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नाभिकीय विकिरण (nuclear radiation in hindi) | विकिरण के प्रकार (types of radiation) आयनीकारी

(nuclear radiation in hindi) नाभिकीय विकिरण , विकिरण के प्रकार (types of radiation) आयनीकारी क्या होता है ? किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण |

विकिरण और पर्यावरण (radiation and environment)

परमाणु ऊर्जा संस्थानों के कारण जो प्रदूषण फैलने की आशंका है उसके विषय में जनसाधारण का चिंतित होना स्वाभाविक है। इसका एक विशेष कारण है। प्रदूषण के जो अन्य अनेक स्रोत है , जनसाधारण अपनी ज्ञानेन्द्रियो से उनका अनुभव कर सकता है। उदाहरण , बस एवं कार और बिजलीघर से निकलता धुआं अथवा किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान से निकलता दुर्गन्धपूर्ण गैस अथवा गन्दा पानी आदि।

मनुष्य के कान , आँख , नाक , जीभ आदि प्रदुषण के अनेक स्रोतों का आभास कराने में सहायक होते है। विकिरण द्वारा फैलता प्रदूषण इन साधनों से नहीं देखा जा सकता है तथा न ही मानव जीवन पर इसका प्रभाव तुरंत दिखाई पड़ता है। ऐसे प्रदूषण को केवल वैज्ञानिक यंत्रों द्वारा नापा जा सकता है।

यही कारण है कि जनसाधारण को इसकी जानकारी न होने के कारण इसके प्रभाव के विषय में भ्रान्तियो एवं काल्पनिक भय है।

परमाणु भट्टी में ईंधन के रूप में यूरेनियम , प्लूटोनियम आदि का प्रयोग होता है। इन भट्टियों को परमाणु भट्टी (रिएक्टर) कहते है।

नाभिकीय विघटन द्वारा परमाणु ऊर्जा प्राप्त होती है। इंधन के जल जाने पर बचे हुए पदार्थ को नाभिकीय कचरा अथवा अपशिष्ट कहते है। परमाणु भट्टी से विशेषकर दो प्रकार के प्रदूषण फैलने की आशा होती है। प्रथम तो विकिरण तथा द्वितीय रेडियो सक्रीय अपशिष्ट (कचरा) |

परमाणु ऊर्जा अथवा परमाणु विकिरण आधुनिक विज्ञान की एक दो धारी तलवार है। हजारों की संख्या में बने परमाणु बमों तथा प्रक्षेपास्त्रो ने धरती के समस्त जीव जगत को जहाँ महाविनाश के कगार पर पहुंचा दिया है , वही दूसरी ओर बिजली के उत्पादन तथा कृषि , चिकित्सा , धातुकर्म आदि अनेक क्षेत्रों में आज परमाणु ऊर्जा विकिरण का व्यापक उपयोग हो रहा है। इसके साथ साथ परमाणु विकिरण के अनेकानेक खतरे भी है। यही कारण है कि अब बहुत से लोग तथा वैज्ञानिक भी परमाणु ऊर्जा साधनों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने की मांग कर रहे है। बिजली पैदा करने वाला रिएक्टर एटमिक हथियार तो नहीं है लकिन उसके साथ भी खतरे जुड़े हुए है। पिछले लगभग तीन दशकों में अनेक रिएक्टरों से दुर्घटनाएं हुई है।

 नाभिकीय विकिरण (nuclear radiation)

ऐसी मान्यता है कि लगभग 450 करोड़ वर्ष पूर्व का आविर्भाव हुआ। उस समय भी पृथ्वी पर रेडियो धर्मिता थी , फिर भी जीवन का केवल प्रादुर्भाव ही नहीं हुआ बल्कि उसमें विकास भी होता गया। यह रेडिओधर्मिता धीरे धीरे अपने आप कम होती गयी लेकिन आज भी इसका कुछ अंश हमारे मध्य उपस्थित है। इसके मुख्य स्रोत है – यूरेनियम , थोरियम तथा पोटेशियम के आइसोटोप है। ये रेडियो सक्रीय पदार्थ , अधिकांशत: पृथ्वी की सतह की थोड़ी गहराई पर ही पाए जाते है। नाप से जाना जाता है कि इस प्रकार की रेडियो सक्रियता लगभग 5.4 करोड़ “क्यूरी” है। (540 x 1012 curies) |

विकिरण के प्रकार (types of radiation)

वर्तमान सदी के दुसरे दशक में रदरफोर्ड के प्रयोगों से स्पष्ट है कि परमाणु के नाभिक से तीन प्रकार के विकिरण बाहर निकलते है अथवा उत्सर्जित होते है। यूनानी वर्णमाला के प्रथम अक्षरों के आधार पर इसका नामकरण हुआ है – अल्फ़ा , बीटा एवं गामा।

अल्फ़ा और बीटा अति सूक्ष्म परमाणु कण है तथा गामा सूक्ष्म तरंगों वाली किरणें है। अल्फा विकिरण में दो प्रोटोन और दो न्यूट्रोन कण होते है। यह हीलियम के परमाणु का नाभिक होता है। बीटा कण वस्तुतः तीव्र वेग वाले इलेक्ट्रॉन होते है। नाभिक के प्रोटोन तथा न्यूट्रोन जब एक दूसरे में बदलते है तब इन विशिष्ट इलेक्ट्रॉनों का जन्म होता है। परमाणु का नाभिक जब अधिक उत्तेजित हो जाता है , तब वह गामा किरणों का उत्सर्जन करता है। अल्फा और बीटा कणों की धाराओं तथा गामा किरणों को ही परमाणु विकिरण कहते है। सर्वप्रथम रेडियम के परमाणु नाभिक में स्वत: विकिरण निकलने का अध्ययन किया गया था , इसलिए इसे रेडियोएक्टिव अथवा रेडियोधर्मी विकिरण नाम दिया गया।

संरचना की दृष्टि से विकिरण दो प्रकार के होते है –

1. विद्युत चुम्बकीय विकिरण : जैसे प्रकाश किरणें , एक्स किरणें , पराबैंगनी किरणें आदि।

2. कणीय विकिरण : अल्फ़ा , बीटा और न्यूट्रोन किरणें आदि कणीय विकिरण है , जिनमें भार होता है।

प्रभाव की दृष्टि से विकिरणों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –

1. आयनकारी विकिरण

2. अन आयनीकारी विकिरण

इस टॉपिक में हम अपना ध्यान केवल आयनीकारी विकिरण और उनसे सम्बन्धित तथ्यों पर ही संकेन्द्रित करेंगे।

आयनीकारी विकिरण (ionizing radiation)

ये अधिक शक्तिशाली होते है , क्योंकि परमाणु से टकराने पर वे उन्हें आयनित करने की क्षमता रखते है। जब आयनीकारी विकिरण परमाणु से टकराते है तब उसका बाह्य इलेक्ट्रॉन कक्षा से निकलकर बाहर आ जाता है। इलेक्ट्रॉन की कमी होने से परमाणु धन आयनित (+ve) हो जाता है तथा इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक (-ve) कण के रूप में अलग हो जाते है। इन्हें आयन युग्म कहते है। यही प्रक्रिया आयनन कहलाती है।

ऊष्मा अथवा प्रकाश किरणों के प्रभाव से परमाणुओं के बाहरी इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षाएँ बदल लेते है। परन्तु रेडियोधर्मी विकिरण इतना तीव्र होता है कि वह परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों को उनसे एकदम अलग कर देता है , तब वे परमाणु विकिरण आयन बन जाते है तथा वह विभिन्न रासायनिक क्रियाएं दर्शाते है। रेडियोधर्मी विकिरण , सामान्य परमाणुओं को आयनों में बदल देता है , इसलिए इसे आयनकारी विकिरण कहते है। यह आयनकारी विकिरण वस्तुओं की रासायनिक व्यवस्था को बदल देते है।

विद्युत चुम्बकीय विकिरण (electromagnetic radiation)

आयनकारी विकिरणों की एक श्रेणी में गामा तथा एक्स किरणों की गणना होती है। यह ऊर्जा की विद्युत चुम्बकीय तरंगे होती है।

एक्स किरणों में न तो आवेश होता है तथा न भार होता है। जब इलेक्ट्रॉन की धाराएँ अर्थात कैथोड किरणें किसी बाधा से टकराती है तब इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा एक्स किरणों के रूप में बदल जाती है। ये काफी शक्तिशाली और अन्तर्भेदी होती है।

इनकी खोज सर्वप्रथम “रोंजन (Roentgen)” ने 1895 में की थी। अन्तर्भेदी होने के कारण शरीर के आंतरिक अंगो , विशेषकर हड्डियों के चित्र लेने में इससे आसानी हो गयी क्योंकि ये त्वचा तथा मांस को तो पार कर सकती है , लेकिन हड्डियों को नहीं। एक्स किरणों का तरंग दैधर्य छोटा होता है : 0.1 एंग्सट्रम (A) से 100 एंग्सट्रम (A) तक।

विकिरणों का तरंग दैर्ध्य जितना छोटा होता है , उसकी अन्तर्भेदी क्षमता उतनी ही अधिक होती है। आजकल एक्स रे फोटोग्राफी का चिकित्सा क्षेत्र में अधिक उपयोग होता है।

गामा किरणें एक्स किरणों के समान होती है लेकिन सामान्य तौर पर अधिक शक्तिशाली होती है अर्थात उनका तरंग दैर्ध्य और भी छोटा होता है। गामा किरणों का तरंग दैर्ध्य 0.00001 एंग्सट्रम (A) से 0.1 एंग्सट्रम (A) तक होता है। स्पष्ट है कि गामा किरणें एक्स किरणों की अपेक्षा अधिक अन्तर्भेदी होती है। गामा किरणों का उद्गम परमाणु नाभिक से होता है। नाभिक की आंतरिक हलचल या विघटन के परिणामस्वरूप ही गामा किरणें उत्पन्न होती है।

कणीय विकिरण (corpuscular radiation)

आयनकारी विकिरणों की दूसरी श्रेणी में मुख्य रूप से एल्फा , बीटा तथा न्यूट्रोन किरणों के कणीय विकिरण आते है .इन सब का उद्गम स्थान परमाणु का नाभिक ही होता है। एल्फा कण में 2 इकाई धन आवेश और 4 इकाई भार होता है। अत: यह शरीर में अधिक दूरी तक नहीं जा सकते लेकिन किसी तरह शरीर के भीतर पहुँचने पर सघन आयनन के द्वारा उत्तकों को काफी हानि पहुंचाने की क्षमता रखते है।

बीटा कण नाभिकीय इलेक्ट्रॉन होते है जो न्यूट्रोन के प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन में टूटने से प्राप्त होते है। ऋण विद्युत आवेश के इन कणों का वेग प्रकाश के वेग से कुछ ही कम होता है। केवल एक इकाई आवेश होने और अधिक वेग होने के कारण इसकी अन्तर्भेदी क्षमता बहुत अधिक होती है।

न्यूट्रोन आवेशहीन कण होते है , जिनमे एक इकाई भार होता है। इनका वेग बहुत अधिक होता है। शीघ्रगामी न्यूट्रोन इतने अन्तर्भेदी होते है कि वे नाभिकीय प्रोटोन को प्रभावित करके आयनन उत्पन्न कर देते है। किसी तत्व के सभी परमाणुओं के नाभिकों में प्रोटोन की संख्या एकसमान रहती है।

लेकिन न्यूट्रोन कण कुछ कम अथवा अधिक हो सकते है। नाभिक में न्यूट्रोन की कम अथवा अधिक संख्या के अनुसार एक ही तत्व के कई परमाणु हो सकते है। इन्ही में कुछ समस्थानिक रेडियोधर्मी भी होते है।

मदाम क्यूरी की पुत्री आइरीन तथा दामाद जूलियो क्युरी को 1934 में पहली बार पता चला कि विभिन्न तत्वों पर एल्फा कणों के आघात करने पर उसके नाभिक अस्थिर हो जाते है तथा नए समस्थानिकों में बदल जाते है और उनमे परमाणु विकिरण निकलने लग जाते है। इसी प्रकार करीब सभी तत्वों के एक अथवा अधिक रेडियोधर्मी समस्थानिक उत्पन्न होते है और जल , थल तथा वायु में फ़ैल जाते है , नाभिकों के विखण्डन से उत्पन्न होने वाले न्यूट्रोन कण रेडिओधर्मी समस्थानिकों को जन्म देते है। इसलिए जीव जगत पर उनका भी बड़ा घातक परिणाम होता है।

विकिरण की इकाइयाँ

विकिरण घटनाओं के अध्ययन के लिए दो प्रकार के मापन की आवश्यकता होती है –
  1. होने वाले विघटन से विघटनाभिक पदार्थ के परिमाण का मापन , और
  2. अवशोषित ऊर्जा की दृष्टि से विकिरण मात्रा का मापन जो आयनन अथवा नुकसान पहुंचाने में समर्थ हो।
विघटनाभिक पदार्थ के परिमाण का मात्रक क्यूरी होता है। पदार्थ के उस परिमाण को एक क्युरी माना गया है जिसमे प्रति सेकंड 3.7 x 1010 परमाणुओं का विघटन होता है।
उदाहरण : रेडियन का एक ग्राम क्यूरी (Ci) होता है। इससे प्रति सेकंड 3.7 x 1010 विकिरण निकलते है। रेडियोधर्मी मात्रा मापने के लिए दो अन्य इकाई निश्चित की गयी है –
रैम (Rem = roentgen equivalent man) और रैड (Rad = radiation absorbed dose)
एक रैड विकिरण की वह मात्रा है , जिसके फलस्वरूप 1 ग्राम उत्तक 100 अर्ग ऊर्जा ग्रहण कर लेता है।
रैम एक ऐसी यूनिट है जो विभिन्न प्रकार के विकिरणों के जैविक प्रभाव को प्रकट करती है। रोंजन (R) प्राचीन मात्रक है। एक इकाई समय में प्राप्त किया गया परिमाण मात्रा दर कहलाता है।
1980 से अन्तर्राष्ट्रीय विकिरण मात्रक आयोग ने नए मात्रकों की सिफारिश की है जो कि धीरे धीरे प्रचलन में आ रहे है। ये निम्नलिखित है –
अवशोषण के मात्रक –
1 ग्रे = 100 रैड
1 सिवार्ट = 100 रैम
रेडियोधर्मिता के मात्रक –
1 बेकरल = 27 पाइको क्युरी

पृष्ठभूमिक विकिरण (background radiation)

पृथ्वी और पृथ्वी से परे स्रोतों से निरंतर कुछ विकिरण आते है तथा हम अनजाने में ही उनके प्रति उद्भासित होते रहते है। वातावरण में मिलने वाले ऐसे विकिरण , जिनसे हम बच नहीं पाते , पृष्ठभूमिक विकिरण कहलाते है। रेडियोधर्मी विकिरण की जानकारी हमें आधुनिक काल में मिली लेकिन यूरेनियम तथा थोरियम जैसे रेडियोधर्मी तत्व प्रकृति में शुरू से रहे है – चट्टानों में , मिट्टी में , बालू में , यहाँ तक कि हमारे शरीर में भी।
रेडिओधर्मी पोटेशियम की अल्प मात्रा सभी प्राणियों के शरीर में मौजूद रहती है (मानव शरीर में भी) |
परमाणु बमों के विस्फोट और परमाणु तथा रेडियो समस्थानिकों (आइसोटोप्स) के उपयोग से पृष्ठभुमिक विकिरण में भी काफी वृद्धि हुई है। सुदूरवर्ती तारों से धरती पर पहुँचने वाली ब्रह्माण्ड किरणें वायुमण्डल में रेडियोधर्मी कार्बन जैसे कुछ तत्वों का निर्माण करती है। परमाणु ऊर्जा में कृत्रिम स्रोतों के अधिकाधिक प्रसार के कारण यह स्थिति चिंताजनक है।

नवीन पर्यावरणीय पृष्ठभूमिक उत्सर्जक (new environmental background emitters )

विकिरण आज के पर्यावरण का अभिन्न अंग है। चूँकि हमारे संवेदी अंग इनके प्रति प्रत्यक्ष रूप से ग्राही नहीं होते , अत: बहुधा पर्यावरण के सन्दर्भ में विकिरण से होने वाले खतरों और अस्तित्व को लगभग अनदेखा कर दिया जाता है। इस दृष्टिकोण से विकिरण और नाभिकीय वातावरण का भी हर नागरिक को समुचित ज्ञान होना आवश्यक है।
इन प्राकृतिक पृष्ठभूमिक विकिरणों में से जनसंख्या को उद्भासित करने वाले विकिरणों का 90 प्रतिशत स्वयं उसके पर्यावरण से आता है और बाकी का भाग मानव निर्मित संसाधनों से।
आज रेडियम का उत्पाद रेडॉन-220 सबसे अधिक चिंतित करने वाला है। रेडॉन एक गैस के रूप में कंक्रीट की दीवारों , चट्टानों आदि से रिसता हुआ कमरे के अन्दर के वायुमण्डल को संदूषित करता है। श्वसन द्वारा यह रेडॉन फेंफड़ो में पहुँचकर वहां के कोमल उत्तकों में स्थान ग्रहण कर लेता है। चूँकि रेडॉन 220 अल्फ़ा कण (हीलियम का केन्द्रक , दो धनावेश के साथ) निकलते है तथा किसी भी कोशिका अथवा उत्तक को आसानी से क्षतिग्रस्त कर सकते है , अत: यह पर्यावरण में जन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। रेडॉन का लम्बे समय तक फेंफडों में रहना कैंसर रोग पैदा करता है। अमेरिका और ब्रिटेन में सर्वेक्षण के दौरान फेंफड़ो को कैन्सर उन स्थानों में सर्वाधिक पाया गया है जहाँ रेडॉन की मात्रा काफी है। कैंसर का खतरा और आवृति उन लोगो में 10 गुना अधिक पायी गयी है जो कि धूम्रपान करते है। अमेरिका के कुछ महानगरों में तो अब मकानों का डिजाइन भी इस प्रकार का रखा जा रहा है जिससे इस गैस का रिसाव कमरे से बाहर हो।
इसी प्रकार खनिज उद्योगों में लगे कामगारों में भी इसी के द्वारा स्वास्थ्य को काफी खतरा पाया गया है।
प्राकृतिक रेडियोधर्मिता की अल्प मात्रा के साथ साथ बड़े पैमाने की कृत्रिम रेडिओधर्मिता भी है। आणविक हथियारों के विस्फोट में अथवा रिएक्टर की दुर्घटना में बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी तत्वों का बिखराव होता है। रेडिओधर्मी उपयोग के और भी कई खतरे जैसे घडी के चमकीले डायल , रंगीन टीवी स्क्रीन तथा एक्स रे मशीन आदि वस्तुएं भी रेडियोधर्मी विकिरण छोडती है।
परमाणु बिजलीघरों में एक बड़ी समस्या होती है , उनमें बेकार बचे रहने वाले रेडियोधर्मी पदार्थ को समुचित रूप से ठिकाने लगाना। यह बेकार पदार्थ बहुत हानिकारक होता है। इसका एक प्रमुख रचक है ट्रिटियम। जैसा ऊपर बताया गया है परमाणु ऊर्जा का उत्पादन दिनों दिन बढ़ रहा है तथा उसके साथ साथ बढ़ रही है बेकार पदार्थ के रूप में ट्रिटियम की मात्रा।
ट्रिटियम हाइड्रोजन का एक भारी एवं अस्थायी रेडियोधर्मी समस्थानिक है जिससे निरंतर लगभग 5.7 KeV की बीटा किरणों का उत्सर्जन होता रहता है। इसका परमाणु भार 3 तथा अर्द्ध आयु 12.4 वर्ष है।
यह प्राकृतिक स्रोतों से भी उत्पन्न होती है। उच्च वायुमण्डल में यह कोस्मिक किरणों की नाइट्रोजन से प्रक्रिया करने पर उत्पन्न होती है तथा वर्षा आदि के पानी के साथ पृथ्वी पर आ जाती है। पानी के घोल के रूप में ही यह वनस्पतियों तथा जंतुओं तक पहुंचती है।
परमाणु बिजलीघरों में प्रति मेगावाट विद्युत उत्पादन में 50 मिली क्यूरी ट्रिटियम प्रतिदिन उत्पन्न होता है। एक मेगावाट वाले परमाणु विस्फोट में लगभग 700 क्यूरी ट्रिटियम मुक्त होता है। इस प्रकार पृथ्वी पर ट्रिटियम की मात्रा बहुत तेजी से बढ़ रही है। यह अनुमान के अनुसार इसकी मात्रा में 1952 से 1967 के मध्य , 13500 गुना वृद्धि हुई थी। यह वृद्धि दर कम होने की बजाय बढती जा रही है। एवं अगर संलयन प्रक्रियाओं का उपयोग शांतिपूर्ण कार्यो के लिए होना शुरू हो गया तो इसकी वृद्धि एकदम बहुत बढ़ जाएगी।
विद्युत उत्पादन करने वाले नाभिकीय रिएक्टरों से छोड़े जाने वाले अपशिष्टों को यदि सावधानी से नियंत्रित नहीं किया गया तो पर्यावरण की वायु में वाष्प के रूप में ट्रिटिएटेड जल की मात्रा काफी बढ़ जाएगी। ट्रिटियम का मानव भ्रूण और बच्चों के मस्तिष्क की वृद्धि और विकास पर अवांछित प्रभाव पड़ सकता है जैसा कि चूहे पर किये गए प्रयोगों में सिद्ध हो गया है। इसके अतिरिक्त इसके दूरगामी अनुवांशिक परिणाम भी हो सकते है।
हिरोशिमा और नागासाकी पर डाले गए परमाणु बमों की स्मृति करते हुए हमें अपने देश में नाभिकीय युद्ध के खतरों के विरुद्ध वही जनचेतना विकसित करनी चाहिए जो कि दूसरे विकसित राष्ट्रों के नागरिकों में व्याप्त है।
निदान में बढ़ रहे एक्स किरणों के उपयोग , जगह जगह एक्स रे मशीनों की दुकाने और उनका अप्रशिक्षित लोगो द्वारा सञ्चालन , भोले भाले और विषय से अनभिज्ञ नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ एक खिलवाड़ है।