lipid metabolism notes in hindi , लिपिड उपापचय क्या है नोट्स , वसा का वर्गीकरण (Classification of lipids)
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लिपिड उपापचय (Lipid Metabolism)
परिचय (Introduction )
लिपिड जैविक अणुओं को विषमांगी ( heterogenous) समूह है जो जल में अत्यंत अल्प मात्रा में विलेय (sparingly soluble) होते हैं परन्तु कार्बनिक विलायकों जैसे क्लोरोफॉर्म (chloroform), बैंजीन (benzene), पेट्रोलियम ईथर (petroleum ether) एवं एसिटोन (acetone) इत्यादि में विलेय (घुलनशील) होते हैं। ‘लिपिड’ शब्द सर्वप्रथम ब्लूर (Bloor) ने 1943 में दिया था जो ग्रीक भाषा के लाइपोस (lipos) से लिया गया था जिसका अर्थ बेस है।
लिपिड एक प्रकार के बृहताणु (macromolecules) होते हैं जो मुख्यतया कार्बन, हाड्रोजन एवं आक्सीजन से बने होते हैं। परन्तु ये कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन अथवा न्यूक्लिक अम्लों की भांति किसी एकक इकाई (unit) के बहुलक (polymer) के रूप में नहीं पाये जाते। कुछ लिपिंड में अत्यंत अल्प मात्रा में फास्फोरस, नाइट्रोजन एवं सल्फर इत्यादि भी पाये जाते हैं। सामान्यतया इनमें आक्सीजन की मात्रा अपेक्षाकृत बहुत कम होती है इसी से इनके पूर्ण आक्सीकरण में अधिक आक्सीजन की आवश्यकता होती है। लिपिड ऊर्जा के अच्छे स्रोत हैं व कार्बोहाइड्रेट की अपेक्षा अधिक ऊर्जा देते है।
प्राप्तिस्थल (Occurrence)
लिपिड कोशिका के संघटक के रूप में पादपों एवं जन्तुओं सभी कोशिकाओं में पाए जाते हैं। पादपों में संचित भोजन (reserve or stored food) के रूप में बीज फलों एवं सूखे मेवे (nuts) इत्यादि में तथा जन्तुओं में वसीय ऊतक (adipose tissue), अस्थि मज्जा (bone marrow) तथा तंत्रिका ऊतक (nervous tissues) में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त लिपिड कोशिका एवं कोशिकांगों की झिल्लियों के अभिन्न घटक होते हैं।
लिपिड की संरचना (Structure of lipids )
अधिकांश साबुनीकरणीय लिपिड ( saponifiable lipids) दो मुख्य घटकों एल्कोहल ( alcohol) एवं वसा अम्लों (fatty acid) से बनते हैं एवं ऐस्टर (esters) होते हैं।
पादपों में सर्वाधिक मात्रा में उदासीन लिपिड (neutral lipids) पाये जाते हैं। ये लिपिड (वसा एवं तेल) ट्राइएसाइलग्लिसरोल (triacylglycerols)भी कहलाते हैं। ये त्रिहाइड्रोक्सी (trihydric) एल्कोहल अर्थात् ग्लिसरोल एवं वसा अम्लों के ऐस्टर होते हैं तथा इन्हें ट्राइग्लिसराइड (triglycerides) भी कहते हैं ।
ट्राइग्लिसराइड में तीनों वसा अम्ल एक समान होने पर वे सरल ट्राइग्लिसराइड तथा भिन्न प्रकार के होने पर मिश्रित ट्राइग्लिसराइड कहलाते हैं ।
- एल्कोहल (Alcohol)
अधिकांशतः लिपिड में त्रिहाइड्रॉक्सी (trihydric) एल्कोहल, ग्लिसरोल (glycerol) पाया जाता है परन्तु कुछ लिपिडों में दीर्घ श्रृंखला युक्त एल्कोहल भी पाये जाते है। जैसे सिटाइल एल्कोहल (CH3(CH2)14 CH2OH) एवं मिरीसाइल एल्कोहल [CH3(CH2)28CHOH] इत्यादि । दीर्घ श्रृंखला युक्त एल्कोहल अधिकांशतः मौम ( wax) में पाये जाते हैं।
- वसा अम्ल (Fatty acids)
प्राकृतिक वसा में पाये जाने वाले अम्ल जो ग्लिसरोल के साथ अभिक्रिया कर विभिन्न प्रकार के लिपिड (वसा) बनाते हैं वसा अम्ल कहलाते हैं। लगभग सभी लिपिड में ग्लिसरोल समान रूप से होता है परन्तु वसा अम्लों की मात्रा व प्रकार में भिन्नता पाई जाती है। ये सामान्यतः अशाखित लंबी अशाखित श्रृंखला युक्त होते हैं जिनमें कार्बन की संस्था सम होती क्योंकि ये 2 कार्बन युक्त इकाइयों से बनते हैं। वसा अम्लों में कार्बन अणुओंकी संख्या 6-30 हो सकती है परन्तु अधिकांशतः 16-18 होती है। इनके एक छोर पर एक कार्बोक्सी (carboxy, COOH) समूह होता है तथा शेष भाग श्रृंखला बनाता है। अधिकांश वसा अम्लों का एक सामान्य एवं एक वर्गीकरणी नाम (systematic name) होता है। वसा अम्लों को चार समूहों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) संतृप्त वसा अम्ल (Saturated fatty acids)
(ii) असंतृप्त वसा अम्ल (Unsaturated fatty acids)
(ii) शाखित श्रृंखला युक्त वसा अम्ल (Branched fatty acids)
(iv) चक्रिक वसा अम्ल (Cyclic fatty acids)
(i) संतृप्त वसा अम्ल (Saturated fatty acids)
इन वसा अम्लों की हाइड्रोकार्बन श्रृंखला (hydrocarbon chain) में एकक बंध ( single bonds) ही होते है द्विबन्ध (double bonds) नहीं होते। इन्हें R-COOH द्वारा निरूपित किया जाता सकता है जिसमें R का सूत्र CH3 (CH2)n है n की संख्या एक (एसिटिक अम्ल) से लेकर 24 (सिरोटिक अम्ल Cerotic acid) तक हो सकती है। जन्तुओं में वसा में संतृप्त अम्ल अधिक मात्रा में होते है। संतृप्त वसा अम्ल कार्बन अणुओं का नामांकन कार्बोक्सी सिरे से प्रारंभ किया जाता है। COŌH सिरे से संलग्न कार्बन C1 व इससे अगला C2 कार्बन होता है इसे a (एल्फा) कार्बन एवं C3C4 कार्बन को क्रमश: B (बीटा) एवं Y (गामा) कार्बन कहते हैं। दूसरे छोर पर स्थित अंतिम कार्बन ) ( ओमेगा) अथवा n – कार्बन कहते हैं। तालिका में मुख्य वसा अम्लों के बारे में जानकारी दी गई है।
तालिका-1: पादपों एवं जन्तुओं में उपस्थिति कुछ संतृप्त वसा अम्ल एवं संबंधित कानकारी
क्रम संख्या
S. No.
1.
2.
3.
4.
5.
6. |
सामान्य नाम
Common Name
ब्यूटाइरिक अम्ल (Butyric acid)
कैप्रोइक अम्ल (Caproic acid)
केप्रिक अम्ल (Capric acid)
मिरिस्टीक अम्ल (Myristic acid)
स्टीएरिक अम्ल (Stearic acid)
एरेकिडिक अम्ल (Arachidic acid) |
कार्बन अणुओं की संख्या Number of
carbon atoms
4
6
10
14
18
20 |
सूत्र Formula
CH3(CH2)2COOH
CH3(CH2)4 COOH
CH3(CH2)gCOOH
CH3(CH2)12COOH
‘CH3(CH2)16COOH
CH3(CH2)18COOH |
वगीकरणी नाम Systematic Name
ब्यूटेनोइक अम्ल (Butanoic acid)
हैक्सानोइक अम्ल (Hexanoic acid) डैकानोइक अम्ल (Decanoic acid)
टैट्राडेकानॉइक अम्ल (Tetradecanoic acid)
ऑक्टो डेकानॉइक अम्ल (Octo decanoic acid)
आइकोसेनाइक अम्ल (Eichosanoic acid) |
स्रोत Source
मक्खन
मख्खन नारियल पाल्म तेल
नारियल एवं पाल्म तेल
बीजों में मक्खन
पादप वसा
मूंगफली तेल
|
(ii) असंतृप्त वसा अम्ल (Unsaturated fatty acids)
इन वसा अम्लों में एक अथवा अधिक द्विबन्ध (double bond) होते हैं तथा इन्हें R-CH=CH(CH2)n COOH सामान्य सूत्र द्वारा निरूपित किया जाता है। इनका गलनांक (melting point) संतृप्त वसा अम्लों की अपेक्षा कम होता है। ये वसा अम्ल प्रकृति में प्राणियों की अपेक्षाकृत पादपों में अधिक पाये जाते हैं। पादपों में ट्राइग्लिसराइड में अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में असंतृप्त अम्ल पाये जाते हैं जैसे-ओलिक (Oleic), लिनोलीक (Linoleic ) एवं लिनोलेनिक (Linolenic) अम्ल ।
तालिका – 2 : कुछ असंतृप्त वसा अम्लों उदाहरण
सामान्य नाम
(Common name) |
कार्बन अणुओं संख्या (Number of
carbon atoms)
|
सूत्र (Formula) | वगीकृत मान (Systematic name) | स्रोत (Source) |
पाल्मिटोलिक अम्ल (Palmitoleic acid)
लिनोलिक अम्ल
एरूसिक अम्ल (Erucic acid)
ओलिक अम्ल (Oleic acid) |
16
18
22 |
CH3 (CH2)7 CH
=CH(CH2)5COOH
CH3(CH2)4 CH=CHCH2CH
=CH(CH2)7COOH =CH(CH2)11COOH
CH3(CH2)7CH=CH (CH2)7 COOH
|
9 हैक्साडेकानोइक अम्ल 9. (Hexadeconoic acid)
9, 12, आक्टोडेकोनिक अम्ल 12-डाइकोसेकोडाइनिक अम्ल 12-dico saenoic acid
9- आक्टोडेकोनोइक अम्ल (9-Octadeconoic aceid) |
दुग्ध
सोयाबीन
तारामीरा
जैतून |
(ii) शाखित श्रृंखलायुक्त वसा अम्ल (Branched chain fatty acids)
ये वसा अम्ल अधिकांशतः जंतु वसा तथा जीवाणुओं में पाये जाते हैं तथा इनमें कार्बन अणु विषम संख्या में होते हैं। इनका सामान्य सूत्र R—CH — (CH2)n COOH है ।
CH3
उदाहरणः बेसिलस टयूबरकुलोसिस (Bacillus tuberculosis) में ट्यूबरकुलोस्टीरिक अम्ल
CH3–(CH2)6–CH–(CH2)8 COOH
CH3
टयूबरकुलोस्टीरिक अम्ल
(iv) चक्रिक वसा अम्ल (Cyclic fatty acids) :
इनकी संरचना में कम से कम एक अंश चक्रिक होता है। कभी-कभी इनकी उपस्थिति पादपों एवं जीवाणुओं में पाई गई है। जैसे-चौलमोगरा में चौलमोगरिक अम्ल (Choulmogric acid) ।
(v) हाइड्रॉक्सी वसा अम्ल (Hydroxy fatty acids)
इन वसा अम्लों में कार्बोक्सी ( – COOH) समूह के अतिरिक्त हाइड्रॉक्सी (OH) समूह भी होते हैं जिनकी संख्या एक अथवा अधिक भी हो सकती है। वे वसा अम्ल संतृत्प अथवा असंतृप्त हो सकते हैं।
उदाहरण- रिकोनिलिक अम्ल (Riconilic acid, C18 H34 O3 ) असंतृप्त वसा अम्ल तथा जूनिपेरिक अम्ल (Juniparic acid, C12 H24 O3 or CH3 (CH2)9 CHOH COOH)- संतृप्त वसा अम्ल ।
लिपिड का वर्गीकरण (Classification of lipids)
बाटा जा सकता हैं- साबुनीकरणीय (saponifiable) लिपिड एवं असाबुनीकरणीय (non-saponifiable) लिपिंड। पहले वर्ग अधिकांश लिपिड वसा अम्लों (fatty acids) के एस्टर (esters) होते हैं। लिपिड के संगठन के आधार पर दो वर्गों में में अधिकांश लिपिड आते हैं तथा इनमें वसा अम्ल होते हैं जबकि दूसरे वर्ग के लिपिड में वसा अम्ल नहीं पाये जाते हैं इसके अंतर्गत स्टीरॉइड (steroids). टरपीन (terpenes) इत्यादि आते हैं।
अधिकांश लिपिड वसा अम्लों के ऐस्टर के रूप में पाये जाते हैं इन लिपिड को एल्कली से उपचारित करने पर वसा अम्लों के लवण प्राप्त होते हैं जिन्हें साबुन (soap ) कहते हैं तथा ऐसे लिपिड साबुनीकरणीय कहलाते हैं । असाबुनीकरणीय लिपिड में वसा अम्ल की अनुपस्थिति के कारण वे एल्कली से अभिक्रिया करने पर लवण नहीं बनाते।
सामान्यतः लिपिड को मोटे तौर पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है-
I सरल लिपिड (Simple lipids).
II संयुक्त अथवा संयुग्मी लिपिड (Compound or conjugated lipids)
III व्युत्पन्न लिपिड ( Derived lipids)
सरल एवं संयुग्मी लिपिड साबुनीकरणीय होते हैं जबकि व्युत्पन्न लिपिड सामान्यतः असाबुनीकरणीय होते है।
- सरल लिपिड (Simple lipids)
सरल लिपिड एल्कोहल एवं वसा अम्लों के ऐस्टर होते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- उदासीन लिपिड एवं मोम |
- उदासीन लिपिड (Neutral lipids)
ये ग्लिसरोल के साथ विभिन्न वसा अम्लों के ऐस्टर होते हैं जिनमें एक दो अथवा तीनों हाइड्रोक्सिल समूहों का ऐस्टरीकरण (esterification) हो जाता हैं इनमें कोई मुक्त बेसिक अथवा एसिड समूह न होने के कारण इन्हें उदासीन लिपिड कहते है। ये सामान्यतः संचय (storage) के लिए होते हैं। ये सरल अर्थात एक समान वसा अम्ल युक्त अथवा मिश्रित अर्था भिन्न-भिन्न वसा अम्लों से युक्त हो सकते हैं इसका गलनांक (melting point) वसा अम्ल की श्रृंखला की लम्बाई एवं संतृप्तता (saturation) पर निर्भर करती है। ये लिपिड भी दो प्रकार के होते हैं-
(i) वसा (Fat) : वे ट्राइग्लिसराइड जिनमे संतृप्त वसा अम्लों की प्रचुर ( abundance) मात्रा होती है तथा ये सामान्य तापक्रम पर ठोस होते हैं, वसा (fat) कहलाते हैं । सामान्यतः वसा का गलनांक (melting point) इनके जमाव बिन्दु (solidification point) से अधिक होता है। उदाहरणतः ट्राइ स्टीरिन 72°C पर पिघलता है जबकि ठंडा करने पर 52°C पर ही जम जाता है।
(ii) तेल (Oil) : ये भी वसा अम्लों के ट्राइग्लिसराइड होते हैं परन्तु इनमें असंतृप्त वसा अम्लों का आधिक्य होता है तथा ये सामान्य तापक्रम पर तरल अवस्था (liquid) में होते हैं। इनके अम्लों को संतृप्त कर उन्हें वसा में परिवर्तित किया जा सकता है। वनस्पति तेल से घी इसी प्रकार बनाया जाता है ।
- मोम (Waxes)
मोम दीर्घ श्रंखला युक्त वसा अम्लों एवं लंबी श्रंखला वाले एकहाइड्रॉक्सी एल्कोहल (monohydroxy alcohols) के एस्टर एवं दीर्घ श्रंखलायुक्त मुक्त वसा अम्ल, एल्कोहल, एलडिहाइड (aldehyde) इत्यादि का मिश्रण होते हैं परन्तु इनमें एस्टर की अधिकता होती है। इनके एल्कोहल एवं वसा अम्लों में कार्बन अणुओं की संख्या क्रमशः लगभग 16 से 30 एवं 14 से 36 तक होती है। उदाहरणतः कार्नुबा मोम (camnauba wax) में मुख्यतः मिरीसाइल एल्कोहल (myricyl alcohol, C3oH61 OH) तथा सिरोटेट (cerotate, 26c) होते है जबकि मधुमक्खी के मोम में पामिटिक अम्ल ( palmitic acid, 16c) तथा मिरिसाइल एल्कोहल एवं सिटाइल एल्कोहल (C26 H53 OH) होता है। मोम जल में अघुलनशील होते हैं तथा वायुमंडल के द्वारा सामान्य ऑक्सीकरण के प्रति प्रतिरोधी होते हैं क्योंकि इनमें पूर्णतः अपचयित हाइड्रोकार्बन पाये जाते हैं। ये रासायनिक रूप से निष्क्रिय (inert) होते हैं तथा वसा अपघटनी विकरों का इन पर कोई प्रभाव नहीं होता। इनका गलनांक (melting point) बहुत अधिक
होता है यह सामान्यतः फलों एवं पत्तियों पर एक रक्षी परत (protective layer) के रूप में पाया जाता है एवं जन्तुओं / पक्षियों एव कीटो में जलरोधी परत के रूप में पाया जाता है।
- संयुग्मी लिपिड (Conjugated lipids)
संयुग्मी लिपिड में वसा अम्ल एवं एल्कोहल के अतिरिक्त अन्य तत्व अथवा समूह भी होते हैं जो फास्फोरस, नाइट्रोजन सल्फर एवं प्रोटीन इत्यादि हो सकते हैं। इसके अनुसार फास्फोलिपिड, ग्लाइकोलिपिड एवं लाइपोप्रोटीन इत्यादि इसमें शामिल ये जाते हैं। अधिकांशतः ये लिपिड झिल्ली में पाई जाती है।
- फास्फोलिपिड ( Phospholipids)
फास्फोलिपिड मुख्यतः जैविक झिल्लियों (biomembranes ) में पाये जाते हैं तथा इनमें फास्फेट समूह, वसा अम्ल एवं एल्कोहल मुख्य घटक होते हैं। एल्कोहल के आधार पर ये दो प्रकार के हो सकते हैं- (i) ग्लिसरोल युक्त – फास्फोग्लिसराइड (Phosphoglyceride)
(ii) इनोसिटोल युक्त– फास्फोइनोसिटाइड (phosphoinositides)
(iii) फायटोस्फिंगोसिन अथवा स्फिंगोसिन युक्त- फास्फोस्फिंगोसाइड (Phsphosphingocides)
- फास्फोग्लिसरॉइड (Phosphoglycerides)
ये चार घटकों से मिलकर बनते हैं (i) वसा अम्ल, (ii) फास्फेट समूह (iii) एल्कोहल समूह तथा (iv) नाइट्रोजिनी समूह होते हैं।
अधिकांशतः ग्लिसरोल के C1 से एक संतृप्त वसा अम्ल, C2 से असंतृप्त वसा अम्ल तथा C3 से नाइट्रोजन अथवा हाइड्रोक्सी यौगिक से एस्टरीकृत (esterified) फास्फोरिक अम्ल होता है दो वसा अम्ल तथा फास्फोरिक अम्ल से संलग्न ग्लिसरोल को फास्फेटिडिक अम्ल (Phosphatidic acid ) भी कहते हैं।
फास्फेटिडिक अम्ल के साथ संलग्न नाइट्रोजनी समूह के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकते हैं कुछ मुख्य फास्फोग्लिसराइड निम्न हैं-
(A) लेसिथीन (Lecithin)
इसमें कोलीन (Choline) होता है तथा यह फास्फेटिडाइल कोलीन भी कहते हैं। ये लाइपोप्रोटीन के मुख्य घटक हैं तथा कोशिका झिल्ली में पाये जाते हैं। इनमें R1 एवं R2 के स्थान पर विभिन्न वसा अम्ल जुड़ने से विभिन्न अणु बन सकते हैं। दोनो वसा अम्ल अध्रुवीय जलविरागी छोर (nonpolar hydrophobic tail) तथा फास्फोरिक समूह एवं अन्य समूह ध्रुवीय जलरागी छोर (polar hydrophilic head) बनाते हैं। ये उच्च पादपों के बीज, तने व पत्तियों में पाये जाते हैं।
(B) सिफेलीन (Cephalins)
इनमें इथेनोलेमिन (ethanolamine) समूह होता है एवं ये फास्फेटिडाइल इथेनोलेमिन (Phosphatidyl ethanolamine) कहलाते हैं। ये भी लेसिथीन की भांति अधिकतर जंतुओं, उच्च पादपों के तने पत्तियों एवं बीजों में पाये जाते हैं। इनमें सामान्यतः स्टीरिक, ओलिक (oleic ) एवं लिनोलिक इत्यादि वसा अम्ल पाये जाते हैं।
(C) फास्फेटिडाइल सीरिन (Phophatidyl serine)
इनमें फास्फेटिडिक अम्ल के साथ सिरिन संलग्न होता है। ये अपेक्षाकृत जंतुओं में अधिक पाये जाते हैं।
(D) प्लाज्मालोजन (Plasmalogens)
इनमें a कार्बन परमाणु के साथ जटिल असंतृप्त ईथर समूह वसा अम्ल के स्थान पर संलग्न होता है अन्यथा इनकी लैसिथीन के समान ही होती है। ये अधिकांशतः मस्तिष्क एवं मांसपेशियों में तथा उच्च पादपों के बीजों में पाये जाते है
- फास्फेटिडाइल ग्लिसरोल (Phosphatidyl glycerol
इनमें फास्फेटिडाइल समूह के साथ एक अथवा अधिक ग्लिसरोल समूह संलग्न होते हैं। इस तरह इन अणुओं में दो अथवा अधिक ग्लिसरोल समूह, वसा अम्ल समूह तथा एक अथवा अधिक फास्फेट समूह होते हैं। ये उच्च पादपों की पत्तियों के हरितलवक एवं माइटोकोन्ड्रिया में पाये जाते हैं ।
(ii) फास्फोइनोसिटाइड (Phosphoinosetide)
इन लिपिड में एल्कोहल छ: हाइड्रॉक्सी समूह युक्त इनोसिटोल (inositol) होता है व इनमें एक अथवा दो फास्फेट समूह होते हैं। अतः इनमें एक ग्लिसरोल समूह, वसा अम्ल समूह, फास्फेट एवं इनोसिटोल होते हैं। फास्फेट समूह के आधार पर मोनो अथवा डाइफास्फोइनोसिटाइड कहलाते हैं। मोनोफास्फोइनोसिटाइड पादप एवं जंतु दोनों में पाये जाते हैं।
(ii) फास्फोस्फिंगोसाइड (Phosphosphingosides)
ये वे लिपिड है जिनमें ग्लिसरोल के स्थान पर फायटोस्फिंगोसिन (पादपों में) अथवा स्फिगोसिन ( जन्तुओं) होता है। इन दोनों की रचना समान ही है परन्तु स्फिंगोसिन में एक द्विबन्ध होता है।
- ग्लाइको लिपिड (Glyocolipds)
कार्बोहाइड्रेट समूह युक्त लिपिड ग्लाइकोलिपिड कहलाते हैं। ये अनेक पादपों में पाये जाते हैं जैसे सोयाबीन, मूंगफली, गेहूँ इत्यादि। अनेक पादपों के हरितलवक में भी ग्लाइकोलिपिड पाये जाते हैं। सामान्यतः पादपों में पाये जाने वाले फास्फोस्फिंगोलिपिड कार्बोहाइड्रेट के साथ संलग्न होते है एवं ग्लाइकोलिपिड अथवा ग्लाइकोस्फिंगोलिपिड कहलाते हैं। अधिकांशतः बीजों में उपस्थित ग्लाइकोलिपिड में गैलेक्टोज (galactose), फ्रक्टोज (fructose) एवं ऐरेबिनोज (arabinose) इत्यादि शर्करा पाई जाती है। इन शर्करा के एक अथवा अधिक अणु भी हो सकते है। सामान्यतः पादपों में गैलेक्टोसाइल डाइग्लिसराइड एवं सल्फोलिपिड पाये जाते हैं ।
(i) ग्लेक्टोसाइल डाइग्लिसराइड (Galactosyl diglycerides)
अधिकांशतः पादपों के हरितलवक में पाये जाते हैं। इनमें ग्लिसरोल, दो वसा अम्ल तथा गैलेक्टोसाइड होते हैं। मोनोगैलेक्टोसाइल डाइग्लिसराइड में एक तथा डाइगैलेक्टोसाइल डाइग्लिसराइड में दो गैलेक्टोज़ के अणु अवशेष (residues) होते हैं ।
(ii) सल्फोलिपिड (Sulpholipid)
ये कुछ शैवाल एवं उच्च वर्गीय पादपों की पत्तियों में पाये जाते हैं। ये ग्लिसरोल, वसा अम्ल एवं आक्सीजन रहित ग्लूकोज़ शर्करा क्विनोवोस (quinovose) से बनते हैं। पादपों में सल्फोनिक अम्ल व जन्तुओं में सल्फेट समूह पाया जाता है।
इनके अतिरिक्त सेरिब्रोसाइड ( cerebroside) तथा गैंग्लियोसाइड (ganglioside) भी पाये जाते हैं। सेरिब्रोसाइड में एक शर्करा, वसा अम्ल एवं स्फिगेनिन (sphinganine) समूह होता है जबकि गैंग्लियोसाइड में सिरेमाइड ( ceramide) समूह होता है जो वसा अम्ल से संलग्न स्फिंगेनिन का एमाइड (amide) होता है ।
- लाइपोप्रोटीन (Lipoproteins)
लाइपोप्रोटीन लिपिड एवं प्रोटीन से बने जटिल वृहतअणु (macromolecules) होते हैं। ये बहुत महत्वपूर्ण होते हैं तथा कोशिका एवं कोशिकांगों (cell organelles) की झिल्ली का महत्वपूर्ण घटक होते हैं। ये लाइपोप्रोटीन जल अथवा वसा में घुलनशील होते हैं एवं विभिन्न पदार्थों के आवागमन को नियंत्रित करते हैं। प्रोटीन की उपस्थिति के कारण PH, विभिन्न रसायनों तथा ताप इत्यादि से प्रभावित होते हैं।
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