केंद्रीय बल की विशेषताएं क्या है , केन्द्रीय बलों के प्रभाव में गति (Motion under Central Forces in hindi)
केंद्रीय बल की विशेषताएं क्या है ?
केन्द्रीय बलों के प्रभाव में गति (Motion under Central Forces in hindi)
(i) केन्द्रीय बल (Central forces) – यदि किसी बल क्षेत्र में कण पर लगे बल F की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(1) बल F की क्रिया रेखा सदैव किसी नियत बिन्दु से गुजरती हो तथा
(2) बल का परिमाण नियत बिन्दु, जिसे बल क्षेत्र का केन्द्र कहते हैं, से कण की दूरी पर निर्भर करता है दिशा पर नहीं तो इस प्रकार के बल को केन्द्रीय बल कहते हैं।
उदाहरण के लिए स्थिर-वैद्युत बल, गुरूत्वीय बल आदि केन्द्रीय बलों के उदाहरण हैं। गणितीय रूप में यदि बल केन्द्र को मूल बिन्दु मानें तो
F (r) = F(r) (#r)
यहाँ स्थिति सदिश के अनुदिश एकांक सदिश है तथा केन्द्रीय बल का परिमाण F(r) कण की बल के केन्द्र से दूरी r का कोई फलन है।
यदि यह F(r) की दिशा (-r) है तो केन्द्रीय बल आकर्षण प्रकृति का होगा और यदि दिशा (+ r) की ओर है तो केन्द्रीय बल प्रतिकर्षण प्रकृति का होता है।
जैसे गुरूत्वीय क्षेत्र के लिए तीव्रता F(r) = GM/r2 (-r)
स्थिर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता F(r) = Kq/r2 (r)
(ii) केन्द्रीय बल के अन्तर्गत प्रत्येक कण की गति सदैव एक ही समतल में होती है- समी. (1) के दोनों तरफ स्थिति सदिश r के साथ सदिश गुणनफल करने पर
R x F(r) = F(r) r x r = 0
परन्तु हम जानते हैं कि
F(r) = m d2 r/dt2
R x m d2 r/dt2 = 0
R x d2 r /dt2 = 0
अतः d/dt (r x d r /dt) = dr/dt x dr/dt + r x d2 r/dt2 = 0 + r x d2 r/dt2 = 0
d/dt (r x d r/dt) = 0
r x d r/dt = h (नियतांक) ……………………………….(2)
यहाँ h एक नियतांक सदिश है जो समय पर निर्भर नहीं करता है तथा स्थिति सदिश r और कण के वेग d r/dt से बने तल के लम्बवत् है। इसका अर्थ हुआ कि r तथा dr/dt से निर्मित समतल सदैव अपरिवर्तित रहना चाहिए। अतः कण की गति एक ही समतल में होती है।
उपरोक्त निष्कर्ष कण पर केन्द्रीय बल के कारण आरोपित बल आघूर्ण ज्ञात कर भी प्राप्त किया जा सकता है।
केन्द्रीय बल के कारण बल आघूर्ण
= r x F(r)
= r x F (r) i
= 0
परन्तु = dj/dt
अतः dj/dt = 0
J = नियत
अतः केन्द्रीय बल क्षेत्र में कण का कोणीय संवेग नियत (संरक्षित) रहता है।
J = r x p
जिससे सदिश J सदैव r के लम्बवत् होता है। अन्य रूप में स्थिति सदिश r सदैव j लम्बवत् तल में रहता है और चूँकि J नियत है अतः वह तल जिसमें स्थिति सदिश r स्थित होता है नियत रहता है अर्थात् कण एक ही तल में गति करता है।
(iii) केन्द्रीय बल के अन्तर्गत कण की गति के समीकरण- एक ही तल में गतिशील कण की मन का समीकरण ध्रुवीय निर्देशांकों में सरलता से ज्ञात कर सकते हैं। माना m द्रव्यमान के किसी गतिशील कण के कार्तीय निर्देशांक (cartesian coordinates) (x, y) तथा ध्रुवीय निर्देशांक (polar coordinates) (r, θ) हैं।
x = r cos θ
y = r sin θ
t के सापेक्ष अवकलन करने पर
dx/dt = sin θ dr/dt cos θ – r sin θ dθdt
dy/dt = sin θ dr/dt + cos θ dθ/dt
t के सापेक्ष पुनः अवकलन करने पर
d2x/dt2 = [d2r/dt2 – r (dθ/dt)2]cos θ – [r d2 θ/dt2 + 2 dr/dt. Dθ/dt] sinθ
d2y/dt2 = [d2r/dt2 – r (dθ/dt)2]sinθ + [r d2θ/dt2 + 2 dr/dt. Dθ/dt] cos θ
a = (I d2x/dt2 + j d2y/dt2)
= [d2r/dt2 – r (dθ/dt)2] (i cos θ + j sin θ)
+[r d2 θ/dt2 + 2 (dr/dt)(dθ/dt) (-I sin θ + j cos θ)
चित्र (2) से त्रिज्यक दिशा में एकांक सदिश
= (I cos θ + j sinθ)
तथा दिगंशी दिशा में एकांक सदिश
θ = (-I sin θ + j cos θ) होता है।
= (rar,+ θaθ)
= [d2r/dt2 – r (dθ/dt)2] I + [r d2θ/dt2 + 2 (dr/dt)(dθ/dt)] θ
तुलना करने पर,
त्रिज्यक त्वरण ar = [d2r/dt2 – r (dθ/dt)2 ………………………(3)
दिगंशी त्वरण aθ = [r d2θ/dt2 + 2 (dr/dt)(dθ/dt)] ………………….(4)
न्यूट्रन के द्वितीय नियम से
F(r) = F(r) r = m a
F(r) t =m (rar, + θaθ)
तुलना करने पर
M[d2r/dt2 – r (dθ/dt)2 = F(r) ………………………..(5)
तथा m [r d2θ/dt2 + 2 (dr/dt)(dθ/dt) = 0 ………………….(6)
समी. (5) तथा (6) केन्द्रीय बलों के अन्तर्गत गतिशील कण के गति के समीकरण कहलाते हैं। (iv) कोणीय संवेग के संरक्षण का नियम- समी. (6) को r से दोनों तरफ गुणा करने पर
M [r2 d2θ/dt2 + 2r (dr/dt) (dθ/dt) = 0
d/dt (mr2 dθ/dt) = 0 ……………………(7)
dj/dt = 0 ……………………………..(8)
जिससे J = mr2 dθ/dt नियतांक ………………………..(9)
घूर्णन गति करने वाले कण के कोणीय संवेग कामान mr2 (dθ/dt) होता है इसलिए समी. (8) कोणीय संवेग के संरक्षण के नियम को व्यक्त करता है अर्थात् केन्द्रीय बलों के अन्तर्गत गतिशील कण का कोणीय संवेग J = mr2(dθ/dt) सदैव संरक्षित रहता है।
अब यदि समी. (7) को 1/2m से गुणा कर दें तो
d/dt (1/2 r2 dθ/dt) = 0
या 1/2 r2 (dθ/dt) = नियतांक ………………….(10)
चित्र (3) के अनुसार dt समय में यदि कोणीय विस्थापन dθ है तो इस समय में r सदिश द्वारा प्रसर्पित क्षेत्रफल
dA = 1/2 (rdθ) = 1/2 r2 dθ
अतः Da/dt = 1/2 r2 (dθ/dt)
1/2 r2 (de/dt) क्षेत्रीय वेग परिभाषित करता है जो एकांक समय में कण के स्थिति r सदिश के द्वारा प्रसर्पित (swept) क्षेत्रफल होता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि केन्द्रीय बलों के लिए कोणीय संवेग के संरक्षण का नियम क्षेत्रीय वेग की निश्चरता को व्यक्त करता है। यह वास्तव में ग्रहों की गति के लिए केप्लर का द्वितीय नियम (Kepler’s second law) है। केप्लर के अनुसार सूर्य के सापेक्ष प्रत्येक ग्रह नियत क्षेत्रीय वेग से गति करते है।
सारांश में हम कह सकते हैं कि क्षेत्रय वेग की निश्चरता केन्द्रीय बलों का स्वाभाविक गुण होता है और यह कोणीय संवेग संरक्षण के नियम से प्राप्त किया जा सकता है।
यदि बल क्षेत्र F(r) में स्थिति 7 पर कण की स्थितिज ऊर्जा U(r) हो तो केन्द्रीय संरक्षी बल के
लिये
F(r) =- dU(r)/dr
या F (r) = – du (r)/dr
समी. (9) तथा (5) को प्रयुक्त करने पर
M d2r/dt2 – rj2/mr4 = – du/dr
M d2r/dt2 = – du/dr + j2/mr3
d/dr = (1/r2) = 2/r3
m = d2r/dt2 = – d/dr (U + j2/2mr2) ………………..(11)
दोनों पक्षों को dr/dt से गुणा करके हल करने पर
M (dr/dt) (d2r/dt2) = – dr/dt d/dr (U + J2/2mr2)
d/dt [1/2 m(dr/dt)2] = – d/dt (U + J2/2mr2)
d/dt [1/2 m (dr/dt)2 + U + J2/2mr2] = 0 ………………………..(12)
1/2 m (dr/dt)2 + U + J2/2mr2 =नियतांक = E(माना) …………………..(13)
प्रकृति के नियमानुसार समी. (13) कुल ऊर्जा संरक्षण को प्रदर्शित करता है। समी. (13) में पद 1/2 = m (dr/dt)2 स्थानांतरीय गतिज ऊर्जा को, पद J2/2mr2 घूर्णन गतिज ऊर्जा को तथा U स्थितिज ऊर्जा को व्यक्त करता है। यहाँ
J2/2mr2 = (mr2 dθ/dt)2 1/2mr2 = 1/2 mr2 (dθ/dt)2 = 1/2 ………………………(14)
(vi) गति के समीकरण का हल- समी. (13) को निम्न रूप में लिखा जा सकता है
Dr/dt = [2/m (E – U – J2/2mr2)]1/2
या dt = [2/m (E – U – J2/2mr2)]-1/2 dr …………………(15)
समाकलन करने पर
∫dt = ∫2/m (E – U – J2/2mr2)]-1/2 dr …………………………….(16)
जहाँ t = 0, पर r = r0 है।
कोणीय संवेग J = mr2 dθ/dt
या dθ = J/mr2 dt
जिसके परिणामस्वरूप θ = ∫ j/mr2 dt ………………………………….(17)
समी. (16) तथा (17) को सैद्धान्तिक रूप से rat तथा 0 तथा t के मध्य सम्बन्धों को ज्ञात करने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है यदि केन्द्रीय बल की प्रकृति ज्ञात हो। समी. (15) से dt को r के पदों में समी. (17) में रखा जाय और फिर हल निकाला जाय जो यह हल गति की प्रगति को दर्शायेगा। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि कण के ध्रुवीय निर्देशांकों r तथा θ को समय t के सापेक्ष ज्ञात किया जा सकता है।
अन्त में, केन्द्रीय बल के अन्तर्गत गतिशील कण का पथ समी. (5) में t को विलुप्त करके भी ज्ञात किया जा सकता है। हम जानते हैं कि
कोणीय संवेग J = mr2 dθ/dt
d/dt(θ) = J/mr2 d/dθ (θ)
अतः संकारक के रूप में
d/dt = J/mr2 d/dθ …………………………….(18)
तथा d/dt (d/dt) = J/mr2 d/dθ (j/mr2 d/dθ)
यह मान समी. (5) में रखने पर
Mj/mr2 d/dθ (J/mr2 dr/dθ) – mr (dθ/dt)2 = F(r)
परन्तु J = mr2 dθ/dt ,रखने पर
घूर्णन गति करने वाले कण के कोणीय संवेग का मान mr2 (dθ/dt) होता है इसलिए समी. (8) कोणीय संवेग के संरक्षण के नियम को व्यक्त करता है अर्थात् केन्द्रीय बलों के अन्तर्गत गतिशील कण का कोणीय संवेग J = mr2(dθ/dt) सदैव संरक्षित रहता है।
अब यदि समी. (7) को 1/2m से गुणा कर दें तो
d/dt (1r2 dθ/dt) = 0
या 1/2 r2 (dθ/dt) = नियतांक …………………(10)
…..(10)
चित्र (3) के अनुसार dt समय में यदि कोणीय विस्थापन dθ है तो इस समय में सदिश r द्वारा प्रसर्पित क्षेत्रफल
dA = 1/2 r (rdθ) = 1/2 r2 dθ
अतः Da/dt = 1/2 r2 (dθ/dt)
1/2 r2 (dθ/dt) क्षेत्रीय वेग परिभाषित करता है जो एकांक समय में कण के स्थिति सदिश r के द्वारा प्रसर्पित (swept) क्षेत्रफल होता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि केन्द्रीय बलों के लिए कोणीय संवेग के संरक्षण का नियम क्षेत्रीय वेग की निश्चरता को व्यक्त करता है। यह वास्तव में ग्रहों की गति के लिए केप्लर का द्वितीय नियम (Kepler’s second law) है। केप्लर के अनुसार सूर्य के सापेक्ष प्रत्येक ग्रह नियत क्षेत्रीय वेग से गति करते है।
सारांश में हम कह सकते हैं कि क्षेत्रय वेग की निश्चरता केन्द्रीय बलों का स्वाभाविक गुण होता है और यह कोणीय संवेग संरक्षण के नियम से प्राप्त किया जा सकता है।
यदि बल क्षेत्र F(r) में स्थिति 7 पर कण की स्थितिज ऊर्जा U(r) हो तो केन्द्रीय संरक्षी बल के
लिये
F(r) = du(r) /dr
या F(r) = – du(r)/dr
समी. (9) तथा (5) को प्रयुक्त करने पर
M d2r/dt2 – rj2/mr4 = – du/dr
Md2r/dt2 = – du/dr + j2/mr3
परन्तु d/dr (1/r2) = – 2/r3
M d2r/dt2 = – d/dr (u + j2/2mr2) ………………………….(1)
दोनों पक्षों को dr/dt से गुणा करके हल करने पर
M(dr/dt) (d2r/dt2) = – dr/dt d/dr (u + j2/2mr2)
d/dt [1/2 m(dr/dt)2] = – d/dt (u + j2/2mr2)
या d/dt [1/2 m(dr/dt)2 + u + j2/2mr2 ] = 0 ………………………….(12)
d/dt [1/2 m( dr/dt)2 + u + j2/2mr2 =नियतांक = E(माना) ……………………(13)
प्रकृति के नियमानुसार समी. (13) कुल ऊर्जा संरक्षण को प्रदर्शित करता है। समी. (13) में पद =m (dr/dt)2 स्थानांतरीय गतिज ऊर्जा को, पद J2/2mr2 घूर्णन गतिज ऊर्जा को तथा U स्थितिज ऊर्जा को व्यक्त करता है। यहाँ
J2/2mr2 = (mr2 dθ/dt)2 1/2mr2 = 1/2 mr2 (dθ/dt)2 = 1/2 Iω2 ……………………..(14)
(vi) गति के समीकरण का हल- समी. (13) को निम्न रूप में लिखा जा सकता है
Dr/dt = [2/m (E – U – J2/2mr2)]1/2
या
Dt = [2/m (E – U – J2/2mr2)]-1/2 dr ……………………………….(15)
समाकलन करने पर
∫dt = ∫ [2/m(E – U – J2/2mr2)]-1/2 dr ………………………………….(16)
जहाँ t = 0, पर r = r0 है।
कोणीय संवेग J = mr2 dθ/dt
या Dθ = J/mr2 dt
जिसके परिणामस्वरूप θ = ∫ J/mr2 dt …………………(17)
समी. (16) तथा (17) को सैद्धान्तिक रूप से r व t तथा θ तथा t के मध्य सम्बन्धों को ज्ञात करने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है यदि केन्द्रीय बल की प्रकृति ज्ञात हो। समी. (15) से dt को r के पदों में समी. (17) में रखा जाय और फिर हल निकाला जाय जो यह हल गति की प्रगति को दर्शायेगा। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि कण के ध्रुवीय निर्देशांकों r तथा θ को समय t के सापेक्ष ज्ञात किया जा सकता है।
अन्त में, केन्द्रीय बल के अन्तर्गत गतिशील कण का पथ समी. (5) में t को विलुप्त करके भी ज्ञात किया जा सकता है। हम जानते हैं कि
कोणीय संवेग J = mr2 dθ/dt
d/dt (θ) = J/mr2 d/dθ (θ)
अतः संकारक के रूप में
d/dt = J/mr2 d/d θ ………………….(18)
तथा d/dt (d/dt) = J/mr2 d/dθ (J/mr2 d/dθ)
यह मान समी. (5) में रखने पर
Mj/mr2 d/dθ (J/mr2 dr/dθ) – mr (dθ/dt)2 = F(r)
परन्तु J = mr2 dθ/dt , रखने पर
J2/mr2 d/dθ (1/r2 dr/dθ) – j2/mr3 = F(r)
परन्तु 1/r2 (dr/dθ) = – d/dθ (1/r)
अतः J2/mr2 d2/dθ2 (1/r) + J2/mr2 = – F(r)
J2/mr2 [d2/dθ2 (1/r) + 1/r ] = – F(r)
यदि 1/r को u से लिखे तो
J2U2/m (d2u/dθ2 + u) = – F(1/u) ………………(19)
यह समीकरण गतिशील कण के पथ का समीकरण है। इसे हल किया जा सकता है यदि बल की प्रकृति एवं परिमाण ज्ञात हो। इसके विपरीत, यदि गतिशील कण का पथ ज्ञात हो तो बल की प्रकृति भी ज्ञात की जा सकती है।
(vii) केन्द्रीय बलों के प्रभाव में गति के स्वरूप के बारे में कुछ अर्न्तदृष्टि
समी. (11) के अनुसार
M d2r/dt2 = – d/dr (U + J2/2mr2) = – du/dr = F (r)
जहाँ U = U + J2/2mr2 ……………………………(20)
अर्थात् F (r) = – du/dr – d/dr (J2/2mr2) = – du/dr + J2/mr3
या F(r) = F(r) + J2 /mr3 …………………(21)
कोणीय गति में अपकेन्द्रीय बल
Fc = m ω2r
तथा J = mr2 ω
FC = mr J2/m2r4 = J2/mr3
इस बल के संगत स्थितिज ऊर्जा =- ∫Fcdr
= J2/2mr2
अतः समी. (13) से
E = 1/2 m (dr/dt)2 + U + J2/2mr2
या E = 1/2 m (dr/dt)2 + U ………………………….(22)
जहाँ U’ कुल स्थितिज ऊर्जा हैं।
U, J2/2mr2 तथा U’ के r के साथ आलेख केन्द्रीय व्युत्क्रम वर्ग बल समस्या (F = + k/r2 तथा U=-k/r) के लिए चित्र (4) में दर्शाये गये हैं। ये सभी आलेख ऊर्जा-आरेख (energy diagram) कहलातेmहैं। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि गतिज ऊर्जा [1/2 m (dr/dt)2] का मान सदैव धनात्मक होता है। इसके अतिरिक्त अपकेन्द्रीय ऊर्जा (J2/2mr2) भी धनात्मक होगी जबकि स्थितिज ऊर्जा (U) का मान धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है। U’ = U + (J2/2mr2) प्रभावी स्थितिज ऊर्जा का मान भी धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है। U’ के धनात्मक मान का तात्पर्य है कि |J2/2mr2| >|U| तथा U’ के ऋणात्मक मान का तात्पर्य है कि |J2/2mr2 |</U|अतः U’ का धनात्मक या ऋणात्मक होना U तथा J2/2mr2 के आपेक्षिक परिमाणों पर निर्भर करेगा।
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