सममितता का नियम क्या है , सममिति तल किसे कहते हैं , सममिति अक्ष की परिभाषा Law of Symmetry in hindi
Law of Symmetry in hindi सममितता का नियम क्या है , सममिति तल किसे कहते हैं , सममिति अक्ष की परिभाषा ?
सममितता का नियम (Law of Symmetry) : इस नियम के अनुसार, “किसी एक पदार्थ के समस्त क्रिस्टलों में समान सममिति के तत्व पाए जाते हैं।”
सममिति के तत्व (ELEMENTS OF SYMMETRY क्रिस्टलीय ठोस पदार्थों की एक निश्चित आकृति एवं आकार होता है तथा इनके कणों की व्यवस्था में एक विशेष प्रकार की नियमितता (regularity) पायी जाती है। किसी पदार्थ की निश्चित आकृति, आकार एवं उसके कणों की नियमितता को उस पदार्थ की सममिति (symmetry) कहते हैं। क्रिस्टलीय पदार्थों में कितने प्रकार की सममितता पायी जाती है. इसको बताने के लिए हम संक्षेप में सममिति के तत्वों का उल्लेख करेंगे। मुख्य रूप से सममिति के निम्नलिखित तत्व होते हैं
- सममिति तल (Plane of symmetry) – किसी वस्तु का सममिति तल एक ऐसा काल्पनिक तल होता है जिससे वह वस्तु इस प्रकार के दो बराबर-बराबर भागों में बंट जाती है जो एक-दूसरे के दर्पण प्रतिबिम्ब (mirror images) होते हैं। उदाहरण के लिए, अंग्रेजी वर्णमाला (alphabet) के अक्षर A अथवा B में निम्न सममिति तल होते हैं
अक्षर A में एक ऊर्ध्वाधर सममिति तल (Vertical plane of symmetry) है जबकि अक्षर B में एक क्षैतिज सममिति तल (Horizontal plane of symmetry) है जिनसे ये दोनों अक्षर ऐसे बराबर-बराबर दो भागों में बंट जाते हैं जो दोनों भाग एक-दूसरे के दर्पण प्रतिबिम्ब होते हैं।
ठोस किस्टलों में भी इसी प्रकार के कई तल पाये जाते हैं जिनसे क्रिस्टल दो ऐसे बराबर भागों में बंट जाते हैं जो परस्पर एक-दूसरे के दर्पण प्रतिबिम्ब होते हैं। उदाहरण के लिए, एक घनीय संरचना (cubic ctructure) में ऐसे 9 (nine) सममिति तल होते हैं। इनमें से तीन समकोणीय सममिति तल ymmetry हैं जो आमने-सामने के दोनों फलकों (faces) को मिलाने से प्राप्त होते हैं और छ: विकर्ण सममिति तल (diagonal planes of symmetry) है जो आमने-सामने के दो किनारों को परस्पर मिलाने से प्राप्त होते हैं। त्रिविमीय आभास देने वाले संलग्न चित्रों में एक घनीय संरचना के नौ सममिति तलों को दर्शाया गया है।
(2) सममिति अक्ष (Axis of symmetry) — सममिति अक्ष वह काल्पनिक अक्ष अथवा रेखा है जिस पर यदि किसी वस्तु का घूर्णन करवाया जाये तो एक पूर्ण घूर्णन में वस्तु एक से अधिक बार अपनी वास्तविक संरचना (original structure) को प्राप्त कर ले। पूर्ण घूर्णन (d) में एक बार अर्थात 360° के कोण पर घूमने के बाद तो प्रत्येक वस्त अपनी वास्तविक संरचना में ही आयेगी। कोई वस्तु एक अक्ष पर एक पूर्ण घूर्णन करने में जितनी बार अपनी संरचना को दोहराती है, वह उसके अक्ष की सममिति की कोटि (order of symmetry) कहलाती है। उदाहरण के लिए, अंग्रेजी वर्णमाला का अक्षर S अक्ष A पर । घुमाने से एक पूर्ण घूर्णन में दो बार अपनी संरचना को दोहराता है, अतः हम कहेंगे कि 5 में सममिति अक्ष की कोटि 2 है अर्थात् 360/2 = 180° कोण पर घुमाने से उसकी संरचना की पुनरावृत्ति होती है। ऐसी अक्ष को हम द्विगुणित सममिति अक्ष (axis of two-fold symmetry कहते
किसी क्रिस्टल को एक काल्पनिक अक्ष में रखकर यदि 500 कोण पर घुमाने से उसकी संरचना की पुनरावृत्ति होती हो तो हम कहते हैं कि उस क्रिस्टल की n-गुणित सममिति अक्ष (n-fold axis of symmetry) है। एक घनीय संरचना वाले क्रिस्टल में निम्न प्रकार के सममिति अक्ष पाये जाते हैं
(i).द्विगुणित सममिति अक्ष (Axis of two-fold symmetry) —इस अक्ष पर यदि वस्तु को घुमाया (3600/2 = 180°) कोण पर घूमने से अपनी वास्तविक संरचना को ग्रहण कर लेती है। एक घन के अन्दर यदि आमने-सामने वाले दोनों किनारों (edges) के मध्य-बिन्दुओं को मिलाकर एक अक्ष बनाया जाये तो वह जाये तो यह एक द्विगुणित सममिति अक्ष होगा (चित्र 5.17)। एक घनीय संरचना में कुल मिलाकर 12 किनारे होते हैं, अतः इसके छः द्विगुणित अक्ष सम्भव हैं।
(ii) त्रिगुणित सममिति अक्ष (Axis of three-fold symmetry) – यह वह अक्ष है जिस पर गरि क्रिस्टल पूर्ण घूर्णन करे तो वह तीन बार समान संरचना बनाता है अर्थात् क्रिस्टल( 3600/2) = 120° कोण पर घुमाने से अपनी संरचना की पुनरावृत्ति करता है। एक घन के आमने-सामने वाले कोनों (corner परस्पर मिलाकर यदि एक रेखा अथवा अक्ष बनाया जाये तो इस अक्ष पर क्रिस्टल 120° के कोण पर घमा से अपनी वास्तविक संरचना को प्राप्त कर लेता है। किसी घन में कुल मिलाकर आठ कोने होते हैं अतःघन के लिए चार त्रिगुणित अक्षों के होने की सम्भावना है (चित्र 5.18)।
(iii) चतर्गणित सममिति अक्ष (Axis of four-fold sym. metry) – यह क्रिस्टल की वह अक्ष है जिस पर एक पूर्ण घूर्णन करने में अणु चार बार अपनी संरचना को प्राप्त करता है। अर्थात् वह क्रिस्टल । अक्ष पर (3600/4) = 90° के कोण पर घुमाने से अपनी मूल संरचना 4 को प्राप्त करता है। एक घन के आमने-सामने वाले फलकों के मध्य-बिन्दुओं को जोड़कर यदि एक लाइन अथवा अक्ष खींचा जाये तो उस अक्ष पर क्रिस्टल 90° का कोण घूमकर अपनी पूर्ववत् संरचना को प्राप्त कर लेता है (चित्र 5.19)। एक घन में चूंकि कुल मिलाकर छः फलक (faces) होते हैं, अतः इसके लिए तीन चतुर्गुणित सममिति अक्ष होने की सम्भावना है।
इनके अतिरिक्त यदि कोई क्रिस्टल अष्टफलकीय (hexagonal) | सममिति अक्ष fold symmetry) भी पायी जाती है। उस स्थिति में क्रिस्टल उस अक्ष पर एक पूर्ण घूर्णन करने में छः बार अपनी संरचना की पुनरावृत्ति करता है अर्थात् वह उस अक्ष पर (3600/6) = 60° कोण पर घुमाने से अपनी पूर्व संरचना को प्राप्त कर लेता है (चित्र 5.20)।
- सममिति केन्द्र (Centre of symmetry) किसी वस्तु के लिए सममिति केन्द्र वह काल्पनिक बिन्द है जिसके दोनों ओर खींची गयी रेखा समान दूरी पर वस्तु के समान बिन्दुओं को स्पर्श करती है। उदाहरण के लिए, एक घन के बीचों-बीच में जो बिन्दु होगा वह सममिति अक्ष होगा। चित्र 21 में बिन्दु C इस घन का सममिति केन्द्र है जिसके दोनों ओर सरल रेखाएं खींचने पर वे समान दूरी पर क्रिस्टल की सतह को स्पर्श करती हैं। किसी क्रिस्टल में सममिति केन्द्र केवल एक ही होता है क्योंकि ऐसा बिन्दु तो पूरे क्रिस्टल में एक ही होगा।
क्रिस्टल समुदाय (CRYSTAL SYSTEMS)
उपर्यक्त सममिति तत्वों में हमने देखा कि एक घनीय क्रिस्टल (Cubic crystan में निम्न प्रकार से कुल मिलाकर 23 सममिति तत्व हैं
- सममिति तल (Planes of Symmetry) =3+6=9
- सममिति अक्ष (Axes of Symmetry) =3+4+6 = 13
- सममिति केन्द्र (Centre of Symmetry) =1
सममिति तत्वों की कुल संख्या (Total number of Symmetry Elements) =9+13+1=23
किसी अन्य प्रकार के क्रिस्टल में भी उपर्युक्त तीन प्रकार के ही सममिति तत्व होंगे किन्तु उनकी संख्या एवं वितरण भिन्न-भिन्न प्रकार से होगा। एफ.सी. हेसल (F.C. Hessel) ने 1830 में । बताया कि किसी क्रिस्टल में सैद्धान्तिक रूप से कुल मिलाकर 32 सममिति तत्व सम्भव हैं, इन्हें हम 32बिन्दु समूह (Point groups) अथवा32 समुदाय(systems) कहते हैं। किसी एक बिन्दु से जितने भी प्रकार के सममिति तत्व वितरित किये जा सकते हों वे इन 32 बिन्दु समूहों द्वारा परिभाषित किये जा सकते हैं। इन 32 समूहों को ध्यान में रखते हुए समान अक्ष तथा उनके मध्य के समान कोण वाले क्रिस्टलों को एक वर्ग का मानकर, क्रिस्टलों का वर्गीकरण सात वर्गो (seven | categories) में किया गया है जिन्हें क्रिस्टल के सात समुदाय कहा जाता है। इन सातों क्रिस्टल समुदायों (crystal systems) का वर्णन करने से पहले हम उस परिपाटी (conven- tion) का उल्लेख करेंगे जिसमें इन क्रिस्टलों का वर्णन किया जाता है। स्थान(space) के तीनों अक्षों को क्रिस्टलों में हम क्रिस्टलीय अक्षों (crystalline axes) के नाम से पुकारते हैं। सभी क्रिस्टलीय अक्ष एक बिन्दु पर प्रतिच्छेद (intersect) करते हैं जिसे हम मूलबिन्दु(origin) कहते हैं। दो क्रिस्टलीय अक्षों के बीच के कोण कोअन्तरअक्षीय कोण (Interaxial angle) कहते है। z-अक्ष जो कि क्रिस्टल में खड़ी या उदग्र अक्ष होती है उसे हम ‘C’ अक्ष तथा उस अक्ष की भुजा को हम ‘C’ भुजा कहते है। इसी प्रकार y-अक्ष अर्थात् बायें हाथ से दायें हाथ की ओर जाने वाली अक्ष को ‘b’ क्रिस्टलीय अक्ष व इस ओर जाने वाली भुजा को ‘b’ भजा. तथा सामने से पीछे की ओर जाने वाली x-अक्ष को हम क्रिस्टल में अश २स कक्ष का आर जाने वाली भजा को ‘a’ भजा कहते हैं। इसी प्रकार हम ताना अन्तरअक्षीय कोणों को गीत अक्षर ऐल्फा (a), बीटा (B) व गामा (1) कहकर पुकारते हैं। bc अक्षों के मध्य का कोण (boc) a, ac अक्षों क मध्य का कोण (aoc) B तथाab अक्षों के मध्य का कोण (aob) Y कोण कहलाता है। क्रिस्टल समुदायों में हम इसा परिपाटी का उपयोग करते हुए क्रिस्टल की भजाओं एवं कोणों का नामकरण करते हैं। अब हम सालों क्रिस्टल समुदायों का संक्षिप्त विवरण देंगे
(1).घनीय क्रिस्टल समदाय (Cubic crystal system) : इस समुदाय में वे क्रिस्टल आते हैं जिनकी तीनों अक्षों की तीनों भुजाएं परस्पर समान होती हैं तथा प्रत्येक अन्तरअक्षीय कोण (Interaxial angle) 90° का होता है। NaCl, KCI, हीरा, ZnS, CaF2 , आदि में इस प्रकार की क्रिस्टल व्यवस्था होती है, इसे चित्र 5.23 द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।
यह क्रिस्टल समुदाय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसमें तीन प्रकार की आन्तरिक संरचनाएं सम्भव हैं—क्रमशः। सरल घन, कायकेन्द्रित घन और फलककेन्द्रित घन। इनकी संरचना को निम्न चित्रों द्वारा दर्शाया जा सकता है:
(2).चतुष्कोणीय क्रिस्टल समुदाय (Tetragonal crystal system) : इस समुदाय में आने वाले क्रिस्टल के दो अक्षों पर की भुजाएं तो समान होती हैं किन्तु तीसरे लम्बवत् अक्ष की भुजा कुछ अधिक लम्बी होती है। तीनों अन्तरअक्षीय कोण परस्पर समान व समकोण अर्थात् 90° मान वाले होते हैं (चित्र 5.27)। टिन, TiO2, SnO2, यूरिया, आदि में इस प्रकार की क्रिस्टल संरचना पायी जाती है।
(3) विषमलम्बाक्ष क्रिस्टल समुदाय (Orthorhombic crystal system) — इस समुदाय के क्रिस्टलों में तीनों अक्षों की भूजाओं के मान भिन्न-भिन्न हात है। अलबत्ता अन्तरअक्षीण कोण तीनों बराबर एवं 90° के होते हैं (चित्र 5.28)| KNO3, BasO4, a-S, आदि में इसी समुदाय की क्रिस्टल संरचनाएं पायी जाती है।
(4) एकनताक्ष क्रिस्टल समुदाय (Monoclinic crystal system) – इस क्रिस्टल समुदाय में तीनों अक्षों समीनों भजाओं का मान अलग-अलग होता है। अन्तरअक्षीय कोण भी दो तो समान व 90° के होते हैं कित तीसरा कोण 90° का नहीं होता है (चित्र 5.29)। इस प्रकार की क्रिस्टल संरचना जिप्सम Caso.2HO. K2Mg(SO4)2.6H2O में पायी जाती है।
(5) त्रिकोणीय क्रिस्टल समुदाय (Trigonal or Rhombohedral crystalssy (Ingonal or Rhombohedral crystal system) – इस समुदाय क किस्टलों में तीनो अक्षों की भुजाएं समान होती हैं और तीनों अन्तरअक्षीय कोण भा समान ह और तीनों अन्तरअक्षीय कोण भी समान होते हैं, किन्तु उन तीनो कोणों का मान 90° नहीं होता है (चित्र 5.300। इस प्रकार की क्रिस्टल संरचना कल्साइट, क्वाटण” CaCO3, NaNO3 आदि में पायी जाती है।
(6) षट्कोणीय क्रिस्टल समुदाय (Hexagonal crystal system) – इस समुदा अक्षा का भुजाएaab तो समान होती हैं किन्त तीसरे अक्ष की भजा इन दोनों भुजाओं से अलग हाता है। इसी प्रकार दा अन्तरअक्षीय कोण व तो समान होते हैं तथा दोनों 90 के कोण होते हैं किन्त तासरा काणY, 120 का होता है (चित्र 5.31)| बर्फ. ग्रेफाइट HgS.Mg. zn. Cd. आदि में उपयुक्त प्रकार की क्रिस्टल संरचना पायी जाती है।
(7) त्रिनताक्ष क्रिस्टल समुदाय (Triclinic crystal system) – इस प्रकार की क्रिस्टल संरचना में तीनों अक्षों की तीनों भजाएं असमान होती है। तीनों ही अन्तरअक्षीय कोण भिन्न-भिन्न होते हैं और उनमें भी 90° का कोण नहीं होता (चित्र 5.32)| K2Cr207, CuSO4.5H2O, HJBO3, आदि में इसी प्रकार की क्रिस्टल संरचना पायी जाती है।
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