिनैमाइड, इनॉसिटाल, पिमैलिक अम्ल B ऐलेनिन, ग्लूटेमिक अम्ल ग्लूटामिन, फॉलिक अम्ल, प्यूरिन, पिरिमिडीन, ग्लूटाथाइऑन, हीमैटिन, बीटेइन, प्यूरिन न्यूक्लिओटाइड, कोलीन तथा विटामिन B12 है।

फाइफर (Fyfer, 1893) ने पाया कि हीमोफिलस एन्फ्लुएंजी किसी माध्यम में उस समय ‘ तक वृद्धि नहीं करता जब तक कि उसमें रूधिर नहीं मिलाया जाता । थाजोटा तथा ऐवेरी (Thajota and Avery, 1921) तथा फिल्डेस (Phildes, 1921, 1922 ) ने पाया कि रक्त में उपस्थित कारक V तथा X की इन्हें आवश्यकता होती है। Vकारक अनेक पौधों के सार में तथा अनेक जीवाणुओं में भी पाया जाता है। ताप अस्थिर कारक 90°C पर 15 मिनट में नष्ट हो जाता है। यह पार्चमेन्ट झिल्लियों से प्रवेश करने में सक्षम होता है। X कारक आलू में एवं अनेक जीवाणुओं में पाया जाता है। यह ताप स्थिर प्रकार का कारक है जो 120°C तापक्रम पर 45 मिनट तक स्थिर रहता है।

सारणी- सूक्ष्मजीवों में विटामिलों का सहकिण्वकों से संबन्ध एवं होने वाला क्रिया

विटामिन सह किण्वक कोशिका में होने वाली किण्वकीय क्रिया
निकोटिनिक अम्ल

(नाइसिन)

पिरिडिन न्यूक्लिओटाइड

को – एन्जाइम्स (NAD + एवं NADP)

विहाइड्रोजनीकरण, ETS स्थानान्तरण तंत्र में उपयोगी ।

 

रिबोफ्लैविन

(vit. B2)

फ्लैविन न्युक्लिओटाइड्स

(FAD एवं FMN)

विहाइड्रोजनीकरण एवं ETS

 

थाएमिन

(vit. B1)

थायमिन पायरोफॉस्फेट

(कार्बोक्सिलेज)

विकार्बोक्सीकरण एवं समूह स्थानान्तरकारी

क्रियाएँ ।

पिरीडोक्सीन

(vit. B6)

पिरिडॉक्सल फॉस्फेट अमीनो अम्ल उपापचयी क्रियाएँ
पेन्टोथैनिक

अम्ल

 

कोएन्जाइम – ए कीटो अम्ल ऑक्सीकरण, वसीय अम्ल

उपापयच

फॉलिक अम्ल टेट्राहाड्रोफॉलिक अम्ल एक कार्बन इकाईयों का स्थानान्तरण
बायोटिन बायोटिन CO2 यौगिकीकरण, कार्बोक्सिल स्थानान्तरण
कोबाल्मिन

( vit. B12)

 

सभी कोबाल्मिन व्युत्पन्न

 

आण्विक पुर्नव्यवस्थाकारी क्रियाएँ प्रोटीन संश्लेषण DNA एवं प्रतिकृतिकरण में उपयोगी ।

 

V कारक   ETS प्रक्रिया में भूमिका ।

 

अन्य जीवों की भाँति सूक्ष्मजीवो की देह में होने वाली अनेक जैव रसायनिक क्रियाएँ कोशिकीय पर्थों की क्रमबद्ध उपापचयी क्रियाओं के माध्यम से सम्पन्न होती हैं। इन क्रियाओं के सम्पन्न होने में किण्वकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है । अनेक क्रियाओं में किण्वकों के अतिरिक्त वृद्धि कारक (growth factors) एवं अमीनों अम्ल भी भाग लेते हैं। विटामिन पूर्वनिर्मित कार्बनिक अणु होते हैं जो वातावरण में सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित होते हैं। ये किसी सह एन्जाइम (co-enzyme) का भाग बन कर किसी जैव-रासायनिक क्रिया को सम्पन्न कराने में भूमिका रखते हैं। ऊपर दी गयी तालिका द्वारा कुछ विटामिनों का सहकिण्वकों से संबंध एवं की जाने वाली क्रियाओं को दर्शाया गया है।

सहकिण्वक विटामिन युक्त या फॉस्फोरस युक्त कार्बनिक अणु होता है। जो किण्वकीय जैव-अभिक्रियाओं में सहायक होता है। बैक्टीरिया कोशिकाओं में अमीनों अम्ल भी वृद्धि कारक हो सकते हैं। यह तो ज्ञात ही है कि लगभग आवश्यक अमीनों अम्लों की संख्या 20 होती है तथा सभी कोशिकाएँ इनका संश्लेषण करने में सक्षम नहीं होती। अतः बाहर से प्राप्त करती है। कुछ कोशिकाओं में ग्लुटिनिक अम्ल, ऐलेनीन तथा ऐस्पेरेजीन वृद्धि कारक हो सकते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवों में नाइट्रोजनी क्षारक प्यूरिन एवं पिरिमिडिन को संश्लेषण करने की क्षमता नहीं पायी जाती अतः ये भी वृद्धि कारक हो सकते हैं। रोगजनक जीवाणुओं में लौह युक्त कार्बनिक अणु हीम (heme) कोशिका के किण्वकों द्वारा इलेक्ट्रॉन वाहकों के निर्माण हेतु उपयोग में लाया जाता है अतः पोषक की देह के बाहर इन जीवाणुओं का संवर्धन करने हेतु यह वृद्धि कारक आवश्यक होता है। विभिन्न सूक्ष्मजीवों हेतुं वृद्धि कारकों की आवश्यकताएँ भी भिन्न प्रकार की होती हैं।

वातावरणी कारक (Environmental factors)

सूक्ष्मजीवों को वृद्धि हेतु उचित वातावरणकी आवश्यकता भी होती है। प्रत्येक सूक्ष्मजीवों को आदर्श ताप, नमी, लवण, सान्द्रता, ऑक्सीजन एवं pH की आवश्यकता अन्य प्राणियों की भाँति ही होती है। अनेक सूक्ष्मजीवों का तो इन कारकों की सूक्ष्म सीमाकारी सीमाओं में ही संवर्धन किया जा सकता है। ताप को आधार मानते हुए जीवाणुओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत करते हैं-

तापक्रम सेन्टीग्रेड में

जीवाणु का प्रकार न्यूनतम आदर्श उच्चतम
शीत रागी (Psychrophilic)

 

0 15-20 30

 

मध्यरागीय

(Mesophilic)

15-25

 

25-40 50
तापरागी (Thermophilic).

 

25-40 45-55 55-85
       

 

शीत रागी या निम्न ताप-प्रिय सूक्ष्मजीव निम्न ताप पर एवं मध्यरागीय एवं मध्यम तापप्रिय सूक्ष्मजीवाणु रोगजनक या परजीवी के रूप पाये जाते हैं। तापरागी या अधिक तापक्रम पर वृद्धि करने वाले जीवाणु मृदा की परतों में, ज्वालामुखी के निकट या खदानों में पाये जाते हैं। अधिकतर जीवाणु न बनाने वाले जीवाणु 50-60°C के ताप को सहन नहीं कर पाते किन्तु बीजाणु बनाने वाले जीवाणु 100°C पर भी जीवित बने रहते हैं। अधिकतर जीवाणु एवं कवच उच्च नमी को सहन करते हैं। अनेक रोगजनक सूक्ष्मजीव इसी कारण नमी की कमी होने पर वृद्धि करना बंद कर देते हैं। 6000 वातावरण का सीधा दाब बीजाणु न बनाने वाले जीवाणुओं को मृत बनाने हेतु 14 घण्टे के लिये आवश्यक पाया गया है। सामान्यतः 1% से अधिक लवणों की मात्रा अनेक जीवाणुओं हेतु हानिकारक होती है, किन्तु समुद्र या लवणीय झीलों में रहने वाले जीवाणु 4.0-27.0% लवण पर भी जीवित बने रहते हैं। जीवाणुओं में हाइड्रोजन आयन्स के प्रति ग्राह्यता भी भिन्न प्रकार की पायी जाती है। सामान्यतः pH 6-7 अधिकतर जीवाणुओं हेतु अनुकूल होता है। अधिकतर कवक कुछ -अम्लीय pH (5–6) माध्यम में वृद्धि करती है। रोगजनक जीवाणु pH 7 पर ‘अर्थात् कुछ क्षारीय माध्यम में सक्रिय होते हैं, रक्त का pH7 ही होती है। अनेक कवक pH3 पर भी सक्रिय बनी रहती है। इस आधार पर सूक्ष्मजीवों को एसिडोफिल (acidophiles ) न्यूट्रोफिल (neutrophiles ) एवं एल्केलोफिल (alkalophiles ) समूह में विभक्त करते हैं।