WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल क्या है प्रकार वर्गीकरण नामकरण monohydric alcohols in hindi Classification types

ऐmonohydric alcohols in hindi Classification types मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल क्या है प्रकार वर्गीकरण नामकरण किसे कहते हैं ?

ऐल्कोहॉल (Alcohols)

 प्रस्तावना (Introduction) : ऐल्कोहॉल वे यौगिक है जो ऐल्केन अणु से एक या एक से अधिक हाइड्रोजन परमाणुओं हाइड्रॉक्सी समूहों (OH) द्वारा प्रतिस्थापन से बनते हैं अर्थात ऐल्कोहॉल केवल वे ही यौगिक हैं जिनमें हाइड्रॉक्सी समूह ऐसे कार्बन परमाणुओं से बंधित हो जिनकी शेष संयोजकतायें हाइड्रोजन परमाणु या ऐल्किल समूह द्वारा संतुष्ट हों। इन्हें इनमें उपस्थित हाइड्रॉक्सी समूहों की संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। एक, दो, तीन अथवा अधिक हाइड्रॉक्सी समूह उपस्थित होने पर क्रमशः मोनो, डाइ, ट्राइ अथवा पॉलि हाइड्रिक ऐल्कोहॉल कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-

(iv) पॉलिहाइड्रिक ऐल्कोहॉल – सॉर्बिटॉल, मैनीटॉल आदि ।

डाइ, ट्राइ, तथा पॉलि हाइड्रिक ऐल्कोहॉल में हाइड्रॉक्सी समूह पृथक-पृथक कार्बन परमाणुओं पर उपस्थित होते हैं। एक ही कार्बन परमाणु पर दो या अधिक हाइड्रॉक्सी समूह उपस्थित होने पर यौगिक अस्थाई हो जाता है।

 मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल – वर्गीकरण एवं नामकरण (Classification and nomenclature of monohydric alcohols)

मोनो हाइड्रिक ऐल्कोहॉल ऐल्केन के हाइड्रॉक्सी व्युत्पन्न है जिनमें ऐल्केन से एक हाइड्रोजन परमाणु को हाइड्रॉक्सी समूह द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। इन्हें जल का व्युत्पन्न भी माना जाता है जिनमें जल का एक हाइड्रोजन परमाणु एक ऐल्किल समूह द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। इनका सामान्य सूत्र CH2n+20 है चूँकि ऐल्कोहॉल में हाइड्रॉक्सी (OH) समूह क्रियात्मक समूह है इसलिए इनका सामान्य सूत्रं CH2n+1OH अथवा R-OH लिखना अधिक सुविधाजनक है (यहाँ R = ऐल्किल समूह ) ।

मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल को प्राथमिक (I एवं II), द्वितीयक (III) एवं तृतीयक (IV) ऐल्कोहॉल में वर्गीकृत किया गया है जब हाइड्रॉक्सी समूह क्रमशः प्राथमिक कार्बन परमाणु द्वितीयक परमाणु और तृतीयक कार्बन परमाणु से संलग्न हों।

उपर्युक्त संरचनाओं (I-IV) से स्पष्ट हैं कि प्राथमिक ऐल्कोहॉल में – CH2OH समूह, द्वितीयक ऐल्कोहॉल में > CH-OH समूह तथा तृतीयक ऐल्कोहॉल में COH समूह लाक्षणिक क्रियात्मक समूह होते हैं ।

नामकरण की रूढ़ पद्धति के अनुसार इन्हें ऐल्किल ऐल्कोहॉल कहते हैं जिसे ऐल्कोहॉल शब्द से पूर्व तदनुरूपी ऐल्किल मूलक का नाम लिखकर प्राप्त किया जा सकता है। जैसे – CH3OH मेथिल ऐल्कोहॉल, CH3—CH2—CH2 – OH – प्रोपिल एल्कोहॉल, CH3CH – CH3 आइसो प्रोपिल ऐल्कोहॉल आदि ।

नामकरण की व्युत्पन्न पद्धति में इन्हें मेथिल ऐल्कोहॉल का व्युत्पन्न मानते हैं जिसे कार्बिनॉल कहते हैं। उदाहरणार्थ CH3CH2—OH मेथिल कार्बिनॉल,  एथिल मेथिल कार्बिनॉल आदि ।

नामकरण की आई. यू. पी. ए. सी पद्धति में इन्हें ऐल्केनॉल कहते हैं। उस लम्बी से लम्बी श्रृंखला का चयन करते हैं जिसमें – OH समूह उपस्थित हों । श्रृंखला का अंकन उस सिरे से करते हैं जिससे कि –OH समूह वाले कार्बन परमाणु को न्यूनतम संख्या मिले। संलग्न ऑल से पहले उसकी स्थिति भी लिखते हैं। यदि श्रृंखला में अन्य प्रतिस्थापी भी उपस्थित हैं तो उनकों नाम से पूर्व उनकी स्थिति दर्शाते हुए अंग्रेजी के वर्ण माला क्रम में लिखते हैं ।

सारणी 2.1 में पांच कार्बन परमाणु तक के ऐल्कोहॉल के रूढ़ व्युत्पन्न एवं आई. यू. पी. ए. सी नाम दिये गये हैं-

ऐल्कोहॉलों में निम्नलिखित प्रकार की समावयवता मिलती है।

(1) शृंखला समावयवता : 1-ब्यूटेनोल तथा 2-मेथिल-1-प्रोपेनॉल श्रृंखला समावयवी है।

(2) स्थिति समावयवता : ऐल्केन श्रृंखला पर – OH की स्थिति में भिन्नता होने पर स्थिति समावयवी बनते हैं। उदाहरणार्थ, । – प्रोपेनोल तथा 2- प्रोपेनोल परस्पर स्थिति समावयवी हैं।

(3) क्रियात्मक समूह समावयवता : ऐल्कोहल, ईथर के साथ क्रियात्मक समूह समावयवता प्रदर्शित करते हैं। उदाहरणार्थ, C2H2O के निम्नलिखित समावयवी होंगे।

CH3CH2OH (ऐथेनोल) : CH3–O–CH3 (मेथोक्सी मेथेन)

(4) प्रकाशिक समावयवता : असममित कार्बन परमाणु ऐथेनोल निम्नलिखित प्रकार से प्रकाशिक समावयवता दर्शाते हैं ।

 विरचन की विधियाँ (Methods of Preparation)

ऐल्कीन से ऑक्सीमर्क्युरीकरण-विमर्क्युरीकरण द्वारा- ऐल्कीन मर्क्यूरिक ऐसीटेट के साथ टेट्राहाइड्रोफ्यूरेन (T.H.F.) तथा जल मिश्रण से अभिक्रिया करके (हाइड्रॉक्सी ऐल्किल) मर्क्यूरी यौगिक बनाते हैं। इस अभिक्रिया को ऑक्सीमर्क्युरी करण कहते हैं। ये (हाइड्रॉक्सी ऐल्किल) मर्क्यूरी यौगिक सोडियम बोरोहाइड्राइड के द्वारा अपचयित होकर ऐल्कोहॉल देते हैं। यह पद विमर्क्युरीकरण कहलाता है ।

अभिक्रिया मार्कोनीकॉफ के नियमानुसार होती है। जल के तत्वों H तथा OH का योग मार्कोनीकॉफ के नियमानुसार ही होता है। H का योग द्विबन्ध से बन्धित उस कार्बन परमाणु पर होता है जहाँ हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या अधिक होती है।

क्रिया-विधि— ऑक्सी मर्क्यूरिकरण के प्रथम पद में मर्क्युरी स्पशीज  का द्विबन्ध के कम प्रतिस्थापित कार्बन पर इलेक्ट्रॉन स्नेही आक्रमण होता है। मर्क्युरी सेतु कार्बोधनायन बनता है

यह मर्क्युरी सेतु कार्बोधनायन जल के साथ तेजी से अभिक्रिया करके (हाइड्रॉक्सीऐल्किल) मर्क्युरी यौगिक बनाता है।

ऐल्कीनों के जलयोजन से (From hydration of alkenes) 

ऐल्कीन अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में जल से योग करके संगत ऐल्कोहॉल बनाते हैं। इस विधि से निम्न अणुभार वाले ऐल्कोहॉल बनाये जाते हैं। जल का योग तनु H2SO4 अथवा H3PO4/SiO2 के द्वारा उत्प्रेरित होता है। जल का योग मार्कोनीकॉफ के नियमानुसार होता है।

इस अभिक्रिया में ऐथीन के जलयोजन के अतिरिक्त किसी भी ऐल्कीन के जलयोजन से प्राथमिक ऐल्काहॉल नहीं बनता है । 

क्रिया-विधि – प्रोपीन से 2- प्रोपेनॉल बनाने का उदाहरण लेकर अभिक्रिया की क्रिया-विधि निम्नलिखित पदों में दी जा सकती है।

पद-2 में कार्बोनियम आयन का बनना धीमी गति का पद है । अतः यह वेग निर्धारण पद हैं। ऐल्कीन के जलयोजन में पुनर्विन्यास भी हो जाता है। यदि इस कार्बोनियम आयन का पुनर्विन्यास सम्भव होता है चूंकि पद -2 में कार्बोनियम आयन बनता है । तो यह आयन अधिक स्थायी कार्बोनियम आयन में पुनर्विन्यासित हो जाता है । उदाहरणार्थ – 3, 3 – डाइमेथिल – 1 – ब्यूटीन के जल योजन से मुख्यतः 2,3-

डाइमेथिल-2ब्यूटेनॉल बचता है, जबकि 3, 3- डाइमेथिल – 2- ब्यूटेनॉल बनना चाहिए था।

ऐल्कीन के हाइड्रोबोरानन से (From hydroboration of alkenes)-

बोरेन (BHz) के ऐल्कीन पर योग से ऑर्गेनोबोरेन प्राप्त होते हैं। यह समपक्ष योग मार्कोनीकॉफ के नियमानुसार होता है। बोरेन का बोरॉन इलेक्ट्रॉन स्नेही और हाइड्रोजन नाभिक स्नेही का कार्य करते हैं। ऐल्कीन की बोरेन के साथ अभिक्रिया पर मोनो ऐल्किल बोरेन, डाइऐल्किल बोरेन अथवा ट्राइ ऐल्किल बोरेन बनते हैं। यह ऐल्कीन के द्विबन्ध पर त्रिविम विन्यासी बाधा (Steric hindrance) पर निर्भर करता है। यह अभिक्रिया हाइड्रोबोरॉनन कहलाती है। बोरेन (BH3) द्वितीयाणु (Dimer) डाइबोरेन (B2H6) के रूप में स्थायी हैं।

इस प्रकार प्राप्त ऐल्किल बोरेन का बोरॉन – कार्बन बन्ध प्रतिस्थापन के लिए सुग्राही है। ऐल्किल बोरेन क्षारकीय हाइड्रोजन परॉक्साइड से ऑक्सीकृत होकर ऐल्केनॉल देता है।

ग्रीन्यार अभिकर्मक द्वारा (By Grignard reagents) –

ग्रीन्यार अभिकर्मक से प्राथमिक ( R – CH2OH), द्वितीयक और तृतीयक  |ऐल्केनॉल प्राप्त किए जा सकते हैं।

(अ) प्राथमिक एल्कोहॉल (R—CH2OH) –

(i) ग्रीन्यार अभिकर्मक के समान कार्बन परमाणु वाला प्राथमिक ऐल्कोहॉल का बनाना- ऑक्सीजन अभिक्रिया द्वारा-

(ii) ग्रीन्यार अभिकर्मक से एक कार्बन परमाणु अधिक वाला प्राथमिक ऐल्कोहॉल का बनाना-मेथेनैल (फॉर्मेल्डिहाइड) की अभिक्रिया द्वारा

(iii) ग्रीन्यार अभिकर्मक से दो कार्बन परमाणु अधिक वाला प्राथमिक ऐल्कोहॉल का बनाना- एथिलीन ऑक्साइड की अभिक्रिया द्वारा-

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *