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स्त्रीकेसर की परिभाषा क्या है | पुष्प में पादप में स्त्री केसर किसे कहते है pistil in hindi in flower

pistil in hindi in flower स्त्रीकेसर की परिभाषा क्या है | पुष्प में पादप में स्त्री केसर किसे कहते है ?

(Master ovule , Embryo , ) स्त्रीकेसर, गुरु बीजांड और भ्रुणकोश  बीजाण्ड की संरचना

 स्त्री केंसर:- पुष्पासन पर सबसे उपर की पर्व संधि पर पाए जाने वाले पुष्पी भाग को जायांण कहते है इसके अवयय को अण्डप कहते है। अण्डप के तीन भाग होते है।

1 वर्तिकाण्ड:-

यह अण्डप का सबसे उपरी भाग होता है। यह गालाकार चपटा, द्वि शाखीत, पंखीय, रोमिल, उत्तल, अवतल चिपचिपा हो सकता है। यह परागकणों को ग्रहण करने का कार्य करता है।

2 वर्तिका:-

अण्डाशय व वर्तिकाग्र को जोडने वाली लम्बी पतली नलिका को वर्तिका कहते है। यह परागनलिका को मार्ग प्रदान करती है तथा वर्तिकाग्र को प्रव्यपित ऊंचाई तक उपर उठाई रखती है जिससे वह परागकणों को आसानी से ग्रहणक र सकें।

3 अण्डाशय:-

यह अण्डप का पुष्पासन से जुडा हुआ फूला हुआ भाग होता है इसकी गहा में बीजाण्डसन/अपस द्वारा जुडे हुये बीजाण्ड पाये जाते है।

चित्र

स्त्रीकेसर : आवृतबीजी पादपों में पुष्प का सबसे भीतरी चक्र स्त्री जननांग को निरुपित करता है जिसे जायांग कहते है।

जायांग चक्र का प्रत्येक सदस्य अण्डप कहलाता है। जायांग में अंडप एक दुसरे से स्वतंत्र (मुक्तांडपी) अथवा संयुक्त (युक्तांडपी) होते है। प्रत्येक अंडप या संयुक्त जायांग तीन प्रमुख भागों में विभेदित किया जा सकता है –
(1) अंडाशय
(2) वर्तिका
(3) वर्तिकाग्र
अंडाशय अंडप का आधारी फूला हुआ भाग होता है , जिसके ऊपर कोमल नलिका सदृश संरचना वर्तिका निकला रहता है। वर्तिका का दूरस्थ सिरा वर्तिकाग्र कहलाता है। वर्तिकाग्र पालिवत अथवा अन्य आकृति का हो सकता है। अंडपो की संख्या के आधार पर जायांग द्विअंडपी , त्रिअंडपी , चर्तुअंडपी , पंचअंडपी या बहुअंडपी कहलाता है। अंडाशय में कोष्ठकों की संख्या के आधार पर यह एक कोष्ठीय , द्विकोष्ठी अथवा बहुकोष्ठी कहलाता है। अंडाशय की भित्ति पर एक अथवा अधिक बीजाण्ड व्यवस्थित होते है और इनके व्यवस्थाक्रम को बीजाण्डन्यास कहते है।
आवृतबीजी पौधों का बीजाण्ड एक वृन्त जैसी संरचना द्वारा बीजाण्डसन से जुड़ा रहता है। इसे बीजाण्डवृंत कहते है। बीजांड की प्रारूपिक संरचना मृदुतकी बीजाण्डकाय की बनी होती है जिसमें एक बड़ी थैलीनुमा संरचना भ्रूणकोश का निर्माण होता है। बीजाण्डकाय चारों तरफ से ऊपरी सिरे पर छिद्र जैसी संरचना को छोड़कर सामान्यतया दो आवरणों द्वारा घिरा रहता है , इन आवरणों को अध्यावरण कहते है। जिस स्थान पर बीजाण्डवृंत बीजाण्ड की मुख्य संरचना से जुड़ता है उस बिंदु को नाभिक कहते है। कभी कभी बीजाण्डवृन्त के जुड़ाव वाले स्थान पर एक उभरी हुई संरचना , दाँतेदार अथवा कंगूरेदार अतिवृद्धि बन जाती है , जिसे राफे कहते है।

बीजाण्ड की संरचना:-

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गुरूबीजक जनन:-

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इस प्रकार आठ केन्द्रीक्रीय सात कोशिकीय मादा युग्मकोद्भिद (भ्रूणकोश) का निर्माण होता है।