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non aqueous solvents in hindi अजलीय विलायक क्या है आयनकारी या ध्रुवीय विलायक (Ionising or Polar Solvents)

पढ़ें non aqueous solvents in hindi अजलीय विलायक क्या है आयनकारी या ध्रुवीय विलायक (Ionising or Polar Solvents) ?

अजलीय विलायक (Non-aqueous Solvents)

 परिचय (Introduction)

अकार्बनिक रसायनज्ञों द्वारा प्रयोगशाला में की जाने वाली लगभग सभी अभिक्रियाएँ विलयन में होती हैं। रासायनिक अभिक्रियाओं में एक विलायक के दो मुख्य कार्य होते हैं। प्रथम, यह बहुत कम मिश्रित होने वाले तथा अत्यधिक मन्द गति से अभिक्रिया करने वाले पदार्थों (विलायक की अनुपस्थिति में) को अति सूक्ष्म विभाजिते अवस्था में परस्पर निकट लाकर अभिक्रिया की गति बढ़ा देता है । विलायक का दूसरा मुख्य कार्य यह है कि इसकी सहायता से उत्पादों का पृथक्करण व शुद्धिकरण सुविधापूर्वक किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, बेरियम क्लोराइड तथा सिल्वर नाइट्रेट अभिकर्मक ठोस अवस्था में बहुत धीरे-धीरे अभिक्रिया करते हैं, जबकि जलीय विलयन में यह अभिक्रिया तात्क्षणिक ( instantaneous) होती है तथा AgCI अवक्षेप के रूप में प्राप्त होने से इसे आसानी से पृथक किया जा सकता है।

BaCl2 + 2AgNO3 ____जलीय माध्यम में 2 AgCl + Ba(NO3)2

अकार्बनिक रसायन में अधिकांश अभिक्रियाएँ जलीय माध्यम में होती है जिनमें प्रत्यक्ष रूप से जल अक्रिय प्रतीत होता है । इसलिए, रासायनिक समीकरण लिखते समय हम सामान्यतः केवल अभिक्रिया करने वाले पदार्थों पर ही अधिक बल देते हैं तथा विलायक की लगभग पूर्ण उपेक्षा कर देते हैं । तथापि, अभिक्रियाओं में विलायक का महत्व इस बात से अनुभव किया जा सकता है कि विलायक बदलने पर अभिकर्मक एकदम भिन्न उत्पाद (products) बना सकते हैं, या यहां तक कि रासायनिक अभिक्रिया का पथ भी उलट सकता है । उदारहण के लिए, उपर्युक्त अभिक्रिया द्रव अमोनिया में विपरीत दिशा में होती है अर्थात्, ठोस बेरियम क्लोराइड तथा सिल्वर नाइट्रेट की द्रव अमोनिया में कोई अभिक्रिया नहीं होती है। लेकिन AgCI तथा Ba(NO3)2 द्रव अमोनिया में विलेय होकर BaCl2 का एक सफेद अवक्षेप देते हैं जबकि जलीय माध्यम में, जैसा कि ऊपर बताया गया है, इन अभिकर्मकों के मध्य कोई अभिक्रिया नहीं होती है :

2AgCl+ Ba(NO3)2 द्रव अमोनिया में → BaCl2↓+2AgNO3

इसी प्रकार, अमोनियम क्लोराइड तथा लीथियम नाइट्रेट जलीय माध्यम में अभिक्रिया नहीं करते हैं, लेकिन द्रव अमोनिया में लीथियम क्लोराइड का एक सफेद अवक्षेप देते हैं-

NH4Cl+LiNO3 द्रव अमोनिया में → LiCl ↓ + NH4NO3

उपर्युक्त दोनों अभिक्रियाओं में महत्वपूर्ण यह है कि अभिक्रिया की दिशा उत्पादों की विलेयता से निर्धारित होती है। दोनों ही BaCl2 तथा LiCI द्रव अमोनिया में अविलेय हैं जिसके कारण अभिक्रिया आगे की दिशा में बढ़ती है ।

यह भी संभव है कि जिस पदार्थ का हम अध्ययन करना चाहते हैं वह जल से ही अभिक्रिया करले । उदाहरण के लिए सोडियम धातु की अभिक्रियाओं का जलीय माध्यम में अध्ययन नहीं किया जा सकता क्योंकि सोडियम जल के संपर्क मे आते ही तेजी से अभिक्रिया करके NaOH तथा H2 बनाता है। इस प्रकार, क्रिया कारकों के जल में अविलेय रहने या जल से अभिक्रिया करने या अन्य किसी कारण से यदि जल एक अनुपयुक्त विलायक है तो ऐसी स्थिति में जल के अतिरिक्त किसी अन्य विलायक को उपयोग में लिया जाता है। ऐसे विलायकों को अजलीय विलायक कहते हैं। अतः एक विलायक का चयन उसके विशिष्ट गुणों को ध्यान में रखकर किया जाता है। इन गुणों का वर्णन आगामी पृष्ठों में किया गया है।

विलायकों के प्रकार-वर्गीकरण (Types of Solvents-Classification)

प्रत्येक द्रव में किसी न किसी प्रदार्थ को घोल लेने की क्षमता होती है। कौनसा द्रव किस पदार्थ को घोल सकेगा यह दोनो पदार्थों-विलेय तथा विलायक के गुणों पर निर्भर करता है। विलेयता कें संबंध में सामान्य नियम यह है कि समान समान को घोलता है। अर्थात्, जिस प्रकृति का विलेय है, वह उसी प्रकृति के विलायक में घुल सकेगा । अतः विलायकों का वह वर्गीकरण अधिक उपयोगी होगा जो विलेय के वर्गीकरण से मेल खाता हो। जीवन में उपयोगिता की दृष्टि से जल सर्वोत्तम विलायक है क्योंकि जीवन बनाये रखने संबंधी अधिकांश अभिक्रियाएँ जल में ही संपन्न होती हैं। यही कारण है कि जल को जीवन का पर्याय माना गया है। जल की अत्यधिक विलायक क्षमता के कारण जल को संपूर्ण (universal) विलायक भी कहा जाता है। अतः उपयोगिता की दृष्टि से समस्त विलायकों में जल को एक वर्ग में तथा शेष सभी विलायकों अर्थात् अजलीय विलायकों को दूसरे वर्ग में रखा जा सकता है। व्यवहारिकता की दृष्टि से यह विभाजन पूर्णतः अनुपयोगी हैं क्योंकि समस्त विलायकों को एक साथ ही रखा गया है। अतः अजलीय विलायकों का विभिन्न भागों में वर्गीकरण किया जाता है।

विलायकों का कई प्रकार से वर्गीकरण किया गया है जो उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों पर आधारित है। वर्गीकरण के कुछ प्रमुख आधारों का वर्णन नीचे किया गया है-

  1. संरचना : किसी अणु की संरचना उसका सर्वाधिक मूलभूत एवं महत्वपूर्ण पहलू है, ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे संरचना पर आधारित वर्गीकरण सर्वोत्तम होगा । वास्तव में, इस प्रकार का वर्गीकरण न्यूनतम उपयोगी पाया गया है क्योंकि मिलती-जुलती संरचना के बहुत से विलायकों को हम एक साथ एक श्रेणी में तो रख सकते हैं लेकिन कोई अन्य जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है।
  2. समआयनन एवं विभिन्नकारी प्रभाव (Levelling and differentiating effect) : इस प्रभाव की विवेचना पिछले अध्याय में की गई थी। सामान्य रूप से यह प्रभाव विद्युत अपघट्य प्रकृति के विलयनों पर भी लागू किया जा सकता है। समआयनन विलायकों की श्रेणी में जल, अमोनिया, निम्नतर ऐल्कोहॉल आदि ध्रुवीय द्रव आते हैं तथा आयनन लगभग समान सीमा तक होता है। विभिन्नकारी विलायकों की श्रेणी में उन कम ध्रुवीय विलायकों को शामिल किया जाता है जिनमें विलेय विद्युत अपघट्यों की सान्द्रता विलायक बदलने पर बहुत अधिक प्रभावित होती है। ऐमीन, हेलोजेनीकृत हाइड्रोकार्बन (जैसे कार्बन टेट्राक्लोराइड) इस प्रकार के विलायकों के उदाहरण हैं।
  3. प्रोटॉनिक तथा अप्रोटॉनिक प्रकृति : विलायकों का प्रोटॉनिक तथा अप्रोटॉनिक के रूप वर्गीकरण सीधे ही अम्ल क्षारक परिघटना से जुड़ा हुआ है। अतः यदि अभिक्रिया की अम्ल क्षारक प्रकृति नहीं है तो इस प्रकार का वर्गीकरण उपयोगी नहीं रह जाता है। इस प्रकार के विलायकों के बारे में अधिक विस्तार से आगे बताया गया है।
  4. विलायक का विद्युत अपघटनी गुणधर्म : विलायकों के वर्गीकरण के लिए विद्युत अपघटनी आधार एक अच्छा विकल्प है। जो विलायक स्वयं ही ध्रुवीय प्रकृति के होते हैं, वे सामान्यतः आयनीकारक विलायक की भूमिका निभाते हैं क्योंकि आयनिक पदार्थ विलेय होने पर आयनीकृत हो जाते हैं। ध्रुवीय सहसंयोजक पदार्थ भी ऐसे विलायकों में घुलकर पृथक-पृथक अणुओं में विभक्त हो जाते हैं। अध्रुवीय विलायकों को उनके स्वभाव के कारण अनआयनीकारक नाम से जाना जाता है।

अजलीय विलायकों का आण्विक संरचना पर आधारित विभाजन भी अनुपयोगी पाया गया है क्योंकि समान संरचना के पदार्थों के आचरण में भी अत्यधिक भिन्नता पाई जा सकती है। विलायकों के वर्गीकरण हेतु अन्तिम दोनों आधार अधिकांशतः उपयोग में लिये जाते हैं। ऊपर बताया गया है कि सार्थक विभाजन के लिए आवश्यक है कि विलेय की प्रकृति को भी ध्यान में रखा जाये । अधिकांश पदार्थों-विलेय तथा विलायक— को व्यापक रूप से निम्न दो भागों में बांटा जा सकता है । विलायकों के लिए भी आयनिक या ध्रुवीय आचरण पर आधारित वर्गीकरण विशेष रूप से उपयोगी एवं सुविधाजनक पाया गया है। आगामी विवेचन में इस प्रकार के वर्गीकरण की कुछ विस्तार से जानकारी दी जायेगी ।

  1. अनआयनकारी या अधुवीय पदार्थ
  2. आयनकारी या ध्रुवीय पदार्थ
  3. अनआयनकारक विलायक (Non-Ionising solvents)-

अनआयनकारक विलायक बहुत कम डाइइलेक्ट्रिक स्थिरांक वाले अध्रुवीय द्रव होते हैं, उदाहरण के लिए बैंजीन, कार्बन टेट्रॉक्लोराइड इत्यादि । ये अध्रुवीय पदार्थों को घोल लेते हैं। इस प्रकार के विलायकों में अणु पूर्ण रूप से सहसंयोजी अवस्था में होते हैं । अतः आयनिक या धुव्रीय पदार्थ इनमें अविलेय रहते हैं। दूसरी ओर, अध्रुवीय सहसंयोजक पदार्थ अनआयन कारक विलायकों में घुल जाते हैं। ये विद्युत का चालन नहीं करते हैं। बैंजीन का पैराफिन में विलयन इस प्रकार का एक विशिष्ट उदाहरण है। इस प्रकार के विलयनों में विलेय तथा विलायकों के मध्य सम्बद्ध होने की अर्थात् विलायक संकरण (solvation) की बहुत कम प्रवृति पाई जाती है। I

  1. आयनकारी या ध्रुवीय विलायक (Ionising or Polar Solvents)

आयनकारी विलायक मूलतः ध्रुवीय पदार्थ होते हैं। शुद्ध अवस्था में भी इनमें आयनों की उपस्थिति के कारण इन्हें आयनकारी विलायक कहते हैं। जल, द्रव अमोनिया, हाइड्रोजन फ्लुओराइड, 100% शुद्ध सल्फ्यूरिक अम्ल, द्रव सल्फर डाइऑक्साइड, बोमीन ट्राइफ्लुओराइड इत्यादि इस प्रकार के उदाहरण है। ध्रुवीय विलायकों के अणुओं में बंध तो मुख्यतः सहसंयोजक ही होते हैं लेकिन उनमें कुछ कुछ आयनिक गुण भी पाये जाते हैं। इन दोनों प्रकार के गुणों से युक्त बंधों को ध्रुवीय बंध कहते हैं। हम जानते हैं कि एक ध्रुवीय अणु वह ध्रुवीय बंध युक्त अणु होता है जिसमें धन तथा ऋण आवेशों के केन्द्र भिन्न-भिन्न बिन्दुओं पर पाये जाते हैं। ये विलायक अपनी शुद्ध अवस्था में भी कुछ मात्रा में आयनिक रूप में पाये जाते हैं। अर्थात्, उदासीन अणु तथा आयन एक साथ रहते हैं तथा इनके मध्य साम्य होता है। इस प्रक्रिया को स्वतः आयनन (autoionisation) कहते हैं। अतः ये विद्युत के अल्प चालक होते हैं। इनके डाईइलेक्ट्रिक स्थिरांक भी उच्च होते हैं। H2O, NH3 तथा SO2 इस प्रकार के उदाहरण हैं जिनका आयनन अगले पृष्ठ पर दिया गया है:

2H2O = H3O+ + OH

2NH3 = NH4+ + NH2

2SO2 = SO2+ + SO32-

ध्रुवीय प्रकृति के कारण इनके परमाणु परस्पर जुड़े रहते हैं। इन विलायकों में अध्रुवीय पदार्थ नहीं घुलते हैं। तथापि, आयनिक तथा सहसंयोजक ध्रुवीय पदार्थ इनमें घुल जाते हैं। आयनिक पदार्थों का घुलना तभी सम्भव हो पाता है जब विलायकन ऊर्जा (solvation energy) का मान विद्युत अपघट्य की जालक ऊर्जा (lattic energy) से अधिक हो। घुलनशील सहसंयोजक पदार्थों के ध्रुवीय अणुओं के मध्य के आकर्षण की तुलना में विलायक – विलेय ध्रुवीय अणुओं की पारस्परिक क्रिया अधिक प्रबल होने पर संहसंयोजक पदार्थ भी ध्रुवीय आयनकारक विलायकों में घुलने लगते हैं। बहुत से सहसंयोजक पदार्थ इन विलायकों में हाइड्रोजन बंध बनाते हुए घुल जाते हैं।

आयनकारक विलायकों को प्रोटॉनों के प्रति संवेदनशीलता तथा उदासीनता के आधार पर पुनः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) प्रोटॉनी विलायक (ii) अप्रोटॉनी विलायक

(i) प्रोटॉनी विलायक (Protonic solvents) :- इस श्रेणी के विलायकों में हाइड्रोजन अवश्य पाया जाता है तथा ये प्रोटोन देने या लेने की क्षमता रखते हैं। ये तीन प्रकार के हो सकते हैं-

(a) अम्लीय अथवा प्रोटोजेनी विलायक (Acidic or protogenic solvents):- इनमें प्रोटॉन देने की अति प्रबल प्रवृति होती है। सल्फ्यूरिक अम्ल, हाइड्रोफ्लुओरिक अम्ल, द्रव HCN, ऐसीटिक अम्ल इत्यादि ऐसे उदाहरण हैं। अम्लीय गुण प्रदर्शित करने के कारण ये अम्लीय विलायकों के नाम से भी जाने जाते हैं।

(b) क्षारकीय अथवा प्रोटोफिलिक विलायक (Basic or protophilic solvents) – इनमें प्रोटॉनों के लिए प्रबल आकर्षण पाया जाता है अर्थात्, इनमें प्रोटॉन ग्रहण करने की प्रबल प्रवृत्ति होती है । अमोनिया, पिरिडीन, एथिलीनडाइऐमीन इत्यादि ऐसे विलायक हैं। क्षारकीय गुण प्रदर्शित करने के कारण इन्हें क्षारकीय विलायक भी कहते हैं ।

(c) उभय प्रोटॉनी विलायक (Amphiprotic solvents) – ये अम्ल या क्षारक दोनों का ही काम करते हैं। दूसरे शब्दों में, अन्य पदार्थ के प्रोटॉनी गुण (दाता या ग्राही) के आधार पर ये विपरीत प्रकार का प्रोटॉनी गुण (क्रमशः ग्राही या दाता) प्रदर्शित करते हैं। जल, कम अणु भार के ऐल्कोहॉल इत्यादि इस प्रकार के उदाहरण हैं। इनका आचरण उभयधर्मी (amphoteric) होता है ।

(ii) अप्रोटॉनी विलायक (Aprotic solvents) – इन विलायकों में प्रोटॉन नहीं होता है। उदाहरण के लिए, द्रव सल्फरडाइऑक्साइड, ब्रोमीनट्राइफ्लुओराइड, मरक्यूरिक ब्रोमाइड, द्रव N2O4 इत्यादि ऐसे विलायक हैं। स्वतः आयनन के कारण प्रोटॉनी विलायकों की तरह से ये भी धनायन तथा ऋणायन प्रदान करते हैं।

विलायकों के इस प्रकार के वर्गीकरण को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया गया है-

इस अध्याय में हम आयनकारक विलायकों के अध्ययन तक ही सीमित रहेंगे अर्थात् यहां हमारा मतलब केवल उन्ही विलायकों से है जो स्वयं भी कुछ हद तक आयनित होते हैं तथा जिनमें अकार्बनिक पदार्थ जल की तरह आयनित होकर आयनिक अभिक्रिया दर्शाते हैं। अनआयनीकारक विलायकों का कार्बनिक रसायन में विशेष स्थान है।