आणविक जीव विज्ञान परिभाषा क्या है | आण्विक जीव विज्ञान या अणुजैविकी किसे कहते है molecular biology in hindi
molecular biology in hindi आणविक जीव विज्ञान परिभाषा क्या है | आण्विक जीव विज्ञान या अणुजैविकी किसे कहते है ?
1- आण्विक जैविकी का इतिहास
(History of Molecular Biology).
परिचय (Introduction)
जीवों में आण्विक स्तर पर जैविकीय अणु जैसे डीएनए, आरएनए, जीन, प्रोटीन एवं विभिन्न प्रकार के विकरों (eæymes) की संरचना एवं प्रकार्यों का अध्ययन ही आण्विक जीव विज्ञान (molecular biology) कहलाता है। आण्विक स्तर पर जीवों का अध्ययन अत्याधुनिक उपकरणों द्वारा ही किया जाता है तथा इसमें उच्च तकनीकों का इस्तेमाल होता है।
आण्विक जीव विज्ञान (molecular biology) शब्द का उपयोग वास्तव में वैज्ञानिक विलियम अस्तबूरी (F.k~ Astbury) ने 1945 में किया था। इसका इस्तेमाल उन्होंने जैविक अणुओं की रासायनिक तथा भौतिक संरचना के सम्बन्ध में की थी।
तत्पश्चात् वाटसन तथा क्रिक के डीएनए की द्विकुण्डलित संरचना प्रस्तुत करने के पश्चात् 1953 से इस विषय में निरन्तर प्रगति होती गयी।
जीन की रासायनिक संरचना तथा उनका नियमन आण्विक आनुवंशिकी (molecular genetics) के अन्तर्गत गुणों को प्रभावित करने वाले कारक जीन (gene) का भी अध्ययन किया जाता है। अणु जो जीन बनाते हैंय वह अणु जो जीन को नियन्त्रिात करते हैं तथा वे अणु जो जीन के उत्पाद (product) हैं उनका अध्ययन आण्विक बायोलॉजी का प्रमुख आधार है। आण्विक बायोलॉजी का जन्म वाट्सन तथा क्रिक के डीएनए की द्विकुण्डलीय संरचना प्रस्तुत करने के पश्चात हुआ । आज इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के अणु न्युक्लिक अम्ल, डीएनए, आरएनए, जीन इत्यादि का अत्याधुनिक जैवरासायनिक तकनीक द्वारा अध्ययन किया जाता है।
आण्विक बायोलॉजी का इतिहास (History of Molecular Biology)
फ्रेडरिच मिशर (Friedrich Miescher) ने सन् 1869 में सर्वप्रथम कोशिका के केन्द्रक से एक मिश्रण की खोज की जिसे न्यूक्लिन (nuclein) कहा गया। यह डीआक्सी राइबो न्यूक्लिक अम्ल से बना था.। उन्नीसवीं शताब्दी में डीएनए तथा आरएनए दोनो की संरचना ज्ञात हुई। शर्करा, एक फॉस्फेट समह (group) तथा क्षार (base) युक्त संरचना को न्यूक्लियोटाइड का नाम दिया गया। डीएनए तथा आरएनए में न्यूक्लियोटाइड की एक श्रृंखला (chain) लम्बे पॉलिमर (polymer) के रूप में उपस्थित रहती है जिसमें शर्करा एक दूसरे से फॉस्फेट द्वारा जुड़ी रहती है। इस बन्ध को फोस्फोडायस्टर बन्ध (phosphodiester bond) कहते हैं।
इंग्लैण्ड के जीवाणु वैज्ञानिक (bacteriologist) फ्रेडरिक ग्रिफिथ (Fredrick Grffiith), 1928 ने न्यूमोनिया पर अनुसंधान द्वारा डीएनए के आनुवंशिकी पदार्थ होने के साक्ष्य प्रस्तुत किये। उन्होंने उग्र (violent) तथा अउग्र (non violent) प्रभेदों को चूहों में प्रवेश करवाया। उन्होंने बताया कि उग्र प्रभेद ै-111 को गर्म करने पर चूहे की मृत्यु नहीं हुई। अउग्र (त्-11) द्वारा भी यही परिणाम आया। परन्तु दोनों को मिला कर चूहे में प्रविष्ट करवाने पर आश्चर्यजनक रूप से चूहे की मृत्यु हो गयी। अनुसंधान करने पर ज्ञात हुआ कि मृत उग्र प्रभेद ने जीवित अउग्र प्रभेद में कोशिका के चारों तरफ विशिष्ट बहुशर्करा का कैप्सूल निर्मित करके उसे भी उग्र प्रभेद में रूपान्तरित कर दिया। तत्पश्चात एवरी, मेक्लियोड तथा मेकार्थी ने रूपान्तरित करने वाले रसायन की डीएनए के रूप में पहचान की।
अनेक वैज्ञानिकों ने शक जाहिर किया कि चार उप इकाई युक्त डीएनए वास्तव में आनुवंशिक पदार्थ है अथवा 20 उप इकाई युक्त प्रोटीन ? यह माना जा रहा था कि चूंकि प्रोटीन ज्यादा सूचना वहन कर सकता है अतः यही आनुवंशिक पदार्थ भी होना चाहिए।
सन् 1950 तक आते-आते जीवाणु की अपेक्षा जीवाणुफॉज (bacteriophages) पर शोध शुरु हो चुका था। बेक्टीरियोफॉज में साधारणतया केन्द्र में डीएनए व उसके ऊपर प्रोटीन का कवच (coat) उपस्थित रहता है। जब यह जीवाणु को संक्रमित करता है तो यह फॉज आनुवंशिक पदार्थ को जीवाणु के अन्दर कर देता है जबकि उसका प्रोटीन कवच कोशिका के बाहर ही रह जाता है। हर्षे तथा चेस ने प्रोटीन व डीएनए का प्रमुख अन्तर क्रमशः सल्फर व फोस्फोरस की उपस्थिति से पहचाना । उन्होंने रेडियोएक्टिव सल्फर 35ै तथा फोस्फोरस 35च् युक्त वायरस का संश्लेषण किया। यह वायरस ई. कोलाई को संक्रमित करती है। तब वायरस तथा संक्रमित जीवाणु कोशिकाओं को मिला कर उसे सेन्ट्रीफ्यूजिंग मशीन द्वारा अलग करने पर ज्ञात हुआ कि ऊपर जो वायरल कवच पाये गये वे-सल्फर युक्त व नीचे जीवाणु के अवशेष फास्फोरस युक्त थे।
इसी प्रकार संक्रमित जीवाणु, जो वायरस उत्पन्न करते हैं वे भी फॉस्फोरस युक्त पाये गये क्योंकि उनका प्रोटीन कवच जीवाणु के बाहर ही रह जाता है। हर्षे तथा चेज ने अन्त में सिद्ध किया कि फोस्फोरस युक्त डीएनए ही वास्तव में आनवंशिक पदार्थ हैं।
सन् 1952 में यह ज्ञात हुआ कि न्यूक्लियोटाइड आपस में फोस्फेट के साथ मिलकर एक श्रृंखला बनाते हैं तथा नाइट्रोजन युक्त क्षार इसके साथ सलंग्न रहते हैं।
मोरिस विल्किन (डंनतपबम ॅपसापदे) तथा रोजालिण्ड फ्रेकलिन (Rosalind and Franklin) ने ग्-किरण डिरेक्शनल अनुसंधान ( X&ray dffiractional analysis) द्वारा डीएनए की क्रिस्टलीय प्रकृति सिद्ध की । रसायनविज्ञ एरविन चारगॉफ (Ervin Chargffa) ने डीएनए में एडेनिन व थायमीन तथा साइटोसिन व गुआनिन की एक समान मात्रा रिपोर्ट की।
वाटसन क्रिक ने डीएनए की त्रिआयामी (three dimentional) संरचना 1953 में प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि न्यूक्लियोटाइड की दो श्रृंखलाये समानान्तर किन्तु एक दूसरे से विपरीत दिशा में स्थित होती हैं जिससे एक श्रृंखला का C-3 दूसरी श्रृंखला के C-5 सिरे के सामने स्थित रहता है। फास्फेट बाहर की ओर व नाइट्रोजनी क्षार अन्दर की ओर होते हैं। दोनों श्रृंखलाओं के नाइट्रोजनी क्षार हाइड्रोजन बन्ध द्वारा जुड़ते हैं।
प्रत्येक श्रृंखला टेम्पलेट (template) की तरह कार्य करती है जिससे दूसरा रज्जुक (strand) निर्मित हो सके। डीएनए की संरचना हमेशा से सुन्दर मानी गयी है क्योंकि यह संरचनात्मक रूप से अति सरल एवं क्रियात्मक रूप से जटिल है। होरेस फ्रीलेन्ड जुडसन (Horace Freeland Judson) ने अपनी पुस्तक ‘द एडर्थ डे ऑफ क्रिएशन‘ (The Eighth Day of Creation) में वाटसन व क्रिक की खोज को विस्तार पूर्वक वर्णन करते हुए लिखा कि ‘‘आज साक्ष्य (proof)ि मिला कि वास्तव में ईश्वर (God) का अस्तित्व है।‘‘ आज कुण्डलित गुणसूत्र भी कई प्रकार के होते हैं जैर्से डीएनए, (बाई और कुण्डलित) ।, ठ, तथा ब् डीएनए (दाहिनी दिशा में कुण्डलन)।
फ्रांसिस क्रिक ने सन् 1957 में सूचना अनुकरण की प्रक्रिया को इस प्रकार समझाया-
डीएनए → आरएनए → प्रोटीन
उन्होंने बताया कि सूचना डीएनए से आरएनए के द्वारा प्रोटीन तक संचरित होती है। डीएनए में सूचना न्यूक्लियोटाइड के रेखीय क्रम से कोडित (encoded) रहती हैं।
डीएनए की यह सूचना प्रोटीन की भाषा में अनुदित (translate) होती है। डीएनए न्यूक्लियोटाइड द्वारा निर्मित होते हैं। यह अनुदन (translation) में आरएनए एक मध्यस्थ भूमिका निभाता है। यह भी न्यूक्यिोटाइड द्वारा निर्मित होते हैं। यह कम्प्यूटर में कॉपी (copy), पेस्ट (paste) के समान ही होता है। सूचना डीएनए से कॉपी होकर आरएनए पर आ जाती है। तत्पश्चात आरएनए प्रोटीन पर पेस्ट (चिपका) कर देता है।
सूचना का प्रसारण डीएनए से आरएनए की तरफ एक मार्गीय (one way) नहीं होती वरन् आरएनए से डीएनए की तरफ भी संचरित (transmit) हो सकती है। इसके साथ ही यह भी ज्ञात हुआ कि डीएनए पर स्थित जीन के न्यूक्लियोटाइड का कुछ भाग ऐसी. सूचना प्रेषित नहीं करता है जो कि अमीनों अम्ल के क्रम ज्ञात कर सकते हों। ऐसे भाग डीएनए से आरएनए पर सूचना के कॉपी होने से पूर्व अलग हट जाते हैं जिसे इन्ट्रान कहते हैं। सूचना प्रसारित करने वाले डीएनए के उस भाग को जो आरएनए पर कॉपी होता है एक्जान (exon) कहते हैं। यह दोनों ही पूर्व उआरएनए (चतम उ-त्छ।) पर स्थित होते हैं जो यूकेरियोटिक जीन नियमन में भाग लेता है। आरएनए स्प्लाइसिंग (RNA splicing)
सन् 1977 में जीव वैज्ञानिकों को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि यूकेरियोटिक डीएनए के जीन में डीएनए की मात्रा उ-आरएनए की अपेक्षा अधिक होती है जबकि बराबर होनी चाहिए क्योंकि यह डीएनए से ही कॉपी होता है। तब यह तथ्य ज्ञात हुआ कि वास्तव में डीएनए से जो सूचना आरएनए पर कॉपी अथवा अनुकृत (transcribe) होती है, वह संशोधित रूप में होती है। डीएनए पर स्थित प्रत्येक जीन के न्यूक्लियोटाइड का कुछ भाग, सूचना (information) कोडित नहीं करता वरन् कुछ विशिष्ट खण्ड ही कोडित होते हैं । अतः जीन के ऐसे खण्ड जो कोडित करते हैं एक्सान (exon) व जो कोडित नही करते इन्ट्रॉन (intron) कहलाते हैं। डीएनए से आरएनए पर सूचना प्रेषित होने से पूर्व इन्ट्रॉन शेष लोडि खण्डों से अलग हो जाते हैं तथा कोडित करने वाले खण्ड आपस में जुड़ (Liykbl) कर आर एनए पर अनुकृत (transcribe) हो जाते हैं। इस तरह डीएनए पर जो सूचना न्यूक्लियोटाइड पर होती है वह लम्बाई में अधिक, परन्तु आरएनए पर अपेक्षाकृत छोटे खण्ड के रूप में अनुकृत होती है तथा ऐसा (अनुपयुक्त इन्ट्रान के अलग हो जाने से सम्भव होता है।
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