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monohybrid and dihybrid cross in hindi difference एक संकर क्रॉस एवं द्विसंकर क्रॉस में क्या अंतर है

एक संकर क्रॉस एवं द्विसंकर क्रॉस में क्या अंतर है monohybrid and dihybrid cross in hindi difference ?

कुछ महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं का तुलनात्मक विवरण (Comparative account of some Important aspects):

  • एकसंकर एवं द्विसंकर क्रॉस (Monohybrid & Dihybrid cross)
क्र.सं. एक संकर क्रॉस (Monohybrid cross) द्विसंकर क्रॉस (Dihybrid cross)
  1. इसमें केवल एक लक्षण की वंशागति का अध्ययन करते हैं ।

2. यह लक्षण केवल एक कारक जीन के द्वारा नियन्त्रित होता है

3. इसमें एक जोड़ी विपर्यासी लक्षणों या युग्मविकल्पियों को सम्मिलित किया जाता है।

4. F2 पीढ़ी में प्राप्त पौधों का फीनोटाइप या लक्षण प्ररूपी अनुपात 3 : 1 होता है ।

5. इसके परिणामस्वरूप F2 पीढ़ी में दो प्रकार के फीनोटाइप एवं तीन प्रकार के जीनोटाइप बनते हैं ।

फीनोटाइप —3 : 1

जीनोटाइप-1 2 : 1

इसमें दो लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया जाता है।

ये दो लक्षण दो कारकों के द्वारा नियन्त्रित होते हैं।

इसमें दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों या युग्मविकल्पियों को सम्मिलित किया जाता है ।

F2 पीढ़ी में प्राप्त पौधों का फीनोटाइप या लक्षण प्ररूपी अनुपात 9: 3 : 3 : 1 होता है ।

इसके द्वारा F, पीढ़ी में चार प्रकार के फीनोटाइप में एवं नौ प्रकार के जीनोटाइप बनते हैं ।

फीनोटाइप – 9:3: 3 : 1

जीनोटाइप – 1 : 2 : 2 : 4 : 1 : 2: 1: 2:1

 

  • बर्हिक्रॉस एवं परीक्षण क्रॉस (Outcross & Test cross)
बर्हिक्रॉस (Outcross ) परीक्षण क्रॉस (Test cross)
1.       इसमें F, पीढ़ी के पौधे का क्रॉस दोनों में से किसी भी जनक के साथ करवाया जा सकता है।

2.       इस क्रॉस के परिणामस्वरूप केवल एक ही प्रकार के पौधे (प्रभावी लक्षण प्ररूप) प्राप्त होते हैं ।

3.       इस प्रक्रिया के द्वारा संकर पादप की शुद्धता परीक्षण क्रॉस के द्वारा पौधे में लक्षण की शुद्धता या संकर अवस्था को निश्चित तौर पर मालूम नहीं किया जा सकता

4. इसके अन्तर्गत बर्हिक्रॉस में फीनोटाइप एक प्रकार का व जीनोटाइप दो प्रकार के होते हैं ।

 

यहाँ F, पीढ़ी के पौधे का क्रॉस केवल अप्रभावी जनक के साथ करवाया जाता है।

इसके परिणामस्वरूप आधे या 50 प्रतिशत पौधे प्रभावी लक्षण वाले एवं शेष 50 प्रतिशत आधे अप्रभावी लक्षण प्रारूप वाले होते हैं।

 

 

क्रॉस में जीनोटाइप व फीनोटाइप दोनों ही दो प्रकार के होते हैं ।

 

  • समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी (Homozygous and Heterozygous)
समयुग्मजी (Homozygous) विषमयुग्मजी (Heterozygous)
1. इसमें एक लक्षण को अभिव्यक्त करने वाले दोनों कारक या जीन समरूपी होते हैं जैसे “TT” या “rr”

2. इसके स्वनिषेचन से प्राप्त पौधों के जीनोटाइप व फीनोटाइप एक प्रकार की जानी संरचना के होते हैं ।

3. इसमें केवल एक प्रकार के युग्मक बनते हैं

यह किसी एक लक्षण को अभिव्यक्त करने वाले दोनों जीन, युग्मविकल्पी में विपर्यासी होते हैं जैसे “Tt”।

यहाँ स्वनिषेचन के पश्चात् 2 प्रकार के फीनोटाइप एवं तीन प्रकार के जीनोटाइप प्राप्त होते हैं।

इसके द्वारा दो प्रकार के युग्मक बनते हैं, जैसे- TT

 

  • जीन प्ररूप या समजीनी एवं लक्षण प्ररूप या समलक्षणी ( Genotype and Phenotype)
जीन प्ररूप (Genotype ) लक्षण प्ररूप (Phenotype)
1. इसके द्वारा जीन संरचना जो किसी लक्षण को अभिव्यक्त करती है निरूपित की जाती है जैसे- TT अर्थात् लक्षण के निरूपण को नियंत्रित करने वाले युग्म के जीन समान होते हैं ।

2. एक प्रकार के जीनोटाइप के फीनोटाइप अर्थात् बाह्य आकारिकी लक्षण अलग-अलग नहीं होते ।

3. जीनोटाइप की जानकारी केवल परीक्षण क्रॉस के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है, किसी अन्य प्रकार से नहीं ।

जीव की बाह्य आकारिकी किसी लक्षण विशेष के लिए समान होती है, परन्तु युग्मविकल्पी के दोनों ऐलील अलग-अलग हो सकते हैं, | जैसे- (Tt)।

 

एक फीनोटाइप के जीन प्ररूप या जीनी संरचना अलग-अलग हो सकती है, जैसे लम्बे पौधे

 

फीनोटाइप, क्योंकि लक्षण की बाह्य अभिव्यक्ति से सम्बन्धित होता है, अत: केवल देखकर ही इसको जान लेते हैं ।

 

मेण्डल ने अपने प्रयोगों के अन्तर्गत विभिन्न लक्षणों की वंशागति का अध्ययन करने के लिए अनेक र के प्रयोग सम्पादित किये, जैसे एक लक्षण की वंशागति या एक से अधिक लक्षणों की वंशागति को सुनिश्चित करने के लिए किये गये संकरण या क्रॉस इत्यादि। इनका विवरण निम्न प्रकार से हैं-

(1) एक संकर क्रॉस या संकरण (Monohybrid cross )

एक जोड़ी विपर्यासी लक्षणों (Contrasting characters) की वंशागति (Inheritance) को सुनिश्चित करने के लिए किये गये क्रॉस या संकरण को एक संकर क्रॉस (Monohybrid cross) हैं। उदाहरणतया मटर के पौधे में लम्बेपन एवं बौनेपन (T एवं 1) या गोल अथवा झुर्रीदार बीज (R व 1 वाले विपर्यासी लक्षणों की वंशागति का अध्ययन एकसंकर क्रॉस में किया जाता है I

मेण्डल ने सर्वप्रथम एकसंकर क्रॉस में मटर के शुद्ध लम्बे (TT) पौधों का क्रॉस शुद्ध बौने पौधों से करवाया, तो F, पीढ़ी में सभी पौधे लम्बे (Tt) प्राप्त हुए ।

जब F, पीढ़ी के पौधों (Tt) में स्वपरागण करवाया गया, तो इनसे F2 पीढ़ी में दो प्रकार के क्रमशः लम्बे एवं बौने पौधे प्राप्त हुए एवं इनका अनुपात 3 (लम्बे) : I (बौने) था। यही नहीं, मेण्डल ने अपने आनुवंशिकी प्रयोगों में आगे चलकर यह भी देखा कि F2 पीढ़ी के बौने पौधों से आगे भी मटर के केवल बौने पौधे ही मिलते हैं । वहीं दूसरी ओर F, पीढ़ी के लम्बे पौधों में 1/3 पौधों से केवल लम्बे मटर के पौधे प्राप्त होते हैं एवं शेष 2/3 लम्बे पौधों से आगे 3:1 के अनुपात में लम्बे एवं बौने पौधे प्राप्त होते हैं ।

इस प्रकार F♭ पीढ़ी में तीन प्रकार के जीन प्ररूप ( Genotypes) पाये जाते हैं-

  1. समयुग्मजी लम्बे (TT) 25%
  2. विषमयुग्मजी लम्बे (Tt) 50%
  3. समयुग्मजी बौने (tt) 25%

परन्तु इसके विपरीत लक्षण प्ररूप या फीनोटाइप (Phenotypes) केवल दो ही प्रकर के पाये जाते हैं ।

1 लम्बे (Tall) पौधे  75 %

  1. बौने (Dwarf) पौधे25 %

एकसंकर क्रॉस (Monohybrid cross) को निम्न प्रकार से रेखाचित्र की सहायता से भी समझाया जा सकता है।

एकसंकर अनुपात (Monohybrid Ratio)

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि-

  1. मटर के पौधों में लम्बेपन एवं बौनेपन का लक्षण एक जोड़ी विपर्यासी (Contrasting) कारकों या जीन्स के द्वारा नियन्त्रित होता है। यदि पौधे में लम्बेपन का कारक या जीन होता है तो पौधा लम्बा एवं यदि बौनेपन का कारक हो तो पौधा बौना (Dwarf) होता है।
  2. ये दोनों कारक या जीन (T वt) प्रयोग में अलग-अलग युग्मकों (Gametes) में पाये जाते हैं, परन्तु निषेचन के बाद दोनों साथ (Tt) आ जाते हैं, इनमें से केवल प्रभावीकारक (T) स्वयं के लक्षण को आने वाली संतति पीढ़ी में अभिव्यक्त कर पाता है, परन्तु जो कारक (1) अभिव्यक्त नहीं हो पाता, या जिसका लक्षण आने वाली पीढ़ी में छुपा रहता है, उसे अप्रभावी ( Recessive ) कारक कहते हैं ।
  3. साथ-साथ रहते हुए भी ये कारक (Tt) एक-दूसरे को प्रभावित या संदूषित नहीं करते एवं युग्मक निर्माण के समय अलग-अलग (T) व (t) हो जाते हैं।

द्विसंकर क्रॉस या संकरण (Dihybrid cross)

एक साथ दो जोड़ी विपर्यासी (Contrasting) लक्षणों की वंशागति (Inheritance) का अध्ययन जिस क्रॉस या संकरण में किया जाता है, उसे द्विसंकर क्रॉस या संकरण (Dihybrid cross) कहते हैं।

मेण्डल ने द्विसंकर क्रॉस का अध्ययन करने के लिए मटर के बीज की आकृति एवं रंग की प्रकृति के गुणों की वंशागति का अध्ययन किया। उनके अनुसार बीज का पीला रंग (YY), हरे रंग (yy) पर प्रभावी था, जबकि गोलाकार बीज (RR) का लक्षण, झुर्रीदार (IT) पर प्रभावी था ।

इस प्रकार उन्होंने पीले एवं गोल बीज (RRyy) वाले समयुग्मजी एवं प्रभावी (Homozygous ★ Dominant) मटर के पौधे का क्रॉस हरे एवं झुरीदार (Green and Wrinkled) बीज वाले मटर के अप्रभावी एवं समयुग्मजी (Recessive and Homozygous) पौधे (rr yy) से करवाया। इस क्रॉस के परिणामस्वरूप यह देखा गया कि F पीढ़ी में प्राप्त सभी पौधे विषमयुग्मजी किन्तु प्रभावी लक्षणों वाले अर्थात् पीले एवं गोलाकार बीज (RrYy) वाले थे ।

F, पीढ़ी के पौधों में स्वपरागण (Self-pollination) करवाने पर F2 पीढ़ी में प्राप्त पौधों का लक्षणप्ररूपी अनुपात ( Phenotypic Ratio) निम्न प्रकार से पाया गया-

  1. गोलाकार व पीले बीज (Round & yellow seeds) = 9
  2. झुर्रीदार व पीले बीज ( Wrinkled & yellow seeds) = 3
  3. गोलाकार व हरे बीज (Round and green seeds) = 3
  4. झुर्रीदार व हरे बीज (Wrinkled and green seeds) = 1

इस प्रकार प्रभावी, मध्यवर्ती एवं अप्रभावी पौधों का द्विसंकर अनुपात (Dihybrid ratio) F2 पीढ़ी में क्रमश: 9 : 3 : 3:1 होता है । यहाँ द्विसंकर क्रॉस में दो लक्षणों की वंशागति का अध्ययन, चेकर बोर्ड की सहायता से निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है-

जीन प्ररूपी अनुपात (Genotypic ratio) = 1 : 2 : 2 : 4 : 1 : 2 : 1 : 2 : 1

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि-

  1. अगर समयुग्मजी (Homozygous) या शुद्ध गोल व पीले बीज वाले पौधों का क्रास शुद्ध झुर्रीदार बीज वाले पौधों से करवाया जावे तो F, पीढ़ी में विषमयुग्मजी (Heterozgous या संकर गोल एवं पीले बीज वाले पौधे ( Rr Yy) प्राप्त होंगे।
  2. F, पीढ़ी के संकर पौधों से चार प्रकार के युग्मक बनते हैं। ये हैं क्रमश: RY, rY, Ry, एवं ry l
  3. F, पीढ़ी के संकर पौधों को स्वनिषेचित करवाने पर F2 पीढ़ी के पौधों में चार प्रकार के लक्षण प्ररूपी पौधे (Phenotypes) प्राप्त होते हैं ।

(1) गोल व पीले

(3) गोल व हरे

(2) झुर्रीदार व पीले

(4) झुर्रीदार व हरे ।

इनका लक्षणप्ररूपी अनुपात (Phenotypic ratio) = 9:33: 1 होता है ।

  1. F2 पीढ़ी के पौधों में 9 प्रकार के जीन प्ररूप (Genotypes) पाये जाते हैं, जिनका अनुपात (Genotypic ratio) क्रमश: 1 : 2 : 2 : 4:1: 2:1: 2 : 1
  2. बेटसन एवं पुन्नेट (Bateson & Punnet 1905) ने विभिन्न प्रकार के जीन प्ररूप (Genotypes) की संख्या ज्ञात करने के लिए चेकर बोर्ड विधि का इस्तेमाल किया था । इससे ज्ञात होता है कि यहाँ अलग-अलग प्रकार के युग्मकों का संयोजन होता है, तथा परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार के पुनःसंयोजन (Recombinations) विकसित होते हैं।
  3. द्विसंकर क्रॉस के अन्तर्गत F2 पीढ़ी के सदस्यों में 4 प्रकार के नर व मादा युग्मक बनते हैं, जिनके सायुज्यन से 16 प्रकार के पुनर्योजी (Recombinants) पादप बनते हैं ।
  4. द्विसंकर क्रॉस के परिणामस्वरूप F2 पीढ़ी में प्राप्त पौधे चार प्रकार के लक्षण प्ररूपों (Phenotypes) को निरूपित करते हैं, जिनमें से दो तो माता-पिता के समान अर्थात् गोल व पीले, एवं झुर्रीदार व हरे बीजों वाले होते हैं । परन्तु शेष दो पूरी तरह नया प्रारूप प्रदर्शित करते हैं। ये पौधे झुर्रीदार व पीले बीजों वाले तथा गोल व हरे बीजों वाले होते हैं ।
  5. इससे यह परिणाम भी प्राप्त होते है कि गोल व पीले बीजों वाले लक्षण झुर्रीदार व हरे लक्षणों पर पूर्णतया प्रभावी हैं I
  6. F2 पीढ़ी के निर्माण में मेण्डल के स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम का पूर्णतया परिपालन होता है, अर्थात् ये लक्षण एक दूसरे से प्रभावित हुए बिना स्वतन्त्र रूप से अभिगमन करते हैं।

इसका कारण यह है कि युग्मकों के निर्माण के समय इनकी जीन्स पृथक् हो जाती है । उपरोक्त परिणामों के अनुसार द्विसंकर क्रॉस की F2 पीढ़ी में प्राप्त पौधों के समलक्षणी अनुपात (Phenotypic ratio) जीनप्ररूपी अनुपात (Genotypic ratio) को अग्र प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है-