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पेशियाँ , कंकाल पेशी की संरचना , क्रियाविधि , कार्यिकी  , वक्ष की अस्थियाँ व कार्य muscles in hindi

पेशियाँ (muscles) : पेशी संयोजी ऊत्तक की बनी होती है , पेशियां पेशी तन्तुक द्वारा निर्मित होती है , ये गति एवं चलन में सहायक होती है , ये मनुष्य के सम्पूर्ण भार का 40% होती है।
पेशियों के प्रकार निम्न है –
1. कंकाल पेशियाँ : ये पेशियां कंकाल की गति एवं चलन में सहायक होती है , ये कण्डराओ द्वारा अस्थियों से जुडी रहती है इन्हे रेखित या ऐच्छिक पेशियाँ भी कहते है , ये जल्दी थक जाती है।
2. हृदय पेशियाँ : ये पेशियां ह्रदय के स्पंदन में सहायक होती है , ये रैखित व अनैच्छिक पेशियाँ होती है। ये कभी नहीं थकती है।
3. चिकनी पेशियाँ : ये आहारनाल में क्रमाकुंचन गति व रुधिर वाहिनियो में गति में सहायक होती है , ये आहारनाल व रुधिर वाहिनियों की भित्ति में पायी जाती है , ये अरेखित व अनैच्छिक पेशियाँ होती है।

कंकाल पेशी की संरचना

पेशी से पेशी तंतु समान्तर व्यवस्थित होकर समूह बनाती है , ऐसे प्रत्येक समूह को पूलिका कहते है।  पुलिका के चारो ओर संयोजी ऊत्तक का आवरण पाया जाता है इसे परिपेशिका कहते है।  कंकाल पेशियाँ कोलेजन से बनी कण्डराओ द्वारा अस्थि से जुडी रहती है , पेशी तंतु लम्बी , बेलनाकार कोशिका होती है।  इसका व्यास 10 माइक्रोमीटर से 100 माइक्रो मीटर तक होता है तथा लम्बाई कई सेंटीमीटर होती है।  कोशिका में अनेक परिधीय केन्द्रक होते है इसकी प्लाज्मा झिल्ली को सार्कोलेमा तथा कोशिका द्रव्य को पेशी प्रद्रव्य कहते है।  प्रत्येक पेशी तन्तु में अनेक पतले तंतु धागे के समान पेशी तन्तुक होते है।  प्रत्येक पेशी तन्तुक का व्यास 1 माइक्रोमीटर होता है।  पेशी तंतु में अनेक पतले तन्तु पुनरावर्ती क्रम में लंबवत व समान्तर व्यवस्थित रहते है , इनको सार्कोमियर कहते है।  जो क्रियात्मक इकाई होती है , पेशी तंतुओ का निर्माण संकुचनशील प्रोटीन अणुओ द्वारा होता है।
ये प्रोटीन तन्तु दो प्रकार के होते है , मोटे तंतुओ को मायोसीन तन्तु तथा पतले तन्तुओं को एक्टिन तंतु कहते है।
एक पेशिक तन्तु में लगभग 1500 मायोसीन तंतु व 3000 एक्टिन तन्तु होते है , प्रत्येक मायोसीन तंतु 6 एक्टिन तन्तुओं के नियमित षट्कोणीय क्रम द्वारा घिरा रहता है।

पेशी की क्रियाविधि

केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र की प्रेरक तंत्रिकाओं द्वारा आदेश प्रेक्षण से पेशी संकुचन का आरम्भ होता है , तंत्रिका संकेत पहुँचने से तंत्रिका द्वारा एसिटिल कोलीन मुक्त होता है जो सार्कोलेना में एक क्रिया विभव उत्पन्न करता है जो जो समस्त पेशीय रेशे पर फैल जाता है , जिससे सार्कोप्लाज्मा में Ca2+ आयन मुक्त होते है , साथ ही ATP के जल अपघटन से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग कर मायोसीन तन्तु एक्टिन के सक्रिय स्थानों से क्रॉस सेतु बनाने के लिए बन्ध जाते है जिससे एक्टीन तंतु मायोसीन पर सरकने लगते है , ATP , ADP व फास्फेट में अपघटित हो जाता है , परिणामस्वरूप एक्टिन व मायोसीन के मध्य क्रॉस सेतु टूट जाता है , मायोसीन विश्राम अवस्था में चला जाता है , यह क्रिया बार बार दोहराई जाती है।

पेशी संकुचन की कार्यिकी

इस सिद्धांत के अनुसार संकुचन के समय एक्टिन तन्तु मायोसीन तंतुओ पर सरकते है जिससे सार्कोमीयर की लम्बाई कम होती है , मायोसीन तंतु के सिरे अपने सामने स्थित एक्टीन तन्तुओ से अनुप्रस्थ सेतु द्वारा जुड़ जाते है , इन सेतुओ के संरूपण में परिवर्तन होते है , जो एक्टिन तन्तुओ को सार्कोमियर के केन्द्रीय भाग की ओर खींचते है , इस कारण Z रेखाएं एक दूसरे के समीप आ जाती है , A-Bond की लम्बाई यथावत रहती है लेकिन H-Zone की लम्बाई कम हो जाती है और इस प्रकार संकुचन हो जाता है।

वक्ष की अस्थियाँ

वक्ष भाग में दो प्रकार की अस्थियाँ पाई जाती है –
1. पसलियाँ (Ribs) : मनुष्य में 12 जोड़ी पसलियाँ पायी जाती है जो वृक्काकार छड के समान होती है , पसलियाँ गतिमान संधियों द्वारा आगे की ओर स्टर्नम (उरोस्थि) से तथा पीछे की ओर वक्षीय कशेरुकीओ से जुडी रहती है , पसलियां सम्मिलित रूप से वक्षीय पिंजर बनाती है।  12 जोड़ी पसलियो में से प्रथम 7 जोड़ी अस्थियाँ सीधे स्टर्नम से जुडी होती है।  वे वास्तविक पसलियाँ कहलाती है , अगली तीन जोड़ी पसलियां अप्रत्यक्ष रूप से कोस्टल कोटिलेज से जुडी रहती है , इन्हें कूट पसलियाँ कहते है।  अन्तिम 2 जोड़ी पसलियो के सिरे स्वतंत्र होते है , ये मुक्त पसलियाँ कहलाती है।
2. उरोस्थि (sternum) : इसे ब्रेस्टबॉन भी कहते है , यह एक चपटी व चौड़ी अस्थि होती है जो वक्ष भाग के अधर पर पायी जाती है।  यह लगभग 12cm लम्बी होती है , यह पसलियों को जोड़ने में तथा उनको स्थिरता प्रदान करने में सहायक होती है।

वक्ष अस्थियों के कार्य

1. ये ह्रदय , रुधिर वाहिनियों एवं फेफडो को सुरक्षा प्रदान करती है।
2. इनसे श्वसन पेशियाँ जुडी रहती है जो श्वसन में सहायक होती है।
3. अन्तिम दो जोड़ी पसलियाँ वृक्क को सुरक्षा प्रदान करती है।

पेशीय और कंकाल तंत्र के विकार

1. माइस्थेनिया ग्रेनिस : यह एक स्व प्रतिरक्षा विकार है जो तंत्रिका तंत्र पेशी संधि को प्रभावित करता है , इस विकार के दौरान कमजोर व कंकाल पेशियों का पक्षाघात (लकवा) हो जाता है।
2. पेशीय दुष्पोषण : लम्बी बीमारी व रोगों के कारण कंकाल पेशियों का अनुक्रमित अपहासन होने लगता है।
3. अपतानिका : शरीर में कैल्शियम आयनों की कमी होने के कारण पेशियों में तीव्र एटन होता है।
4. सन्धि शोध : यह जोड़ो का शोंध रोग है , इस विकार के दौरान जोड़ो में दर्द रहने लगता है।
5. अस्थि सुषिरता : यह उम्र सम्बन्धित विकार है , आयु बढ़ने के साथ साथ अस्थियो के मौलिक पदार्थो में कमी होने लगती है जिससे अस्थि भंग होने की प्रबल संभावना होती है।  एस्ट्रोजन स्तर में कमी इसका एक प्रमुख कारण है।
6. गाऊट : इस विकार के दौरान जोड़ो में यूरिक अम्ल के क्रिस्टल जमा होने लगते है , जिससे जोड़ो में दर्द रहने लगता है।