बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभ | भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भूमिका multinational companies effect on economy in hindi
multinational companies effect on economy in hindi बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभ | भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भूमिका ?
आर्थिक विकास में बहुराष्ट्रीय कंपनियों/निगमों की भूमिका
भूमंडलीय संस्थाओं द्वारा बहुराष्ट्रीय उपक्रमों को बहुधा विकास का प्रेरक माना जाता है। संभावित रूप से, बहुराष्ट्रीय उपक्रम विभिन्न क्षेत्रों जैसे पूँजी निर्माण, मानव संसाधन, पर्यावरण, प्रौद्योगिकी और मूल देश के साथ-साथ मेजबान देश के व्यापार में योगदान कर सकता है। स्थानीय कंपनियों के साथ अपनी सहलग्नता (अनुबंध) के माध्यम से वे पूँजी निर्माण में योगदान कर सकते हैं तथा साथ ही कार्यकुशलता में वृद्धि कर सकते हैं। बहुराष्ट्रीय उपक्रमों की उपस्थिति रोजगार के सृजन, विश्वस्तरीय प्रबन्धकीय कौशल को उपलब्ध कराने, प्रशिक्षण प्रदान करने तथा यहाँ तक कि सीखने में भी सहायक हो सकती है। यह भी विश्वास किया जाता है कि बहुराष्ट्रीय उपक्रम अर्द्धनियोजित अथवा अनियोजित संसाधनों का उपयोग करने में सहायक हो सकती है। इस प्रकार बहुराष्ट्रीय उद्यम विकास और रोजगार में सहायक होते है तथा संसाधनों के इष्टतम उपयोग और संसाधनों की गुणवत्ता में उन्नयन से मेजबान देश को लाभ हो सकता है।
कम विकसित देशों में संसाधनों के अभाव के मद्देनजर बहुराष्ट्रीय उपक्रमों द्वारा किया गया निवेश वरदान सिद्ध हो सकता है तथा और अधिक विकास को प्रेरित करता है। तथापि, अनुबंध की अनुपस्थिति से अंतःक्षेत्र अर्थव्यवस्था का सृजन होता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि बहुराष्ट्रीय उपक्रम आधुनिक प्रौद्योगिकी, स्थापित अनुसंधान और विकास के विपुल संग्रह हैं और औद्योगिक उन्नयन के लिए वरदान सिद्ध हो सकते हैं। मूल फर्म सामान्यतया मेजबान देश के फर्मों को सर्वोत्तम प्रबन्धकीय कौशल तथा प्रणाली, प्रौद्योगिकी और उपकरण उपलब्ध कराते हैं। हालाँकि यह बहस का विषय है कि मेजबान देश इन सर्वोत्तम तकनीकों को आत्मसात कर सकते हैं कि नहीं। जब तक कि प्रबन्धन में कुछ सीमा तक नियंत्रण की अनुमति नहीं दी जाती है, प्रौद्योगिकी स्वामि सामान्यतया अपनी प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने के इच्छुक नहीं रहते हैं। इस प्रकार बहुराष्ट्रीय कार्यकलाप में जहाँ निवेशक का संसाधनों पर कुछ प्रबन्धकीय नियंत्रण होता है मेजबान देशों को सर्वोत्तम प्रौद्योगिकी उपलब्ध हो जाती है। यह न सिर्फ आधुनिक प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराता है अपितु स्वच्छ पर्यावरण एवं अनुकूल प्रौद्योगिकी भी लाता है।
बहुराष्ट्रीय उपक्रम एक संगठन की भाँति विभिन्न प्रकार के संसाधन, क्षमताएँ और यहाँ तक कि बाजार भी उपलब्ध कराती हैं। वे न सिर्फ रोजगार और परिसंपत्तियों के सृजन अपितु विभिन्न प्रकार के उद्यमों में अपनी भागीदारी के माध्यम से विदेशी मुद्रा की भी आपूर्ति में सहायक होते हैं। बहुराष्ट्रीय उपक्रमों की उपस्थिति से निर्यात और कम लागत वाला आयात बढ़ता है। अंततः बहुराष्ट्रीय उपक्रम विश्वस्तरीय और समय की कसौटी पर खरा भूमंडलीय मानक लाते हैं। बहुराष्ट्रीय कार्यकलाप न सिर्फ स्थानीय मूल्य संवर्द्धन में योगदान करते हैं अपितु स्थानीय संसाधनों की प्रतिस्पर्धात्मकता और क्षमताओं को भी बढ़ाते हैं।
बहुराष्ट्रीय उपक्रमों का किसी अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ सकता है। सर्वप्रथम, बहुराष्ट्रीय उपक्रम मेजबान देश जो व्यापार घाटा से जूझता रहता है के लिए पूँजी के प्रवाह के रूप में व्यापार घाटा की समस्या को कम कर देता है। यह पाया गया है कि आरम्भ में बहुराष्ट्रीय उपक्रम का भुगतान संतुलन मेजबान देश के अनुकूल तथा मूल देश के प्रतिकूल होता है। तथापि, बाद में यह स्थिति उलटी हो जाती है। मेजबान देशों की कुछ वास्तविक आशंकाएँ होती हैं। यह कहा जाता है कि जहाँ संसाधनों को जुटाने का प्रश्न होता है बहुराष्ट्रीय उपक्रम की तुलना में स्थानीय उद्यमी पिछड़ जाते हैं इस प्रकार स्थानीय उद्यमियों अथवा कंपनियों के सफाये की संभावना रहती है तथा उनमें उपलब्ध सर्वोत्तम स्थानीय संसाधनों पर कब्जा कर लेने की क्षमता होती है। एक देश में एक निश्चित स्तर तक विकास के बाद बहुराष्ट्रीय उपक्रम की भागीदारी से मेजबान देश में अनुसंधान और विकास कार्यकलापों में भी कमी आ सकती है।
बहुराष्ट्रीय उपक्रमों का प्रभाव सिर्फ मेजबान देश तक ही सीमित नहीं रहता है। इसका मूल देश पर भी प्रभाव पड़ता है। किसी अन्य देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कारण मूल देश में नौकरियों के जाने का खतरा रहता है। एक तर्क यह भी दिया गया है कि मूल देश की प्रौद्योगिकीय श्रेष्ठता के समाप्त होने की संभावना भी रहती है। एक अन्य संभावित प्रभाव यह हो सकता है कि मूल देश की कर आय घट जाए क्योंकि कंपनी का प्रचालन आधार मूल देश से किसी अन्य देश में हस्तांतरित कर दिया जाता है जहाँ कर ढाँचा उदार होता है अथवा कर की दरें कम होती हैं। पुनः बहुराष्ट्रीय उपक्रम द्वारा सरकार के नियंत्रण को निष्प्रभावी किए जाने की भी संभावना रहती है क्योंकि उनकी अन्तरराष्ट्रीय पूँजी बाजार में सीधी पहुँच होती है तथा वह घरेलू मौद्रिक नीतियों को धोखा देती हैं।
स्थानीय प्रथाओं और रोजगार को नियंत्रित/विनियमित करने वाली समष्टि आर्थिक नीतियों के बावजूद बहुराष्ट्रीय उपक्रमों द्वारा श्रम बल अथवा नियोजन के विभिन्न पहलुओं जैसे रोजगार का स्तर और वृद्धि प्रतिफल/प्रतिपूर्ति, कार्य दशा, मानव संसाधन विकास, औद्योगिक संबंध और श्रम बल की गुणवत्ता को भी प्रभावित किए जाने की संभावना रहती है। जब व्यापार पर बहुराष्ट्रीय उपक्रमों के प्रभाव की बात आती है तो उपलब्ध साहित्य में व्यापार पर बहुराष्ट्रीय उपक्रम के प्रभाव (विस्तार अथवा दिशा) पर सामान्य चर्चा नहीं है। तथापि, अनुभव सिद्ध अध्ययन से यह सुदृढ़ रूप से स्थापित होता है कि बहुराष्ट्रीय उपक्रमों ने वर्षों में विश्व व्यापार की संरचना और संघटन को बदल दिया है।
बोध प्रश्न 5
1) अर्थव्यवस्था के विकास में बहुराष्ट्रीय कंपनी क्या भूमिका निभाती है?
2) बहुराष्ट्रीय कार्यकलापों के संभावित प्रभाव क्या हैं?
सारांश
आज, अनेक देश विभिन्न कार्यकलापों में प्रतिबंधों की अलग-अलग मात्रा के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देते हैं। नब्बे के दशक के आरम्भ से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अन्तर्वाह में वृद्धि की रुझान रही है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में विशेषकर हाल के दिनों में वृद्धि हो रही है। बहुराष्ट्रीय कार्यकलाप के रूप में बढ़ता हुआ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं द्वारा किए जा रहे भूमंडलीकरण के प्रयासों, विश्व बाजार की बढ़ती हुई अखंडता और अंतिम किंतु अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण उदारीकरण तथा निवेश के लिए नए क्षेत्रों के खुलने से संभव हुआ है। निजी क्षेत्र की बढ़ती हुई भूमिका और सीमा रहित भूमंडलीकृत उत्पादन की ओर ध्यान केन्द्रित होने से फर्मों के लिए अब यह आवश्यक हो गया है कि निवेश की अवस्थिति का प्रतिस्पर्धी लाभ उठाएँ ।
भूमंडलीय स्तर पर अखंडता बहुराष्ट्रीय कार्यकलापों के विभिन्न स्वरूपों के विकास को और आगे बढ़ाते रहेगा। सांख्यिकी आँकड़ों से पता चलता है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएँ जिन्होंने अपनी अर्थव्यवस्थाओं का भूमंडलीकरण और उदारीकरण किया उन्हें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से लाभ हुआ। इस प्रकार, पूरे भूमंडल में निजीकरण और भूमंडलीकरण की ओर बढ़ते कदम के साथ बहुराष्ट्रीय कार्यकलाप राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में अधिक बृहत् भूमिका निभाएँगे। कोई देश विकसित है अथवा विकासशील इस तथ्य से निरपेक्ष विदेशी और घरेलू स्वामित्व वाले उपक्रमों का सहअस्तित्व बना रहेगा। 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के साथ-साथ संचार, परिवहन और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति होने से उत्पादन और बाजार के अन्तरराष्ट्रीय घटक कहीं अधिक तेजी से क्रमशः एक दूसरे से जुड़ रहे हैं। इस प्रकार आने वाले समय में बहुराष्ट्रीय कार्यकलाप और जोर पकड़ेगा। हाल में पूरे भूमंडल में न सिर्फ व्यापार के क्षेत्र में अपितु निवेश के क्षेत्र में भी बहुपक्षीय प्रकार की व्यवस्थाओं की ओर बढ़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। निवेश का यह बहुपक्षीय दृष्टिकोण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अधिक प्रवाह के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कार्यकलापों को और आगे बढ़ाएगा। इस प्रकार, विभिन्न देशों द्वारा शुरू किए गए उदारीकरण प्रयासों को और बल मिलेगा।
शब्दावली
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ः एक ऐसा निवेश जो दीर्घकालीन संबंधों से जुड़ा है और स्थायी हित तथा एक उपक्रम में एक अर्थव्यवस्था अवस्थित सत्ता का नियंत्रण प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक से अलग अर्थव्यवस्था में अवस्तित उपक्रम को प्रदर्शित करता है।
भूमंडलीकरण ः पूरे विश्व में बाजार के अधिक एकीकरण की प्रवृत्ति
बहुराष्ट्रीय ः बहुराष्ट्रीय फर्म वे हैं जो एक से अधिक देशों में उत्पादन प्रक्रिया की स्वामि हैं, इसका नियंत्रण तथा प्रबंधन करती हैं और मूल्य संवर्द्धन कार्यकलापों का सृजन करती हैं।
पारदेशीयता ः बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ जहाँ स्वामी प्रबन्धक एक से अधिक देशों के होते हैं।
पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगी ः विदेशी बाजार में प्रवेश करने का एक तरीका जिसमें विद्यमान फर्म के प्रचालन पर पूरा नियंत्रण स्थापित करने के लिए इसका पूरा अधिग्रहण किया जाता है।
अन्तरराष्ट्रीय विलय और अधिग्रहण: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रूप जहाँ विदेशी फर्म विद्यमान स्थानीय फर्म का अधिग्रहण करती है अथवा उसके साथ विलय कर लेती है जिससे अधिग्रहित अथवा विलय किए गए फर्म में नियंत्रण बदल जाता है।
मूल देश ः वह देश जिसमें मूल फर्म पंजीकृत अथवा अवस्थित है।
मेजबान देश ः वह देश जहाँ बहुराष्ट्रीय फर्म विभिन्न मूल्य संवर्दि्धत कार्यकलापों की स्वामी हैं, उसे नियंत्रित करती हैं अथवा उसका प्रबन्ध करती हैं।
कुछ उपयोगी पुस्तकें एवं संदर्भ
कुलेन, जॉन बी. (1999). मल्टीनेशनल मैनेजमेंट: ए स्ट्रेटेजिक एप्रोच, साउथ वेस्टर्न कॉलेज पब्लिशिंग, यू एस ए।
डनिंग, जॉन एच. (1996). मल्टीनेशनल इन्टरप्राइसेस एण्ड दि ग्लोबल इकनॉमी, एडीसन बेस्ली, इंग्लैंड। वल्र्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट्स, विभिन्न अंक।
बोध प्रश्नों के उत्तर अथवा संकेत
बोध प्रश्न 2
1) उपभाग 16.2.1 देखिए।
2) उपभाग 16.2.1 देखिए।
3) (क) गलत (ख) सही।
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