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न्यूटन वलय प्रयोग (newton’s ring experiment in hindi)

(newton’s ring experiment in hindi) न्यूटन वलय (रिंग) प्रयोग : व्यतिकरण का यह बहुत ही महत्वपूर्ण अनुप्रयोग है।  न्यूटन के वलय प्रयोग द्वारा किसी एकवर्णी प्रकाश की तरंग दैर्ध्य को आसानी से ज्ञात किया जा सकता है साथ ही इस प्रयोग द्वारा किसी द्रव अपवर्तनांक को भी आसानी से ज्ञात किया जाता है।
न्यूटन वलय कैसे बनती है ?
जब किसी काँच की एक समतल प्लेट पर उत्तल लेंस को इस प्रकार रखा जाए कि समतल कांच पर उत्तल लेंस का वक्रीय सतह टिका हुआ हो तो इस लेंस-काँच सतह संपर्क के कारण इन दोनों के मध्य वायु की एक समतल अवतल फिल्म बन जाती है।  अब यदि इस लेंस पर एकवर्णी प्रकाश डाला जाए तो परावर्तित प्रकाश में वृत्तीय फ्रिन्जे दिखाई देती है इन वृत्तिय फ्रिन्जों को न्यूटन वलय (न्यूटन रिंग) कहते है।

जहाँ समतल कांच और उत्तल लेंस एक दुसरे के संपर्क में होते है वहां जो वायु की पतली परत बनती है उसकी मोटाई लगभग शून्य मानी जाती है अर्थात बहुत ही ज्यादा अल्प होती है। इस सम्पर्क बिंदु को चित्र में O द्वारा व्यक्त किया गया है।

न्यूटन वलयों में केंद्र में जो फ्रिंज होता है वह अदिप्त बिंदु होता है और इस अदीप्त बिंदु के एकांतर क्रम में दीप्त और अदीप्त वृत्ताकार फ्रिन्जे प्राप्त होती है।

लेंस और कांच के संपर्क बिंदु पर जब एकवर्णी प्रकाश डाला जाता है तो यह प्रकाश संपर्क बिंदु पर बनी वायु की फिल्म की उपरी सतह से प्रकाश कुछ परावर्तित हो जाता है तथा कुछ प्रकाश इस वायु की फिल्म की निचली सतह से परावर्तित हो जाती है। दोनों प्रकाश के परावर्तन में 180 डिग्री का कलांतर होता है क्यूंकि समतल कांच का अपवर्तनांक अधिक होता है।
इसके कारण दो प्रकार का व्यतिकरण होता है एक सुपोषी व्यतिकरण और दूसरा कुपोषी व्यतिकरण।
इसके कारण दीप्त और अदीप्त वलय (रिंग) प्राप्त होती है।
माना एक रिंग की त्रिज्या r है तथा वायु फिल्म की मोटाई t है तो r और t में निम्न सम्बन्ध होगा –

न्यूटन वलयों में से m वीं अदिप्त फ्रिन्ज या वलय की त्रिज्या निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात की जा सकती है –

यहाँ m = 0 , 1 , 2  आदि , जब m = 0 होगा तब अदीप्त वलय की त्रिज्या r = 0 होगी।  इसे सम्पर्क बिंदु कहते है।
न्यूटन वलयों में m वीं दीप्त रिंग की त्रिज्या ज्ञात करने का सूत्र