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लैम्पब्रश गुणसूत्र (Lampbrush Chromosome in hindi) , पॉलीटीन गुणसूत्र (polytene chromosome in hindi)

जानेंगे लैम्पब्रश गुणसूत्र क्या है (Lampbrush Chromosome in hindi) , पॉलीटीन गुणसूत्र (polytene chromosome in hindi) ?

 लैम्पब्रश गुणसूत्र (Lampbrush Chrosomes) तथा पॉलीटीन गुणसूत्र (Polytene Chrosomes):

कुछ यूकैरियोटिक जीवों की कोशिकाओं में विशेष प्रकार के गुणसूत्र पाये जाते हैं जिनकी संरचना भी विशिष्ट होती है, इन्हें लैम्पब्रश व पॉलीटीन गुणसूत्रों के नाम से जाना जाता है । जिन कोशिकाओं में ये गुणसूत्र पाये जाते हैं, उन कोशिकाओं के लिए इनकी उपस्थिति बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है। विभिन्न कोशिका आनुवंशिक गुत्थियों को सुलझाने में इन गुणसूत्रों का अधिक योगदान रहा है। इनकी संरचना व कार्य निम्नानुसार वर्णित है-

(a) लैम्पब्रश गुणसूत्र (Lampbrush Chromosome) :

इस प्रकार के गुणसूत्र उन कोशिकाओं में पाये जाते हैं जिनमें RNA का संश्लेषण बहुत अधिक होता है तथा कोशिकाद्रव्य व केन्द्रक द्रव्य का आयतन बढ़ जाता है। इन गुणसूत्रों की खोज सर्वप्रथम सन् 1892 में रूकर्ट (Ruckert) नामक वैज्ञानिक ने की। ये मुख्य रूप से कशेरूकी जीव, जैसे-पक्षियों, मछलियों, रेंगने वाले जन्तुओं, एम्फीबियन्स व इकाइनोडर्म्स आदि जन्तुओं की उसाईट (Oocytes) कोशिकाओं व कुछ अकशेरूकियों में पाये जाते हैं। इनकी संरचना का विस्तृत अध्ययन एम्फीबियन्स की उसाईट्स (कोशिकाओं) में अर्धसूत्रण की डिप्लोटीन प्रावस्था के दौरान तथा ड्रोसोफिला की स्पर्मेटोसाइट्स में किया गया है। कोशिका विभाजन के समय इन गुणसूत्रों की संरचना में परिवर्तन व आकार में बहुत अधिक वृद्धि होना, इनका लाक्षणिक गुण है। यूरोडेलिज गण के एम्फीबियन्स में इनका अधिकतम आकार 1000pm तक पहुँच जाता है

संरचना एवं कार्य (Morphology and Functions) :

प्रत्येक लैम्पब्रश गुणसूत्र एक मुख्य अक्ष का बना होता है जिसमें दो क्रोमेटिड्स होते हैं। मुख्य अक्ष पर अधिक घनत्व वाले कण पंक्ति में व्यवस्थित होते हैं । इन्हें क्रोमोमीयर्स कहते हैं, ये आपस में एक अत्यन्त पतले, अक्षीय तन्तु द्वारा जुड़े रहते हैं । इन क्रोमोमीयर्स से जोड़ों में (pairs) कम घनत्व वाले पार्श्वीय लूप निकलते हैं । एक क्रोमोमीयर से लगभग 1-9 लूप के जोड़े निकल सकते हैं। इन लूप जोड़ों की उपस्थिति के कारण ही इन्हें लैम्पब्रश गुणसूत्र कहते हैं। लूप की परासंरचना में एक पतली अक्ष दिखाई देती है जो कि एक द्विरज्जुकी DNA स्टैण्ड (केवल 5%) होती है। इससे तन्तु बाहर निकलते हैं जो कि RNA व प्रोटीन से मिलकर बने लूप मैट्रिक्स से ढके रहते हैं (चित्र 3. 19 ) । अर्धसूत्री विभाजन की प्रावस्थाओं में लूप जोड़ों का नम्बर बढ़ता जाता है, जब तक कि डिप्लोटीन प्रावस्था नहीं आ जाती है। अत: इस प्रावस्था में लूप जोड़ों की संख्या अधिकतम हो जाती है। इसके बाद की अवस्थाओं में लूपों की संख्या घटती जाती है तथा अन्त में लूप अदृश्य हो जाते हैं । लूप गुणसूत्रों के विस्तारित (Extended) क्षेत्र हैं जो कि मुख्य रूप से ऊसाइट कोशिकाओं में बहुत अधिक मात्रा में mRNA का संश्लेषण करते हैं, जिससे भ्रूण निर्माण के समय पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन का संश्लेषण हो सके ।

(b) पॉलीटीन गुणसूत्र (Polytene Chromosomes) :

पॉलीटीन गुणसूत्र स्थूलकाय गुणसूत्र ( Giant chromosomes ) भी कहलाते हैं, जो कि डिप्टेरॉन लार्वी (Dipteron larvae) की लार ग्रंथी कोशिकाओं में पाये जाते हैं। ये अन्य जन्तु कोशिकाओं, जैसे- आँतों की एपीथिलियल कोशिकाओं, वसा काय व मेलपीघियन नलिकाओं (Malplghian tubules) आदि में भी पाये जाते हैं । इन्हें सर्वप्रथम सन् 1881 में ई. जी. बालबियानी (E. G. Balbiani) ने काइरोनोमॉस (Chironomous ) लार्वा की लार ग्रंथी कोशिकाओं में देखा। पॉलीटीन गुणसूत्र अत्यन्त विशिष्ट प्रकार के गुणसूत्र होते हैं जो कि कोशिका विभाजन चक्र की अन्तरावस्था (Interphase) में दिखाई देते हैं जब समसूत्री विभाजन पूर्ण हो चुका होता है। इनके मुख्य लक्षण – (1) समसूत्री अथवा अर्धसूत्री विभाजन की अवस्था में दिखाई देने वाले एक सामान्य गुणसूत्र की अपेक्षा इनका आकार लगभग 300 गुणा तक बढ़ जाता है, (2) क्योंकि लार ग्रन्थियों की कायिक कोशिकाओं (Somatic cells) में ये गुणसूत्र जोड़ों (pairs) के रूप में पाये जाते हैं। अतः सामान्य कायिक कोशिकाओं में इनकी संख्या की अपेक्षा ये आधी संख्या में प्रदर्शित होते हैं ।

चित्र 3.19 : लैम्पब्रश गुणसूत्र : A. पार्श्वीय लूप जोड़े सहित, B. एक भाग आवर्धित, C. एक लूप जोड़ा आवर्धित

संरचना एवं कार्य (Morphology & Functions) :

संरचनात्मक दृष्टि से पॉलीटीन गुणसूत्र, सूत्रों द्वारा निर्मित एक गट्ठर (Bundle) के रूप में दिखाई देते हैं जिनका निर्माण बिना कोशिका विभाजन के, क्रोमेटिड सूत्र के बारम्बार अतः द्विगुणन होने से होता है। परिणामस्वरूप प्रत्येक गुणसूत्र में क्रामोनिमेटा की संख्या निरन्तर बढ़ती जाती है। इस बढ़ोतरी में क्रोमोनिमेटा की संख्या 2000 तक अथवा इससे भी अधिक हो सकती है। इसलिए ये गुणसूत्र कहलाते हैं ।

‘गुणसूत्र इन गुणसूत्रों की परासंरचना के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इनमें दो प्रकार पॉलीटीन

अनुप्रस्थ, एकान्तरित बेन्ड्स (Bands ) – ( 1 ) गहरे बैन्ड्स (Dark bands ) हिटरोक्रोमेटिक भाग, (2) हल्के इन्टर बैन्ड्स (Light inter bands ) यूक्रोमिट भाग पाये जाते हैं। गहरे बैन्ड्स वाले भाग में RNA की मात्रा क्रोमेटिन संरचना व क्रोमेटिन संगठन कम तथा DNA अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके विपरीत हल्के इन्टर बैन्ड्स वाले भाग में RNA अधिक मात्रा में तथा DNA बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। गहरे बैन्ड्स वाले क्षेत्र में DNA सूत्र अत्यधिक कुण्डलित व संघनित होता है तथा क्रोमोमीयर्स कहलाता है। बाद में किये गये अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ कि गहरे बैन्ड्स बहुजीनी (Polygenic) क्षेत्र हैं तथा ये औसतन 30.000 क्षारक जोड़ों द्वारा निर्मित होते हैं जबकि इन्टरबैन्ड वाले भाग में DNA मूत्र एक-दूसरे से समानान्तर (parallel) होते हैं। कुछ स्थानों पर ये इन्टर बैन्ड्स फैलकर विशेष प्रकार की रिंग्स ( Rings) बनाते हैं जिन्हें पफ (Puffs or Swellings) अथवा बालबियानी रिंग्स (Balbiani Rings) कहते हैं (चित्र 3.20 ) । ये रिंग्स बनती व नष्ट हो सकती हैं। पफ बनने की प्रक्रिया जीन अभिव्यक्ति से सम्बन्धित होती है। पफ mRNA संश्लेषण हेतु स्थल होते हैं । ये गुणसूत्र के अकुण्डलित भाग हैं जहाँ सक्रिय रूप से अनुलेखन की क्रिया होती रहती है।

चित्र 3.20 : पॉलीटीन गुणसूत्र भाग बैण्ड, इन्टरबैण्ड व पफ प्रदर्शित

ड्रोसोफिला मेलेनोगेस्टर में पॉलीटीन गुणसूत्र 5 लम्बे व एक छोटे स्टैण्ड्स अथवा भुजाओं से मिलकर बना होता है जो कि एक क्रोमोसेन्टर से निकलती है। क्रोमोसेन्टर का निर्माण इन गुणसूत्रों के सेन्ट्रोमीयर्स के आपस में जुड़ जाने से होता है। 5 स्टैण्ड्स में से एक स्टैण्ड X गुणसूत्र को प्रदर्शित करती है तथा शेष 4 स्टैण्ड्स II व III गुणसूत्रों की भुजाओं को प्रदर्शित करते हैं। नर मक्खी में Y गुणसूत्र भी उपस्थित होता है जो कि क्रोमोसेन्टर के साथ जुड़ जाता है तथा अलग स्टैण्ड के रूप में दिखाई नहीं देता है। छोटी स्टैण्ड आकार में छोटी, बिन्दुनुमा होती है जो कि IV गुणसूत्र को प्रदर्शित करती है (चित्र 3.21 ) ।

स्थलान्तरणशील आनुवांशिक तत्त्व (Transposable Genetic Elements)—

विशिष्ट DNA खण्डों में पाई जाती हैं, जिनमें न्यूक्लिओटाइड अनुक्रमों की समजात प्रवृत्ति या तो बहुत कम होती सजीवों की कोशिकाओं में अनेक प्रकार की अवैध पुनर्योजन (Ilegitmate Recombination) क्रियाएँ है या नहीं पाई जाती। उपरोक्त पुनर्योजनों के परिणामस्वरूप ये DNA खण्ड (असमजात) आपस में जुड़ जाते हैं। ऐसी पुनर्योजन क्रियाएं आनुवांशिक सूचनाओं के संगठन एवं जीन अभिव्यक्ति के नियमन में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। अतः स्थलान्तरण शील आनुवांशिक तत्त्व (TGE) अर्थात् विजातीय (DNA) खण्ड अवैध पुनर्योजनों का सबसे बड़ा कारण हैं।

ऐसे विजातीय DNA खण्ड जो संरचना एवं आनुवांशिकी में एक-दूसरे से पूर्णतया भिन्न हों एवं एक गुणसूत्र के एक विस्थल से दूसरे विस्थल में या एक गुणसूत्र से दूसरे असमजात गुणसूत्र में गति कर सकते हैं, उनको स्थलान्तरणशील आनुवांशिक तत्त्व (Transposbale Genetic Elements) कहते हैं। ये विभिन्न उत्परिवर्तनों का मुख्य कारण होते हैं।

प्रकृति में इस प्रकार के DNA खण्डों को जीनोम में एक से अधिक या कई स्थानों पर जोड़ा (Insert) जा सकता है। ये DNA खण्ड (TGE) गुणसूत्र के जिस स्थान पर निवेशित होते हैं अथवा जुड़ते हैं, वहाँ की जीन्स को प्रभावित कर उनको निष्क्रिय कर देते हैं। इनके द्वारा गुणसूत्रों में विसंगतियाँ (Chromosomal aberrations) भी उत्पन्न होती हुई देखी जा सकती हैं।

स्थलांतरणशील विजातीय DNA खण्डों (TGE) को प्रोकेरियोट्स में जीवाणुभोजी (Phage) एवं जीवाणुओं, निम्न वर्गीय यूकेरियोट्स में कवक तथा जन्तुओं में, कीटों में खोजा गया है। स्थलान्तरणशील तत्त्वों की विशिष्टताएँ (Characteristics of Transposable Genetic Elements)

  1. इनका निवेशन एक गुणसूत्र में एक स्थिति से दूसरी स्थिति पर हो सकता है।

ये दूसरे असमजात गूणसूत्र पर भी DNA खण्ड के रूप में जुड़ सकते हैं।

इनके स्थलान्तरण के समय एक DNA खण्ड (Gene) या गुणसूत्र, खण्ड के रूप में स्थानान्तरित होते हैं तथा दूसरे विस्थल पर जुड़ते या निवेशित होते हैं । जुड़ने (Insertion) के पश्चात् ये DNA खण्ड उस स्थान के जीनों को प्रभावित करते हैं एवं इस प्रकार के गुणसूत्रों पर संरचनात्मक परिवर्तन उत्पन्न करते हैं । स्थालान्तरण शील तत्वों (TGE) से उत्पन्न परिवर्तन स्थायी नहीं होते, अपितु ये वापस पूर्वावस्था के लक्षण भी प्रकट कर सकते हैं।

DNA खण्डों में स्थालान्तरण, एक विशेष एन्ज़ाइम ट्रान्सपोसेज (Transposase) द्वारा अभिप्रेरित होता है।

ट्रान्सपोजेबल तत्त्व (TGE) केवल सजीव की कायिक कोशिकाओं में ही निवेशित होकर उत्परिवर्तन (Mutation) उत्पन्न करते हैं, अन्य किसी कोशिका में नहीं ।

किसी ग्राही गुणसूत्र खण्ड पर निवेशित होने से पहले ट्रांसपोजेबल DNA खण्ड का पहले प्रतिकृतिकरण (Replication) होता है।

विभिन्न पादप प्रजातियों में ट्रान्सपोजेबल आनुवांशिक तत्त्वों या ट्रान्सपोसोन्स की उपस्थिति को लक्षण प्ररूप (Phenotype) के द्वारा पहचाना जा सकता है, जैसे-मक्का के भुट्टे में चितकबरे

धब्बे । (Transposons) में एक ही क्योंकि स्थलान्तरण शील आनुवांशिक DNA खण्डों या ट्रांसपोसोन्स गुणसूत्र पर दूसरी स्थिति में या एक गुणसूत्र से दूसरे असमजात गुणसूत्र में गतिशील (Mobile) होने का अनूठा लक्षण पाया जाता है, अतः इनको जम्पिंग जीन्स ( Jumping Genes) भी कहते हैं ।

क्रोमेटिन संरचना व क्रोमेटिन संगठन

प्रायः स्थलान्तरणशील तत्त्व दो प्रकार के पाये जाते हैं-

(1) निवेशन अनुक्रम (Insertion Seuquences)

(2) ट्रान्सपोसोंस (Transposons)

(1) निवेशन अनुक्रम (Insertion Sequence) या प्रोकेरियोट्स के ट्रान्सपोजेबल तत्त्व – ये स्थलान्तरणशील तत्त्व DNA के छोटे खण्ड होते हैं, जो 800 से 1400 क्षारक युग्मों (Base pairs) द्वारा बने होते हैं, एवं प्रोकेरियोट्स जैसे जीवाणुओं तथा वाइरसों में पाये जाते हैं। इन DNA खण्डों को IS तत्त्व या निवेशन अनुक्रम तत्त्व (Insertion sequence elements) भी कहते हैं । ये निवेशन अनुक्रम जीवाणुओं जैसे- ई. कोलाई (E. Coli) में संरचनात्मक जीन या नियामक जीन के साथ निवेशित होकर अवैध पुनर्योजन (Illegitimate recombination) अथवा उत्परिवर्तन (Mutation) को प्रोत्साहित करते हैं (चित्र 3.22 व 3.23)। इनके निवेशन के परिणामस्वरूप ई. कोलाई कोशिका में गुणसूत्र के क्षारक युग्मों में परिवर्तन आ जाता है। ऐसा समझा जाता है कि ये जीवाणु गुणसूत्र में अधिकाय (Episome अर्थात् मुख्य वर्तुलाकार जीवाणु DNA से जुड़ा हुआ दू DNA खण्ड) के समाकलन में भाग लेते हैं। इस प्रकार के IS तत्त्व जीवाणु कोशिकाओं के F, Ft एवं R इपीसोम्स में पाये जाते हैं।

प्लाज्मिड को पोषक कोशिका के गुणसूत्र के साथ समाकलित करने में Is तत्त्वों की विशेष भूमिका होती है । जब ये प्लाज्मिड पोषक कोशिका के गुणसूत्र के साथ जुड़ जाते हैं अथवा समाकलित हो जाते हैं (इपीसोम) तो समाकलन के बाद ये गुणसूत्र से जुड़ाव के स्थान पर द्विगुणन को दोषपूर्ण या अनियमित कर देते हैं (चित्र 3.24)। अभी तक ई. कोलाई (E. Coli) में चार प्रकार के Is तत्त्वों की खोज की गई है। ये निम्न प्रकार से हैं-

  1. Is – 768 क्षारक युग्म, 8 प्रतियाँ प्रत्येक जीनोम में ।
  2. Is – 1327 क्षारक युग्म, 5 प्रतियाँ प्रत्येक जीनोम में ।
  3. Is • 1300 क्षारक युग्म, एक या अधिक प्रतियाँ ।
  4. Isa – 1400 क्षारक युग्म, एक या अधिक प्रतियाँ |

इसके अतिरिक्त एक अन्य जीवाणु प्रजाति सालमोनैला टाइफीम्यूरियम (Salmonella typhimurium) में S, तो मिलता है, परन्तु IS, नहीं पाया जाता।

यूकेरियोट्स में स्थलान्तरण शील आनुवांशिक तत्त्व (Transposable elements in eukaryotes)—

यूकेरियोट्स जैसे-ड्रोसोफिला, चूहों तथा यीस्ट में पाये जाने वाले ट्रान्सपोसोन्स वैसे तो अपनी संरचना में प्रोकेरियोट्स में समानता प्रदर्शित करते हैं, लेकिन फिर भी इनके समाकलन एवं अभिव्यक्ति में कुछ भिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं । अतः यूकेरियोट्स में उपस्थित स्थालान्तरणशील तत्त्व निम्न प्रकार के पाये जाते हैं-

चूहों, ड्रोसोफिला (Drosophila) एवं यीस्ट (Yeast) की कोशिकाओं में मिलने वाले सीधे लम्बे अन्तस्थ तत्त्व (Transposon having direct long terminal repeats) यीस्ट में इनको Ty स्थलान्तरणशील तत्त्व ( Ty elements) भी कहते हैं ।

ड्रोसोफिला मेलेनोगास्टर (Drosophila melanogaster) में मिलने वाले सिरे पर स्थित विपरीत लम्बे अन्तस्थल स्थलान्तरणशील तत्त्व या ट्रांसपोसोन, ड्रोसोफिला में विशेष प्रकार के TC एवं FB ट्रान्सपोसोन पाये जाते हैं (Transposons having Inverted long Terminal Repeats)।

सिरे पर अवस्थित विपरीत एवं छोटे अन्तस्थ स्थलान्तरणशील तत्त्व या ट्रांसपोसोन (Transposons having Inverted, Short terminal Repeats), ड्रोसोफिला मेलेनोगास्टर के p व 1 खण्ड, मक्का के Ac/Ds खण्ड तथा सीनोरहेब्डाइटिस एलीगेन्स नामक निमेटोड (Nematode) कृमि के Tc तत्त्व इसी प्रकार के स्थान्तरणशील तत्त्वों (Transposons) की श्रेणी में आते हैं। वे स्थलान्तरणशील तत्त्व जिनमें अन्तस्थ सिरे नहीं पाये जाते या अन्तःस्थ सिरों विहीन ट्रांसपोसोन (Transposon without terminal repeats) — इस प्रकार के ट्रान्सपोसोन प्रायः स्तनधारी प्राणियों (Mammals) में पाये जाते हैं एवं इनको अलू (Alu) तत्त्व भी कहते हैं। यीस्ट के Ty तत्त्व जो ट्रांसपोसोन्स के सिरों से सीधे जुड़ते हैं अथवा निवेशित होते हैं । इनका जुड़ाव पोषक कोशिका के गुणसूत्र पर 5 क्षारक युग्मों के ट्रान्सपोसोन के निवेशन के रूप में होता है एवं परिणामस्वरूप कोशिका के पोषक गुणसूत्र में उत्परिवर्तन उत्पन्न हो जाते हैं । उपरोक्त सीधे निवेशन अनुक्रमों (Direct sequence) को डेल्टा (8) अनुक्रम भी कहते हैं। एक Ty तत्त्व डेल्टा (8) की संख्या लगभग 100 तक हो सकती है एवं एक यीस्ट कोशिका में लगभग 35 की संख्या तक Ty तत्त्व पाये जाते हैं ।

मक्का के Ac/Ds नियन्त्रक तत्त्व (Ac/Ds Controlling elements of Corn)—

ये तत्त्व मक्का में एक विशेष Ac कारक की उपस्थिति में मक्का के गुणसूत्रों पर Ds तत्त्वों का निवेशन करते हैं। Ac तत्त्व के द्वारा स्थलान्तरण (Transposition) के लिये उत्तरदायी एक विशेष एन्जाइम ट्रान्सपोसेस (Transposase) का निर्माण होता है। इस एन्जाइम में प्रतिलोमी पुनरावृत्त अनुक्रम ( Inverted repeated _sequence) को पहचानने की क्षमता होती है एवं ये गुणसूत्र पर उलटे क्रमों (Repeated reverse sequences) पर स्थित होते हैं। गुणसूत्र पर निवेशित स्थान पर Ds तत्त्व का निवेश करने से रुकावट (Break) आ जाती है। इस

रुकावट की वजह से पुनर्योजन के दौरान गुणसूत्र की संरचना में परिवर्तन आ जाता है एवं वर्णकों का है। इसे करने वाले कुछ जीन विलुप्त हो जाते हैं। यह प्रक्रिया नितान्त एवं पूर्णतया अस्थायी होती है, उसका उल्टा होने अर्थात् रुकावट के हटने पर फिर से, वर्णकों के उत्पादन करने की क्षमता लौट आती है। इसके परिणामस्वरूप मक्का में भुट्टों (Kernels) की रंजकता या भुट्टों के दानों के रंगों में भिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं व भुट्टे चितकबरे (Variegated) दिखाई पड़ते हैं।

बारबरा मेक्लिन्टोक द्वारा मक्का पर नियन्त्रण तत्त्वों का अध्ययन (Barbara Me clintock’s experiments)—

आजकल यद्यपि ट्रांसपोसोनों के बारे में अधिकांश अध्ययन, प्रोकेरियोट जीवों में ही किया जा रहा है, परन्तु फिर भी उच्चवर्गीय पौधों में सर्वप्रथम बारबरा मेक्लिन्टोक (Barbatra Me clintock) नामक महिला वैज्ञानिक द्वारा सन् 1950 में नियंत्रक या स्थलान्तरणशील तत्त्वों को मक्का में प्रदर्शित किया गया। मेक्लिन्टोक के अनुसार कुछ उत्परिवर्तनीय जीन (Mutable genes) अपने मूल प्रारूप एवं प्रकृति से हट कर असामान्य व्यवहार करते हैं, ऐसा उनमें कुछ विशेष प्रकार के आनुवांशिक तत्त्वों द्वारा प्रभावित होने के कारण होता है। इस प्रकार उत्परिवर्तनीय जीनों को प्रभावित करने वाले आनुवांशिक तत्त्वों को नियंत्रक तत्त्व या स्थलान्तरणशील तत्त्व (Transposable elements) कहते हैं ।

मैक्लिन्टोक ने मक्का (Indian Corn) पर किये गये अपने अध्ययनों के आधार पर यह बताया, एक गुणसूत्र पर उपस्थित नियंत्रण तत्त्व सदैव स्थिर नहीं होते तथा जीन एक गुणसूत्र से दूसरे गुणसूत्र में गति कर सकते हैं। उनके द्वारा मक्के के दानों में रंग परिवर्तन को नियन्त्रित करने के लिये वर्णक जीन उत्तरदायी होते हैं। ये जीन रंग परिवर्तन को विलोपित (Switch off) या प्रकट (On) कर सकते हैं। मेक्लिन्टोक ने यह भी बताया कि मक्का में पाये जाने वाले नियंत्रक तत्त्व वस्तुतः दो तत्त्वों से मिलकर नियंत्रक तंत्र (Controlling system) का गठन करते हैं, जिसे Ac – Ds तन्त्र (Ac -Ds System) या सक्रियकवियोजन तन्त्र ( Activator-dissosiator system) कहते हैं। दूसरे शब्दों में इस तंत्र में उपस्थित जीनों को हम सक्रियक एवं वियोजक जीन कह सकते हैं। इनमें से सक्रियक जीन (Ac), एक वियोजन जीन (Ds) के मक्के के नवें गुणसूत्र की भुजाओं पर गतिशील होने या उछलने के या जम्प (Jump) करने के लिये निर्देशित करता है, इस विस्थल पर वर्णक परिवर्तन का नियमन होता है । इस उछलने वाले जीन अथवा ट्रान्सपोसोन को जम्पिंग जीन (Jumping Gene) कहा जाता है।

मक्का के Ac-Ds तन्त्र में वियोजक जीन Ds नवें गुणसूत्र पर सरंचनात्मक जीन C के पास अवस्थित होता है । यह संरचनात्मक जीन C, रंग उत्पन्न करने के लिये जिम्मेदार होता है, जिससे रंगीन भुट्टे (Kernels) उत्पन्न होते हैं । परन्तु वियोजक तन्त्र Ds की उपस्थिति में C का कार्य अपहासित हो जाता है या जब ( Suppress) हो जाता है, जिसके कारण रंजकहीन भुट्टे (Colourless kernels) उत्पन्न होते हैं, जिनके दाने सफेद रंग के होते हैं। जैसे ही इस विस्थल पर सक्रियक जीन Ac उपस्थित होता है जो जीन Ac की उपस्थिति में Ds अन्य स्थान पर चला जाता है अर्थात् इसका स्थलान्तरण (Transposition) हो जाता है। इस प्रकार सक्रियक जीन Ac के द्वारा Ds को प्रतिस्थापित करके C के दबाव को हटा दिया जाता है एवं C. पुनः सक्रिय या कार्यशील अवस्था में आ जाती है । मक्के के भुट्टे (Kernel) की प्रारम्भिक अवस्थाओं में यदि Ds तत्त्व का स्थलान्तरण होता है तो भुट्टे के रंग में, रंगहीन पृष्ठभूमि पर रंगीन धब्बा पाया जाता है लेकिन यदि भुट्टे के विकास की उत्तरवर्ती या बाद की अवस्थाओं में Ds का स्थलान्तरण होता है तो भुट्टे में एक छोटा सा धब्बा पैदा होता है। इसी कारण मक्का के भुट्टे में दानों के रंग की विविधताएँ देखी जाती हैं।

चित्र 3.26 : Ds तत्त्वों के सक्रियण (Activation) में Ac तत्त्वों का योगदान

यही नहीं अन्य जीवों में भी Ac-Ds (सक्रियक- वियोजक) स्थलान्तरणशील तत्त्वों के द्वारा इनकी कार्यप्रणाली का नियमन किया जाता है। इस प्रकार के स्थलान्तरणशील तत्त्वों की जानकारी मक्का के अतिरिक्त, चूहों, ड्रोसोफिला, मनुष्यों एवं अन्य यूकेरियोटिक जीवों में भी मिली है मक्का में किये गये ट्रांसपोन्स के अध्ययन कार्य के आधार पर मेक्लिनटोंक को सन् 1963 में नोबल पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया था। मक्का (Zea mays) Ac -Ds स्थलान्तरणशील तत्त्वों (Transposons) की कार्य प्रणाली को चित्रों (3.25, 3.26 व 3.27) के.

माध्यम से निम्न प्रकार समझा जा सकता है-

  • Ac व Ds दोनों ही स्थलान्तरणशील तत्त्व (Transposable elements) संरचनात्मक रूप से लगभग समान होते हैं एवं इनकी उपस्थिति गुणसूत्र के किसी भी विस्थल पर देखी जा सकती है लेकिन मक्का के गुणसूत्र में ये एक से अधिक पाये जाते हैं। ये दोनों तत्त्व अर्थात् Ac या Ds गुणसूत्र के किसी भी विस्थल पर जोड़े या निवेशित ( Insert ) किये जा सकते हैं। ये विलोमित एवं छोटे पुनरावर्ती अनुक्रमों (Reverse small repeated sequence) द्वारा निवेशित होते हैं।

निवेशित हो जाने के पश्चात ये उस विस्थल (Locus) के जीन की कार्य प्रणाली को पूर्णतया निष्क्रिय कर देते हैं । सम्भवत: इसीलिये मेक्लिन्टेक द्वारा इनको अनुशासक या नियंत्रक तत्त्व (Controlling elements) |

मेक्लिनटोक द्वारा खोजे गये मक्का के Ac – Ds स्थलान्तरणशील तत्त्व ऐसे DNA खण्ड होते हैं, जिनमें प्रतिलोमी (Reverse) अन्तस्थ अनुक्रम (Terminal sequence) पाये जाते हैं एवं प्रत्येक सिरे पर ये प्रतिलोमी अनुक्रम् (Reverse sequence) उपस्थित होते हैं। यूकेरियोट जीवों में उपस्थित Ac-Ds तत्त्व जीनोम के दस प्रतिशत हिस्से में मौजूद रहते हैं। मुख्य रूप से ये तत्त्व कायिक कोशिकाओं (Somatic cells) को ही प्रभावित करते हैं, इसके साथ ही जिस जीन में ये निवेशित ( Insert ) होते हैं, उसकी कार्य प्रणाली पर भी प्रभाव डालते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न उत्परिवर्तन वैसे तो अधिकांशतया अस्थाई प्रकार के होते हैं, लेकिन अक्सर स्थायी उत्परिवर्तन भी विकसित हो सकते हैं ।

चित्र 3.27 : ट्रान्सपोसोन्स में उपस्थित प्रतिलोमी अन्तस्थ पुनरावर्ती अनुक्रम (Repeats) गुणसूत्रों के लक्ष्य विस्थल (Target site) पर लगातार सीधे रिपीट्स का निर्माण कहा गया ।

नीना फेडरॉफ के मक्का के Ac- तत्त्व पर प्रयोग (Experiments Conducted by Neena Federoff on Maize Ac-elements)-

नीना फेडरॉफ द्वारा मक्का में AC तत्त्व के अध्ययन के आधार पर यह तथ्य उभर कर सामने आया कि इस प्रकार के ट्रान्सपोसोन तत्त्वों का गठन दो घटकों क्रमश: A एवं C तत्त्वों द्वारा सम्मिलित रूप से मिलकर होता है। A तत्त्व एक m-RNA के रूप में होता है, जिसमें 807 कोडोन अनुक्रम पाये जाते हैं एवं इस एकमात्र जीन में 5 एक्सोन होते हैं जबकि C तत्त्व 4563 क्षारकों युग्मों द्वारा निर्मित DNA खण्ड है ।

स्थलान्तरणशील तत्त्वों के उपयोग (Uses of Transposable elements)—– इनके प्रमुख उपयोग निम्न प्रकार से हैं-

(1) स्थलान्तरणशील तत्त्व के रूप में प्लाज्मिड के जीन को प्राकृतिक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थान्तरित किया जा सकता है। यह प्रक्रिया कृषि आनुवांशिकी के क्षेत्र में अत्यन्त उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण साबित हुई है । इसके द्वारा जीवाणु एग्रोबेक्टीरियम ट्यूमिफेसियेन्स (Agrobacterium tumefaciens) में मौजूद Ti प्लाज्मिड का सभी प्रकार के आवृतबीजी पौधों में रूपानतरण (Transformation) के लिये उपयोग कृषि के क्षेत्र में इनकी महत्ता (Significance ) का अच्छा उदाहरण है।

(2) इनको विभिन्न जीवाणु प्रभेदों (Strains) की पहचान के लिये आनुवांशिक चिन्हक (Genetic Markers) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार ट्रान्सपोसोन्स की सहायता से वैज्ञानिकों ने मलेरिया रोगकारी सूक्ष्म जीव की पहचान प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है।

(3) ट्रान्सपोसोन्स का उपयोग सहलग्न मानचित्र (Linkage map) को तैयार करने में भी मार्कर (Marker) तौर पर किया जाता है ।

(4) स्थलान्तरणशील तत्त्वों का उपयोग प्राकृतिक स्वतः उत्परिवर्तनों (Spontaneous Mutations) को उत्पन्न करने में भी किया जा सकता है क्योंकि इनको जिस विस्थल पर निवेशित (Insert ) किया जाता है, ये वहाँ की जीन को निष्क्रिय कर देते हैं।

अभ्यास- – प्रश्न

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न अथवा रिक्त स्थानों की पूर्ति

(Very Short answer questions / Fill in the blanks) : 1. ‘गुणसूत्र’ शब्द किस वैज्ञानिक ने दिया ?

  1. गुणसूत्र के अन्तिम सिरों को कहते हैं
  2. गुणसूत्र की संरचनात्मक इकाई क्या होती है ?
  3. लिंग निर्धारण करने वाले गुणसूत्र
  4. गुणसूत्र में सेन्टोमियर का क्या कार्य है ?
  5. गुणसूत्रों की अगुणित संख्या (i)) =)
  6. क्रोमोनिया को सर्वप्रथम परागमातृ काशिका में ने गुणसूत्रों की आणविक संरचना हेतु बलित चन्तु मॉडल दिया।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short answer questions ) :

  1. जीनोम को परिभाषित कीजिए ।
  2. ऐसेन्ट्रिक व होलोसेन्ट्रिक गुणसूत्र क्या होते हैं ?
  3. गुणसूत्रों की अगुणित ( 7 ), द्विगुणित (2n) तथा आधारीय संख्या (x) से क्या तात्पर्य है?
  4. ‘सैटेलाइट बॉडी’ पर टिप्पणी लिखो ।
  5. बालबियानी रिंग पर टिप्पणी लिखिए ।
  6. ट्राँसपोसोन्स को परिभाषित कीजिए ।
  7. स्थलान्तरणशील तत्त्वों की विशिष्टताएँ लिखिए ।
  8. स्थलान्तरणशील तत्त्वों के उपयोग लिखिए ।
  9. निवेशन अनुक्रम (Insertion sequence) पर टिप्पणी लिखिए ।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay type of questions ) :

  1. गुणसूत्रों की आणविक संरचना हेतु वलित तन्तु मॉडल का वर्णन कीजिए ।
  2. लिंग गुणसूत्र क्या होते है ? लिंग निर्धारण की क्रिया विधि को दो उदाहरण सहित बतलाइये।
  3. पोलीटीन गुणसूत्रों की संरचना व कार्यों का वर्णन कीजिए ।
  4. लैम्पब्रश गुणसूत्रों का सचित्र वर्णन कीजिए ।
  5. स्थलान्तरणशील आनुवंशिक तत्त्वों पर निबन्ध लिखिए ।

उत्तरमाला (Answers)

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न / रिक्त स्थानों की पूर्ति :

  1. वॉल्डेयर ने
  2. टीलोमीयर्स
  3. DNA
  4. हिटरोसोम्स
  5. गुणसूत्र गति
  6. एस्केरिस मेगेलोसिफेला
  7. बारानेटकी (Baranetzyke, 1880) ने
  8. Dupraw, 1965