द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान के लेखक कौन थे Modern Vernacular Literature of Northern India in hindi
Modern Vernacular Literature of Northern India in hindi द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान के लेखक कौन थे ?
प्रश्न: राजस्थान की भाषा एवं बोलियों के विकास में जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर: जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन प्रसिद्ध अंग्रेज भारतीय भाषाविद् थे। जो ऐशियाटिक सोसाइटी ऑफ कलकत्ता से सम्बद्ध थे। इन्होंने 1912 ई. में Linguistic Survey of India नाम का ग्रंथ लिखा जिसमें भारतीय भाषा का विशेषकर राजस्थानी भाषाओं का विस्तृत सर्वेक्षण किया गया है। ग्रियर्सन ने Modern Vernacular Literature of Northern India नामक ग्रंथ भी लिखा। इन्होंने अपने Linguistic Survey of India में राजस्थानी का स्वतंत्र भाषा के रूप में वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। ग्रियर्सन को राजस्थान की बोलियों के वर्गीकरण एवं इन्हें प्रकाश में लाने का श्रेय प्राप्त है।
जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों का सर्वप्रथम उल्लेख 1907-08 ई. में अपने ग्रंथ ‘भारतीय भाषा विषयक कोश‘ (Linguistic Survey of India) में किया। ग्रियर्सन ने लिखा है ‘राजस्थानी का शाब्दिक अर्थ है राजपूतों के देश राजस्थान या रजवाड़े की भाषा।‘ ग्रियर्सन ने ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया‘ की नौवीं जिल्द के दूसरे खण्ड में राजस्थानी बोलियों के पारस्परिक संयोग व सम्बन्धों को स्पष्ट किया। ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों की पांच उपशाखाएं बताई हैं –
1. पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी): पश्चिमी राजस्थानी या मारवाडी भाषा को डॉ. ग्रियर्सन ने 4 भागों में विभाजित किया जो इस प्रकार हैः (प) पूर्वी मारवाड़ी – मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढारकी आदि, (पप) उत्तरी मारवाड़ी – बीकानेर, बागड़ी, शेखावटी, (पपप) पश्चिमी मारवाड़ी – थली और थटकी, (पअ) दक्षिणी मारवाड़ी – खेराड़ी, गोड़वाड़ी, सिरोही, गुजराती, देवड़ावाड़ी आदि बोलियों में विभाजित किया।
2. उत्तर-पूर्वी राजस्थानी: ग्रियर्सन उत्तर-पूर्वी राजस्थानी को पुनः दो भागों में बांटा जो इस प्रकार है: (प) मेवाती – कठेर मेवाती, मयाना मेवाती, (पप) अहीरवाटी।
3. मध्य-पूर्वी राजस्थानी: इसे दो भागों में विभाजित किया: (प) ढूँढाड़ी — तोरावटी, खड़ी, जैपूरी, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़ी, (पप) हाड़ौती – गुर्जरवाड़ी।
4. दक्षिण-पूर्वी राजस्थानी: इसे तीन भागों में विभाजित किया: (प) मालवी, (पप) रांगड़ी, (पपप) बागड़ी – सोथवाडी।
5. दक्षिणी राजस्थानी रू इसमें नीमाड़ी व भीली को शामिल किया है। इस पर गुजराती एवं खनदेशी का प्रभाव है।
प्रश्न: राजस्थानी भाषा, साहित्य के विकास में सीताराम लालस के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर: सीताराम लालस का जन्म 1912 ई. में बाड़मेर जिले के सिरवड़ी ग्राम में हुआ जहाँ उनकी ननिहाल थी तथा व जोधपुर जिले के नरेवा ग्राम के मूल निवासी थे। वे राजस्थानी भाषा का शब्दकोश बनाने के लिये जाने जाते हैं। इस शब्दकोश में दो लाख से अधिक शब्द हैं जो दस खण्डों में संकलित हैं।
जयपुर के विख्यात साहित्यकार पुरोहित प्रतापनारायण ने बूंदी के पंडित सूर्यमल्ल मिश्रण के पुत्र मुरारीदान का ‘डिंगल कोष‘ उन्हें समीक्षा के लिए भिजवाया। युवा लालस ने डिंगल कोश की उपादेयता पर सन्देह व्यक्त करते हए उसका तीखी आलोचना कर डाली। इस पर पुरोहितजी ने उन्हें एक पत्र लिखकर समझाया कि दिल्ली अभी दूर है। तुम्हें बात का और काम अधिक करना चाहिये। बस यही सीख उनके जीवन का मूलमंत्र बन गयी और वे मन ही मन यह संकल्प ले बैठे कि उन्हें राजस्थानी का एक ऐसा शब्द-कोश तैयार करना है जिसमें राजस्थानी भाषा का कोई भी शब्द नहीं छूटन पाये। इस पर उन्होंने दस जिल्दों में दो लाख से अधिक शब्दों का ‘राजस्थानी शबद कोश‘ अमर ग्रंथ तैयार किया।
इस महान उपलब्धि के कारण ही इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका ने श्री लालस को ‘राजस्थानी जबां की मशाल‘ कहकर सम्बोधित किया। राजस्थानी साहित्य अकादमी ने 1973 में उन्हें साहित्य मनीषी, 1976 में जोधपुर विश्वविद्यालय न डी. लिट् की मानद् उपाधि तथा भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1977 को पदमश्री के अलंकरण से विभूषित किया। 29 दिसम्बर 1986 को उनका जोधपुर में स्वर्गवास हो गया।
प्रश्न: राजस्थान की भाषा एवं बोलियों के विकास में डॉ. एल पी टेसीटोरी के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर: सुप्रसिद्ध भाषाशास्त्री डॉ. ग्रियर्सन डॉ. एल.पी. टैसीटोरी की विद्वता से काफी प्रभावित थे। डॉ. ग्रियर्सन एशियाटिक सोसाइटी ऑफ कलकत्ता के अधीन राजपूताना के ऐतिहासिक सर्वेक्षण का कार्य टैसीटोरी को सौंपा। टैसीटोरी अपने राजस्थानी साहित्यिक सर्वेक्षण को गति देने के लिए सर्वप्रथम जोधपर आए। यहाँ रामकरण ओसाफ ने राजस्थानी ग्रंथों के संकलन में टैसीटोरी की बहुत सहायता की। डॉ. टैसीटोरी इसके बाद बीकानेर पहुंचे।
इटली निवासी डॉ. एल. पी. टेसीटोरी की कार्यस्थली बीकानेर रही। उनकी मत्य (1919) भी बीकानेर में ही हुई जहाँ उनकी कब्र बनी हुई है। बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने उन्हें श्राजस्थान के चारण साहित्य के सर्वेक्षण एवं संग्रह का कार्य सौंपा था। डॉ. टैसीटोरी ने 1914 से 1916 तक ‘इण्डियन एन्टीक्वेरी‘ नामक पत्रिका में माना की प्राचीन राजस्थानी और गुजराती एक ही भाषा थी। डॉ. टैसीटोरी ने चारणी और ऐतिहासिक हस्तलिखित ग्रंथों की एक विवरणात्मक सूची तयार की। इसी दौरान टैसीटोरी की मुलाकात बीकानेर के जैन आचार्य विजय धर्मसूरि से हुई जिनसे उन्होंने अनेक धर्मग्रथा का अध्ययन किया। इसी समय उन्होंने अनेक राजस्थानी ग्रंथों का इटेलियन में अनुवाद भी किया। उन्होंने अपना कार्य पूरा कर दो ग्रंथ लिखे। (प्रथम) राजस्थानी चारण साहित्य एवं ऐतिहासिक सर्वे तथा (द्वितीय) पश्चिमी राजस्थानी का व्याकरण।
टेसीटोरी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘ए डिस्कीप्टिव केटलॉग ऑफ द बार्डिक एण्ड हिस्टोरिकल क्रोनिकल्स‘ है। इन्होंने रामचरित मानस, रामायण एवं महाभारत सहित कई भारतीय ग्रंथों का इटालियन भाषा में अनुवाद किया। ‘बेलि क्रिसन रुक्मणी री‘ और ‘राव जैतसी रो छन्द‘ डिगंल भाषा के इन दोनों ग्रंथों का संपादन किया। बीकानेर का प्रसिद्ध दर्शनीय म्यूजियम का स्थापना भी टेसीटोरी ने की।
सरस्वती और दुषद्वती की घाटी की हडप्पा पूर्व कालीबंगा सभ्यता का खोज कार्य भी सर्वप्रथम इन्होंने किया। इसके अलावा रंगमहल, बडोपल, रतनगढ आदि पुरातात्विक स्थलों की खोज की । डॉ. टैसीटोरी के रग-रग में राजस्थान एवं राजस्थानी के प्रति प्रेम भरा हुआ था। उन्होंने डिंगल साहित्य (चारण साहित्य) की अमूल्य सेवा की।
प्रश्न: ख्यात साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कुछ प्रमुख ख्यातों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: राजस्थान के इतिहास के लिए 16वीं शताब्दी के बाद के इतिहास में ख्यातों का स्थान महत्त्वपूर्ण है। ‘ख्यात‘ का सामान्य अर्थ होता है ‘ख्याति प्रतिपादित करना।‘ अर्थात् ख्यात कथित साहित्य है। ख्यात विस्तृत इतिहास होता है जबकि ‘वात‘ संक्षिप्त इतिहास होता है। यह वंशावली तथा प्रशस्ति लेखन का विस्तृत रूप है। इसके अंतर्गत वर्णन स्वतः समाविष्ट हो जाता है। अधिकांश ख्यात साहित्य गद्य में लिखा गया था। लेखक का लक्ष्य अपने आश्रयदाता की दैनिक डायरी लिखना होता था। ख्यात लेखन के लिए वंश परम्परागत मसाहिब रखे जाते थे। इस प्रकार भिन्न-भिन्न राजवंशों के उत्थान एवं विकास का साहित्य तैयार हो गया।
राजस्थान में सोलहवी शताब्दी के बाद जो बड़े पैमाने पर ख्यात साहित्य लिखा गया है, उसे अध्ययन की सविधा की दलि से चार श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है। (अ) इतिहासपरक ख्यात, (ब) वार्तापरक ख्यात, (स) व्यक्तिपरक ख्यात, (द) स्फुट ख्यात। उपलब्ध ख्यात साहित्य में सबसे परानी ख्यात मुणहोत नैणसी के द्वारा लिखी हुई ख्यात है। मुंडीयार की ख्यात, जोधपुर ख्यात, मेवाड़ की ख्यातें, शाहपुरा की ख्यात, आमेर की ख्यात, जैसलमेर की ख्यात, बाँकीदास की ख्यात और दयालदास की ख्यात परवर्ती ख्यातें हैं।
वर्तमान समय में राजस्थान के इतिहास पर जो शोध कार्य किया गया है उसमें भी ख्यात साहित्य का प्रयोग किया गया है। राजपूत राज्यों और राजाओं के संबंध में जो जानकारी फारसी के साधनों में नहीं मिलती, उसे ख्यातों से प्राप्त करके आधुनिक काल के शोधकर्ताओं ने इस साहित्य के ऐतिहासिक महत्व को बढ़ा दिया है।
केवल ख्यातों का अनसरण करने से भ्रम उत्पन्न होने का पूरा भय है। ख्यातों में वर्णित तिथियां भी सही नहीं हैं। घटनाओं का वर्णन भी क्रमानुसार नहीं किया गया है। व्यक्तियों और स्थानों के नाम भी अशुद्ध लिखे हुए मिलते हैं। नैणसी के अतिरिक्त ऐसी कोई भी ख्यात नहीं है जिसमें स्त्रोत का उल्लेख किया गया हो। अतएव शोधकर्ताओं को ख्यात साहित्य का उपयोग सतर्कतापूर्वक करना चाहिए। प्रमुख ख्यातों में लिपिबद्ध ऐतिहासिक सूचना का वर्णन इस प्रकार है –
(अ) मुहणौत नैणसी री ख्यात: यह मारवाड़ी एवं डिंगल भाषा में लिखी गई है। नैणसी (1610-1670) जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह प्रथम के दरबारी कवि एवं चारण थे। मुंशी देवी प्रसाद ने नैणसी को ‘राजपूताने का अबल फजल‘ कहा है। नैणसी ने ‘नैणसी री ख्यात‘ लिखी है, जिसमें समस्त राजपूताने सहित जोधपुर के राठौड़ों का विस्तृत इतिहास लिखा गया है। इसमें राजपूतों की 36 शाखाओं का वर्णन किया है जो बड़े महत्त्व का है।
(ब) बांकीदास री ख्यात, जोधपुर: इसका लेखक बांकीदास था जो जोधपुर के महाराजा मानसिंह राठौड़ के दरबारी थे। इसमें जोधपुर के राठौड़ों के साथ अन्य वंशों का भी इतिहास दिया गया है। यह मारवाड़ी एवं डिंगल भाषा (राजस्थानी गद्य) में लिखी गई है। इसे ‘जोधपुर राज्य की ख्यात‘ भी कहा जाता है।
दयालदास री ख्यात (बीकानेर): दयालदास सिढ़याच बीकानेर के महाराज रतनसिंह (1828-1851 ई.) के दरबारी थे। यह मारवाड़ी (डिंगल) भाषा में लिखी गई एक विस्तृत ख्यात है जिसमें बीकानेर के राठौड़ों का प्रारम्भ से लेकर महाराजा सरदारसिंह तक का इतिहास दो भागों में लिखा है। इसमें बीकानेर के महाराजा रतनसिंह (1836 ई.) द्वारा अपने सामंतों को कन्या वध रोकने के लिए गया में प्रतिज्ञा करवाने का वर्णन है जो बड़ा महत्त्वपूर्ण है। महाराजा रतनसिंह (1828-1851) के आदेश से दक्षालराम सिढ़ायच ने बीकानेर से लेकर सरदारसिंह के सिंहासनारोहरण तक की घटनाओं को क्रमबद्ध ख्यात के रूप में लिखा था। दयालदास ने ख्यात लिखने से पहले पुरानी वंशावलियों, पट्टे, बहियों और शाही फरमानों – खरीतों इत्यादि का मनन किया था। ख्यात में फारसी के फरमानों का नागरी में अनुवाद तथा अंग्रेजी फाइलों के भी अनुवाद दिये हैं।
जोधपुर राज्य की ख्यात: इस ख्यात में राव सीहा से लेकर महाराजा मानसिंह की मृत्यु तक का हाल है। अतएव स्पष्ट है कि यह ख्यात जोधपुर नरेश मावसिंह के काल में लिखी गई थी। प्रांरभिक वर्णन कल्पित वातों, किवदंतियों पर आधारित है, अतएव राव जोधा में पहले के वृत्तान्त की तिथियाँ सही नहीं हैं, लेकिन बाद का इतिहास इस ख्यात के आधार पर पर ज्ञात हुआ है।
मुण्डियार री ख्यात: मुण्डीयार वर्तमान नागौर जिले में शहर से करीब 10 मील दक्षिण में स्थित है। मुण्डीयार को जागीर में चारणों को दिया गया था। राव सीहा के द्वारा मारवाड़ में राठौड़ राज्य की स्थापना से लेकर महाराजा जसवंतसिंह प्रथम की मृत्यु तक का वृतान्त इस ख्यात में है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह ख्यात जसवन्त सिंह के काल से लिखी गई होगी। प्रत्येक राजा के जन्म, राज्याभिषेक, मृत्यु की तारीखें ख्यात में दी हुई हैं।
कवि राजा की ख्यात: इसमें जोधपुर के राठौड़ शासकों का वृतान्त है जो महाराजा जसवन्तसिंह प्रथम के शासन काल की घटनाओं पर भी प्रकाश डालता है। इसके अतिरिक्त राव जोधा, रायमल, सूरसिंह के मंत्री भाटी गोबिन्ददास के उपाख्यान भी शामिल हैं। इस प्रकार मारवाड़ के राठौड़ों के इतिहास की जानकारी के लिए उपयोगी साधन है।
अन्य ख्यातें:
किशनगढ़ री ख्यात – किशनगढ़ के राठौड़ों का इतिहास
भाटियों री ख्यात – जैसलमेर के भाटियों का इतिहास
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics