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optical isomerism in hindi , प्रकाशिक समावयवता क्या है इसके उदाहरण प्रकार समझाइये

पढेंगे optical isomerism in hindi , प्रकाशिक समावयवता क्या है इसके उदाहरण प्रकार समझाइये ?

(a) ज्यामितीय समावयवता (Geometrical Isomerism)

(i) एकदन्तुक लिगण्ड– [Ma6] तथा [Ma5b] की तरह के संकुलों में इस प्रकार की समावयवता नहीं पाई जाती। इस प्रकार [Cr(NH3)6]Cl3 तथा [Co(NH3) 5H2O]CI3, के एक से अधिक यौगिक नहीं बनाये जा सकते है। [Ma4b2] की तरह के संकुल ज्यामितीय समावयवता दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, [Co(NH3)4Cl2]+ के सिस तथा ट्रान्स रूप चित्र 3.31 बताये गये हैं-

[Ma4bc] की तरह के संकुल भी समावयवता दर्शाते हैं। [Co(NH3)4 (H2O)Cl] 2+ के दो समावयवी रूप H2O तथा CI लिगण्डों को सिस तथा ट्रॉन्स स्थितियों में रखकर प्राप्त किये जा सकते हैं | Ma3b3 की तरह के संकुल भी दो रूपों में पाये जाते हैं। एक प्रकार के तीन लिगण्ड किसी एक फलक पर समत्रिबाहु (equilateral triangle) का निर्माण करते हुए facial या fac- समावयवी तथा निकटवर्ती तीन स्थानों का अधिग्रहण करते हुए mer- समावयवी बनाते हैं | Ma4b2 प्रकार के हजारों सिस व ट्रॉन्स समावयवों की तुलना में लगभग एक दर्जन भर ही इस प्रकार के fac- तथा mer- समावयवी ज्ञात हैं। चित्र 3.32 में [Co(NH3)3(NO2)3] के fac- तथा mer- समावयवी प्रदर्शित किये गये हैं।

[Ma3b2c] की तरह के संकुल तीन समावयवी रूपों में मिलते हैं। [Co(NO2)2 Cl(NH3)3] संकुल को उदाहरण के रूप में लेने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इसके एक रूप को fac-[Co(NO2)3(NH3)3] से एक NO2 समूह के CI द्वारा प्रतिस्थापन (substitution) से बना माना जा सकता है। अन्य दोनों रूपों को mer-[Co(NO2)3(NH3) 3] के 3 या 4 स्थानों पर स्थित NO2समूह की जगह CI रखकर प्राप्त किया जा सकता है।

[Ma3bcd], [Ma2b2 C2], [Ma2b2cd], [Ma2bcde] तथा [Mabcdef] की तरह के संकुलों के क्रमशः 4,5,6,9 तथा 15 समावयवी रूप होंगे । यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि किसी एक प्रकार के लिगण्ड की संख्या कुम होने पर समावयवों की कुल संख्या बढ़ती है | अतः [Pt(py)2Cl2 (NH3)2+ पाँच समावयवी रूपों में तथा [ Pt (py) (NO2 ) 2 CI(NH3)2 ] छ: समावयवी रूपों में पाये जाने चाहिये। [Pt(py)(NO2)ICIBrNH3] + संकुल के सभी 15 अपेक्षित रूप अभी तक नहीं बनाये जा सके हैं।

(ii) द्विदन्तुक लिगण्ड युक्त संकुल- [M (AA)a4] की तरह के संकुल कोई समावयवता नहीं दर्शाते हैं | इस प्रकार [Co(CO3)(NH3) 4]’ केवल एक रूप में ही पाया जाता है। यहाँ भी यह देखा जा सकता है कि एकन्दतुक लिगण्डों की संख्या घटने पर प्रयोगशाला में बनाये जा सकने वाले समावयवों की संख्या बढ़ती जाती है। इस प्रकार, [M (AA) abcd ] छः रूपों में पाये जायेंगे ।

[M(AA)2ab] या [M (AA) 2a2 ] की तरह के संकुलों में जहाँ दो द्विदन्तुक लिगण्ड विद्यमान होते हैं, एकदन्तुक लिगण्डों की सिस तथा ट्रॉन्स स्थितियों में रखकर दो समावयवी रूप प्राप्त किये जा सकते हैं। उदाहरण के लिए [Co(en)2Cl2]+ संकुल आयन के दो रूपों को चित्र 3.33 में दिखाया गया है।

चूँकि, एक द्विदन्तुक लिगण्ड सदैव सिस स्थान ही ग्रहण करता है, M(AA)3की तरह के संकुल केवल एक रूप में ही पाये जाते हैं। तथापि, लिगण्ड के दाता परमाणु समान नहीं होने पर अर्थात् [M(AB)3] की तरह के संकुलों में दाता परमाणुओं की fac तथा mer व्यवस्थाओं के चित्र 3.34 में दिखाये गये दो रूप ज्ञात हैं ।

 (b) प्रकाशिक समावयवता (Optical isomerism ) :- यह पहले ही बताया जा चुका है कि जिन अणुओं/ आयनों में सममिति का तल (Plane of symmetry) नहीं होता वे दो ध्रुवण घूर्णक (Optically active) समावयवी देते हैं जिनमें एक समावयवी दूसरे का दर्पण बिम्ब होता है। यद्यपि वर्गाकार समतलीय तथा चतुष्फलक संकुल भी ध्रुवण घूर्णकता दर्शाते हैं, यह गुण अष्टफलकीय संकुलों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सभी एकदन्तुक लिगण्ड वाले संकुल प्रकाशिक समवयवता तभी प्रदर्शित कर सकते हैं जब उनमें तीन या अधिक तरह के लिगण्ड हों तथा किसी भी प्रकार के लिगण्डों की संख्या दो से अधिक न हो। इस प्रकार [Ma2b2C2]. [Ma2 b2cd] [Mabcde], तथा [Mabcdef] की तरह के संकुलों में ध्रुवण- घूर्णकता अपेक्षित है। मात्र एकदन्तुक लिगण्डों वाले संकुलों के लिए ध्रुवण- घूर्णकता अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि इनके समावयवों को अभी तक विभेदित (Resolve) नहीं किया जा सका है।

द्विदन्तुक लिगण्ड वाले संकुलों में प्रकाशिक समावयवता बहुतायत से पाई जाती है। [M(AA)3], सिस [M(AA)2a2] तथा सिस [M(AA)2ab] की तरह के संकुल सर्वाधिक सामान्य हैं। इन दोनों प्रकार के संकुलों के ट्रान्स समावयवों में एक सममिति का तल (plane of symmetry) पाया जाता है। उदाहरण के लिए सिस [Co(en)2Cl2]’ के दो ध्रुवण घूर्णक रूप चित्र 3.35 में दिखाये गये हैं जिसमें एक समावयवी दूसरे का दर्पण बिम्ब है ।

[M (AA)3] की तरह के सकुल ज्यामितीय समावयवता प्रदर्शित नहीं करते हैं तथा दो दर्पण बिम्ब समावयवों के मिश्रण के रूप में पाये जाते हैं। उदाहरण के लिए (Pt(en)3] 4+ के दो समावयवी चित्र 3.36 में दिखाये गये हैं।

1914 तक, क्योंकि केवल कार्बनिक यौगिक तथा कार्बन रखने वाले लिगण्डों से बने अकार्बनिक संकुल ही ध्रुवण घूर्णता प्रदर्शित करने वाले पदार्थों के उदहारण के रूप में थे, बहुत से रसायनज्ञों का ऐसा अनुमान था कि अकार्बनिक संकुलों में ध्रुवण घूर्णकता कार्बन परमाणुओं की उपस्थिति के कारण थी | चूँकि वर्नर के सिद्धान्त से प्रकाशिक समावयवों के अस्तित्व के बारे में पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है. इस प्रकार का विचार उनके सिद्धान्त को सीधी चुनौती थी। इसलिए उन्होंने अपना ध्यान शुद्ध अकार्बनिक प्रकृति के ध्रुवण घूर्णक उपसहसंयोजन यौगिक (जिनमें कार्बन परमाणु बिल्कुल भी न हो) बनाने की ओर केन्द्रित किया। 1914 में उन्हें अपने प्रयास में सफलता मिली जब कार्बन रहित ट्रिस, टेट्राऐम्मीनडाइ — हाइड्रॉक्सिडोकोबाल्ट (III) ) कोबाल्ट (III) आयन (चित्र 3.37(a)) को विभेदित ( resolve) कर लिया गया। इस आयन के ध्रुवण घूर्णक रूप चित्र 3.37 (b) में दिखाये गये हैं।

इस तरह का एक अन्य संकुल मान (Mann) द्वारा 1933 में बनाया गया था, जिसने सिस डाइऐक्या डाइसल्फमिडोरोडेट (III) आयन को d तथा /- रूपों में विभेदित किया। जैसा कि अपेक्षित है, एन्स समावयवी ध्रुवण-घूर्णक नहीं होगा | [Rh(H2O){(NH)2SO)2] आयन के ये तीनों रूप चित्र 3.38 मे दिखाये गये हैं।

D0, d1, d2, d3, d4, d5, d6 के तथा ‘ विन्यास वाले धातु आयन सामान्यतः अष्टफलकीय संकुल बनाते हैं, जिनमें धातु dsp या spdf संकरित होगा। संकरण की धारणा को 6- उपसहसंयोजित संकुलों की त्रिविम रसायन तथा उनके चुम्बकीय गुण समझाने में काम में लिया जा सकता है। इसका विवेचन अगले पृष्ठों में किया गया है।

त्रिभुजीय प्रिज्म संरचना- यद्यपि अधिकतम संख्या में 6- उपसहसंयोजित संकुल अष्टफलकीय संरचना के माने जा सकते हैं, कुछ ऐसे रोचक यौगिक भी बनाये जा चुके हैं जिनकी ज्यामिति त्रिभुजीय प्रिज्म जैसी होती हैं। पृथक आण्विक संकुल के रूप में त्रिभुजीय प्रिज्मी संरचना वाला प्रथम यौगिक ट्रिस(सिस-1,2- डाइफेनिलएथीन- 1.2 डाइथायोलेटो) रीनियम (III), [Re (S2 C2 Ph2) 3 ] है जिसकी संरचना चित्र 3.39 में दिखाई गई है। इस यौगिक के पश्चात् त्रिभुजीय संरचना के कुछ और संकुल बनाये जा चुके हैं, लेकिन उनमें त्रिविम समावयवता का निर्धारण नहीं हो पाया है अर्थात्, त्रिभुजीय प्रिज्म संरचना में ज्यामितीय तथा प्रकाशिक समावयवता की निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं हैं।

(vi) समन्वय संख्या 7:

इस समन्वय संख्या वाले कुछ ही यौगिक ज्ञात हैं। ये अधिकांशतः बड़े धनायनों के फ्लुओरो संकुल होते हैं। उदहारणार्थ [ZrF7]3- तथा [NbF77]2- ऐसे संकुल हैं। EDTA तथा एकदन्तुक लिगण्डों से भी कुछ इस प्रकार के संकुल बनाये जा चुके हैं। SN2 कार्यविधि (mechanism) द्वारा अष्टफलकीय संकुलों में प्रतिस्थापन (substitution) क्रियाओं को समझाने में भी इस उपसहसंयोजन संख्या की विशेष उपयोगिता है। ऐसे संकुलों की अष्टफलकीय वेज (अष्टफलकीय संरचना तथा एक लिगण्ड किसी एक फलक (Face) के केन्द्र पर ) या पंचभुज द्विपिरेमिडी संरचना होती है।

(vii) समन्वय संख्या 8:- यद्यपि यह समन्वय संख्या प्रदर्शित करने वाले कुछ ही सकुल ज्ञात है, ऐसे संकुलों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे संकुलों की संरचना चर्तुभुज ऐन्टीप्रिय है। जैसी (उदाहरण के लिए TaF83) या त्रिभुज फलकों सहित द्वादशफलकीय, जैसे (Mo (CN)8]4- होती है।