कुचिपुड़ी किस राज्य का नृत्य है kuchipudi is the dance form of which state in hindi किसे कहते है कुचिपुड़ी नृत्य की उत्पत्ति कहां हुई
kuchipudi is the dance form of which state in hindi कुचिपुड़ी किस राज्य का नृत्य है किसे कहते है कुचिपुड़ी नृत्य की उत्पत्ति कहां हुई ?
कुचिपुडी
दक्षिणी भारतीय नत्यों के पुराने रूपों में कुचिपुडी ने अपनी अलग विशेषताएं बनाए रखी हैं और आधुनिक युग में अपनी ओर व्यापक रूप से ध्यान आकृष्ट किया है। इसकी उत्पत्ति प्राचीन काल के नृत्य नाटकों से हुई लेकिन एक अलग नृत्य शैली के रूप में यह भक्ति. आंदोलन के दिनों से चला। भक्तगण भगवान कृष्ण की स्तुति में भजन गाते हुए गांवों में लोगों के बीच घमते थे। कभी-कभी वे लोगों के मन में भक्ति भाव जगाने के लिए संगीत और नाटक के माध्यम से भगवान श्कृष्ण के जीवन की झाांकियां’ प्रस्तुत करते थे। इस प्रकार तमिलनाडु के “भगवत मेला नाटक” की तरह आंध्र देश में एक तरह का नृत्य नाटक बना, जो कुचिपुडी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस नाम का नृत्य के कोई संबंध क्योंकि यह उस स्थान का नाम है जहां यह नृत्य शैली पनपी थी। कृष्णा नदी पर एक गांव कुचेलापुरम था. जी युग से कृष्ण भक्त ब्राह्मण नृत्य-नाटक प्रस्तुत करते आ रहे थे और उसी जगह भक्ति नृत्य की परंपराओं को पर के साथ बनाए रखा गया था। कालांतर में कुचेलापुरम का नाम कुचिपुडी बन गया और वहां यह विशेष नत्य हो इसलिए उसका नाम कुचिपुडी हो गया।
कुचिपुडी नृत्य में भी कुछ भाग हैं जैसे अर्दव जाति, जाति स्वर, तिरमान और तिल्लाना। इस नृत्य में पद. वर्ण और श्लोक भी है। यही सब कुछ भरतनाट्यम में पाया जाता है। लेकिन कुचिपुडी नृत्य की एक अलग विशेष कन्नाकोले” जो दक्षिण भारत के किसी नृत्य में नहीं पाई जाती। इसमें नर्तक के पैर सुर-ताल के साथ बडी तीव्र गति चलते हैं। जैसे ही संगीत शुरू होता है और नृत्य मुखर होने लगता है, नर्तक के पैर ताल के साथ साथ धीरे धीरे तेजी पकड़ने लगते हैं। कन्नाकोले सप्ततील में नर्तक को सात तालों पर नाचना पड़ता है।
कुचिपुडी नृत्य के साथ गाने वालों को संस्कृत और तेलगु भापाओं का ज्ञान होता है। इस नृत्य के साथ कर्नाटक संगीत होता है। नृत्य के बोल बोलने वाले संगीतज्ञ को श्नटुवनार” कहते हैं। अमतौर पर उसकी संगति के लिए एक मृदंग वादक एक क्लेरियोनेट वादक और एक वायलन वादक होता है। नटुवनार स्वयं गाते हुए पीतल के बने झांझ भी बजाता है।
अब यह नृत्य शैली मंदिरों के प्रांगणों से निकल कर खुले और आधुनिक रंगमंच पर आ गई है। वर्तमान शताब्दी में कुचिपुडी नृत्य को प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय “लक्ष्मी नारायण शास्त्री” को है। उन्होंने कुछ उत्साही और निष्ठावान शिष्यों को विशुद्ध प्राचीन शैलियों में प्रशिक्षित किया लेकिन उन्हें, अनुमति दे दी कि वे अपने स्थानीय वातावरण से निकल कर दूर दूर जाकर इस नृत्य के कार्यक्रम प्रस्तुत करें। उनकी एक प्रसिद्ध शिष्या थीं “बाल सरस्वती” जिन्होंने एक नत्यांगना के रूप में बहुत ख्याति प्राप्त की। कुचिपुडी नृत्य के एक और उल्लेखनीय समकालीन कलाकार हैं चिंता कृष्ण मूर्ति जिन्होंने इस नृत्य को लोकप्रिय बनाने के लिए स्थायी संगठनों की स्थापना की है।
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