जॉन हचिन्सन की वर्गीकरण पद्धति (john hutchinson system of classification in hindi) जॉन हचिंसन प्रणाली
(john hutchinson system of classification in hindi) जॉन हचिन्सन की वर्गीकरण पद्धति : महान ब्रिटिश पादप वर्गीकरण शास्त्री जॉन हचिन्सन (1884-1972) रायल बोटेनिक गार्डन क्यू में वनस्पतिशास्त्र संग्रहालय के प्रभारी पद पर कार्यरत थे। इनके द्वारा प्रस्तावित पादप वर्गीकरण प्रणाली की प्रस्तुति , उसकी कालजयी पुस्तक “दि फेमिलिज ऑफ़ फ्लोवरिंग प्लान्ट्स” में हुए थी।
उन्होंने 88 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व ही अपनी वर्गीकरण पद्धति को अंतिम बार संशोधित किया , जिसका प्रकाशन “दि फेमिलीज ऑफ फ्लोवारिंग प्लांट्स” के अंतर्गत सन 1973 में हुआ था।
हचिन्सन की वर्गीकरण पद्धति पूर्णरूपेण जातिवृतीय अवधारणा पर आधारित है और एंग्लर और प्रेंटल पद्धति की तुलना में बैंथम और हुकर और बैस्से की वर्गीकरण पद्धतियों के अधिक निकट है।
हचिन्सन वर्गीकरण प्रणाली की सामान्य विशेषताएँ (general features of hutchinson’s classification)
- हचिंसन द्वारा पौधों के वृक्षीय स्वभाव और शाकीय स्वभाव को विशेष महत्व दिया गया है।
- पौधों में दो विकासीय प्रवृत्तियों के अनुरूप द्विबीजपत्री पौधों को वृहत पादप समूहों में विभक्त किया गया है। ये है – लिग्नोसी अर्थात काष्ठीय पादप समूह और हर्बेसी अर्थात शाकीय पादप समूह।
- लिग्नोसी की उत्पत्ति गण मेग्नोलियेल्स से और हर्बेसी की उत्पत्ति गण रेनेल्स से हुई है।
- एकबीजपत्री पौधों का विकास द्विबीजपत्री पौधों से हुआ है।
हचिन्सन द्वारा प्रस्तुत पादप वर्गीकरण पद्धति कुछ विशिष्ट सिद्धान्तों पर आधारित है जो कि पौधों के पुष्पीय लक्षणों की विकासीय प्रवृतियों से सम्बन्धित है। ये विशेष सिद्धान्त इससे पूर्व बैस्से (1915) द्वारा प्रस्तावित पौधों से विभिन्न विकासीय अवधारणा से समानता प्रदर्शित करते है।
हचिन्सन द्वारा प्रस्तावित पद्धति में आवृतबीजियों को 111 (कुल एक सौ ग्यारह) गणों और 411 कुलों में विभाजित किया गया है। द्विबीजपत्री प्रभाग के लिग्नोसी में 54 गण और हर्बेसी में 28 गण सम्मिलित किये गए है। इस प्रकार द्विबीजपत्री पौधों में कुल 82 गण उपस्थित है। एकबीजपत्री पौधों को पुनः 3 प्रभागों क्रमशः केलिसीफ्लोरी , कोरोलीफ्लोरी और ग्लूमीफ्लोरी में बाँटा गया है , इनमें से प्रभाग केलिसीफ्लोरी में 12 , प्रभाग क्लोरोफ्लोरी में 14 और प्रभाग ग्लूमीफ्लोरी में 3 गण रखे गए है। अत: एकबीजपत्री पौधों को 29 गणों में बाँटा गया है।
प्रभाग लिग्नोसी का प्रारंभ गण मेग्नोलियेल्स के कुल मेग्नोलियेसी से होकर इसका समापन गण वर्बिनेल्स के कुल क्लोएन्थेसी पर होता है और प्रभाग हर्बेसी का प्रारंभ गण रेनेल्स के कुल रेननकुलेसी से होकर समापन गण लेमियेल्स के कुल लेबियेटी पर होता है। अत: द्विबीजपत्री पौधों में गण रेनेल्स और मेग्नोलियेल्स सर्वाधिक आदिम और गण लेमियेल्स और वर्बिनेल्स सर्वाधिक प्रगत अथवा विकसित कहे जा सकते है।
एकबीजपत्री पौधों में गण ब्यूटोमेल्स सर्वाधिक पुरातन और गण ग्रेमिनेल्स को सर्वाधिक प्रगत माना गया है।
हचिन्सन की पद्धति के गुण और दोष (merits and demerits of hutchinson system of classification)
- गुण (merits):
- इस वर्गीकरण पद्धति में जातिवृतीय अवधारणा की सम्पूर्ण परिपालना का प्रयास किया गया है।
- प्रत्येक आर्डर और कुल में निकट सम्बन्धी पादप प्रजातियों को सम्मिलित किया गया है।
- एकबीजपत्री पौधों को द्विबीजपत्री पौधों के बाद रखा गया है जो सर्वथा उचित है।
- द्विबीजपत्री पौधों में रेनेलियन कुलों को सर्वाधिक आदिम माना गया है जो कि आधुनिक जातिवृतीय सिद्धान्तों के सर्वथा अनुरूप है।
- कुलों की पहचान के लिए कृत्रिम कुंजियों का प्रयोग किया गया है।
- दोष (demerits):
- हचिन्सन पद्धति में ऑर्डर और कुलों की संख्या बहुत अधिक है जो सर्वथा अनुचित है।
- आवृतबीजियों की उत्पत्ति काल्पनिक पूर्वज प्रोटोएन्जियोस्पर्म से एकलस्रोतीय रूप में बताई गयी है जो आधुनिक विचारधारा के विपरीत है।
- इस वर्गीकरण प्रणाली में पौधों के वृक्षीय और शाकीय स्वभाव को आवश्यकता से अधिक महत्व दिया गया है जो उचित प्रतीत नहीं होता।
- पादप पहचान की दृष्टि से यह वर्गीकरण पद्धति उपयुक्त नहीं है।
बैंथम और हुकर तथा प्रेन्टल और एवं हचिन्सन की वर्गीकरण पद्धतियों का तुलनात्मक विवरण (comparison among Bentham and Hooker, Engler and Prantl, and Hutchinson systems of plant classification in hindi)
उपर्युक्त तीनों सर्वाधिक मान्य वर्गीकरण पद्धतियों में कुछ मूलभूत भिन्नताएँ है , जिनका तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित तालिका में दिया जा रहा है –
बैंथम तथा हुकर की वर्गीकरण पद्धति |
एंग्लर व प्रेंटल की वर्गीकरण पद्धति |
हचिन्सन की वर्गीकरण पद्धति |
1. यह वर्गीकरण पद्धति डि केंडोले द्वारा प्रस्तुत पद्धति पर आधारित है। |
यह आइक्लर की वर्गीकरण पद्धति पर आधारित है। |
यह बैस्से द्वारा प्रस्तुत पादप वर्गीकरण पद्धति पर आधारित है। |
2. इसका प्रकाशन जेनेरा प्लांटेरम (1862-1883) में हुआ। यह पुस्तक 3 भागों में है। |
इसका प्रकाशन दाई नेचुरलाइकेन फ्लेन्जन फेमिलियन (1887 – 1909) में हुआ। यह पुस्तक 23 भागों में है। |
इसका प्रकाशन फेमिलिज ऑफ़ फ्लोवरिंग प्लान्ट्स (1926 , 1934) में हुआ। यह पुस्तक 2 भागों में है। |
3. यह एक प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति है और उसके प्रेणताओं ने कभी भी , इसको जातिवृतीय पद्धति के नाम से निरुपित करने का दावा नहीं किया। |
यह एक जातिवृतीय वर्गीकरण पद्धति है , जो पौधों में सरलता से जटिलता की तरफ अग्रसर होने के सिद्धान्त पर निरुपित की गयी है। इसके अनुसार परिदल रहित पुष्पीय पादप आदिम है। |
यह भी एक जातिवृतीय पद्धति है , जिसके अनुसार परिदल पुंज युक्त पुष्पीय पादप , जिनमें अन्य पुष्पीय और शारीरिकी लक्षण तदनुसार पाए जाए , परिदल रहित पुष्पीय पौधों की तुलना में आदिम है। |
4. इस वर्गीकरण पद्धति में जिम्नोस्पर्म्स को द्विबीजपत्री और एकबीजपत्री पौधों के मध्य रखा गया है। |
जिम्नोस्पर्म्स को द्विबीजपत्री और एकबीजपत्री पौधों से अलग रखा गया है। |
जिम्नोस्पर्म्स को अलग से रखा गया है। |
5. द्विबीजपत्री पौधों को एकबीजपत्री पौधों से पहले रखा गया है। |
एकबीजपत्री पौधों को द्विबीजपत्री पौधों से पहले रखा गया है। |
द्विबीजपत्री पौधों को एकबीजपत्री पौधों से पहले रखा गया है। |
6. द्विबीजपत्री पौधों को तीन पादप समूहों में बाँटा गया है – (a) पोलीपेटेली (b) गेमोपेटेली और (c) मोनोक्लेमाइडी |
द्विबीजपत्री पौधों को 2 पादप समूहों में बाँटा गया है – (अ) आर्चीक्लेमाइडी और (ब) मेटाक्लेमाइडी अथवा सिम्पेटेली |
इस पद्धति में भी द्विबीजपत्री पौधों को 2 पादप समूहों में विभक्त किया गया है – (अ) लिग्नोसी (ब) हर्बेसी |
7. द्विबीजपत्री पौधों का आरम्भ वर्ग पोलीपेटेली , गण रेनेल्स के कुल रेननकुलेसी से होता है , जिसकी प्रमुख विशेषता अधोजायांगी पुष्प और पृथकांडपी जायांग है। |
इस पद्धति के अंतर्गत द्विबीजपत्री पौधों में अमेंटीफेरस कुल जैसे केस्यूराइनेसी आदि पुरोगामी माने जाते है और पहले रखे गए है , इनमें नतकणीश पुष्पक्रम और युक्तांडपी जायांग और एकलिंगी पुष्प पाए जाते है। |
इस पद्धति में मेग्नोलियेसी और रेननकुलेसी कुलों को पुरोगामी माना गया है और द्विबीजपत्री पौधों का प्रारंभ इन कुलों से ही होता है। इन कुलों में द्विलिंगी अधोजायांगी पुष्प असंख्य , मुक्त पुंकेसरी और अंडप सर्पिलाकार क्रम में व्यवस्थित होते है। |
8. इस पद्धति में पृथकदली द्विबीजपत्री पौधों को पोलीपेटेली , संयुक्तदली पौधों को गेमोपेटेली में और मोनोक्लेमाइडी को पोलीपेटेली से परिदल चक्र संख्या के आधार पर अलग रखा गया है। |
इस पद्धति में पोलीपेटेली और मोनोक्लोमाइडी का विलय एक पादप समूह आर्चीक्लेमाइडी के रूप में कर दिया गया है। |
मोनोक्लेमाइडी के विभिन्न कुलों को उनकी बन्धुता और जातिवृतीय सम्बन्धों के आधार पर निकट सम्बन्धी कुलों के साथ रखा गया है और वर्ग मोनोक्लेमाइडी को समाप्त कर दिया गया है। |
9. एकबीजपत्री पौधों का आरम्भ श्रृंखला माइक्रोस्पर्मी से होता है जिसमें आर्किडेसी जैसे प्रगत कुल सम्मिलित है। |
एकबीजपत्री पौधों का आरम्भ गणपेंडेनेल्स से होता है जिसे आज प्रगत पादप समूह माना जाता है। |
इस पद्धति में एकबीजपत्री पौधों का आरम्भ गण ब्यूटोमेल्स और ऐलिस्मेटेल्स से होता है जो वास्तव में आदिम कुल है। |
10. एकबीजपत्री पौधों का सबसे प्रगत कुल ग्रेमिनी को माना गया है। |
एकबीजपत्री पौधों का सबसे प्रगत कुल आर्किडेसी को माना गया है। |
सबसे प्रगत कुल ग्रेमिनी को माना गया है। |
11. इस पद्धति के अंतर्गत पुष्पधारी पौधों के 200 कुलों का गठन किया गया है। |
पुष्पीय पौधों के 280 कुलों का गठन किया गया है। |
पुष्पीय पौधों के 411 कुल गठित किये गए है। |
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 : केरोलस लिनियस की वर्गीकरण पद्धति कहलाती है –
(अ) प्राकृतिक
(ब) जातिवृतीय
(स) कृत्रिम
(द) अनुभविक
उत्तर : (स) कृत्रिम
प्रश्न 2 : एंग्लर और प्रेंटल द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण पद्धति है –
(अ) जातिवृतीय
(ब) कृत्रिम
(स) प्राकृतिक
(द) तथ्यपरक
उत्तर : (अ) जातिवृतीय
प्रश्न 3 : हचिन्सन द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण पद्धति में है –
(अ) 355 कुल
(ब) 286 कुल
(स) 411 कुल
(द) 390 कुल
उत्तर : (स) 411 कुल
प्रश्न 4 : एंग्लर और प्रेंटल की वर्गीकरण पद्धति आधारित है –
(अ) लीनियस पद्धति पर
(ब) डी केंडोले पद्धति पर
(स) बैसे पद्धति पर
(द) आइक्लर की पद्धति पर
उत्तर : (द) आइक्लर की पद्धति पर
प्रश्न 5 : हचिन्सन पद्धति आधारित है –
(अ) बैसे की पद्धति पर
(ब) आइक्लर पद्धति पर
(स) टॉर्नफोर्ट पद्धति पर
(द) लिनियस पद्धति पर
उत्तर : (अ) बैसे की पद्धति पर
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