मधुमक्खी का सामाजिक संगठन क्या है , सम्प्रेषण , कालिक श्रम विभाजन , विशेषताएँ honey bee social behaviour in hindi
honey bee social behaviour in hindi मधुमक्खी का सामाजिक संगठन क्या है , सम्प्रेषण , कालिक श्रम विभाजन , विशेषताएँ ?
मधुमक्खी का सामाजिक संगठन
मधुमक्खियाँ संघ आर्थोपोडा के अन्तर्गत वर्गीकृत की जाती है। इनमें संधित उपांग व काइटिन का बाह्य कंकाल पाए जाते हैं। ये आर्थ्रोपोडा के वर्ग इन्सेक्टा (insecta) वर्गीकृत की जाती है क्योंकि इनमें तीन जोड़ी टाँगें पायी जाती हैं। वर्ग इन्सेक्टा में इन्हें गण हाइमेनोप्टेरा (order-Hymenoptera) में रखा गया है। इस वर्ग में 20,000 प्रकार की मक्खियाँ वर्गीकृत की गई हैं परन्तु इनमें से सिर्फ 7 जातियों को ही मधुमक्खी (honey bee) कहा जाता है। ये कुल एपिडी (Apidae) की सदस्य हैं।
दीमक की तरह ही मधुमक्खियों में सुविकसित सामाजिक जीवन पाया जाता है। मधुमक्खियाँ भी संघ आर्थ्रोपोडा का सदस्य हैं परन्तु ये गण हाइमेनोप्टेरा (hymenoptera) में वर्गीकृत की जाती है। यहाँ हम इस जाति में पाई जाने वाली सामाजिकता के परिप्रेक्ष्य में ही इसका अध्ययन करेंगे।
प्रधुमक्खी की ज्ञातियाँ (Caste of Honey bee
मधुमक्खियों के सामाजिक जीवन में भी दीमकों की तरह बहुरूपता (polymorphism ) मिलती है। मधुमक्खियों में निम्न तीन प्रकार की ज्ञातियाँ या प्रकार पाये जाते हैं
- पुमक्षिका या नर ( Drone )
नर अगुणित (haploid) होते हैं। मधुमक्खी के छत्ते में नरों की संख्या बहुत कम होती है। ये में कोई काम नहीं करते हैं। जीवन में सिर्फ इनका एक ही कार्य होता है। ये आवश्यकता पड़ने शुक्राणु उपलब्ध कराते हैं। इसी कारण ये ड्रोन वृन्दन से पूर्व उत्पन्न होते पर मादा को निषेचन हैं। जब भोजन की कमी आती है या फूलों का मौसम गुजर जाता है तब छत्ते से नर या पुंमक्षिकाओं को खदेड़ दिया जाता है।
वृन्दन के समय नर रानी के साथ कामद उड़ान (nuptial flight) हेतु निकलते हैं। मैथुन के उपरान्त नर की मृत्यु हो जाती है।
- रानी (Queen)
रानी छत्ते की एक मात्र वयस्क जननक्षम मादा होती है। मादा भी अण्डोत्पादन के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य नहीं करती। मादा द्विगुणित ( diploid) होती है। मादा सामान्यतया आकार में बड़ी होती है तथा यह छत्ते के निचले भाग में पाई जाती है। एक छत्ते में यदि दो रानियाँ उत्पन्न हो जाएँ तो वे या तो प्राणान्तक युद्ध में जुट जाती है अथवा इनमें से एक को छत्ता त्यागना पड़ता है।
- श्रमिक (Workers )
श्रमिक द्विगुणित ( diploid) बन्ध्य मादाएँ हैं जिनमें जनन तंत्र अविकसित होता है। छत्ते में प्रजनन के अतिरिक्त सभी कार्य जैसे रक्षा, छत्ते को गर्म या ठण्डा रखना (मौसम के अनुसार), पुंमक्षिका व रानी के पोषण की व्यवस्था, अण्डों की देखभाल करना, छत्ता बनाना, डिम्भकों को पोषण देना आदि श्रमिक ही पूर्ण करते हैं। छत्ते की आबादी का अधिकांश भाग इन्हीं मेहनती श्रमिकों का बना होता है।
मधुमक्खियों में दीमकों की तरह सैनिक नहीं पाए जाते हैं। श्रमिक ही सैनिकों की तरह भी काम करते हैं। इनके उदर पर उपस्थित अण्डनिक्षेपक ( ovipostitor) रूपान्तरित होकर डंक (sting) बनाता है जो अक्रान्ता पर हमला करने के काम आता है।
मधुमक्खियों की विश्व में लगभग बीस हजार जातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से 80 से 90 प्रतिशत एकल होती है। शेष अलग-अलग प्रकार का सामाजिक जीवन प्रदर्शित करती हैं जिन्हें अलग-अलग नाम दिए गए हैं। यहाँ जो वर्णन किया गया है वह एपिस मेलिफेरा (Apis-mellefera) नामक जाति पर आधारित है। मधुमक्खी पालन हेतु काम ली जा रही अन्य जातियों में भी ऐसा ही सामाजिक जीवन पाया जाता है। इसे अतिसामाजिक (hypersocial) जीवन भी कहा जा सकता है। यह सुसामाजिक कीटों का एक अग्रगत स्वरूप है जिसमें जननशील मादा प्रजनन हेतु इतनी अधिक विशिष्टीकृत हो जाती है कि स्वयं अपना छत्ता नहीं बना पाती है तथा उसके लिए उसे श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इन मधुमक्खियों के सामाजिक जीवन की विशेषताएँ जानने से पूर्व यह उचित रहेगा कि हम इनके जीवन चक्र के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त कर लें ।
जीवन-चक्र
एक छत्ते में जाति के अनुसार 10,000 से 80,000 हजार तक मधुमक्खियाँ रहती हैं। अधिकांश भाग श्रमिकों का होता है। श्रमिकों को कड़ी मेहनत करनी होती है अतः इनका स्वस्थ व मजबूत होना आवश्यक है। बस्ती (छत्ते) में श्रमिकों की मृत्यु इस कारण शीघ्र होती रहती है ताकि जवान व स्वस्थ श्रमिकों का अनुपात ठीक रहे। जब श्रमिकों को कम काम करना होता है तब इनकी उम्र 9 माह तक हो सकती है अन्यथा कठिन मेहनत की अवधि में ये डेढ़-दो माह तक ही जीवित रहती हैं।
श्रमिकों की संख्या स्थिर रखने के लिए रानी लगातार अण्डे देती रहती है। इनसे निकलने लाव को श्रमिक मक्षिकादन (bee-bread) नामक भोजन खिलाते हैं। यह एक साधारण भोजन है। जिसको खाकर लार्वा श्रमिक मक्खियों के रूप में परिवर्धित होते हैं। अण्डे से वयस्क बनने तक में कुल 21 दिन का समय लगता है।
कुछ लार्वाओं को एक विशेष भोजन जिसे शाही जैली (royal jelly) कहा जाता है भोजन के रूप में दिया जाता है जो श्रमिकों की विशेष ग्रसनी-ग्रन्थियों (pharyngeal glands) द्वारा तैया किया जाता है। यह कछ विशेष विटामिनों (पेन्टोथेनिक अम्ल) से समृद्ध होता है। इस विशेष भोजन को खाकर अण्डे 16 दिन में रानी में परिवर्तित हो जाते हैं। श्रमिक व रानी मक्खियों में आनुवंशिक दृष्टि से कोई अन्तर नहीं होता है। सिर्फ शाही जैली का पोषण कुछ द्विगुणित लाओं को रानी वन सकता है जो श्रमिक की तुलना में 40-50 गुना अधिक लम्बा जीवन जीती है तथा नित्य अपने वजन के बराबर या उससे ज्यादा अण्डे उत्पन्न करती है।
रानी (पुरानी या नई) छत्ते की भीड़ से बचने हेतु वृन्दन ( Swarming) हेतु निकलती है। उसकी यह उड़ान कामद उड़ान कहलाती है। उड़ान के दौरान रानी पुंमक्षिकाओं से मैथुन करती है। इन नर मक्खियों के शुक्राणु की शुक्रग्राहिका (spermatheca) में एकत्रित हो जाते हैं। सामान्यतया 4 से 7 पुंमक्षिकाओं से मैथुन के उपरान्त शुक्रग्राहिका पूर्ण भर जाती है। नर मैथुन के उपरान्त मर जाते हैं। निषेचित रानी अब या तो पुराने छत्ते में लौट आती है अथवा छते के अधिकांश (लगभग) दो तिहाई सदस्यों (श्रमिकों) के साथ पुराना छत्ता छोड़ कर नया छत्ता बनाने निकल पड़ती है। नए छत्ते में पूर्व वर्णित तरीके से जीवन वृत्त शुरू होता है। रानी श्रमिकों व नई रानियों की संख्या नियंत्रित करने करने हेतु अपनी चिबुक ग्रंथि (mandibular gland) से एक प्रकार का फीरोमोन (pheromone) स्रावित करती है जिसे ‘क्वीन सब्स्टेन्स’ (queen substance) कहा जाता है। इसके प्रभाव के कारण श्रमिक मक्खियाँ छत्ते की तैयारी व लार्वा का पोषण इस तरह करते हैं कि नए लार्वा श्रमिक ही बनें। जब रानी मक्षिका वृद्ध या अप्रभावी होने लग जाती है तब छत्ते को नई रानी की आवश्यकता होती है। इस समय रानी की चिबक ग्रन्थियों से इस फीरोमोन का स्राव स्वतः ही कम होने लगता है। इस फीरोमोन का प्रभाव कम होते ही श्रमिक छत्ते में शाही कक्ष बनाने लग जाते हैं तथा लार्वाओं में से कुछ को शाही जैली का भोजन देते हैं। इस तरह नई रानी उत्पन्न होती है।
लगातार प्रजनन करते समय रानी के शरीर में संचित शुक्राणुओं का उपयोग अण्डों को निषेचित करने हेतु किया जाता है परन्तु फिर भी यदा-कदा कुछ अण्डे अनिषेचित ही उत्पन्न हो जाते हैं। यह घटना प्राकृतिक अनिषेकजनन (natural parthenogenesis) कहलाती है। जब रानी की शुक्रग्राहिका खाली हो जाती है तब भी अनिषेचित अण्डे दिए जाते हैं। इन अनिषेचित अण्डों से पुंमक्षिकाएँ (Drones) उत्पन्न होती हैं। जो पुनः मैथुन का कार्य कर सकती हैं तथा द्विगुणित श्रमिक व रानी उत्पन्न करने हेतु शुक्राणु उपलब्ध करवा सकते हैं।
इस तरह से मधुमक्खी का पूर्ण जीवन चक्र सामाजिक जीवन व सामाजिक ढांचे को बनाए रखने हेतु अनुकूलित होता है। मधु मक्खियों में सामाजिक जीवन के कारण एक अन्य विशेषता पाई जाती है इसे सम्प्रेषण (communication) कहते हैं। इसके अतिरिक्त इसके श्रमिकों को कालिक श्रम-विभाजन भी पाया जाता है। इनका सूक्ष्म रूप में वर्णन यहाँ दिया जा रहा है।
मधुमक्खी के सामाजिक जीवन की कुछ अन्य विशेषताएँ
- सम्प्रेषण
समाज का संगठन बनाए रखने हेतु समाज के सदस्यों के बीच संवाद या सम्प्रेषण (सूचना के आदान-प्रदान) की आवश्यकता होती है। यह समाज का महत्त्वपूर्ण अंग है। सम्प्रेषण रसायनों द्वारा हो सकता है। मधु मक्खियों द्वारा स्रावित फेरोमोन इसी तरह के रासायनिक सम्प्रेषण का उदाहरण है।
मधुमक्खी के विशेष नृत्य के बिना जन्तु सम्प्रेषण का कोई आलेख पूर्ण नहीं हो सकता है। मधुमक्खियाँ साथी श्रमिकों को भोजन के स्रोत की जानकारी देते हेतु विशेष नृत्य करती हैं। इस नृत्य के द्वारा भोजन खोज कर लौटी मधुमक्खी अन्य मक्खियों को भोजन स्रोत की दिशा, दूरी व प्रकार की जानकारी दे देती हैं। यह नृत्य दो प्रकार का होता है। यदि भोजन का स्रोत छत्ते से लगभग 85 मीटर की दूरी पर हो तो मधुमक्खी एक तरह का घूमर नृत्य (round dance) करती हैं। यदि स्रोत 85 मीटर से अधिक दूर हो तो श्रमिक मक्षिका उदर अभिदोलन नृत्य (tail-wagging dance) करती है जिसमें यह 8 संख्या की आकृति में घूमती है तथा अपना उदर हिलाती है। इस नृत्य में सूर्य व छत्ते के साथ बने कोण तथा उदर हिलाने की आवृत्ति के द्वारा स्रोत की दूरी की
ठीक जानकारी अपने साथ श्रमिकों को दे देती है।
- कालिक श्रम विभाजन
मधुमक्खियों में सिर्फ अलग-अलग जातियों में ही श्रम विभाजन नहीं मिलता है वरन् श्रमिकों के बीच भी कालिका श्रम विभाजन (temporal division of labour) पाया जाता है। इसका आशय है कि श्रमिक हर उम्र में हर तरह का कार्य नहीं करते है वरन् उम्र बढ़ने के साथ इनके कार्य बदलते हैं। नए श्रमिक प्रारम्भ के दो दिन कोई कार्य नहीं करते हैं। तीसरे दिन से कुछ दिन तक ये छने की सफाई का काम करते हैं। इसके बाद ये छत्ते में रहकर ही लार्वाओं को पोषण देने का कार्य करते हैं। इसके बाद यह कुछ समय छत्ते को बनाने का काम सम्हालते है ( चित्र (6)।
उम्र बढ़ने पर यह छत्ते की रखवाली का कार्य सम्हाल लेते हैं। बड़ी उम्र के श्रमिक घर (छत्ते ) से बाहर भोजन ढूँढ़ने का कार्य सम्हालते हैं क्योंकि इनमें परागकण लाने हेतु पश्च पादों (hind limbs) की टीबिया पर पराग करंड (pollen basket) विकसित हो जाते हैं तथा मकरन्द ( necter) लाने हेतु क्रॉप (crop) भी विकसित हो जाती है। संकट के समय श्रमिक सभी तरह का कार्य सम्हाल सकते हैं, परन्तु सामान्य तौर पर ऐसा कालिक श्रम विभाजन इनमें पाया जाता है ।
- सहोदर या बन्धु चयन (Kin Selection )
डार्विन के प्राकृतिक वरण (natural selelction) के सिद्धान्त के अनुसार वे जीव जो अधिक सन्ततियाँ उत्पन्न करते हैं वे उद्विकास द्वारा अन्ततः कम सन्ततियाँ उत्पन्न करने वाले जीवों की तुलना में अधिक सफल होते हैं। मधुमक्खियों में हम देखते हैं कि समाज के कुछ सदस्य (श्रमिक) अन्य सदस्यों को योगदान देने हेतु प्रजनन करना ही छोड़ देते हैं। डार्विन के सिद्धान्त के अनुसार यह समझना कठिन जान पड़ता है कि क्यों मधुमक्खियों का ऐसा साध्वी या त्यागी जीवन लाखों वर्षों से चला आ रहा है तथा वे प्राकृतिक वरण से नष्ट भी नहीं हुई। इस प्रश्न के जवाब में समूह चयन (group selection) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया था जिसके अनुसार प्राकृतिक वरण व्यष्टि (individual) स्तर पर प्रभावी न होकर समूह स्तर पर अपना प्रभाव डालता है परन्तु उचित स्पष्टीकरण के अभाव तर्क में यह मान्यता प्राप्त न कर सका।
जे. एम. स्मिथ (J. M. Smith) नामक विद्वान ने बाद में ‘सहोदर चयन’ (Kin selection) का तर्क दिया जिसके अनुसार श्रमिकों को जनन त्यागने से कोई हानि नहीं है वरन् लाभ ही है क्योंकि वे इस तरह से अपने जैसे अनेक ‘सहोदर’ (kin) उत्पन्न करने में सफल होती हैं। यदि सभी मादाएँ ( श्रमिक व रानी) अलग-अलग सन्तान उत्पत्ति व पालन करें तो इस तरह के समाज में कम सन्ततियाँ उत्पन्न होंगी। प्रजनन देखभाल में सहयोग करने से अपेक्षाकृत अधिक संततियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं। श्रमिकों द्वारा प्रजनन का त्याग करने से जाति को तो लाभ है परन्तु इससे उन्हें क्या है ? एक श्रमिक मधुमक्खी एक सहोदर नर (ड्रोन) की तुलना में अन्य श्रमिकों से जीनीय संगठन में अधिक समानता रखती हैं अतः वह प्रजनन न करते हुए प्राकृतिक वरण से अप्रभावित रहती है क्योंकि यह स्वयं प्रजनन न करते हुए भी अपने आनुवंशिक संगठन वाले सदस्यों की उपपत्ति में सहायता करती है। यह परिघटना ही सहोदर या बन्धु चयन कहलाती है।
यहाँ जिन दो कीटों के सामाजिक जीवन का वर्णन किया गया उनमें कुछ समानताएँ तथा कुछ असमानताएँ मिलती हैं। इनके सामाजिक जीवन की समानताओं को तालिका 1 में प्रदर्शित किया गया है।
प्रश्न (Questions)
(A) लघुउत्तरीय प्रश्न ( Short answer Type Questions)
- दीमकों के जमीन से ऊंचे उठे मिट्टी के घर ।
- मधुमक्खियों में नर मक्खी का नाम ।
- जो प्रजनन न कर सके।
- अपना मूल आवास छोड़ कर अन्यत्र बसने के लिए की गई सामूहिक उड़ान ।
- ऐसी उड़ान जिसमें मैथुन किया जाए।
- वह साधारण भोजन जो श्रमिक मक्खियों की प्रारम्भिक अवस्थाओं को खिलाया जाता है।
- एक समाज के विभिन्न सदस्यों द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान।
(B) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)
- समाज एवं सामाजिक जीवन से क्या आशय है ? क्या समाज व निवह समान होते हैं ? स्पष्ट कीजिए एवं विभिन्न प्रकार के समाजों के नाम व विशेषताएँ बताइये ।
- दीमक किस संघ, वर्ग एवं गण की सदस्या हैं ? इसके सामाजिक संगठन पर एक निबन्ध लिखिए।
- दीमक में पाई जाने वाली जातियों का वर्णन कीजिए।
- दीमकों के जीवन वृत्त की जानकारी दीजिए ।
- क्या सभी मधुमक्खियाँ सामाजिक होती हैं ? किसी अतिसामाजिक (hypersocial) मधुमक्खी के सामाजिक जीवन का वर्णन कीजिए।
- दीमक व मधुमक्खी के सामाजिक जीवन का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए ।
- लघु टिप्पणियाँ लिखिए
(i) यूथी जीव व सामाजिक जीवों में अन्तर
(ii) सहकारी अध्यासन (Co-operative brood-care)
- जाति, प्रभेद व जातियाँ (species, strain and castes)
(iv) श्रम विभाजन या कार्य का बंटवारा (Division of labour)
(v) वृन्दन ( Swarming)
(vi) कामद उड़ान (Nuptial flight)
(vii) दीमक के सैनिकों के कर्त्तव्य
(viii) दीमक का भोजन व पाचन
(ix) दीमक का आर्थिक महत्व
(x) मधुमक्खी की जातियाँ
(xi) फीरोमोन (Pheromones)
(xii) कालिक श्रम विभाजन (Temporal division of Labour)
(xiii) मधुमक्खी में सम्प्रेषण
(xiv) सहोदर बन्धु चयन (Kin selection)
(xv) श्रमिक मधुमक्खी
(xvi) दीमक व मधुमक्खी के श्रमिक
(xvii) रानी मधुमक्खी
- दीमक (Termite) तथा मधुमक्खी (bees) में सामाजिक संगठन पर एक लेख लिखिए ।
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