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क्रेब्स चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक एसिड चक्र क्या है , Kreb’s cycle, tricarboxylic acid (TCA) cycle in hindi

Kreb’s cycle, tricarboxylic acid (TCA) cycle in hindi क्रेब्स चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक एसिड चक्र क्या है ?

क्रेब्स चक्र (ट्राइकार्बोक्सिलिक एसिड चक्र) (Kreb’s cycle, tricarboxylic acid (TCA) cycle)

उपरोक्त अभिक्रिया में बना एसिटाइल CoA अब क्रेब्स चक्र में प्रवेश कर जाता है। इस चक्र की खोज सर हेन्स क्रेन्स (Sir Hans Krebs) ने 1931 में की तथा इस कार्य के लिए उन्हें 1953 में नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। इस चक्र का प्रथम, स्थायी उत्पाद सिट्रिक अम्ल (citric acid) होता है इस लिए इसे सिट्रिक अम्ल चक्र (citric acid cycle) भी कहते हैं। पादप कोशिका में सिट्रिक अम्ल एवं अन्य अम्ल आयन अवस्था में पाये जाते हैं।

(i) सिट्रिक अम्ल का निर्माण (Formation of citric acid)- एसिटाइल – CoA, ऑक्जेलो एसिटिक अम्ल (oxalo acetic acid) (पहले वाली क्रेब्स चक्र से) एवं

जल अणु आपस में अभिक्रिया करके सिट्रिक अम्ल (citric acid) बनाते हैं एवं चित्र- 4: सर हेन्स एडोल्फ क्रेस

कोएन्जाइम – A पुनः प्राप्त हो जाता है।

CH3CO.SCoA + ऑक्जेलोएसिटिक अम्ल + H2O (Acetyl CoA)        ( संघनन विकर) (Condensing enzyme

(Acetyl CoA)                     (Oxaloacetic acid ) ( Water )

सिट्रिक अम्ल + (Citric acid)

कोएन्जाइम ए (CoASH)

(ii) सिट्रिक अम्ल से जल के एक अणु के मुक्त होने से सिस एकोनिटिक अम्ल (cis aconitic acid) बनता है।

सिट्रिक अम्ल (Citric acid)                       → सिस एकोनिटिक अम्ल +       जल

(Aconitase)              (Cis aconitic acid) . ( Water)

(iii) सिस एकोनिटिक अम्ल के जलयोजन (hydration) से आइसोसिट्रिक अम्ल (isocitric acid) बनता है।

सिस एकोनिटिक अम्ल     +             H2O     एकोनिटेज                     → आइसोसिट्रिक अम्ल

(Aconitase)

(Cis aconitic acid)             (Water)                                           (Isocitric acid)

(iv)आइसोसिट्रिक अम्ल से हाइड्रोजन अणु निकल कर NAD+ से अभिक्रिया कर NADH + H* तथा आक्जेलोसक्सिनिक अम्ल (oxalosuccinic acid) बनाते हैं।

आइसोसिट्रिक अम्ल    + NAD + आइसोसिट्रिक डीहाइड्रोजीनेज           आक्जेलोसक्सिनिक अम्ल + NADH* + H*

(Isocitric acid)        अथवा NADP    (Isocitric dehydrogenase) (Oxalosuccinicacid) (अथवा NADP2H)

(v) ऑक्जेलोसक्सिनिक अम्ल के डी कार्बोआक्सिलेशन (decarboxylation) से -कीटोग्लूटारिक अम्ल (a -ketoglutaric) उत्पन्न होता है।

ऑक्जेलोसक्सिनिक अम्ल    कार्बोक्सिलेज        a – कीटोग्लूटारिक अम्ल + CO2

(Carboxylase)    (Oxalosuccinic acid)  (a-Ketogluatric acid)  (Carbondioxide)

(vi) a-कीटोग्लूटारिक अम्ल का ऑक्सिडेटिव डीकार्बोक्सलेशन (oxidative decraboxylation) से सक्सिनायल को एन्जाइम-ए (succinyl CoA) बनता है।

a-कीटोग्लूटारिक अम्ल +NAD+ + CoA. SH डीकार्बोक्सिजीनेज सक्सिनायल S-CoA (Succinyl- CoA)

(a-Ketoglutaric acid)                   a-Ketoglutaric decarboxygenase  + CO2 + NADH +H+

(vii) सक्सिनायल-कोएन्जाइम (succinyl CoA) के हाइड्रोलिसिस (hydrolysis) से सक्सिनिक अम्ल (succinic acid) एवं कोएन्जाइम A (coenzyme A) बनता है। इस अभिक्रिया से मुक्त ऊर्जा गुआनिन डाई- फास्फेट (guanine di-phosphate, GDP) से गुआनिन ट्राई फास्फेट (guanine triphosphate, GTP) बनने में प्रयुक्त हो जाती है।

सक्सिनायल को एन्जाइम – A + GDP + H3PO4 (or Pi+H2O)  सक्सिनाइल को एन्जाइम ए सिन्थटेज → सक्सिनिक अम्ल + GTP + COA SH

(Succinyl CoA )                Succinyl CoA synthetage              (Succinic acid).

(viii) उपरोक्त अभिक्रिया में बना GTP, निम्न प्रकार से ATP उत्पन्न करता हैं।

GTP + ADP → GDP + ATP

(ix) सक्सिनिक अम्ल FAD से अभिक्रिया कर फ्यूमेरिक अम्ल (fumaric acid ) एवं FADH, बनाता है।

सक्सिनिक अम्ल + FAD    सक्सिनिक डीहाइड्रोजीनेज   → फ्यूमेरिक अम्ल + FADH2

(Succinic acid          (Succinic dehydrogenase)     (Fumaric acid)

(x) फ्यूमेरिक अंम्ल जल से क्रिया कर मैलिक अम्ल (malic acid) बनाता है।

(xi) अन्त में मैलिक अम्ल के डीहाइड्रोजीनेशन (dehydrogenation) से NADH+H+ एवं ऑक्जेलोएसिटिक अम्ल (oxalo acetic acid) बनता है जो कि अन्य क्रेब्स चक्र के प्रारम्भ करने में प्रयुक्त हो जाता है। यह एसिटायल कोएन्जाइम –A से क्रिया करता है।

मैलिक अम्ल + NAD+     मैलिक डिहाइड्रोजीनेज        आक्जेलोएसिटिक अम्ल + NADH+H+

(Malic acid)         (Malic dehyrogenase)          (Oxaloaectic acid)

उपरोक्त सभी अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप (i) 2CO2 बनती हैं, (ii) इस चक्र में जल के चार अणु प्रयुक्त होते हैं तथा एक मुक्त होता है। (ii) इस चक्र से मुक्त चार हाइड्रोजन युग्मों में से तीन युग्म NAD+ से ऑक्सिजन तक पहुँचते हैं तथा एक युग्म FAD से ऑक्सीजन तक पहुँचता है। यह 4H2O अणु तथा 12 ATP उत्पन्न करते हैं।

सम्पूर्ण चक्र को निम्न प्रकार लिख सकते हैं।

CH3COSCoA + 3H2O                           विकर      2CO2 + 4H2 + CoASH

(एसिटायल कोएन्जाइम A) (Acetyl CoA)   (Enzymes)     ऑक्सिजन को 4H2O, 12 ATP

  1. 3. इलेक्ट्रॉन अभिगमन तन्त्र एवं ऑक्सीय फोस्फोरिलीकरण

(Electron transport system, ETS and Oxydative phosphorylation)

क्रेब्स चक्र में, ऑक्सीकरण से डीहाइड्रोजीनेज एन्जाइम, के द्वारा विभिन्न क्रियाधारों से हाइड्रोजन के युग्म एवं इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं। हाइड्रोजन एवं इलेक्ट्रान विभिन्न इलेक्ट्रॉन वाहकों से गुजरते हुए अन्त में आक्सीजन से क्रिया कर (इ टी एस के अन्त में) जल के अणु बनाते हैं। हाइड्रोजन अणु के एक विकर वाहक से दूसरे विकर वाहक पर गुजरने से अत्यधि एक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है जोकि एटीपी (ATP) के पायरोफास्फेट बन्ध में संचित हो जाती है। इस क्रिया में प्रयुक्त एन्जाइमों को रेस्पिरेटरी चेन एन्जाइम अथवा इलेक्ट्रान अभिगमन तन्त्र एन्जाइम (respiratory chain enzymes or electron transport system enzymes) कहते हैं। यह एन्जाइम माइटोकॉन्ड्रिया के FI कणों (FI particles) में पाये जाते हैं। श्वसन श्रृंखला में निम्न चरण होते हैं –

  1. डीहाइड्रोजीनेज एन्जाइम क्रेब्स चक्र के विभिन्न क्रियाधारों से प्राप्त हाइड्रोजन अणुओं को ग्रहण करता है। यह हाइड्रोजन

अणु प्रोटोन (+) एवं इलेक्ट्रॉन (-) में टूट जाता है।

2H →2H++2e

ये उपरोक्त इलेक्ट्रान जोड़ा इलेक्ट्रॉग्राही जैसे – NAD तथा FAD द्वारा ग्रहण कर लिये जाते हैं। सक्सीनिक अम्ल से इलेक्ट्रानों का स्थानान्तरण सीधे ही फ्लौवोप्रोटीन में होता है, जबकि दूसरे योगिकों से इलेक्ट्रॉन पहले NAD अथवा NADP में जाते हैं और फिर बाद में फ्लैवोप्रोटीन में। अब NAD प्रोटोन (हाइड्रोजन आयन) के द्वारा अपचयित हो जाता है।

2NAD+ + H*+e

2NADH+H* (2NADH. H)

अब NADH+ माइटोकॉन्ड्रिया के F1 कणों में प्रवेश कर जाता है।

  1. NADH + की हाइड्रोजन एवं 2e- FAD के द्वारा FMN से होकर ग्रहण कर लिये जाते है जिससे कि FAD, FADH2 में अचि हो जाता है तथा NADH+, NAD में आक्सीकृत हो जाता है।
  2. FADH2 से कोएन्जाइम (CoQ) यूबिक्यूनोन (ubiquinone) इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर लेता है। CoQ से हाइड्रोजन आयन माइट्रोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में चले जाते हैं तथा इलेक्ट्रॉन साइटोक्रोम के द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं।
  3. साइटोक्रोम कोशिका में पाये जाने वाले लौह युक्त वर्णक होते हैं जिनमें वायवीय श्वसन होता है। यह वर्णक इलेक्ट्रॉन को ग्रहण (Fe+++ +e Fe++) (Fe++ → Fe+++) एवं दान करते है। इलेक्ट्रॉन को ग्रहण कर यह अपचयित (reduced) एवं इलेक्ट्रॉन का दान कर यह ऑक्सीकृत (oxidized) हो जाते हैं। (इलेक्ट्रॉन साइटोक्रोम-b से साइटो C1 साइटो C तक गमन करते हैं)।
  4. साइटोक्रोम C से यह इलेक्ट्रॉन साइटोक्रोम a तथा साइटोक्रोम a, को दिये जाते हैं। (साइटो – एवं 3 को साइटोक्रोम . आक्सीडेज कहते हैं)।
  5. साइटोक्रोम आक्सीडेज से यह इलेक्ट्रान आक्सीजन अणु से क्रिया कर इसे सक्रिय बनाते हैं।
  6. यह सक्रिय आक्सीजन हाइड्रोजन के दो प्रोटोन से क्रिया कर जल अणु बनाते हैं।

O+2e              O2-       2H+       → H2O

इलेक्ट्रॉन अभिगमन तन्त्र के एन्जाइम माइटोकॉन्ड्रिया की अन्तः झिल्ली में पाये जाते हैं परन्तु क्रेब्स चक्र के एन्जाइम इसके मेट्रिक्स में पाये जाते हैं । अन्तः झिल्ली की एक माइक्रोमीटर सतह पर लगभग 650 श्वसन श्रृंखलाएँ पायी जाती है।

सभी NADH+H* अणुओं से दो इलेक्ट्रॉन तथा दो हाइड्रोजन अणुओं के निकलने से तथा उनके आक्सीजन अणु के क्रिया करने पर, 3 एटीपी अणु बनते हैं। चित्र 5 में ए टी पी (ATP) निर्माण की स्थितियाँ बतायी गयी है। इन स्थानों पर मुक्त ऊर्जा एटीपी (ATP) के रूप में ( ADP + Pi ATP) संग्रहित होती है। हर एटीपी के अणु के निर्माण में 7.3Kcal ऊर्जा संग्रहित होती है। इस क्रिया को फास्फोराइलेशन (phosphorylation) कहते हैं। यह क्रिया श्वसन में ऑक्सीजन की उपस्थिति में सम्पन्न होती है। इसलिए इसे ऑक्सीय फास्फोरिलीकरण (oxidative phosphorylation) कहते हैं।

आक्सीय फॉस्फोरिलीकरण की क्रियाविधि (Mechanism of Oxidative phosphorylation)

यह क्रिया माइटोकोन्ड्रिया में होती है। इस क्रिया को समझाने के लिये अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं। उनमें से मुख्य रसायन-परासरणी सिद्धान्त (chemi-osmotic theory) यहाँ दिया गया है।