आयनिक सामर्थ्य किसे कहते हैं उदाहरण, परिभाषा क्या है Ionic Strength in hindi examples
Ionic Strength in hindi examples आयनिक सामर्थ्य किसे कहते हैं उदाहरण, परिभाषा क्या है ?
आयनिक सामर्थ्य (Ionic Strength)
किसी विलयन में आयनों की उपस्थिति के कारण उत्पन्न वैद्युत सामर्थ्य की माप को आयनिक सामर्थ्य कहा सारे। इसे ।। द्वारा प्रदर्शित किया जाता है और निम्न सूत्र द्वारा परिकलित किया जाता है:
U = ½ (m1z21 m2z12 + m3z33 + …….., आदि) …………..(17)
जहां m1, m2, m3, आदि विभिन्न आयनों की मोललता हैं और आयना का माललता है और z1, z2, z3, आदि उन आयनों का संयोजकताओं के मान हैं।
उदाहरणार्थ, माना Ca3(PO4)2 का एक 0.1 M विलयन है। इसका पूर्ण आयनीकरण मानते हुए दोनों आयनों की मोललता निम्न प्रकार होगी:
Ca3(PO4)2 = 3Ca2 ++2PO34
= 3 x 0.1 2 x 0.1
M1 = 0.3 व m2 = 0.2
Z1 = 2 z2 = 3
अतः इस विलयन की आयनिक सामर्थ्य
U = ½ (m1z21 + m2z22)
= ½ (0.3 x4) + (0.2 x9)}
= ½ (1.2 + 1.8)
U = 1.5
उदाहरण 9.5. एक विलयन में 0.1 मोलल NaCl विलयन और 0.01 मोलल CaCl2 विलयन का मिश्रण है। इस विलयन की आयनिक सामर्थ्य को परिकलित कीजिए।
हल : इस विलयन में तीन प्रकार के आयन हैं—Na, Ca* तथा C1
- Na* के लिए m1 = 0.1 तथा z1 =1
- Ca+2 के लिए m2 = 0.01 तथा z2 = 2
- Cl- के लिए m3 = 0.1 + 2 x 0.01 = 0.12 तथा z3 = 1
- सारे मान समीकरण (17) में रखने पर,
U =1/2 (0.1 x 12) + (0.01 x 22) + (0.12 x 12)}
= ½ (1 + 0.04 + 0.12) = ½ x 0.26
u = 0.13
उदाहरण 9.6. निम्न के आयनिक सामर्थ्य की गणना कीजिए:
- 2 m Na3PO4
- 1 m NaCl + 0.2 M Na2SO4
- 01 m Cr2(SO4)3
- 01 m NaCl + 0.02 M BaCl2
हल : (i) Na3PO4, के लिए आयनिक सामर्थ्य
u=1/2 (m1 z21 + m2z22)
यहां Na* के लिए m = 3 x 0.2.27, z1 = 1 तथा PO34 m2 = 0.2, z 2 = 3
अतः u = ½ ((0.6 x 12) + (0.2 x 32)]
= 1/2 (0.6 + 1.8) = 2.4 /2 = 1.2
(ii) 0.1 M NaCl + 0.2 M Na2SO4 में तीन आयन हैं, अतः इसके लिए आयनिक सामर्थ्य
= ½ (m1z21 + m2z22 + m3z32)
यहां Na+ के लिए m1 = (0.1 + 2×0.2) = 0.5, z1 = 1
Cl- के लिए m2 = 0.1,z2 = 1
So24 के लिए m3 = 0.2, z3 = 2
सारे मान रखने पर, u = ½ (0.5 x 12) + (0.1 x 12) + (0.2 x 22)]
= ½ (0.5+0.1+0.8) = 1.4/2
U = 0.7
(iii) Cr2(SO4)3 में
Cr32 के लिए m1 = 2 x 0.01 = 0.02, z1 = 3
और So24 के लिए m2 = 3×0.01 = 0.30,z2 = 2
अतः आयनिक सामर्थ्य = ½ (m1z21 + m2z22)
= ½ {(0.02 x 9) + (0.03 x 4)}
=1/2 (0.18 + 0.12) = 0.15
- Na’ आयनों के लिए m1 = 0.01,z1 = 1
Cl- आयनों के लिए m2 = 0.01 + 2 x 0.02 = 0.05, z2 = 1
Ba2+ आयनों के लिए m3 = 0.02, z3 = 2
U = ½ {m1z21 + m2z22 + m3z22 }
=1/2 (0.01 + 0.05 + 0.08) = 0.14/2 = 0.07
स्वतः हल कीजिए: निम्न विलयनों के आयनिक सामर्थ्य की गणना कीजिए-(i) 0.15 मोलल KCI, (ii) 0.25 मोलल K2SO4, (iii) 0.2 मोलल BaCl2 तथा (iv) एक विलयन जो 0.1 मोलल KCI तथा 0.2 मोलल KSO है। उत्तर-(i) = 0.15 (ii) 0.75 (iii) 0.6 (iv) 0.7]
तनु विलयन (DILUTE SOLUTIONS)
दो अथवा अधिक यौगिकों का एक समांग मिश्रण विलयन कहलाता है। परिभाषा के अनुसार विलयन में एक ही प्रावस्था होती है, वह ठोस, द्रव अथवा गैस कुछ भी हो सकती है। यदि किसी विलयन के कुल दो ही अवयव है तो वह द्विअगी विलयन (Binary solution) कहलाता है।
यदि इन दोनों अवयवों में से एक ठोस हो और दूसरा द्रव हो तो ठोस को विलेय (Solute) व द्रव को विलायक (Solvent) कहा जाता है। यदि किसी विलयन में विलायक की तुलना में विलेय की मात्रा अत्यन्त कम हो तो ऐसे विलयन को तनु विलयन (Dilute solution) कहा जाता है। समस्त तनु विलयनों में कुछ सामान्य गुण होते हैं जिन्हें अणुसंख्य गुण कहते हैं।
अणुसंख्य गुण (COLLIGATIVE PROPERTIES) तनु विलयनों में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो विलयन में विद्यमान विलेय के कणों की संख्या पर निर्भर करते हैं, उनकी प्रकृति चाहे कुछ भी हो अर्थात् उनके गुण विलेय की घुली हुई मात्रा पर निर्भर करते हैं, उनकी प्रकति पर नहीं। ऐसे गुण, जो पदार्थों की मात्रा (कणों की संख्या) पर निर्भर करते हैं. उनकी प्रकृति पर नहीं, अणुसंख्य गुण (Colligative properties) कहलाते हैं। परासरण दाव (Osmotic Pressure), क्वथनांक में उन्नयन (Elevation in boiling point), हिमांक में अवनमन (Depression in freezing point), आदि विलयना के ऐसे गुण हैं जो विलेय पदार्थ के कणों। की संख्या पर निर्भर करते हैं। उदाहरणार्थ, शर्करा, ग्लूकोस, यूरिया, आदि ऐसे पदार्थ हैं जो जल में घुलने पर न तो वियोजित होते हैं और न ही संगुणित, यदि इनमें से प्रत्येक का एक-एक मोल लेकर उन्हें 1000 ग्राम जल में घोलकर विलयन बनायें, तो समस्त विलयनों के लिए वाष्प दाब के आपेक्षिक अवनमन (relative lowering of vapour pressure), परासरण दाब, क्वथनांक में उन्नयन, हिमांक में अवनमन, आदि के मान समान आते हैं। कारण, इन सब पदार्थों की प्रकृति चाहे कुछ भी रही हो, लेकिन इन सब विलयनों में पदार्थ के अणुओं की संख्या बराबर है, और वह संख्या है 6.023×1023-ऐवोगैड्रो संख्या, क्योंकि प्रत्येक पदार्थ का 1-1 मोल लिया गया था।
इसके विपरीत यदि प्रबल विद्युत्-अपघट्य यौगिकों के विलयन बनाये जायें तो उनमें विलेय वियोजित (dissociate) होकर निम्न प्रकार से आयनों में परिवर्तित हो जाते हैं :
NaCl = Na++Cl
Ba(NO3)2 = Ba2+ + 2NO3
अतः इन यौगिकों के विलयनों में कणों की संख्या अधिक हो जायेगी फलतः इन विलयनों के लिए उपर्युक्त गुणों के मान भी बढ़ जाते हैं। उदाहरणार्थ, यदि यह मान लें कि सोडियम क्लोराइड 90% वियोजित होता है, इसका तात्पर्य यह हुआ कि 100 अणुओं में से इसके 90 अणु वियोजित होकर 90 Na+ आयन व 90 Cl-आयन बनाते हैं और शेष 10 अणु अवियोजित अणुओं के रूप में रहते हैं। अतः ऐसी स्थिति में कणों की कुल संख्या 90 + 90 + 10 = 190 होगी, अर्थात् 100 अणुओं के स्थान पर 190 कण हो गये; अतः इनके अणुसंख्य गुणों के मान ग्लूकोस या यूरिया की तुलना में 1.9 गुना अधिक हो जायेंगे। इसी प्रकार इन्हीं परिस्थितियों में Ba(NOR), का वियोजन माना 80% होता है अतः इसके कुल कणों की संख्या हो जायेगी : माना
80 + 160 + 20 = 260
अर्थात् 100 अणुओं के स्थान पर 260 कण विद्यमान होंगे। अतः इनके विलयनों के लिए अणुसंख्य गुणों के मान उसी सान्द्रता वाले ग्लूकोस अथवा यूरिया के विलयनों की तुलना में 2.6 गुना अधिक हो जायेंगे। इसी प्रकार कुछ यौगिक ऐसे होते हैं जिनके अणु संगुणित (associate) हो जाते हैं। उदाहरणार्थ, ऐसीटिक अम्ल बेन्जीन के विलयन में निम्न प्रकार से संगुणित होता है : । 2CH3COOH = (CH3COOH)2 माना कि इसके 80% अणु संगुणित हो गये अतः कुल कणों की संख्या
= 40 + 20 = 60
अतः ऐसे यौगिकों के लिए अणुसंख्य गुण के मान अपेक्षा से बहुत कम, लगभग आधे से थोड़ा अधिक आयेंगे।
उदाहरण 9.7. आपको निम्न जलीय विलयन दिये गये हैं
(a) 0.1 M शर्करा (Sugar) विलयन
(b) 0.1 M सोडियम क्लोराइड विलयन
(c) 0.1 M बेरियम क्लोराइड विलयन यह मानते हुए कि वैद्युत अपघट्य पूर्ण रूप से आयनित अवस्था में है, निम्न के उत्तर दीजिए
(i) समान ताप पर किसका वाष्प दाब न्यूनतम होगा?
(ii) एक वायुमण्डलीय दाब पर किसका हिमांक उच्चतम होगा?
(iii) एक वायुमण्डलीय दाब पर किसका क्वथनांक न्यूनतम होगा?
- परासरण दाब का मान किस क्रम में घटता हुआ होगा? अपने उत्तर के लिए कारण भी समझाइए।
हल उपयुक्त चारो गुण अणसंख्य गण (colligative properties) हैं अतः ये पदार्थ के कणों की संख्या पर निर्भर करते हैं। शर्करा के अणु उसी रूप में रहते हैं अतः इनके कणों की संख्या रहेगी (यहा। N ऐवोगैड्रो संख्या है)। वैद्युत अपघट्य NaCl व BaCl2 निम्न प्रकार से वियोजित होंगे : NaCl = Na+ +CI
BaCl2 = Ba2+ + 2C–
यदि इनका पूर्णरूप से आयनन माना जाये तो इनके कणों की संख्या क्रमशःN/10 x 2 व N /10 x 3 होगी।। अतः तीनों के विलयनों में कणों की संख्या का घटता हुआ क्रम निम्न होगा
BaCl2 Nacl C12H22011 (Sugar)
3N/10 > 2N/10 > N /10
अतः अणुसंख्य गुण भी इसी क्रम में होंगे विलेय से विलायक के वाष्प दाब का अवनमन होता है अतः अणुओं की संख्या जितनी अधिक होगी अवनमन उतना ही अधिक होगा अर्थात् जिस विलयन में अणुओं की संख्या अधिकतम होगी (यहां BaCl2) उसका बाष्प दाब न्यूनतम होगा।
(ii) विलेय से विलायक के हिमांक में भी अवनमन होता है अतः जिसमें विलेय के कणों की अधिकतम संख्या होगी उसका हिमांक न्यूनतम होगा और जिस विलयन में विलेय के कणों की मात्रा न्यूनतम होगी (यहां शर्करा) उसका हिमांक उच्चतम होगा। ।
(iii) विलेय की उपस्थिति से विलायक के क्वथनांक में वृद्धि (elevation) होती है अतः जिसमें विलेय के कणों की अधिकतम मात्रा है उसका क्वथनांक उच्चतम होगा और जिसमें कणों की संख्या न्यूनतम है (शर्करा) उसका क्वथनांक न्यूनतम होगा।
(iv) परासरण दाब के मान विलेय के कणों की संख्या बढ़ने के साथ बढ़ते हैं। अतः परासरण दाब के मानों का घटता हुआ क्रम निम्न होगा
BaCl2 > NaCl > Sugar
रॉउल्ट का नियम वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन (RAOULT’S LAW-RELATIVE LOWERING OF VAPOUR PRESSURE)
हम जानते हैं कि यदि किसी बन्द पात्र में द्रव का वाष्पीकरण होने दिया जाये तो कुछ समय पश्चात् साम्यावस्था में वाष्प के अणुओं द्वारा उत्पन्न किया गया दाब वाष्प दाब (Vapour pressure) कहलाता है। चित्र 9.7 के अनुसार एक पात्र लेते हैं जिसके पार्श्व में एक मैनोमीटर लगा हुआ है, इस पात्र को निर्वात करके उसमें एक शुद्ध वाष्पशील द्रव भर देते हैं। ताप T स्थिर रखते हैं, साम्यावस्था में मापा गया दाब शुद्ध विलायक का वाष्प दाब, माना p° है। अब यदि इस पात्र में शुद्ध विलायक के स्थान पर उतना ही आयतन किसी विलयन का लिया जाये जिसमें अवाष्पशील विलेय घुला हुआ हो तो हम देखते हैं कि साम्यावस्था पर इस विलयन का वाष्प दाब ps आता है जिसका मान शुद्ध विलायक के वाष्प दाब p° से कम है, अर्थात् विलेय पदार्थ आ जाने से विलयन वाष्प दाब में आपेक्षिक अवनमन (Relative Lowering in vapour pressure) हो जाता है। इस चित्रा 9.7(a) व (b) में प्रदर्शित किया गया है।
चूंकि विलेय अवाष्पशील होता है इसलिए विलयन के ऊपर जो वाष्प होती है वह भी शुद्ध विलायक की ही वाष्प होती है। विलयन में विलेय की मोल भिन्न (mole fraction) बढ़ने के साथ उसका वाष्प दाब कम होता जाता है। इसे चित्र 9.8 में वक्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है। विलयन में ज्यों ज्यों x1 का मान बढ़ता जायेगा, विलयन का वाष्प दाब कम होता जायेगा, जब x= 0 है तो P = p°| यदि विलयन अत्यन्त तनु हो और का मान लगभग शून्य हो तो वक्र टूटी लाइन जैसी आती है। विलेय-विलायक के भिन्न-भिन्न अनुपातों के अनुसार प्रायोगिक वक्र इस टूटी हुई लाइन वाली वक्र के ऊपर अथवा नीचे हो सकती है। लेकिन समस्त सान्द्रता वाले विलयनों के लिए जो प्रायोगिक वक्र आती है वह टूटी लाइन पर (x1 = 0 पर) एक स्पर्श रेखा (tangent) के रूप में होती है, जैसी कि चित्र 9.8 में ठोस लाइन दिखायी गयी है। टूटी हुई लाइन अर्थात् आदर्श वक्र के लिए निम्न 04 समीकरण दी जा सकती है
P1 = p0 p° x1 = p0 (1- x1) …………………(18)
यदि विलयन के लिए विलायक की मोल भिन्न x0 हो तो
Xo + x1 =1
उस स्थिति में समीकरण (18) निम्न प्रकार लिखी जा सकती है
Ps =x0p0 ……………………..(19)
उपर्युक्त समीकरण (19) रॉउल्ट नियम (Raoult’s law) है। रॉउल्ट ने 1887 में तनु विलयनों के लिए एक नियम दिया जिसके अनुसार, “किसी विलयन का वाष्य दाब ps उसमें उपस्थित विलायकों की मोल भिन्न । (mole fraction) x के समानुपाती होता है।” इसे हम वाष्प दाब आपेक्षिक अवनमन का रॉउल्ट नियम (Raoult’s law of relative lowering of vapour pressure) कहते हैं। विलायक की मोल भिन्न तथा वाष्प दाब में सम्बन्ध चित्र 9.9 में दिये गये द्वारा प्रदर्शित किया गया है। समीकरण (19) में x० अर्थात् विलायक की मोल भिन्न का मान सदैव धनात्मक व एक से कम होगा, अतः विलयन के वाष्प दाब P, का मान शुद्ध विलायक के वाष्प दाब p° से सदैव ही कम होगा। अतः जब भी किसी शुद्ध 1- 1 विलायक में कोई अवाष्पशील विलेय घोला जायेगा तो उसका वाष्प दाब कम हो जायेगा अर्थात् वाष्प दाब का अवनमन (lowering) प्रेक्षित होगा। माना किसी विलयन के लिए वाष्प दाब में p की कमी आयी अतः ।
P = p0-Ps ……………. ….(20)
समीकरण (19) से का मान रखने पर,
P = p0-p xo = p (1 – x0) …………………(21)
X0 + x1 = 1 (1 – x0) = x1
अथवा p = po x1
अथवा p/p0 = x1
P0 – ps/p0 = x1 …………… …(22)
समीकरण (22) के बायें भाग वाले व्यंजक (p0 – ps/p0) को हम बाध्य दाब का आपेक्षिक अवनमन (relative | lowering of vapour pressure) कहते हैं। अतः हम रॉउल्ट नियम को इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं किसी विलयन का आपेक्षिक वाष्प दाब अवनमन उस विलयन में उपस्थित विलेय की मोल भिन्न के बराबर होता है।
यदि किसी विलयन में विलेय के n मोल व विलायक के N मोल हों तो विलेय की मोल भिन्न
X1 = n/n+N
X1 का मान समीकरण (22) में रखने पर,
P0 – ps /p0 = n/n + N = W1/M1/(W1/M1) + (W0/M0)
यह रॉउल्ट नियम की समीकरण है और इस समीकरण के अनुसार विलयन के आपेक्षिक वाष्प दाब अवनमन का मान विलेय के कणों की संख्या पर निर्भर करता है अतः यह एक अणुसंख्य गुण (colligative property) है। रॉउल्ट का नियम तन विलयनों पर ही सफलतापूर्वक लागू होता है। जो विलयन रॉउल्ट नियम का पूर्णरूप से पालन करते हैं, उन्हें आदर्श विलयन (ideal solutions) कहा जाता है। यदि विलयन अत्यन्त ही तनु हो तो N>>n, अतः उस स्थिति में n + N – N और तब समीकरण (23) का स्वरूप निम्न हो जाता है
po – ps /P0 = n/N = W1/M1/W0/M0 …………….. ….(24)
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