धारावाही चालक में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा Direction of Magnetic Field in current carrying conductor
अब हम यहाँ धारावाही चालक में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का प्रायोगिक अध्ययन करेंगे अर्थात धारावाही में चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने के लिए हम एक प्रयोग करेंगे।
प्रयोग (Experiment) :
वृत्ताकार कुण्डली में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा (Direction of magnetic field in the circular Coil )
धारावाही चालक पर चुम्बकीय क्षेत्र में बल (force on a current carrying conductor in a magnetic field) : यदि किसी चुम्बकीय क्षेत्र में एक धारावाही चालक को रखा जाए तो इस चालक पर एक बल आरोपित होता है और इस बल की दिशा , चुम्बकीय क्षेत्र और धारा दोनों की दिशा के लम्बवत होती है। यदि चालक गति करने के लिए स्वतंत्र है तो वह इस बल की दिशा में गति करने लगता है। इस तथ्य को निम्नलिखित साधारण प्रयोगों द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है –
1. एक तार के टुकड़े को एक नाल चुम्बक के ध्रुवों N और S के मध्य इस प्रकार ढीला बाँधा जाता है कि तार की लम्बाई ध्रुवों के मध्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत हो। तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर हम देखते है कि तार ऊपर की ओर उठकर तन जाता है।
तार में धारा की दिशा उलट देने पर या चुम्बक को उलट कर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा उलट देने पर हम पाते है कि तार नीचे की तरफ तन जाता है। स्पष्ट है कि धारावाही तार पर चुम्बकीय क्षेत्र में बल लगता है।
2. बारलो का पहिया (barlow’s wheel principle) : इस प्रयोग की रूप रेखा में दिखाई गयी है। इसमें एक ताम्बे का हल्के पहिया W होता है जिसके दाँते लम्बे और नुकीले होते है। यह एक क्षैतिज चालक तार XX’ के परित: स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकता है। पहिये के ठीक निचे एक आयताकार कटोरी रखी जाती है जिसमें पारा भरा होता है। पारा लेने का कारण इसका सुचालक होना है। इस व्यवस्था को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि घूमते समय पहिये का दांता बारी बारी से पारे को स्पर्श करे। पारे से भरी कटोरी को एक शक्तिशाली नाल चुम्बक के ध्रुवों N और S के मध्य रखते है। जब पहिये की धुरी XX’ और पारे के बीच विद्युत धारा प्रवाहित करते है तब पहिया स्वत: ही घुमने लगता है। इसका कारण यह है कि जब पहिये का कोई दांता पारे के सम्पर्क में आता है तब विद्युत परिपथ पूरा हो जाता है है और चुम्बकीय क्षेत्र के कारण पहिये के उस दांते पर एक बल (माना F) कार्य करने लगता है। चित्र में बल की दिशा तीर से प्रदर्शित की गयी है। इस बल के कारण पहिया घूम जाता है। पहिये के घुमने पर अलग दांता पारे के सम्पर्क में आता है और विद्युत परिपथ पुनः पूरा हो जाता है और पहिया फिर से घूम जाता है। इस प्रकार पहिया लगातार घूमता रहता है।
उपर्युक्त प्रयोगों से स्पष्ट है चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर एक बल कार्य करता है जिसकी दिशा धारा की दिशा और चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दोनों के लम्बवत होती है।
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