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नर एवं मादा जनन तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए , male and female reproductive system in hindi

male and female reproductive system in hindi नर एवं मादा जनन तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए ?

सभी जीवधारियों में प्रजनन एक स्वतः दिष्ट (self directed) प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रत्येक सजीव अपने समान जीव को जन्म देता है। प्रजनन क्रिया द्वारा जननद्रव्य की सतत्ता आदि काल से वर्तमान तक बनी हुई है। उच्च कशेरूकियों विशेषतः स्तनियों में प्रजनन क्रिया अन्तःस्रावी नियंत्रण में सम्पन्न होती है। मस्तिष्क एवं अन्तःस्रावी नियंत्रण के कारण यह क्रिया जटिल किन्तु सुसंगति एवं चक्रीय प्रक्रम के रूप में जारी रहती है।
नर जनक चक्र (Male reporductive cycle)
स्तनियों में प्रजनन क्रिया चक्र के रूप में कार्य करती है। नर की अपेक्षा मादा में ये चक्र अधिक स्पष्ट होते हैं। स्तनियों में वृषण (testes) जनद या लिंग ग्रन्थियों के रूप में देह की उदर गुहा के भीतर या बाहर वृषण कोष (scortal sacs) में स्थित रहते हैं। प्रत्येक वृषण अनेक नेता नलिकाओं (seminiferous tubules) से बने होते हैं जिनके बीच-बीच में संयोजी ऊत्तक उपस्थित रहता है। इनके बीच में कुछ अन्तराली कोशिकाएं ( interstitial cells) या लैंडिंग कोशिकाएँ (Ledig cells) भी पायी जाती है जो लिंग हार्मोन्स (sex hormones) का स्रावण करती है। ये लिंग हारमोन्स एन्ड्रोजन्स कहलाते हैं जो द्वितीयक लैंगिक लक्षणों (secondary sexual characters) के ‘प्रकट होने एवं नर जनन तन्त्र की सामान्य क्रियाओं पर नियंत्रण रखते हैं।


अन्तराली कोशिकाओं द्वारा स्रवित टेस्टोस्टीरॉन (testosterone) नामक हार्मोन स्टिरॉड प्रकृति का होता है। एन्ड्रोस्टिरॉन (androsterone) नामक हार्मोन भी अन्तराली कोशिकाओं द्वारा स्रवित किया जाता है किन्तु यह टेस्टोस्टिरॉन की अपेक्षा क्षीण प्रकृति का होता है। इसी प्रकार एन्ड्रोस्टेनेडिऑन (androstenedione) व डीहाइड्रोएपीएन्ड्रोस्टिरॉन ( dehydroepiandrosterone) भी क्षीण प्रकृति के एन्ड्रोजन्स है जो वृषण से स्रवित किये जाते हैं। वृषण से ये हार्मोन्स पीयूष ग्रन्थि (pituitary gland) से स्रवित FSH एवं ICSH (Follicle stimulating hormone and interstitial cell stimulating hormones) के निर्देशों के अनुरूप ही स्रवित किये जाते हैं। पीयूष ग्रन्थि से FSH

एवं ICSH हाइपोथैलेमस से मोचन कारकों के प्रभाव से स्रवित किये जाते हैं। इस प्रकार एन्ड्रोजन्स पर दोहरा नियंत्रण रहता है।

चित्र 9.1 : नर जनन चक्र का हाइपोथैलेमिक, पीयूष जनद अक्ष द्वारा नियंत्रण नर हार्मोन्स के प्रभाव से स्तनि के शिश्न, अण्डकोष, प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि, एपिडिडीमिस शुक्रवाहिनियों, शुक्राशय आदि की सामान्य वृद्धि होती है एवं सतत् रूप से क्रियाशील बनी रहती है। ये हार्मोन्स युवावस्था के आरम्भ में स्रवित होने आरम्भ होते हैं व 40 वर्ष की आयु के उपरान्त धीरे-धीरे कम होते हुए वृद्धावस्था में स्रवित होने बन्द हो जाते हैं। इन हार्मोन्स के प्रभाव से नर की पेशियाँ व अस्थियाँ अधिक बलिष्ठ बनती है। नर में दाड़ी-मूँछ आवाज में भारीपन आदि द्वितीय लक्षण उत्पन्न होते हैं। Semi
लैंगिक
वृषण में FSH के प्रभाव से रेता नलिकाओं में पुटकों की वृद्धि व शुक्रजनन की क्रिया आरम्भ
होती है किन्तु एन्ड्रोजन्स के प्रभाव से ही शुक्राणु परिपक्व होकर देह से बाहर विसर्जित किये जाते हैं। टेस्टोस्टिरॉन के अल्प मात्रा में स्रवित होने पर वीर्य में शुक्राणुओं की संरचना व गतिशीलता में कमी आती है एवं नपुंसकता प्रकट होती है।

मादा जनन चक्र (Female reporductive cycles)

स्तनधारी मादाओं में अण्डाशय होने वाले चक्र एवं रक्त स्राव अपेक्षाकृत जटिल एवं कष्टदायी होते हैं। इन पर वातावरणी प्रभाव भी अधिक स्पष्ट होता है। इन चक्रों को हम दो प्रकार से विभाजित
करते हैं।
(1) मद चक्र (Oestrous Cycle) : कुत्ते, बिल्ली, गाय आदि में लैंगिक परिपक्वता आने के बाद भी मादा, नर जन्तुओं को सहवास हेतु हमेशा ग्रहण नहीं करती। प्रजनन काल (breeding में ही यह सम्भव होता है जब मादा को नर जन्तुओं का सहवास वांछनीय होता है। यह
season)
द्वारा
चक्रीय परिवर्तन ही मद चक्र या ‘कामोन्साद चक्र’ कहलाते हैं। यह प्रजनन काल इन चक्रों कुछ निश्चित समय के अन्तराल पर दोहराया जाता है। इन पर वातावरण का भी प्रभाव निश्चित रूप से पाया जाता है। एक प्रजनन काल या प्रजनन ऋतु में मद चक्रों की संख्या के आधार पर स्तनधारियों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जाता है।
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(a) एक मदकाली (Monoestrous) : इन जन्तुओं में एक प्रजनन ऋतु में एक ही मदचक्र (oestrous cycle) पाया जाता है। उदाहरण : कुत्ता ।
(b) बहुमदकाली (Polyoestrous) : वे जन्तु जिनमें एक प्रजनन ऋतु में एक से अधिक मदचक्र पाये जाते हैं। उदाहरण: चूहा, बिल्ली, गिनी पिग आदि ।
मदकाल वह काल है जिसमें अण्डाशय तथा जनन वाहिनियों में कुछ विशिष्ट परिवर्तन होते हैं। गाय में अण्डोत्सर्ग (ovulation) मदचक्र के ठीक बाद होता है अधिकतर स्तनियों में अण्डोत्सर्ग स्वमेव (spontaneous) होता है किन्तु कुछ स्तनियों में जैसे खरहे बिल्ली में यह क्रिया तन्त्रिका अन्तःस्रावी परिवर्तन के नियंत्रण में होती है। कि मैथुन (copulation) के द्वारा योनि में हुए उद्दीपन के फलस्वरूप उत्पन्न होता है।.
मदकाल में मादा उत्तेजित अवस्था (heat) में होती है तथा मैथुन लिफ इस काल के दौरान अच्छित होता है कि विभिन्न जन्तुओं में यह काल अलग-अलग समयका होता है । चुहे में यह काल 9-15 घंटे का एवं कुत्ते का 9 दिन का होता है इस काल पीयूष ग्रन्थि द्वारा हाइपोथैलेसम से मोचक हार्मोन के नियंत्रण में FSH का अत्यधिक स्रवण होता है। अतः सक्रिय रूप में पुटकों (follicles) में वृद्धि होक अण्डोत्सर्ग (ovulation) की क्रिया होती है । अण्डोत्सर्ग के समय मादा कामोन्माद की चरम सीमा पर होती है। अण्डोत्सर्ग के उपरान्त कामोन्माद कम होता हुआ जन्तु पुनः सामान्य स्थिति में आ जाता है।
चूहों व गिनि पिग की योनि उपकला (vaginal epithelium) में मदकाल हुए परिवर्तनों का अध्ययन स्टेकॉर्ड एवं उनके साथियों (Stocord et al: 1917) ने किया है। इनके अनुसार इस काल में सामान्य काल की अपेक्षा अनेक अभिलक्षणिक परिवर्तन होते हैं जिन्हें योनि आलेप (vaginal smear) के परीक्षण द्वारा जाँच कर मद चक्र की विभिन्न अवस्थाओं को ज्ञात किया जा सकता है। मद चक्र को निम्नलिखित प्रावस्थाओं में विभक्त करते हैं। (i) पूर्वमद अवस्था (Proestrous phase) : यह एस्ट्रस अवस्था पूर्व की सक्रिय अवस्था (prepartory phase) है जिसमें एस्ट्स से पूर्व की क्रिया होती है। इस अवस्था में गर्भाशय व संकुलित (congested) अवस्था में रहती है। इससे एक लसलसे पदार्थ या तरल (sanguinous fluid) का स्रवण होता है। योनि उपकला की कोशिकाएँ वृद्धि करती है। यह क्रिया अण्डाशय व

पुटको द्वारा स्रवित एस्ट्रोजन हारमोन के प्रभाव से होती है। यदि इस अवस्था में योनि आलेप (vaginal _smear) का अध्ययन किया जाये तो अनेकों केन्द्रकित कोशिकाएँ आलेप में दिखाई देता है जो योनि होकर आती है। अण्डाशय में अण्ड कोशिकाओं का परिवर्धन होता है तथा पुटकों उपकला में पृथक के उभार दिखाई देते हैं। इस अवस्था में मैथुन असम्भव होता है।

चित्र 9.2 : अण्डाशय एवं मद-चक्र का अन्तःस्रावी नियंत्रण

 (ii) मद अवस्था (Oestrous phase) : इस अवस्था में मादा कामोन्माद या उत्तेजित (heat) अवस्था में होती है। यह अवस्था पूर्व मद अवस्था के बाद आता है । यह अण्डोत्सर्ग से पूर्व की अवस्था है। गर्भाशय में संकुलन अधिकतम होता है। योनि उपकला वृद्धिा कर मोटी हो जाती है इस अवस्था में मैथून स्वीकृत हो जता है। इसी काम में अण्डोत्सर्ग (ovulation) की क्रिया होती है अत: मादा के गर्भधारण करने की अधिक सम्भावना बनती है। निषेचन होने की स्थिति में अपरा या प्लैसेन्टा बनना आरम्भ हो जाता है अन्यथा पश्चमद अवस्था (metaoestrous phase), आरम्भ हो जाती है।

(iii) पश्चमद अवस्था (Metaoestrous phase) : अण्डोत्सर्ग के पश्चात् अण्डाशय से पुटक कोशिकाएँ हाइपोथैलिमि- पीयूष प्रभाव से LTH के नियंत्रण में पीत पिण्ड या कार्पस ल्युटियम (corpus luteum) का निर्माण आरम्भ करती है। पीत पिण्ड से स्रवित प्रोजेस्टिरॉन के प्रभाव से अनेक परिवर्तन होने आरम्भ हो जाते हैं। मादा के गर्भधारण न करने की स्थिति में यह पीत पिण्ड अपघटित हो जाता है। एक मदकाली प्राणियों में इस प्रकार हुई वृद्धि के द्वारा तैयार श्लेष्मिका टूट जाती है तथा इसे निष्कासित कर दिया जाता है। इस अवस्था में भी मैथुन अस्वीकृत होता है। कुछ जन्तुओं जैसे खरहें में गर्भधारित न करने के उपरान्त भी गर्भावस्था के समान परिवर्तन मादा में प्रकट होने लगते हैं जो गर्भाशय व स्तन ग्रन्थियों में दिखाई देते हैं। यह अवस्था मिथ्यागर्भावस्था (pseudopregnancy) कहलाती है। यह अवस्था कार्पस ल्युटियम के अधिक सक्रिय होने के फलस्वरूप होती है।

चित्र 9.3 : चूहे की विभिन्न मद अवस्थाओं में जनन सम्बन्धी परिवर्तन इस अवस्था में जन्तुओं के योनि आलेप में श्रृंगीकृत उपकला कोशिकाएँ (keratinized epithelial cells) एवं श्वेत रक्त कणिकाएँ (WBC) दिखाई देती है।

(iv) ड्राइएट्र्स प्रावस्था (Dioesrous phase ) : यह अवस्था अनएस्ट्रस (anoestrous) अवस्था भी कहलाती है। यह विश्रान्ति (resting) काल होता है जो अगली प्रजनन ऋतु के आने तक जारी रहता है। एक मद काली जन्तुओं में यह लम्बा होता है किन्तु बहुमदकाली जन्तुओं में यह काल अपेक्षाकृत छोटा होता है तथा अगले मदकाल के आने तक रहता है। चूहों में यह काल 4- 6 दिनों तक चलता है। वास्तव में यह दो एस्ट्रस अवस्थाओं के मध्य की अवस्था है।

इस अवस्था में लियेग ये आलेप में सामान्य उपकला कोशिकाएँ एवं श्वेत रक्ताणु W.B.C एव श्लेष्मा दिखाई देते हैं।