लुईस अवधारणा lewis concept of acids and bases in hindi लुईस अम्ल का उदाहरण bf2 है
(lewis concept of acids and bases in hindi) लुईस अवधारणा क्या है ? लुईस अम्ल का उदाहरण bf2 है ? acid and base किसे कहते है ?
प्रस्तावना : अम्लों और क्षारों की लुईस अवधारणा के अनुसार इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण वाले अम्ल होते है जबकि इलेक्ट्रॉन को त्यागने वाली स्पीशीज को क्षार कहते है। अम्लों और क्षारों की सामर्थ्य उनकी विस्थापित करने की सामर्थ्य से निर्धारित होती है। अत: एक प्रबल क्षार वह होता है जो दुर्बल क्षार को उनके यौगिकों में से विस्थापित कर दे। अत:
: B + A:B’ → A:B + :B’
प्रबल क्षार + अम्ल दुर्बल क्षर → अम्ल प्रबल क्षार + दुर्बल क्षार
यदि जलीय विलयन लिया जाए तथा हाइड्रोजन आयनों को सन्दर्भ अम्ल के रूप में माने तो उनकी क्षारीय सामर्थ्य का क्रम वही रहता है जो इनके pKa के मान होते है। अर्थात
NH3 + HF– ⇌ NH4+ + F–
3.45 9.25
pKa :
H3N: + H:F ⇌ H3N :H+ + :F–
इस प्रतिस्थापन अभिक्रिया के लिए Keq का मान 5.80 आता है जो अमोनिया आयनों और HF के pKa मानों का विशुद्ध अंतर है। अत: निष्कर्ष निकाल सकते है कि सन्दर्भ अम्ल H+ के लिए :NH3 की क्षारीय सामर्थ्य :F– से अधिक है , क्योंकि अभिक्रिया का साम्य दायें हाथ की तरफ काफी आगे है।
संकुलन अभिकियाओं में भी एक धात्विक धनायन (लुईस अम्ल) एक लिगेंड (लुईस क्षार) से एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करता है। इसके साम्य स्थिरांक को निर्माण स्थिरांक या स्थायित्व स्थिरांक कहते है। लिगेंड एक एक करके विभिन्न पदों में जुड़ते है तथा उनका कुल निर्माण स्थिरांक β विभिन्न पदों का गुणनफल होता है।
उदाहरण :
Ag+ + NH3 ⇌ [Ag(NH3)]+ (प्रथम पद) (K1)
[Ag(NH3)]+ + NH3 ⇌ [Ag(NH3)2]+ (द्वितीय पद) (K2)
Ag+ + 2NH3 ⇌ [Ag(NH3)2]+ (कुल अभिक्रिया) (β)
β = K1K2
किसी एक धातु आयन के साथ विभिन्न लिगेंड के संकुलों के निर्माण स्थिरांक के मानों के आधार पर लिगेंडो की क्षारीय सामर्थ्य को ज्ञात किया जा सकता है जबकि किसी एक लिगेंड के साथ विभिन्न धातु आयनों के संकुलों के निर्माण स्थिरांकों के आधार पर धातु आयनों की अम्लीय सामर्थ्य को ज्ञात किया जा सकता है।
संकुलन अभिक्रियाओं में बंधन की प्रायिकता के आधार पर आरलैण्ड , चैट्ट और डेविस के सन 1958 में धातु आयनों को दो वर्गों में बाँटा – वर्ग (a) और वर्ग (b) के धातु आयन।
(1) वर्ग (a) के धातु आयन [metal ions of class (a)] : इस वर्ग में क्षारीय धातु आयन , क्षारीय मृदा धातु आयन , उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में हल्के संक्रमण धातु आयन , उदाहरण Ti4+ , Fe3+ , Co3+ और हाइड्रोजन आयन H+ सम्मिलित है। इन आयनों में निम्नलिखित अभिलक्षणात्मक गुण पाए जाते है –
(i) ये कम घनत्व वाले हल्के तत्व होते है।
(ii) इनका आकार छोटा होता है।
(iii) इनकी ध्रुवण क्षमता उच्च होती है।
(iv) ये उच्च ऑक्सीकरण अवस्था वाले होते है तथा
(v) इनके बाह्यतम इलेक्ट्रॉन अथवा कक्षक आसानी से विकृत नहीं होते।
(2) वर्ग (b) के धातु आयन [metal ions of class (b)] : इस वर्ग में भारी संक्रमण धातु आयन आते है जिनकी ऑक्सीकरण अवस्था कम होती है , उदाहरण Cu+ , Ag+ , Hg22+ , Pd2+ , Pt2+ आदि। इन आयनों में निम्न अभिलक्षणात्मक गुण पाए जाते है :
(i) ये उच्च घनत्व वाले भारी तत्व होते है।
(ii) इनका आकार बड़ा होता है।
(iii) इनके बाह्यतम इलेक्ट्रॉन या कक्षक आसानी से विकृत हो जाते है अर्थात इनकी ध्रुवित होने की शक्ति उच्च होती है।
वर्ग (a) और वर्ग (b) के प्रति विभिन्न लिगेंडो के व्यवहार को देखते हुए आरलैण्ड , चैट्ट और डेविस ने लिगेंड को भी दो वर्गों में विभक्त किया।
(1) वर्ग (a) : इसमें वे लिगेंड सम्मिलित है जिनकी प्रायिकता वर्ग (a) के धातुओं के साथ संयोग करने की होती है , उदाहरण NH3 , R3N , H2O , F– आदि लिगेंडो की वर्ग (a) के धातु आयनों के साथ संकुलन करने की प्रवृत्ति प्रबल होती है। वर्ग (a) के धातु आयनों के साथ इनके संकुलन की प्रायिकता का क्रम निम्न होता है :
F > Cl > Br > I
O > S > Se > Te
N > P > As > Sb
(2) वर्ग (b) : इस वर्ग में उन लिगेंडो को शामिल किया जाता है जो वर्ग (b) के धातु आयनों के साथ प्रायिकता से संकुलन अभिक्रिया संपन्न करते है , उदाहरण R3P (फास्फिनें) और R2S आदि जैसे लिगेंड वर्ग (b) के धातु आयनों के साथ प्रायिकता से संकुलन करते है। वर्ग (b) के लिगेंडो की वर्ग (b) के धातु आयनों के साथ संकुलन की प्रायिकता का क्रम निम्नलिखित होता है –
F < Cl < Br < I
O ≤ S < Se = Te
N ≤ P < As < Sb
अम्लों और क्षारों का कठोर और मृदु के रूप में वर्गीकरण (classification of acid and base as hard and soft)
वर्ग (a) के धातु आयनों में वर्ग (a) के लिगेंडो के साथ संकुलन की प्रवृत्ति पाई जाती है तथा वर्ग (b) के धातु आयन वर्ग (b) के लिगेंडो के साथ प्रायिकता से संकुलन करते है। अत: इनका वर्गीकरण कठोर और मृदु के रूप में किया गया। वर्ग (a) के धातु आयनों को कठोर अम्ल और वर्ग (a) के लिगेंडो को कठोर क्षार कहा गया। इसी प्रकार वर्ग (b) के धातु आयनों को मृदु अम्ल और वर्ग (b) के लिगेंडो को मृदु क्षार कहा गया।
उदाहरण : निम्न साम्य पर चर्चा करते है :
BH+ + CH3Hg+ ⇌ CH3HgB+ + H+
मृदा कठोर अम्ल
उपर्युक्त साम्य में एक मृदु अम्ल CH3Hg+ और कठोर अम्ल H+ में प्रतिद्वंद्वीता है। इसके साथ क्रिया करने वाला क्षार B कठोर कहा जायेगा यदि अभिक्रिया का साम्य दायें हाथ की ओर खिसक जाए तथा इसे मृदा क्षार कहेंगे यदि अभिक्रिया का साम्य दाहिने हाथ की ओर खिसक जाए। अत:
BH+ + CH3Hg+ ⇌ CH3HgB+ + H+
क्षार कठोर + अम्ल मृदु ⇌ क्षार मृदु + अम्ल कठोर
BH+ + CH3Hg+ ⇌ CH3HgB+ + H+
क्षार मृदु + अम्ल मृदु ⇌ क्षार कठोर + अम्ल कठोर
इन तुलनाओं में प्रारूपिक मृदु अम्ल के रूप में सामान्यतया मेथिल मर्करी धनायन का उपयोग किया जाता है , क्योंकि यह प्रोटोन की भाँती एकसंयोजी धनायन होने के कारण इसका उपयोग सुविधाजनक होता है तथा किसी साम्य के उपचार की व्याख्या सरलता से की जा सकती है।
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