पीड़क प्रबंधन की स्वेदशी पद्धतियाँ या विधियाँ कौनसी है ? कीट प्रबंधन indian pest management ways in hindi
indian pest management ways in hindi पीड़क प्रबंधन की स्वेदशी पद्धतियाँ या विधियाँ कौनसी है ? कीट प्रबंधन क्या है ?
पीड़क-नियंत्रण पर किसानों की देसी तकनीकी जानकारी (IFTK) का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
इस भाग में आप प्रागैतिहासिक, ऐतिहासिक और वैदिक कालों में किसानों और सामान्य लोगों द्वारा अपनायी गई पीड़क-पद्धतियों का अध्ययन करेंगे।
प्राचीन और वैदिक काल
प्रागैतिहासिक, ऐतिहासिक और वैदिक कालों में हमारे पूर्वजों द्वारा पीड़क-नियंत्रण पद्धतियों के बारे में प्रमाण मिलते हैं। इन कालों के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली कुछेक पद्धतियाँ हैं, जमीन को खोदकर उसमें बेलनाकार गड्डे बनाकर, अथवा मिट्टी और रस्सियों के बड़े-बड़े पात्रों में, अथवा अच्छी तरह से पकाए हुए मिट्टी के बर्तनों में, अनाज का भंडारण करना, गुलेल से ढेले मार कर पक्षियों को डरा कर भगा देना, मिश्रित खेती का आरंभन, खेती में सिंचाई करते समय पानी का नियंत्रित उपयोग।
वैदिक काल में किसान मक्के की फसल से पक्षियों को दूर भगाने के लिए खूब शोर मचाते थे अथवा जाल बिछाते थे, और जंगली जानवरों को भगाने के लिए खेत में गड्ढे खोद देते थे अथवा जाल बिछा देते थे। बुआई करने से पहले बीजों में गाय का गोबर मिला देने से अथवा सोलेनम इंडिकम के दूधिया रस, नारियल के पानी, गाय के घी से उन्हें उपचारित करने का भी चलन था।
प्राचीन काल से ही भारतवर्ष के लोग पीड़कों का नियंत्रण करने के लिए अपने परंपरागत धार्मिक और अनुष्ठान मनाते थे। यहाँ आपको हम कुछ उदाहरण दे रहे हैं –
दीपावली रू लक्ष्मी को भारतवर्ष के धार्मिक ग्रंथों में धन-दौलत की देवी माना गया है। अनाज और कृषि से उत्पन्न उत्पाद को, जो जीवन की वास्तविक दौलत हैं, पीड़क नष्ट कर देते हैं। ऐसा लगता है कि दीपावली का त्यौहार कीट पीड़कों को व्यापक स्तर पर मारने के लिए मनाया जाता है। कार्तिक (हिंदू कलैंडर) के माह अमावस्या की रात में, (जिस रात में चन्द्रमा दिखाई नहीं देता) जब खरीफ की फसल कट चुकी होती है और रबी की फसल की बुआई आरंभ हो जाती है, धन-संपत्ति की देवी, लक्ष्मी को संतुष्ट करने के लिए समूचे भारत में अगण्य दीप जलाए जाते हैं। इस माह में खेतों की जुताई के पश्चात् कीट पीड़क सतह पर आ जाते हैं और दीपावली के दीपों की रोशनी के ऊपर बड़ी संख्या में मँडराने लगते हैं और प्रकाश के रूप में बिछाए गए इस जाल में फंस कर मर जाते हैं।
नागपूजा रू दुमुँही, एक प्रकार का तेजी के साथ रेंगने वाला साँप, और पनियारा, जलीय साँप, विषहीन होते हैं और कीट-पतंगों को खाते हैं। हिंदू लोग नागपंचमी (श्रावण मास का एक दिन) को साँपों की श्श्पूजाश्श् करते हैं। प्रकट रूप से वे ऐसा इसीलिए करते हैं कि किसान साँपों को न मारे चाहे वे मानसून के दिनों में घरों के भीतर ही क्यों न घुस आएँ। इस दिन, लोग साँपों को दूध पिला कर और अनाज खिलाकर उनकी पूजा करते हैं। संस्कृत में साँप को क्षेत्रपाल कहा जाता है क्योंकि साँप पीड़कों द्वारा होने वाले नुकसान में फसलों की रक्षा करता है।
इसी प्रकार श्श्नीलकंठ” नामक पक्षी केवल कीट-पतंग ही खाता है। हमारे देश में इस पक्षी को शुभ माना जाता है उसे विध्वंसक शिव का प्रतीक माना जाता है।
आधुनिक काल
ईसा से पूर्व पहली शताब्दी और ईसा के बाद छठी शताब्दी में विख्यात चीनी, सिह शेरी – हन ने कृषि से संबंधित एक विश्वकोष प्रकाशित किया जिसमें कायम बनी रहने वाली कृषि की अनेक पद्धतियों की सूची दी गई है। मजूमदार (1935) ने पीड़क-नियंत्रण में देसी वनस्पति शास्त्रीय जानकारी का संकलन किया। प्राचीन संस्कृत साहित्य में भी परंपरागत कृषि के बारे में उल्लेख मिलता है। इन साहित्यकारों ने लिखा है कि उत्तम किस्म के बीजों को पीड़कों के आक्रमण से बचाए रखने से कृषकों को समृद्धि संपन्नता मिलेगी। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि कृषि के बारे में परंपरागत जानकारी हमें प्रागैतिहासिक, ऐतिहासिक, वैदिक और मध्य काल से ही थी।
बोध प्रश्न 1
प) सभ्यता के प्रारंभिक दिनों में कीट पीड़कों के आक्रमण से अनाज की किस प्रकार सुरक्षा की जाती थी?
पप) वैदिक काल में फसलों से पक्षियों का डरा कर भगाने के लिए किस प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता था?
उत्तरमाला –
1) प) जमीन में खोदकर बनाए गए बेलनाकार गड्डों में अथवा कोठारों में. रस्सियों से बनाए गए और मिट्टी द्वारा लेपित बर्तनों में, अथवा मिट्टी के भलीभांति पकाए गए बर्तनों में अनाजों का भंडारण करना आम पद्धति थी।
पप) पक्षियों को गुलेल में लगा कर मिट्टी के ढेलों से डरा कर भगा देना, और मिश्रित सस्यन कुछ ऐसी प्रणालियाँ थीं जिनसे प्रमुख फसल को बचाया जा सकता था।
आधुनिक कृषि में पीड़क-प्रबंधन की परंपरागत जानकारी का विस्तार
संश्लेषित पीड़कनाशियों के दुष्प्रभाव दिन पर दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। पीड़क-समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं और देश के विभिन्न भागों में समय-समय पर मानव-दुर्घटनाएँ घटती ही। रहती हैं। इसके एक प्रतिकार के रूप में हमारी देसी जानकारी, जिसे हमारे पूर्वज भूल चुके थे, आशाजनक और पारि-अनुकूली दिखाई पड़ती है। यह बात भी सही है कि संश्लेषित पीड़कनाशी मँहगे होते हैं और गरीब किसानों की सामर्थ्य से बाहर होते हैं, जिसके कारण एक भिन्न प्रकार का उपागम करना पड़ता है जो किसानों की देसी तकनीकी जानकारी पर हुए शोधकार्यों पर आधारित है। इस उपागम से अंततरू जैव-गहन आई पी एम (इपव.पदजमदेपअम प्च्ड) का विकास हो सकता है। इस प्रकार की योजना आर्थिक रूप से उपयुक्त होगी, सामाजिक दृष्टि से मान्य होगी और विकासशील देशों में फसलों के पीड़कों के प्रबंधन में प्रणाली में प्रभावी भी होगी।
अधिकांश कृषक आज भी कुछ किसानों के देसी तकनीकी जानकारी (IFTK) को अपनाते हैं जिसे उन्होंने अपने अनुभवों और अपने क्षेत्र के लिए अनुकूली आवश्यकताओं के आधार पर विकसित किया है। IFTK से अनेक निरापद, सस्ती, प्रभावी और फसलों के पीड़क प्रबंधन की योजनाओं को विकसित करने में सहायता मिल सकती है जिन्हें लंबी अवधि तक जारी रखा जा सकता है। इसलिए IFTK पर एक व्यापक डेटाबेस विकसित करने की आवश्यकता है। यहाँ एक मूलभूत प्रश्न यह उठता है कि “क्या प्थ्ज्ज्ञ वास्तव में सफल है या नहीं? ” किसान सामान्यतरू कहते हैं श्हाँश्, लेकिन जो भी शोधकार्य हो रहे हैं वे इस प्रश्न की पूरी तरह व्याख्या नहीं कर सकते।
उन प्राकृतिक उत्पादों (पादपजन्य, खनिज और प्राणि-उत्पाद) जिनका उपयोग अभी कम किया गया है और अभी उन्हें मान्यता भी नहीं मिली है, को मानो अकेला ही अथवा मिलाजुला कर इस्तेमाल किया गया है, प्च्ड में बहुत प्रभावी साबित हुए हैं। इन उत्पादों में से कुछ में व्यापारिक रूप में प्रयुक्त किए जाने की संभावना मौजूद है।
बोध प्रश्न 2
प) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
क) IFTK संक्षेपण का विस्तृत रूप लिखिए………………………………।
ख) IFTK पर व्यापक………………………………विकसित करने की आवश्यकता है।
पप) आधुनिक कृषि-तंत्रों में IFTK की प्रासंगिकता की चर्चा कीजिए।
उत्तरमाला –
2) प) किसान का देसी तकनीकी ज्ञान
ख) डेटाबेस
पप) भाग 9.3 देखिए
पीड़क प्रबंधन की स्वेदशी पद्धतियाँ
पीड़क प्रबंधन की देसी पद्धतियाँ, जैसे अंतरसस्यन (intercropping), सीमावर्ती सस्यन (border cropping), गहन सिंचाई, ग्रीष्म जुताई, परती खेत छोड़ना (leavingf allow land), आदि, (इन नियंत्रण पद्धतियों के बारे में आप इकाई 11 में विस्तार से पढ़ेंगे) के अतिरिक्त प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल ऐसे उपाय थे जिन्हें फसल और भंडारित उत्पादों के पीड़कों के नियंत्रण के लिए इस्तेमाल किया जाता था। हाल ही में भारत में पीड़क नियंत्रण की 1000 देसी तकनीकों के लिखित प्रमाण मिले हैं जिनसे से 700 तकनीकें फील्ड-कृषि और उद्यान कृषि के पीड़कों के नियंत्रण संबंध में हैं और शेष भंडारित अनाजों के पीडकों के लिए। तालिका 9.1 में कछेक परंपरागत पीडक-प्रबंधन की विभिन्न पद्धतियों की सूची दी गई है। तालिका से यह स्पष्ट हो जाता है कि कीट-पीड़कों, रोगों और अपतृणों से लड़ने के लिए भारतीय किसान पीड़क-प्रबंधन की अनेक पद्धतियाँ इस्तेमाल करते हैं।
तालिका 9.1 : महत्वपूर्ण सस्य की वे पद्धतियाँ जिनका इस्तेमाल भारतीय किसान फसलों के महत्वपूर्ण पीड़कों (कीट-पीड़क, रोग और अपतृण) के नियंत्रण में करते हैं।
पद्धतियाँ लक्ष्य फसलें लक्ष्य पीड़क
1. अंतरसस्यन
(क) गेंदा अरहर नेमैटोड
बैगन, मिर्च पर्ण-कुंचक (lfea curl)नेमैटोड
आलू, सेम,
टमाटर, मटर चित्ती, मिलड्यू तथा
फफूंदी जनित अन्य रोग
सरसों सरसों का ऐफिड
(ख) अलसी गेहूँ। चूहे (कृतक प्राणी)
मसूर शिंब-बेधक (चवक इवतमत)
(ग) मक्का अरहर फसल का मुरमाना
(घ) धनियाँ अरहर शिंब-बेधक
(च) मसूर जौ फसल का मुरझाना
(छ) मसूर अलसी मुकुल-मक्खी (Bud fly)
(ज) धनियाँ और हल्दी आम का बागान पीड़क और रोग
(झ) कैनेबिस आलू चित्ती
(प) मक्का अरहर फसल का मुरझाना
2. सीमावर्ती सस्यन
(क) कैनेबिस आलू चित्ती
3. सस्यावर्तन
(क) मक्का अरहर फसल का मुरझाना
4. खेत में चारों तरफ बाँस की खप्पचियाँ लगाना ताकि फसल को पक्षी नुकसान न पहुँचा सकें। अनेक फसलें विभिन्न प्रकार के शिंब-बेधक
5. खेत के पुस्तों पर अरंडी उगाना ताकि वहाँ प्राकृतिक शत्रु पनप सकें अनेक फसलें ग्रीन लेसविंग
6. शेड के नीचे फलियों का लटका कर संचयन करना।
मक्का भंडारित अनाज के वीविल (घुन)
7. भंडारित अनाज को धूप में सुखाना सभी अनाज और दालें भंडारित फसल के पीड़क
बोध प्रश्न 3
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए रू
(क) गेंदा को………………………………के साथ-साथ उगाया जाता है ताकि नेमैटोड के संक्रमण को कम किया जा सके।
(ख) अलसी को गेहूँ के साथ उगाया जाता है ताकि………………………………के संक्रमण को नियंत्रितध्रोक जा सके।
(ग) खेत के पुश्ते पर अंरडी उगाने से………………………………के संक्रमण की रोकथाम की जा सकती है।
(घ) ……………………………….से गेहूँ को बचाने के लिए अनाज को धूप में सुखाया जाता है। .
उत्तरमाला –
3) प) क) अरहर, बैंगन अथवा मिर्च
ख) चूहे
ग) फसलों के पीड़कों के ग्रीन लेसविंग्स परभक्षी और अन्य प्राकृतिक शत्रु।
घ) भंडारित अनाजों के कीट
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