kamla circus history in hindi , कमला सर्कस का इतिहास क्या है , स्थापना कब और किसने की थी
जानेंगे kamla circus history in hindi , कमला सर्कस का इतिहास क्या है , स्थापना कब और किसने की थी ?
कमला थ्री रिंग सर्कस की स्थापना सिक्स पोल, थ्री-रिंग सर्कस, अमेरिका की तर्ज वाला सर्कस, के रूप में के. दामोदरन ने की। 1930 के दशक के प्रारंभ में, उन्होंने दो खंभों वाले टेंट के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान घूमकर इस सर्कस को स्थापित किया। उनके द्वारा स्थापित सर्कस उस समय पूरे एशिया में अपने प्रकार का एकमात्र सर्कस था।
परियाली कानन ने अपने गुरु कीलेरी कुन्नीकानन की मदद से अपने साथी विद्यार्थियों, जिसमें कानन पूवदन कुनहम्बू,एम.के. रमन और कृष्णनन शामिल थे, के साथ मिलकर एक तमाशा मण्डली तैयार की। उसकी 1904 में चिराक्कारा (थालसेरी) में गठित मालाबार ग्रांड सर्कस केरल की प्रथम सर्कस कम्पनी थी।
एक अन्य विद्यार्थी एम.के रमन ने कीलेरी कुन्नीकाननन टीचर मेमोरियल सर्कस एंड जिमनास्टिक टेªनिंग सेंटर की चिराक्कारा में स्थापना की, जो मौजूद समय तक काम कर रहा है।
अन्य महत्वपूर्ण नाम एवं सर्कस जिनका विकास शुरूआती दौर में हुआ, निम्नलिखित हैंः
पटवर्धन सर्कस की स्थापना थाथया साहिब पटवर्धन, एक अधिवक्ता, और उनके भाई श्रीपथ राव ने बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में की।
कोलन दास सर्कस की स्थापना कोल्हापुर में और मधुस्कर का ग्रांड सर्कस (1906) बेहद प्रसिद्ध हुए।
थुक्कर्म गणपथ शेलर ने बड़ौदा (वडोदरा), गुजरात में एक शेलर इंटरनेशनल सर्कस की एक स्थायी सर्कस थिएटर के रूप में स्थापना की, लेकिन यह चल नहीं सका। इसलिएशेलर ने अपने शो को जगह-जगह पर दिखाना शुरू कर दिया।
थाराबाई, जो आगरा से थीं, कार्लेकर के सर्कस और परशुराम लाॅयन सर्कस में एक ‘सशक्त महिला’ थी। उन्होंने वजन उठाने एवं खींचने वाले और जिमनास्टिक करतब दिखाए, जिसमें अपने बालों से ट्रक खींचने जैसे करतब शामिल हैंे। उन्होंने बाद में थाराबाई सर्कस नाम से अपना सर्कस खोला और मालाबार एवं अन्य स्थानों पर सर्कस दिखाया।
बाबू राव कामिरे एक जिमनास्ट और निशानेबाज, जिन्होंने महाराष्ट्र में इंडियन बहादुर सर्कस और अन्य में करतब दिखाए, 1920 में ग्रांड बाॅम्बे सर्कस की स्थापना की।
सांगली के हाजी याकूब और मोइद्दीन ने बाॅम्बे जी.ए. (गुलशन अनवर) सर्कस की स्थापना की, जो कुछ वर्षों में एक स्तरीय सर्कस बन गया। दिलचस्प बात है कि, सर्कस में अधिकतर कलाकार थालसेरी से थे।
राममूर्थि नायडूू जो विजयनगरम, आंध्र प्रदेश से थे, ने वजन उठाने और छाती पर ट्रक गुजारने जैसे हैरतअंगेज कारनामे किए। उन्होंने स्वयं का हिंदू हरक्यूलिस सर्कस स्थापित किया।
बंगाल का प्रथम सर्कस शायद ग्रेट रिंगलिंग सर्कस था, जिसे एस. के गुहा (बूढ़ा बाबू) ने स्थापित किया।
द ग्रेट बाॅम्बे सर्कस (1920 में स्थापित) सबसे बड़े सर्कस में से एक था, जिसने श्रीलंका एवं दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में सर्कस दिखाया।
जैमिनी सर्कस की स्थापना मूरकोथ वेंगकेंडी शंकरन (1924 में जन्म), केरल के निवासी, और के. सहदेवन, चिरक्कारा सर्कस स्कूल के जिमनास्ट एवं कलाबाज द्वारा 1951 में बिलिमोरिया, गुजरात में की गई। सर्कस ने माॅस्को एवं अन्य स्थानों पर शो किए और 1964 में यूएसएसआर में इंटरनेशनल सर्कस फेस्टीवल में प्रथम भारतीय सर्कस के प्रतिनिधिमण्डल के तौर पर भाग लिया। इसने अपोलो सर्कस और वाहिनी सर्कस में हिस्सेदारी की और 1977 में जम्बो सर्कस की स्थापना की। जैमिनी सर्कस ने भारतीय फिल्मों मेरा नाम जोकर (राजकपूर), शिकारी (मिथुन चक्रवर्ती), और तमिल में अपूर्वा सगोधरांगल (कमल हासन), जिसे हिंदी में अप्पू राजा के नाम से बनाया गया में सर्कस की पृष्ठभूमि तैयार करने में योगदान दिया।
राजकमल सर्कस एक बड़ा सर्कस है, जिसकी स्थापना गोपालन मूलोली द्वारा 1958 में जीरा (पंजाबद्ध में की गई। सर्कस ने पूरे भारत विदेशों में भी अपने कार्यक्रम पेश किए।
जम्बो सर्कस की स्थापना 1977 में बिहार में हुई। इसमें रूसी सर्कस कम्पनी के कलाकार भी शामिल थे।
रेम्बो सर्कस की स्थापना पी.टी. दिलीप द्वारा 1991 में की गई, इस सर्कस ने व्यापक रूप से भारत और विदेशांे में प्रदर्शन किया।
भारत में सर्कस का विकास
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों से, सर्कस ने विभिन्न प्रकार के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, नवाबों और राजाओं के समाप्त होने के साथ, सर्कस ने लोगों में उनकी लोकप्रियता को बना, रखा। समय के साथ, वे विकसित होते चले गए और शहरों तथा कस्बों में व्यापक एवं बड़े कार्यक्रमों के साथ वे अधिकांशतः शहरी विशेषता बनते गए। वे 1950-70 के दशकों के दौरान लोकप्रिय मनोरंजन संस्कृति की महत्वपूर्ण विशेषता बन गए। लेकिन इलेक्ट्राॅनिक जनसंचार के उदय से, विशेष रूप से टेलीविजन के कारण, इस उद्योग को गहरा आघात लगा। टेलीविजन ने अपनी चकाचैंध एवं मनोरंजक कार्यक्रमों से लोगों को अपनी ओर खींच लिया। सर्कस, मनोरंजन के एक बड़े स्रोत, को टीवी के व्यापक कार्यक्रमों ने कांतिहीन या निष्प्रभ कर दिया। परिणामस्वरूप सर्कस के पतन का माग्र प्रशस्त होने लगा।
इसके अतिरिक्त, अन्य मामलों ने सामान्यतः सर्कस की छवि को नष्ट कर दिया, विशिष्ट रूप से भारतीय सर्कस को। एक समय मनोरंजन का प्रमुख साधन रहा सर्कस, आज टेजीविजन और इंटरनेट के दौर में हाशिये पर पहुंच गया है। दर्शकों और समुचित मंच के अभाव के कारण प्रतिभाशाली कलाकार सर्कस से दूर होते जा रहे हैं। जागवर सर्कस का प्रमुख आकर्षण होते थे, अब सरकार ने जागवरों के सर्कस में इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। सरकारी समर्थन और नई प्रतिभाओं की कमी भी इस उद्योग को लाचार बना रही है, जिसके कारण इससे जुड़े लोग अन्यत्र विकल्प तलाश रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने सर्कस में बच्चों के शोषण तथा बालश्रम को निषेध बताते हुए सर्कस में बच्चों के नियोजन पर रोक लगा दी है। इसके परिणामस्वरूप भी सर्कस उद्योग पर बुरा असर पड़ा है।
भारत में अब चंद सर्कस कंपनियां ही चल रही हैं। वर्ष 1900 के दौरान भारत में 50 से अधिक सर्कस चल रहे थे। जैसे-जैसे लोगों के बीच सर्कस का आकर्षण बढ़ता गया, सर्कसों की संख्या भी बढ़ती गई। 1924 में रैमन और 1941 में जैमिनी सर्कस बना। आज इनकी संख्या घटकर मात्र 10 के आस-पास रह गई है। इस समय जम्बो, रैम्बो, जैमिनी, ग्रेट रैमन, नेशनल और ग्रेट बाॅम्बे मुख्य सर्कस हैं।
आज भारत में सर्कस बदलते परिवेश और लोगों की रूचि में परिवर्तन के कारण अपने अस्तित्व की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं। सर्कस के कलाकारों की खानाबदोश जिंदगी और स्थायित्व की कमी के कारण भी स्थिति अत्यधिक विषम हो गई है। सरकार को इस स्थिति से निपटने के लिए एक सर्कस अकादमी का गठन करना चाहिए ताकि न सिर्फ नए कलाकारों की प्रतिभा को निखारा जा सके अपितु दम तोड़ रहे इस पारम्परिक माध्यम में नए खून का संचार किया जा सके। चीन और अमेरिका की भांति भारत में भी सर्कस अकादमी खोली जागी चाहिए। रूस में सरकार ने सर्कस को पुगर्जीवित करने के लिए प्रमुख शहरों में ऐसे केंद्र स्थापित किए हैं, जहां पूरे वर्ष सर्कस चलता है। यदि समुचित कदम नहीं उठाए गए तो मनोरंजन का यह अनोखा माध्यम इतिहास के पन्नों में खो जाएगा।
सर्कस मेें किए जागे वाले प्रदर्शन
यद्यपि सर्कस में कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए जागे वाले करतब सामान्य तौर पर सभी जागते हंै। ये प्रदर्शन प्रायः बेहद जटिल एवं हैरतअंगेज होते हैं, जो सर्कस के कार्यक्रम को आकर्षक और सफल बनाते हैं। ये करतब बेहद मुश्किल होते हैं और वर्षों के निरंतर प्रशिक्षण के पश्चात् ही इनका प्रदर्शन करना संभव हो पाता है। इसमें करतब संबंधी उपकरण और तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है।
सामान्यतः सर्कस में मोटे तौर पर प्रदर्शन में निम्नलिखित करतब शामिल होते हैं
ऽ कलाबाजी (एक्रोबैटिक)ः इसमें सामान्यतः हैरतअंगेज कारनामों को शामिल किया जाता है। इसमें जिमनास्टिक का अत्यधिक प्रयोग होता है और संतुलन (जैसे रस्सी पर चलना), मोटर साईकिल या मोटर कार रेस (मौत का कुंआ), जैसे कई करतब किए जाते हैं।
ऽ जागवरों का प्रदर्शनः इसमें कई करतब जागवरों द्वारा किए जाते हैं, जैसाकि जागवरों के करतब सर्कस का मुख्य आकर्षण रहा है। जागवरों को विशेष करतब दिखाने के लिएएक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है।
ऽ मसखरी करना या हंसानाः जोकर द्वारा सकर्स मंे बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है। सर्कस में लोग जोकरों के मंच पर आने का सबसे अधिक इंतजार करते हैं, खासकर बच्चे। रंग-बिरंगे चेहरे, नकली नाक व बाल लगाकर सबको हंसाने वाले जोकर, जो कार्यक्रम के बीच के समय में ‘फिलर’ का काम करते हैं, इस समय में सबको खूब हंसाते हैं। कई लोगों की नकल करके, लतीफे सुनाकर वे ऐसा करते हैं। आमतौर पर जोकर (सर्कस में) वे होते हैं, जो शारीरिक विकास में पिछड़ जाते हैं और उनका कद कम रह जाता है। छोटे कद के जोकरों की दर्शकों द्वारा अधिक प्रशंसा की जाती है।
ऽ कलाबाज/संतुलकः इसमें सिर के बल खड़ा होना और अन्य संतुलन संबंधी करतब शामिल होते हैं। इसमें करतब के दौरान इकपहिया साइकिल, बांस के बड़े डंडों पर चलना, सीढ़ियों का प्रयोग किया जाता है और इन पर मानव पिरामिड जैसी रचना बनाई जाती है।
ऽ आग संबंधी खेलः इसमें मुंह में तेल लेकर आग पर डालना (फायर ब्रीथिंग), आग को मुंह के अंदर लेना (फायर ईटिंग), आग पर नृत्य करना, जैसे खतरनाक करतब किए जाते हैं।
ऽ संतुलन संबंधी करतबः विभिन्न प्रकार की वस्तुओं बाॅलरिंग, प्लेट चाकू, मशाल, इत्यादि का प्रयोग करके संतुलन संबंधी करतब किए जाते हैं। इसके अंतग्रत करतब दिखाने वाले एक साथ, उदाहरणार्थ बहुत सारी गेंद उछाल कर उन्हें एक साथ पकडते हैं और गिरने नहीं देते। यह बेहद जटिल होता है।
ऽ कूदना या छलांग लगानाः इसमें विभिन्न प्रकार से अपने शरीर को मोड़ना होता है। इसमें कुदान घोड़े या घुड़सवारी करते हुए विभिन्न करतब करने होते हैं। दौड़ते हुए घोड़े की पीठ पर खड़े होना और विभिन्न तरह की कलाबाजी करना, इसके अंतग्रत शामिल होते हैं। कुछ विशिष्ट करतबः सर्कस में होने वाले कुछ विशिष्ट करतब इस प्रकार हैंः
ऽ हवाई छल्ला, रेशम, पट्टाः हवाई छल्ला या लायरा एक बड़ा स्अील का छल्ला होता है, जो छत से लटका हुआ होता है, जो स्थिर, घूमता हुआ या झूलती हुई स्थिति में हो सकता है और जिस पर कलाकार हैरतअंगेज करतब दिखाता है। हवाई रेशम (रिब्बन इत्यादि) के माध्यम से करतब करने में छत से एक कपड़ा लटका हुआ होता है। इसके अंतग्रत कलाकार रेशम के कपड़े पर चढ़ता है, गिरता है, स्वयं को इसमें लपेटता है और इस प्रकार विभिन्न प्रकार के करतब करता है।
ऽ साईकिल चलानाः यह करतब सर्कस में दिखाया जागे वाला एक आम करतब है, इसमें साईकिल चलाते हुए कौशल एवं संतुलन का प्रयोग करते हुए करतब दिखाए जाते हैं। इसमें साईकिल पर एक व्यक्ति द्वारा और एक साथ दो या अधिक लोगों द्वारा करतब दिखाए जाते हैं।
ऽ डंडा घुमानाः इसमें आश्चर्यजनक फुर्ती, समन्वय, संतुलन और लोचशीलता की आवश्यकता होती है। इसमें कलाकार एक या अधिक एल्युमिनियम जैसी धातु के डंडों या छड़ों को कुशलतापूर्वक प्रयोग करता है।
ऽ टोपी का प्रयोग करके करतब दिखानाः इसमें टोपी का प्रयोग करते हुए कुशलतापूर्वक विभिन्न करतब दिखा, जाते हैं। टोपी को ऊपर और नीचे घुमाया या लुढ़काया जाता है और बेहद आश्चर्यजनक तरीके से पकड़ा जाता है। इसमें परम्परागत हाथ की सफाई की भी बाजीगरी शामिल होती है। करतब को मनोरंजक बनाने के लिए कलाकार इसमें हास्य तत्व को भी शामिल करता है।
ऽ छल्ले को घुमानाः इसमें कलाकार द्वारा छाती, गर्दन, कंधे, भुजाओं, हाथों, कमर और पैरों के साथ प्लास्टिक, लकड़ी या धातु का छल्ला घुमाया जाता है। इसमें पूरे शरीर के अंगों से छल्ले को घुमाया जाता है। इसे संगीत के साथ भी किया जाता है।
ऽ चाकू फेंकनाः इसमें लक्ष्य के चारों ओर चाकू फेंका जाता है और वह लक्ष्य के बेहद गजदीक होना चाहिए तथा टारÛेट को लगना नहीं चाहिए। इस कार्य में बेहद कुशलता की आवश्यकता होती है। इस करतब में लक्ष्य गुब्बारे, टमाटर या फल, जैसी वस्तुएं और स्वयं व्यक्ति भी हो सकते हैं। इसके तहत् व्यक्ति गुब्बारे को कभी भुजाओं के नीचे या दांतों के बीच पकड़कर रखता है और इसे फोड़ने के लिए कलाकार चाकू फेंकता है, जो बेहद जोखिमपूर्ण होता है।
ऽ रस्सी पर चलनाः इसमें कलाकार पतली रस्सी या तार पर चलता है। यह करतब भारत में प्राचीन समय से किया जाता रहा है। परम्परागत रूप से, गली-नुक्कड़ में खेल दिखाने वाले लम्बे डंडे जैसे संतुलनकारी उपकरण के साथ या इसके बिना रस्सी पर चलते थे। आधुनिक समय में भी यह करतब इसी प्रकार किया जाता है। इसमें कलाकार के उत्कृष्ट संतुलन एवं शारीरिक नियंत्रण कौशल की आवश्यकता होती है।
ऽ कलाबाजी का झूलूला (ट्रैपीज)ः यह एक क्षैतिज छोटी राॅड या छड़ होती है, जो सर्कस में किसी धातु के पट्टे या रस्सी से लटकी होती है। यह स्थिर (इस दौरान कलाकार संतुलन कौशल दिखाता है), घूमती हुर्ह,झूलती हुई स्थिति में हो सकती है। इस करतब को अकेले व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा किया जा सकता है। अधिकांशतः यह सर्कस में आखिरी करतब के तौर पर दिखाया जाता है, जो हैरतअंगेज और सांसे रोक देने वाला होता है।
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