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magnetic properties of coordination compounds in hindi , संकुलों का चुम्बकीय गुण क्या है

संकुलों का चुम्बकीय गुण क्या है magnetic properties of coordination compounds in hindi ?

 d-कक्षकों की आकृति

चित्र 3.40 में पाँचों d कक्षकों की आकृतियाँ दी गई है। इनमें से चार d कक्षकों dx2-y2, dxy, dxz तथा dyz की एक सी आकृतियाँ होती है तथा dz 2 डम्बल जैसा होता है जिसके केन्द्र के चारों ओर चौड़ी वलय सी होती है। इन पाँचों कक्षकों को अभिविन्यास (orientation) के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. अक्षों की दिशा में अभिविन्यस्त कक्षक : इस श्रेणी में dx2y2 तथा dz2 कक्षक आते हैं। dx2 y2 कक्षक की चारों पालियाँ x तथा y अक्षों की दिशा में x तल में पड़ती है। d कक्षक के दो भाग हैं। पहला भाग डम्बल जैसा 2- अक्ष की ओर अभिविन्यस्त दो पालियों का बना होता है तथा दूसरा भाग एक वलय रूप में xy तल में होता है ।
  2. अक्षों के मध्य अभिविन्यस्त कक्षक : शेष तीनों कक्षक, dxy dyz तथा dxz कक्षक, इस दृष्टि से समान हैं कि इनकी चारों पालियाँ दो अक्षों के मध्य अभिविन्यस्त होती हैं। dxy, कक्षक की पालियाँ x तथा y अक्षों के मध्य xy तल में, dyz कक्षक की पालियाँ y तथा z अक्षों के मध्य yz तल में, तथा dxz की पालियाँ x तथा z अक्षों के मध्य xz तल में स्थित होती हैं। इस प्रकार dxy – एक से कक्षक हैं- इनकी पालियों में x तथा अक्षों के सापेक्ष कोण मात्र का अन्तर होता है। dxy कक्षक को यदि 45° से घुमा दिया जाये तो d कक्षक प्राप्त होगा।

अष्टफलकीय, वर्गाकार तथा चतुष्फलकीय आकृतियाँ उपसहसंयोजक यौगिकों की अति सामान्य आकृतियाँ है। आगामी विवेचन में यह बताने का प्रयास किया जायेगा कि उपर्युक्त आकृतियों के कोनों के सापेक्ष d कक्षकों की पालियाँ किधर अभिविन्यस्त होती है। इसके लिए धातु आयन को इन आकृतियों के केन्द्र पर रखेंगे जो तीनों अक्षों का मूल बिन्दु है, अर्थात् आकृति का केन्द्र वह बिन्दु है जिस पर तीनो अक्ष एक-दूसरे को काटती हैं।

  1. एक अष्टफलक में d कक्षकों की स्थिति – चित्र 3.41 में एक नियमित अष्टफलक (regular octahedron) दिखाया गया है जिसका केन्द्र अक्षों के मूल बिन्दु पर पड़ता है । इस अष्टफलक के 6 कोने केन्द्र से समान दूरी पर x y तथा z अक्षों पर पड़ते हैं। इस अष्टफलक के केन्द्र पर एक धातु आयन रखकर उसके d कक्षकों की पालियों की दिशा का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि-

(i) dx2-y2 तथा dz2 कक्षकों की पालियाँ अष्टफलक के कोनों की दिशा में अभिविन्यस्त होने के कारण उनसे न्यूनतम दूरी पर रहेंगी क्योंकि ये अक्षों पर पड़ते हैं।

(ii) dxy, dyz तथा dxz कक्षकों की पालियाँ अक्षों के मध्य स्थित होने के कारण अष्टफलक के कोनों से अपेक्षाकृत अधिक दूरी पर होंगी।

  1. एक वर्ग तथा चतुष्फलक में d कक्षकों की स्थिति : यदि xy तल में एक वर्ग इस प्रकार रखा जाये कि उसका केन्द्र तथा अक्षों का मूल बिन्दु उभयनिष्ठ हों तो वर्ग के कर्ण ( diagonal) x तथा y अक्षों पर पड़ेंगे। ऐसी स्थिति में d कक्षक की प्रत्येक पाली वर्ग के एक कोने के निकटतम होगी। वैसे तो चूँकि d कक्षक भी xy तल में होता है, इसकी पालियाँ वर्ग के कोनों के मध्य लक्षित होने से यह कक्षक diy की अपेक्षा अधिक दूर होता है । चतुष्फलक ज्यामिति के लिए d कक्षकों की स्थिति उपर्युक्त दोनों ज्यामितियों की अपेक्षा भिन्न होती है क्योंकि एक चतुष्फलक को मूल बिन्दु पर रखने पर चतुष्फलक के कोने अक्षों के बीच में पड़ते हैं जिससे d. dyz तथा d कक्षक अन्य d कक्षकों की अपेक्षा कोनों के अधिक निकट होते हैं।

जो धातु कक्षक लिगण्डों के अधिक निकट होंगे वे धातु-लिगण्ड बंधन हेतु अधिक उपयुक्त होंगे। यदि उपर्युक्त ज्यामितियों में कोनों पर लिगण्ड उपस्थित हों तो 6 समन्वय संख्या वाले अष्टफलकीय संकुल प्राप्त होंगे जिनमें लिगण्डों के साथ बंध बनाने के लिए धातु अपने तथा dx2y2 कक्षकों का उपयोग करेगी। इसी प्रकार, चार लिगण्ड वर्गाकार चतुष्फलकीय संरचना के संकुल बनायेंगे। वर्गाकार संकुल निर्माण के लिए धातु dx2y2 कक्षक का तथा चतुष्फलकीय संकुलों के निर्माण हेतु dxy,dyz तथा dxz कक्षकों का उपयोग करेगी।

संकुलों का चुम्बकीय आचरण (Magnetic behaviour of complexes)

बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में संकुलों के अध्ययन से काफी उपयोगी जानकारी प्राप्त होती हैं। संकुलों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर सामान्यतः वे कुछ आकर्षण अनुभव करते हैं। संकुलों का इस पकार का आचरण अनुचुम्बकत्व ( paramagnetism) कहलाता है जो मुख्यतः धातु के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर निर्भर करता है। बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में किसी पदार्थ के चुम्बकीय चुम्बकीय प्रवृत्ति (Magnetic susceptibility) द्वारा मापा जा सकता है। पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृत्ति (x) उसके चुम्बकीय आघूर्ण (प्रति इकाई आयतन) तथा लगाये गये क्षेत्र की तीव्रता, H का अनुपात है।

Χ  = μ H

चुम्बकीय प्रवृत्ति के मान के आधार पर अधिकांश पदार्थों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। जिन पदार्थों के लिए x > 0 होता है वे अनुचुबकीय होंगे तथा जिन पदार्थों के लिए < 0 है वे प्रतिचुम्बकीय ( diamagnetic) पदार्थ कहलाते हैं। प्रतिचुम्बकीय पदार्थों का आचरण अनुचुम्बकीय पदार्थों के विपरीत लेकिन अति न्यून होता है । अर्थात्, प्रतिचुम्बकीय पदार्थ बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में प्रतिकर्षित होते हैं। चुम्बकीय प्रवृत्ति के मात्रात्मक मापन से पदार्थों की संरचना, उनमें बंधन तथा ऊर्जा स्तरों की जानकारी मिलती है।

किसी पदार्थ का चुम्बकीय आघूर्ण वह राशि है जो उसके द्वारा उत्पन्न चुम्बकत्व की सामर्थ्य तथा दिशा प्रदर्शित करता है । मूलतः पदार्थों का चुम्बकीय आघूर्ण उसके कणों के चुम्बकत्व से प्राप्त होता है जिसमें इलेक्ट्रॉनों के चुम्बकीय आघूर्णों की प्रमुखता होती है। वैसे तो इलेक्ट्रॉन सभी पदार्थों में पाये जाते हैं लेकिन इनके चक्रण या तो युग्मित होते हैं या इस प्रकार से क्रमरहित व्यवस्थित होते हैं कि वे एक दूसरे का चुम्बकत्व समाप्त कर देते हैं जिससे बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में इनका सकल चुम्बकत्व शून्य होता है । फलतः सामान्य रूप से पदार्थ चुम्बकत्व विहीन होते हैं। लेकिन जब इन पदार्थों को बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो उनके इलेक्ट्रॉन लगाये गये चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में या उससे विपरीत दिशा में क्रमबद्ध हो जाते हैं। समान दिशा में अभिविन्यस्त होने के कारण पदार्थों के सभी इलेक्ट्रॉनों का चुम्बकत्व बाह्य क्षेत्र के समानान्तर या विपरीत दिशा में जुड़ जाता है जिससे पदार्थ आकर्षण या प्रतिकर्षण अनुभव करने लगता है। इस प्रकार के चुम्कत्व को क्रमशः अनुचुम्बकत्व या प्रतिचुम्बकत्व कहते हैं। युग्मित इलेक्ट्रॉन सभी पदार्थों उपस्थित रहते हैं जबकि अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित हो भी सकते हैं और नहीं भी । केवल युग्मित इलेक्ट्रॉन वाले प्रतिचुम्बकीय पदार्थ बाह्य क्षेत्र में बहुत हलके बल से प्रतिकर्षित होते हैं। चूँकि अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति से उत्पन्न अनुचुम्बकत्व प्रतिचुम्बकत्व की अपेक्षा बहुत प्रबल होता है. युग्मित व अयुग्मित दोनों प्रकार के इलेक्ट्रॉन रखने वाले पदार्थों में प्रतिचुम्बकीय प्रभाव को अनुचुम्बकीय प्रभाव दबा देता है जिससे वे बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में आकर्षण अनुभव करते हैं। फलत: निर्वात् की तुलना में प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कम तथा अनुचुम्बकीय पदार्थ अधिक बल अनुभव हैं। हलके संक्रमण तत्वों के संकुलों का चुम्बकीय आघूर्ण का मान उनमें उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के चुम्बकीय आघूर्ण द्वारा प्राप्त किया जाता है अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या n तथा चुम्बकीय आघूर्ण 11 के मध्य सम्बन्ध निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-

a = √n(n+2)

प्रयोगों द्वारा किसी पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृत्ति तथा चुम्बकीय आघूर्ण का मान निकाला जा सकता है। प्राप्त मान बंधन के सिद्धान्तों के मूल्यांकन में उपयोगी पाये गये हैं। उपर्युक्त समीकरण की सहायता से पदार्थ में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या की गणना कर ली जाती हैं। एक प्रकार से यह संख्या परोक्ष रूप से प्राप्त अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या का प्रायोगिक मान है। संकुल की ज्यामिति का ध्यान रखते हुए धातु तथा लिगण्डों में बंधन की व्याख्या करने पर प्राप्त अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या यदि उपर्युक्त समीकरण से प्राप्त अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के समान हो तो यह बंधन के सिद्धान्त की सफलता समझी जाती है। विलोमतः किसी पदार्थ में ज्यामिति तथा बंधन की सैद्धान्तिक व्याख्या के फलस्वरूप प्राप्त अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या ज्ञात होने पर उसके ज चुम्बकीय आघूर्ण की सैद्धान्तिक गणना की जा सकती है। सामान्यतः चुम्बकीय आघूर्ण के इस प्रकार 1 प्राप्त परिकलित मान प्रायोगिक मानों से कम होते हैं। इसका कारण इलेक्ट्रॉनों की कक्षीय गति से उत्पन्न चुम्बकीय आघूर्ण का योगदान है। सारणी 3.8 में विभिन्न संख्या में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन तथा उनसे परिकलित चुम्बकीय आघूर्ण के मान बताये गये हैं। इन मानों से स्पष्ट है कि पदार्थों में अयुग्मित चना, इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ उनके चुम्बकीय आघूर्णो में भी वृद्धि होती जाती है।

■ उदाहरण : K3[FeF6] तथा K3[Fe(CN)6] संकुलों के चुम्बकीय आघूर्ण 5.9 तथा 2.3 BM हैं। इनके चुम्बकीय आचरण की व्याख्या कीजिए।

हलं : (i) K3 [FeF6] में [FeF6] 3- संकुल आयन है जिसका चुम्बकीय आघूर्ण 5.9 BM है। यदि इस संकुल में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या n है तो

5.9 = √n(n+2)

(5.9)2 = n2 + 2n

n2 + 2n – 34.81 = 0

n = 1/2 [-2+ √4 – 4(-34.81)

= 1/2 [-2 + 12]

= + 5 या – 7

चूँकि इलेक्ट्रॉनों की संख्या ऋणात्मक नहीं हो सकती। अतः n = 5 ही मान्य मान होगा।

(ii) K3[Fe(CN)6] में संकुल आयन [ Fe(CN) 6] 3- है जिसका चुम्बकीय आघूर्ण 2.3BM दिया जाता है। यदि इसमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या n है तो

2.3 = √n(n+2)

जिससे   n2 + 2n – 5.29 = 0

N = 1/2[-2± √4-4(-5.29)] =1/2 (-2±5)

= + 3/2 या 7/2

चूँकि इलेक्ट्रॉनों की संख्या ऋणात्मक तथा भिन्न में नहीं हो सकती n का मान 1 या 2 स्वीकार्य

यहाँ संकुल में Fe की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है जिससे Fe 3+ में कुल 23 (d5) इलेक्ट्रॉन हैं। हम जानते हैं कि इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या विषम होने पर अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या भी विषम (odd) ही हो सकती है। अत: गणना से [ Fe (CN)6 ] 3- संकुल में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या एक ही प्राप्त होती है।

निष्कर्ष : दिये गये दोनों संकुल अनुचुम्बकीय हैं, अर्थात् बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर दोनों ही पदार्थ आकर्षित होंगे। लेकिन K3 [ FeF6] में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 होने के कारण यह प्रबलतम अनुचुम्बकीय तथा K3 [Fe(CN)6 ] में एक ही अयुग्मिति इलेक्ट्रॉन होने के कारण यह दुर्बलतम अनुचुम्बकीय होगा ।