परिमाण की कोटि क्या है ? Order of magnitude in hindi परिमाण की कोटि किसे कहते हैं परिभाषा अर्थ उदाहरण
Order of magnitude in hindi परिमाण की कोटि क्या है ? परिमाण की कोटि किसे कहते हैं परिभाषा अर्थ उदाहरण ?
परिमाण की कोटि – किसी भी राशि के परिमाण का अनुमान लगाने के लिये वह राशि कितनी बडी अथवा छोटी है, हम उस राशि के परिमाण की कोटि बताते हैं। किसी राशि की कोटि ज्ञात करने के लिए उस राशि को निकटतम दस की घात के रूप में लिखा जाता है। दस की घात वाली संख्या को ही राशि के परिमाण की कोटि कहते हैं।
उदाहरण के लिए अंक 9 के परिमाण की कोटि 101 होमी जबकि 172 के परिमाण की कोटि 102 होगी, इसी प्रकार 0.003 के परिणाम की कोटि 103 होगी। किसी राशि के परिमाण की कोटि ज्ञात करने में यह ज्ञात किया जाता है कि वह राशि दस की किन-किन घातों के मध्य है। इसके पश्चात् यह देखा जाता है कि दी गई राशि 10 की कम घात की कितनी गनी है तथा 10 की अधिक घात, राशि की कितनी गुनी है। अब, दी गई राशि दस की जिस घात के अधिक निकट होती है वह राशि की कोटि मानी जाती है। उदाहरणार्थ, 200 राशि 102 एवं 103 के मध्य में है। अब 200 राशि 102 की दुगुनी तथा 103 राशि का 5 गुणा है। स्पष्ट है कि दी गई 200 राशि 102 के अधिक निकट है। अतः इसके परिमाण की कोटि 102 होगी। कभी-कभी राशि दस की इन घातों से एक ही अनुपात रखती है, जैसे 331 का 102 एव 103 से समान अनुपात है अतः ऐसी राशि की कोटि 102 अथवा 103 दोनों हो सकती है।
मापन तथा परिकलन के सामान्य सिद्धान्त (Generaltheoryof measurement and calculation)
सार्थक अंक – प्रत्येक मापन यंत्र की यथार्थता की एक सीमा होती है जो उसके अल्पतमांक द्वारा निर्धारित होती है। किसी भौतिक राशि को उसी सत्यता तक व्यक्त करना चाहिये जितनी सत्यता तक हम उसकी माप कर सकते हैं। जितने अंकों से किसी राशि को निश्चित रूप से व्यक्त कर सकते हैं, उनकी संख्या को हम सार्थक अंक (Significant figures) की संख्या कहते हैं। किसी राशि की सार्थक अंकों की संख्या मापक यंत्र की यथार्थता पर निर्भर करती है, किसी संख्या में जितने अधिक सार्थक अंक होते हैं, उसके मापन में प्रतिशत त्रुटि उतनी ही कम होती है और संख्या में सार्थक अंक जितने कम होते हैं, प्रतिशत त्रुटि उतनी ही अधिक होती है।
किसी संख्या में से दशमलव बिन्दु हटाकर तथा बाईं ओर के शून्य (यदि कोई हो) को छोड़कर जो संख्या प्राप्त होती है उसकी अंकों की संख्या सार्थक अंक कहलाती है। उदाहरण के लिए जैसे-
संख्या सार्थकअंक संख्या सार्थक अंक
529.62 5 0.0059 2
501.002 6 0.00059 2
395.112 6 0.059 2
2.07010 6 1.0002 5
200.00 5 0.09503 4
सार्थक अंकों की सहायता से यह समझा जा सकता है कि 4.0 सेमी., 4.00 सेमी. तथा 4.000 सेमी. गणित की ही दुष्टि से समान होते हुए भी विज्ञान की दृष्टि से सर्वथा भिन्न हैं। 4.0 सेमी. में सार्थक अंक 2 है जबकि 4.00 सेमी. तथा 4.000 सेमी. में 3 तथा 4 सार्थक अंक हैं। किसी संख्या में जितने अधिक सार्थक अंक होते हैं वह संख्या उतनी ही अधिक यथार्थ होती है इस कारण 4.000 सेमी. माप सबसे अधिक यथार्थ है।
जोड़, घटा, गुणा तथा भाग में सार्थक अंकों का महत्व
जोड़ (योग)- जितनी भी राशियाँ जोड़ी जाती हैं वे एक ही मात्रक में होनी चाहिये और जोड़ते समय प्रत्येक माप में दशमलव अंक के बाद उतने ही अंक रखने चाहिये जितने कि, दमशलव के बाद सबसे कम अंकों वाली माप में हैं। उदाहरण के लिए 15.4 सेमी. 2.323 सेमी. तथा 0.44 सेमी. को जोड़ते समय निम्न प्रकार लिखकर जोड़ना चाहिए।
15.4 ़ 12.3 ़ 0.4 = 18.1 सेमी.
घटाना- मापों को घटाते समय भी उपयुक्त क्रिया ही काम में लाई जाती है। उदाहरण के लिये यदि 15.4 सेमी. में से 2.32 सेमी. घटाना हो, तब 156.4-2.3 = 13.1 सेमी.
गुणा- मापों को गुणा करने पर प्राप्त गुणनफल में केवल उतने ही सार्थक अंक रखने चाहिये जितने कि सबसे कम सार्थक अंकों वाली माप में हैं। उदाहरण के लिए माना कि वृत्त की त्रिज्या 4.24 मीटर (तीन सार्थक अंकों में) दी गई है उसका क्षेत्रफल πr2 निकालने के π का मान 3.14 (केवल तीन सार्थक अंकों में) लेना होगा न कि 3.1459A
इस प्रकार वृत्त का क्षेत्रफल = 3.14 × (4.24)2 = 3.15 × (17.9746)
17.9746 के स्थान पर तीन सार्थक अंक लेने के कारण 17.9 ही लेना चाहिये।
अतः क्षेत्रफल = 3.14 × 17.9 = 55.206 = 55.2 मीटर2
भाग- मापों को भाग करने पर प्राप्त भागफल में केवल उतने ही सार्थक अंक रखने चाहिये जितने कि सबसे कम सार्थक अंकों वाली माप में है उदाहरण के लिये 7.917 को यदि !.1 से भाग करना हो तब भागफल 7.2 होगा न कि 7.197 होगा।
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