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ललित कला अकादमी का मुख्यालय कहां है राष्ट्रीय ललित कला अकादमी की स्थापना कब कहाँ हुई national academy of art in hindi

national academy of art in hindi ललित कला अकादमी का मुख्यालय कहां है राष्ट्रीय ललित कला अकादमी की स्थापना कब कहाँ हुई ?

ललित कला, साहित्य व संगीत की अभिवृद्धि हेतू प्रमुख अकादमियों की भूमिका
अमूर्त सांस्कृति विरासत
ललित कला अकादमी
भारतीय कला के प्रति देश-विदेश में समझ बढ़ाने और प्रचार-प्रसार के लिए सरकार ने नई दिल्ली में 5 अगस्त, 1954 को ललित कला अकादमी (नेशनल अकादमी ऑफ आर्ट्स) की स्थापना की थी। अकादमी के लखनऊ, कोलकाता, चेन्नई, गढ़ी (नई दिल्ली), शिमला और भुवनेश्वर में क्षेत्रीय केंद्र हैं जिन्हें राष्ट्रीय कला केंद्र के नाम से जाना जाता है। इन केंद्रों पर पेंटिंग, मूर्तिकला, प्रिंट-निर्माण और चीनी मिट्टी की कलाओं के विकास के लिए कार्यशाला-सुविधाएं उपलब्ध हैं।
अकादमी अपनी स्थापना से ही हर वर्ष समसामयिक भारतीय कलाओं की प्रदर्शनियां आयोजित करती रही है। अकादमी समकालीन कला पर हर तीन वर्ष में एक बार नई दिल्ली में इंडिया ट्राइनियल नामक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का आयोजन करती है। 1955 से अकादमी 52 राष्ट्रीय कला प्रदर्शनियां आयोजित कर चुकी है, जिनमें 545 कलाकारों को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए जा चुके हैं। विदेशों में भारतीय कला के प्रचार-प्रसार के लिए अकादमी अंतर्राष्ट्रीय द्वि-वार्षिक और त्रि-वार्षिक प्रदर्शनियों में नियमित रूप से भाग लेती है और अन्य देशों की कलाकृतियों की प्रदर्शनियां भी आयोजित करती है।
ललित कला अकादमी कला संस्थाआ/संगठनों को मान्यता प्रदान करती है और इन संस्थाओं के साथ-साथ राज्यों की अकादमियों को आर्थिक सहायता देती है। यह क्षेत्रीय केंद्रों के प्रतिभावान युवा कलाकारों को छात्रवृत्ति भी प्रदान करती है। अपने प्रकाशन कार्यक्रम के तहत अकादमी समकालीन भारतीय कलाकारों की रचनाओं पर हिंदी और अंग्रेजी में मोनोग्राफ और समकालीन पारंपरिक तथा जनजातीय और लोक कलाओं पर जाने-माने लेखकों और कला आलोचकों द्वारा लिखित पुस्तकें प्रकाशित करती है। अकादमी ने अनुसंधान और अभिलेखन का नियमित कार्यक्रम भी शुरू किया है। भारतीय समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं से संबंद्ध समसामयिक लोक कला संबंधी परियोजना पर काम करने के लिए अकादमी विद्वानों को आर्थिक सहायता देती है। ललित कला अकादमी ने धुप्रद केंद्र, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां अकादमा, भोपाल के सहयोग से मिलकर अपना स्थापना दिवस मनाया।
संगीत नाटक अकादमी
संगीत नाटक अकादमी संगीत, नृत्य और नाटक की राष्ट्रीय अकादमी है जिसे आधुनिक भारत के निर्माण में प्रमुख योगदान करने वालों के रूप में याद किया जा सकता है, जिसने भारत की 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति में अहम भूमिका निभाई। कर के गुण-स्वभाव तथा उनके संरक्षण की आवश्यकता को देखते हुए इन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस प्रकार समाहित हा चाहिए ताकि सामान्य व्यक्ति को इन्हें सीखने, अभ्यास करने और आगे बढ़ाने का अवसर प्राप्त हो सके। 31 मई, 1952 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के हस्ताक्षर से पारित, प्रस्ताव द्वारा सबस नृत्य, नाटक और संगीत के लिए राष्ट्रीय अकादमी के रूप में संगीत नाटक अकादमी की स्थापना हुई जिसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया।
1961 में सरकार ने संगीत नाटक अकादमी का समिति के रूप में पनर्गठन किया और समिति पंजीकरण अधिनियम, 1860 (1957 में संशोधित) के अंतर्गत इसे पंजीकृत किया गया।
अपनी स्थापना के बाद से ही अकादमी भारत में संगीत. नत्य और नाटक के उन्नयन में सहायता के लिए एकीकृत ढांचा कायम करने में जुटी है। अकादमी द्वारा प्रस्तुत अथवा प्रायोजित संगीत नत्य एवं नाटक समारोह समूचे देश में आयोजित किए जाते हैं। विविध कला-विधाओं के महान कलाकारों को अकादमी का फेलो चनकर सम्मानित किया गया है। प्रातवष जाने-माने कलाकारों और विद्वानों को दिए जाने वाले संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मंचन कलाओं के क्षेत्र में सवाधिक प्रतिष्ठित सम्मान माने जाते हैं। दूर-दराज के क्षेत्रों सहित देश के विभिन्न भागों में संगीत, नत्य और रंगमंच के प्रशिक्षण और प्रोत्साहन में लगे हजारों संस्थानों को अकादमी की ओर से आर्थिक सहायता प्राप्त हुई है और विभिन्न संबद्ध विषया के शोधकर्ताओं, लेखकों तथा प्रकाशकों को भी आर्थिक सहायता दी जाती है।
अकादमी के पास ऑडियो-वीडियो टेपों, 16 मि.मी. फिल्मों, चित्रों और ट्रांसपेरेंसियों का एक बड़ा अभिलेखागार है, जो मंचन कलाओं के बारे में शोधकर्ताओं के लिए देश का अकेला सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है।
अकादमी की संगीत वाद्ययंत्रों की वीथि में 600 से अधिक वाद्ययंत्र रखे हैं और पिछले कुछ वर्षों में बड़ी मात्रा में प्रकाशित सामग्री का भी प्रमुख स्रोत रही है। अकादमी मंचन कलाओं के क्षेत्र में राष्टीय महत्व के संस्थानों और परियोजनाओं की स्थापना एवं देख-रेख भी करती है। इनमें सबसे पहला संस्थान है इंफाल की जवाहरलाल नेहरू मणिपरी नत्य अकादमी जिसकी स्थापना 1954 में की गई थी। यह मणिपुरी नृत्य का अग्रणी संस्थान है। 1959 में अकादमी ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्थापना की और 1964 में कथक केंद्र स्थापित किया। ये दोनों संस्थान दिल्ली में है। अकादमी की अन्य राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं में केरल का ‘कुटियट्टम‘ थिएटर है जो 1991 में शुरू हुआ था और 2001 में इसे यूनेस्को की ओर से मानवता की मौखिक एवं अमूर्त धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की गई। 1994 में ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ‘छऊ‘ नृत्य परियोजना आरंभ की गई। असम के ‘सत्रीय‘ (शास्त्रीय) संगीत, नृत्य, नाटक और संबद्ध कलाओं के लिए 2002 में परियोजना को समर्थन देना शुरू किया गया।
मंचन कलाओं की शीर्षस्थ संस्था होने के कारण अकादमी भारत सरकार को इन क्षेत्रों में नीतियां तैयार करने और उन्हें क्रियान्वित करने में परामर्श और सहायता उपलब्ध कराती है। अकादमी इसके अतिरिक्त भारत के विभिन्न क्षेत्रों के बीच तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक संपर्कों के विकास की जिम्मेदारियां भी पूरा करती है। अकादमी ने विदेशों में प्रदर्शनियों और बड़े उत्सवों का आयोजन किया है।
मंचन कलाएं
संगीत
भारत में शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख विधाएं – हिंदुस्तानी और कर्नाटक – गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वाह करती चली आ रही है। इसी परंपरा ने घरानों और संप्रदायों की स्थापना करने की प्रेरणा दी जो बराबर आगे बढ़ रही है।
भारत में नृत्य परंपरा 2000 से भी ज्यादा वर्षों से निरंतर चली आ रही है। नृत्य की विषयवस्तु धर्मग्रंथों, लोककथाओं और प्राचीन साहित्य पर आधारित रहती है। इसकी दो प्रमुख शैलियां हैं – शास्त्रीय नृत्य और लोकनृत्य। शास्त्रीय नृत्य वास्तव में प्राचीन नृत्य परंपराओं पर आधारित है और इनकी प्रस्तुति के नियम कठोर हैं। इनमें प्रमुख हैं – ‘भरतनाट्यम‘, ‘कथकली‘ ‘कथक‘, ‘मणिपुरी‘, ‘कुचिपुड़ी‘ और ओडिसी‘। ‘भरतनाट्यम‘ मुख्यतः तमिलनाडु का नृत्य है किंतु अब यह अखिल भारतीय स्वरूप ले चुका है। ‘कथकली‘ केरल की नृत्यशैली‘ है। ‘कथक‘ भारतीय संस्कृति पर मगल प्रभाव से विकसित नृत्य का एक अहम शास्त्रीय रूप है। ‘मणिपुरी‘ नृत्य शैली में कोमलता और गीतात्मकता है जबकि ‘कचिपडी‘ की जड़ें आंध्र प्रदेश में हैं। ओडिशा का ‘ओडिसी‘, प्राचीनकाल में मंदिरों में नृत्य रूप में प्रचलित था जो अब समान भारत में प्रचलित है। प्रत्येक क्षेत्र में लोकनृत्य और आदिवासी नृत्य की अपनी विशिष्ट शैलियां प्रचलित हैं। शास्त्रीय और लोकनत्य दोनों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय संगीत नाटक अकादमी तथा अन्य प्रशिक्षण संस्थानों और सांस्कृतिक संगठनों हो जाता है। अकादपी सांस्कृतिक संस्थानों को आर्थिक सहायता देती है और नत्य तथा संगीत की विभिन्न शैलियों में विशेषतः जो दुर्लभ है, को बढ़ावा देने तथा उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए अध्ययेताओं. कलाकारों और अध्यापकों का फेलोशिप प्रदान करती है।
रंगमंच
भारत में रंगमंच उतना ही पुराना है जितना संगीत और नृत्य। शास्त्रीय रंगमंच तो अब कहीं-कहीं ही जीवित है। लोक रंगमंच को अनेक क्षेत्रीय रूपों में विभिन्न स्थानों पर देखा जा सकता है। इनके अलावा, शहरों में पेशेवर रंगमंच भी है। भारत में कठपतली रंगमंच की समद्ध परंपरा रही है जिनमें सजीव कठपुतलियां, छडियां पर चलने वाली दस्ताने वाली कठपतलियां और चमड़े वाली कठपुतलिया (छाया रगमच) प्रचलित है। अनेक अर्द्ध-व्यावसायिक और शैकिया रंगमंच संमूह भी हैं जो भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में नाटकों का मंचन करते हैं।
साहित्य अकादमी
साहित्य अकादमी विभिन्न भाषाओं की कृतियों की भारतीय राष्ट्रीय अकादमी है। इसका उद्देश्य प्रकाशन, अनुवाद, गोष्ठियां, कार्यशालाएं आयोजित करके भारतीय साहित्य के विकास को बढ़ावा देना है। इसके तहत देशभर में सांस्कृतिक आदान-प्रदान, कार्यक्रम और साहित्य सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं। अकादमी की स्थापना 1954 में स्वायत्त संस्था के रूप में की गई थी, और इसके लिए धन की व्यवस्था भारत सरकार का संस्कति विभाग करता है। अकादमी ने 24 भाषाआ को मान्यता दे रखी है। अकादमी का मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा कोलकाता. मंुबई. बंगलुरु और चेन्नई में भी इसके चार क्षेत्रीय कार्यलय है मौखिक और जनजातीय साहित्य को बढ़ावा देने के उददेश्य से शिलांग में अकादमी का परियोजना कार्यालय स्थित है तथा दिल्ली में भारतीय साहित्य का अभिलेखागार है। साहित्य अकादमी द्वारा दी जाने वाली तीन फेलोशिप है:
1. साहित्य अकादमी सम्मानार्थ फेलोशिप,
2. आनंद फेलोशिप,
3. प्रेमचंद फेलोशिप।
साहित्य अकादमी अपना सर्वोच्च सम्मान यानी फेलोशिप साहित्यिक विभूतियों को देता है। साहित्य अकादमी ने प्रेमचंद की 125वीं जन्मशती के दौरान 2005 में प्रेमचंद फेलोशिप स्थापित की। यह फेलोशिप भारतीय साहित्य पर अनुसंधान करने वाले विद्वानों या भारत के अलावा सार्क देशों के लेखकों को दी जाती है। 1954 में इसकी शुरुआत से प्रत्येक वर्ष अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमुख भारतीय भाषाओं में प्रकाशित साहित्य की उत्कृष्ट साहित्यिक कृतियों को पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। प्रथम पुरस्कार 1955 में दिए गए थे।
अकादमी 24 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित करती है जिनमें पुरस्कृत कृतियों का अनुवाद, भारतीय साहित्य के महान लेखको के मोनोग्राफ, साहित्यों का इतिहास, महान भारतीय और विदेशी रचनाओं का अनुवाद, उपन्यास, कविता और गद्य का सकलन, आत्मकथाएं, अनुवादकों का रजिस्टर, भारतीय लेखकों के बारे में जानकारी (हू इज हु ऑफ इंडियन लिटरेचर) भारतीय साहित्य की राष्ट्रीय संदर्भ सूची और भारतीय साहित्य का विश्वकोष शामिल है। अकादमी की तीन पत्रिकाएं है- अंग्रेजी में द्विमासिक ‘इंडियन लिटरेचर‘, हिंदी द्विमासिक ‘समकालीन भारतीय साहित्य‘ और संस्कृत छमाही पत्रिका ‘संस्कृत प्रतिभा‘। इसकी कई विशेष परियोजनाएं भी हैं, जैसे – ‘प्राचीन भारतीय साहित्य‘, ‘मध्यकालीन भारतीय साहित्य और ‘आधुनिक भारतीय साहित्य‘ को मिलाकर गत पांच सहस्राब्दियों के श्रेष्ठतम लेखन को समाहित करने वाले इस गंथों का संयोजन अकादमी ने ‘भारतीय काव्यशास्त्र का विश्वकोष‘ तैयार करने की नई परियोजना भी शुरू की है।