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संकरण : संकरण की परिभाषा क्या है ? कक्षीय संकरण संकरण के नियम hybridization in hindi

संकरण : trick

  1. यदि संख्याओं का योग 8 या 8 से कम आता है तो उसे 2 से विभाजित करते है।
  2. यदि संख्याओं का योग 8 से अधिक आता है तो इसे 8 से विभाजित करते है।
  3. यदि यौगिक पर ऋणावेश दिया है तो संख्याओ के योग में उतना ही ऋणावेश जोड़ देते है।
  4. यदि यौगिक पर धनावेश दिया हुआ हो तो संख्याओ के योग में उतना ही धनावेश घटा देते है।

 

13
14
15
16
17
18
B
C
N
O
F
Ne
Al
Si
P
S
Cl
Ar
Ga
Ge
As
Se
Br
Kr
In
Sn
Sb
Te
I
Xe
Ti
Pb
Bi
Po
At
Rn

 

उदाहरण :

  • 1.
    CH4 = 4 + 4

CH4 = 8/2 = 4 = SP3
  • 2.
    H2O = 2 + 6

H2O = 8/2 = 4 = SP3
  • 3.
    BCl3 = 3 + 21

BCl3 = 24/8 = 3 = sp2
  • 4.
    CO2 = 4 + 12

CO2 = 16 /8 = 2 = sp
  • 5.
    PCl5 = 5 + 35

PCl5 = 40/8 = 5 = sp3d
  • 6.
    SF6 = 6 + 42

SF6 = 48/8 = 6 = sp3d2
  • 7.
    IF7 = 7 + 49

IF7 =  56/8
= 7 = sp3d3
  • 8.
    I3 = 21 + 1

I3 = 22/8 = 2
6/2 = 3
2 + 3 = 5 = sp3d1
  • 9.
    IF5 = 7 + 35

IF5 = 42/8 = 5
2/2 = 1
5 + 1 = 6
Sp3d2
  • 10.
    XeF4 = 8 + 28

XeF4 = 36/8 = 4
4/2 = 2
4 + 2 = 6 = sp3d2
  • 11.
    XeF6 = 8 + 42

XeF6 = 50/8 = 6
2/2 = 1

 

6 +1 = 7 = sp3d3

trick की सीमा : यदि केन्द्रीय परमाणु p खण्ड का है तो ही यह ट्रिक काम में आती है .

संकरण

कार्बन (C) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2
2s
2 2p2 होता है।
इसमें दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते है अत: c को द्विसंयोजी होना चाहिए , लेकिन c चतु: संयोजी होता है।  इस तथ्य को समझाने के लिए 2s कक्षक में से एक इलेक्ट्रॉन 2p कक्षक में उत्तेजित कर देते है इससे चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हो जाते है।  इस प्रकार एक बंध 2s से तथा तीन बंध 2p से बनते है परन्तु कार्बन में चारो बंध समान होते है , इस तथ्य को समझाने के लिए संकरण का सहारा लिया गया।
परिभाषा : लगभग समान ऊर्जा तथा भिन्न आकृति के कक्षक परस्पर अतिव्यापन करके समान ऊर्जा , समान संख्या व समान आकृति के कक्षक बनाते है , इस अवधारणा को संकरण कहते है तथा बने हुए कक्षकों को संकर कहते है।

संकरण के नियम

  1. संकरण एक काल्पनिक अवधारणा है जिसका प्रयोग प्रायोगिक तथ्यों को समझाने के लिए किया जाता है।
  2. लगभग समान ऊर्जा के कक्षक ही संकरण में भाग लेते है।
  3. जितने परमाणु कक्षक संकरण में भाग लेते है उतने ही नये संकर कक्षक बनाते है।
  4. संकर कक्षक प्रबल बंध बनाते है क्योंकि इनमें दिशात्मक गुण अधिक होता है।
  5. संकर कक्षक हमेशा सिग्मा (σ) बंध बनाते है , पाई (π) बंध नहीं।
  6. संकरण में रिक्त , अर्धपूरित व पूर्ण पूरित कक्षक ही भाग लेते है।
  7. संकरण कक्षक द्वि-पालित होते है , इनमें से एक पाली बड़ी व एक पाली छोटी होती है।  बड़ी पाली ही बंध बनाने में भाग लेती है।
  8. संकर कक्षकों में प्रतिकर्षण निम्न क्रम में घटता जाता है –

l.p.-l.p. > l.p-B.p. > B.p.-B.p.

यहाँ l.p. = एकाकी युग्म (loan pair)
B.p. = बंधी युग्म (bond pair)
l.p. : बंध बनाने में भाग नहीं लेता।
B.p. : बंध बनाने में भाग लेता है।
9. निश्चित प्रकार का संकरण होने पर ज्यामिति व बंध कोण निश्चित होते है।
10. अणु में एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होने पर अणु के बंध कोण व ज्यामिति निश्चित नहीं होते है।
संकरण :-  σ बन्धो की संख्या + c.p. की संख्या
संकरण
बंध कोण
ज्यामिति
Sp3
109’ 28 ‘
चतुष्फलकीय
Sp2
120’
त्रिकोणमितिय समतल
sp
180’
रेखीय
Sp3d
3 कोण = 120’ ; 2
कोण 90’
त्रिकोणीय द्वि
पिरामिडीय
Sp3d2
90’
अष्टफलकीय
Sp3d3
5 कोण = 72’
2 कोण = 90’
पञ्चभुजिय
द्विपिरामिड
dsp2
90’
वर्गाकार समसमतलीय
tags in English : hybridization in hindi ?