पृथ्वी की आंतरिक संरचना (internal structure of earth in hindi) , क्रस्ट या भू-पर्पटी , मेंटल , कोर या क्रोड़
घनत्व के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना दर्शायी जाती है। पृथ्वी का औसत घनत्व का मान लगभग 5.5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर होता है।
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का अध्ययन भूकंप विज्ञान के आधार पर किया जाता है अर्थात भूकम्प विज्ञान में भूकम्प के बारे में प्राप्त आकंड़ो या अध्ययन के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अनुमान लगाया जाता है।
भूकम्प विज्ञान के अंतर्गत मुख्यतः भूकम्पीय तरंगो का अध्ययन किया जाता है तथा भूकम्पीय तरंगो के अध्ययन से निम्नलिखित अनुमान लगाये गये है ;-
(1) भूकंपीय तरंगे वक्राकार मार्ग में चलती है जो दर्शाता है कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में सभी स्थानों का घनत्व बदलता रहता है।
(2) पृथ्वी के आंतरिक भाग भाग में P तथा S तरंगो की गति बढती है जो यह दर्शाती है कि गहराई के साथ पृथ्वी के आंतरिक भाग का घनत्व बढ़ता है।
(3) भूकंपीय तरंगो का छाया क्षेत्र दर्शाता है कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में एक परत द्रव अवस्था में स्थित है।
(4) P (प्राथमिक) और S (द्वितीय) तरंगो की गति स्थानों पर बहुत अधिक परिवर्तित होती है अत: घनत्व के आधार पर पृथ्वी में तीन प्रमुख परते पायी जाती है।
1. क्रस्ट या भू-पर्पटी (crust) : यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है जो पृथ्वी की समूह से 35 किलोमीटर गहराई तक स्थित है। इस परत का घनत्व सबसे कम पाया जाता है। इस परत का निर्माण मुख्यतः सिलिका तथा एल्युमिनियम तत्वों से हुआ है अत: इसे Si-Al (sial) परत भी कहते है।
घनत्व के आधार पर इस परत को दो भागो में बाँटा गया है –
(i) ऊपरी क्रस्ट (upper crust) : यह परत पृथ्वी की सतह से 25 किलोमीटर गहराई तक स्थित है। इस परत का घनत्व 2.7 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। इस परत का निर्माण मुख्यतः ग्रेनाईट चट्टानों से हुआ है और यह महाद्वीपों का निर्माण करती है।
(ii) निचली क्रस्ट (lower crust) : यह परत 25 किमी से 35 किमी की गहराई के बीच पायी जाती है। इस परत का घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। यह परत मुख्यतः बसाल्ट चट्टानों से बनी है तथा यह परत महासागर के तल का निर्माण करती है।
2. मेंटल (mantle) : यह परत 35 किलोमीटर से 2900 के बीच स्थित है। इस परत का औसत घनत्व 4.6 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। इस परत में सिलिका तथा मैग्नीशियम तत्व पाए जाते है अत: इसे SiMa परत भी कहते है। इस परत का निर्माण ‘पैरीड़ोटाइड’ चट्टानों से हुआ है।
35 से 700 km के बीच उपरी मेंटल स्थित है। ऊपरी मेंटल में 100 से 200 km के बीच ‘दुर्बल मण्डल’ स्थित है। जहाँ रेडिओ धर्मी पदार्थो का विघटन होता है तथा यह क्षेत्र अर्द्ध तरल (semi-molten) अवस्था में स्थित है।
मेंटल परत पृथ्वी के अधिकतम द्रव्यमान और आयतन का निर्माण करती है।
3. कोर या क्रोड़ (core) : यह परत 2900 किलोमीटर से 6371 किलोमीटर के बीच पायी जाती है। इस परत का घनत्व सर्वाधिक है। इस परत का निर्माण मुख्यतः निकल (Ni) व फेरस (Fe) से हुआ है इसलिए इसे निफे (NiFe) परत कहते है।
घनत्व के आधार पर इसे दो उप-परतो में बांटा जाता है।
(i) बाहरी क्रोड़ (outer core) : यह परत 2900 से 5150 km के बीच पायी जाती है।
इस परत का घनत्व का लगभग 10 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है।
अधिक तापमान के कारण यह परत द्रव अवस्था में पायी जाती है , इस परत में आवेशित कणों का निर्माण होता है , जिनके कारण विद्युत चुंबकीय क्षेत्र बनता है।
यह विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र (EMF) पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण करता है।
(ii) आंतरिक कोर/क्रोड़ (inner core) : यह परत 5150 km से 6371 km के बीच पायी जाती है। इस परत का घनत्व लगभग 11 से 13 ग्राम प्रति सेंटीमीटर होता है।
इस परत में ताप के साथ दाब भी बहुत अधिक होता है अत: यह परत ठोस अवस्था में पायी जाती है।
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