द्रव स्नेही और द्रव विरोधी या द्रवरागी एवं द्रव विरागी कोलॉइड या कोलाइड विलयन अंतर lyophilic and lyophobic colloids
द्रवस्नेही कोलाइड विलयन : वह कोलॉइडी विलयन जिसमे उपस्थित परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम कणों के मध्य तीव्र आकर्षण बल पाया जाता है , उन्हे द्रव स्नेही कोलाइडी विलयन कहते है।
चूँकि यहाँ परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम के बीच में उच्च आकर्षण बल पाया जाता है इसलिए इन दोनों को आपस में सीधे मिलाने से की कोलाइड विलयन का निर्माण हो जाता है।
इस प्रकार के विलयन का स्कंदन शीघ्रता से नहीं होता है , अर्थात इनके कोलाइड कण पैंदे में आसानी से नहीं बैठते है , ऐसे कोलाइड कणों का स्कन्दन करने के लिए इन्हें गर्म किया जाता है या इनमें कोई विद्युत अपघट्य मिलाया जाता है।
ये उत्क्रमणीय होते है , अर्थात जब इस प्रकार के कोलाइड विलयन को स्कंदित करके , वाष्पीकरण से ठोस पदार्थ को प्राप्त कर लिया जाता है और अब इस ठोस पदार्थ को पुनः परिक्षेपण माध्यम में डालकर पुनः यह कोलाइड विलयन तैयार किया जा सकता है।
उदाहरण : गोंद , स्टार्च , जिलेटिन आदि।
द्रव विरोधी या द्रव विरागी कोलाइड विलयन : वह कोलाइड विलयन जिसमें उपस्थित परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम के कणों के मध्य आकर्षण बल नही पाया जाता है या इनके कणों के मध्य प्रतिकर्षण बल पाया जाता है तो ऐसी विलयन को द्रव विरोधी या द्रव विरागी कोलाइड विलयन कहते है।
ऐसा विलयन बनाने के लिए विशेष विधियाँ काम में ली जाती है , सीधे परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम को मिलाने से ऐसे विलयन तैयार नहीं किये जा सकते है।
चूँकि इसमें परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के मध्य प्रतिकर्षण बल पाया जाता है इसलिए ऐसे कोलाइड का स्कंदन आसानी से किया जा सकता है अर्थात इनका स्कंदन आसानी से हो जाता है।
ये अनुत्क्रमणीय होते है अर्थात इनके स्कंदन के बाद जब वाष्पीकरण विधि द्वारा ठोस पदार्थ को अलग कर लिया जाता है तो इस ठोस पदार्थ को अन्य परिक्षेपण माध्यम में डालने पर यह द्रव विरोधी या द्रव विरागी कोलाइड विलयन नहीं बनाता है।
उदाहरण : कई अघुलनशील लवणों के कोलाइड आदि , द्रव विरोधी कोलाइड विलयन के उदाहरण है।
द्रवरागी और द्रव विरागी कोलाइड विलयन में अन्तर
द्रवरागी कोलॉइड विलयन
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द्रव विरागी कोलाइड विलयन
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1. इस विलयन के कणों का आकार वास्तविक विलयन के कणों के आकार से बड़ा होता है।
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इसमें कणों का आकार तो छोटा होता है लेकिन इसमें कण झुण्ड या ग्रुप बनाकर बड़े आकार को ग्रहण कर लेते है।
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2. इस विलयन का स्कंदन करना आसान नही होता है , ऐसे विलयन में स्कंदन करने के लिए विद्युत अपघट्य की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।
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ऐसे विलयन का स्कन्दन करना आसान होता है , इनमें विद्युत अपघट्य की थोड़ी सी मात्रा डालने पर ही इसका स्कंदन हो जाता है।
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3. इनमें परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम के कणों के मध्य आकर्षण बल पाए जाते है।
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इनमें परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम के कणों के मध्य प्रतिकर्षण बल या दुर्बल आकर्षण बल पाए जाते है।
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4. ये उत्क्रमणीय प्रकृति के होते है अर्थात स्कंदन होने के बाद विलयन को हिलाने से पुन: कोलाइड विलयन बन जाता है। |
ये अनुत्क्रमणीय प्रकृति के होते है , अर्थात जब एक बार इनका स्कन्दन हो जाता है तो स्कंदित ठोस पदार्थ से पुन: कोलाइड विलयन तैयार नहीं किया जा सकता है।
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5. इस विलयन में टिण्डल प्रभाव कम स्पष्ट रूप से पाय जाता है।
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इसमें टिंडल प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
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6. इनके कणों पर आवेश का मान pH के मान पर निर्भर करता है और इन कणों पर आवेश शून्य भी हो सकता है।
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इन कणों पर धनावेश या ऋणावेश पाया जाता है।
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7. इनकी श्यानता हमेशा जल या विलायक से उच्च होती है।
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इनकी श्यानता जल या विलायक के बराबर होती है।
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उदाहरण : सरेश , जिलेटिन , स्टार्च आदि।
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उदाहरण : अघुलनशील लवणों के कोलाइड आदि।
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