histology of lungs in hindi , फेफड़े की औतिकी क्या है
फेफड़े की औतिकी क्या है histology of lungs in hindi ?
फेफड़े की औतिकी (Histology of lungs)
फेफड़े की अनुप्रस्थ काट में इसके बाहर चारों ओर देहगुहिक उपकला का एक पतला आवरण होता है जिसे विसरल प्लूरा (visceral pleura) कहते हैं। यह एक स्पंजी रचना है र्का तथा इसमें अनेक कुपिकाएँ (alveoli), रक्त वाहिकाएँ (blood vessels) एवं रक्त कोशिकाएँ (capillaries) पाई जाती हैं इन रक्त कूपिकाओं की भित्ति पतली शल्की उपकला (squamous epithelium) द्वारा परिसीमित होती है। मनुष्य के दोनों फेफड़ों में लगभग 750000000 कूपिकाएँ उपस्थित रहती है जो लगभग 100 वर्ग मीटर सतह को घेरे रहती है। कूपिकाओ की भित्तियों के सम्पर्क में अनेक रक्त कोशिकाएँ उपस्थित रहती है। ऑक्सीजन या कार्बन डाईऑक्साइड तथा रक्त के बीच का आदान-प्रदान कृषिकाओं में होता है।
श्वसन की क्रियाविधि (Mechanism of respiration)
वायुमण्डल की शुद्ध वायु (ऑक्सीजन युक्त) के फेफड़ों में पहुँचने तथा अशुद्ध वायु (कार्बन डाईऑक्साइड युक्त) के फेफड़ों से बाहर निकले की क्रिया को श्वाँस लेना (breathing) या श्वसन (respiration) कहते हैं फेफड़ों में बाह्य वातावरण से वायु भरने की क्रिया को । निश्वसन (inspiration) कहते हैं तथा फेफड़ों से वायु को शरीर से बाहर भेजने की क्रिया को उच्छवसन 2 (expiration) कहा जाता है।
फेफड़ों में स्वयं के अन्दर संकुचन (contraction) एवं शिथिलन (relaxation) क्रिया करने की क्षमता नहीं होती है। इन दोनों क्रियाओं के लिये ये वक्षीय गुहा (thoracic cavity) पर निर्भर अनुसार रहते हैं। वक्षीय गुहा के आयतन में कोई भी परिवर्तन होने पर फेफड़ों के आयतन में उसी के परिवर्तन होता है। श्वसन की क्रिया को समझने से पहले वक्षीय गुहा की संरचना को समझना आवश्यक है।
‘वक्षीय गुहा एक बक्से के समान (box like) संरचना होती है। यह पृष्ठ तल (dorsal surface) पर कशेरूक दण्ड (vertebral column), प्रतिपृष्ठ तल ( ventral surface) पर स्टर्नम (sternum), पार्श्व तलों (latcral surfaces) पर पसलियों ( ribs ) द्वारा, आगे की ओर गर्दन ( neck) तथा पीछे की ओर डायफ्राम (diaphragm) द्वारा घिरी रहती है। डायफ्राम में अरीय पेशियाँ (radial muscles) उपस्थित रहती है। वक्षीय गुहा के पार्श्व में (12 जोड़ी पसलियाँ या रिब्स (ribs) उपस्थित रहती है जो ऊपर की ओर कशेरूकों (vertebrae) से तथा नीचे की ओर स्टर्नम से जुड़ी रहती है। सामज्ञनय दशा में प्रत्येक पसली पीछे की तरफ झुकी रहती है। प्रत्येक दो पसलियों के बीच दो जोड़ी पेशियाँ (muscles) उपस्थित होती है। इन्हें इण्टर कॉस्टल (inter costal) पेशी कहा जाता है। मनुष्य में 11 जोड़ी इण्टरकॉस्टल पेशियाँ उपस्थित रहती है।
प्रत्येक दो लगातार पाई जाने वाली पसलियों के मध्य उपस्थित दो जोड़ी पेशियों में एक बाह इन्स्टल (external inter costal ) तथा दूसरी अन्तः इन्टरकॉस्टल (internal intercostal पेशी होती है। प्रथम प्रकार की पेशियों का एक जोड़ा पसलियों के ऊपरी भाग से निकलकर अपने पीछे वाली पसली के निचले भाग से सम्बद्ध रहता है जबकि दूसरा जोड़ा पसली के निचले से निकलकर अपने पीछे वाली पसली के ऊपरी भाग से जुड़ा रहता है। ये दोनों पेशियाँ ” बनाकर विन्यासित रहती है तथा एक बार में एक ही तरह की समस्स पेशियाँ ही क्रिया करती है।। विश्रामवस्था में डॉयफ्राम एक गुम्बद के समान (dome sharped) आकृति बनाये रहती है।
श्वसन की क्रिया का अध्ययन निम्नलिखित दो चरणों में किया जा सकता है :
- निश्वसन (Inspiration) : यह एक सक्रिय क्रिया (active process) होती है जो पेशीय संकुचन (muscular contraction) के फलस्वरूप होती है। निश्वसन के समय बाह्य इन्टरकॉस्टल पेशियों में एक साथ संकुचन की क्रिया सम्पन्न होती है जिससे पसलियाँ आगे व बाहर की ओर खिंच जाती है। पसलियों की इस गति के कारण स्टरनॅम नीचे की ओर झुक जाता है। मनुष्य में यह अपने स्थान पर से लगभग 1.5 से.मी. नीचे की ओर झुक जाता है (चित्र 4.4 ) । इसके अतिरिक्त पसलियों के साथ ही डॉयफ्राम की रेडियल पेशियों में भी संकुचन होता है जिसके परिणामस्वरूप क्रिया से वक्ष गुहा का आयतन पीछे की ओर बढ़ जाता है। इस प्रकार पसलियाँ, डॉयफ्राम और स्टर्नम इसका गुम्बद आकार ( dome shape ) चपटें (flat) आकार में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार की मिलकर वक्ष गुहा के आयतन तीन दिशाओं (अर्थात् नीचे, पार्श्व एवं पीछे) में बढ़ाते हैं। वक्ष गुहा के आयतन के बढ़ने से प्लूरल गुहा का आयतन भी बढ़ता है जिससे फेफड़ें फैलने लगते हैं। फेफड़ों के फैलते ही वायु बाहरी नासाद्वार (external nostrils) से होती हुई नासिका वेश्म (nasal chambers), श्वसन मार्ग ( respiratory passage) और श्वाँस नली (trachea ) द्वारा तेजी से फेफड़ों में आ जाती है।
- उच्छवसन (Expiration) : यह श्वसन की एक निष्क्रिय प्रावस्था (passive phase) है। इस अवस्था में परिवर्तन, निश्वसन (inspiration) की विपरीत दिशा में होते हैं। उच्छवसन के समय सभी अतः इन्टरकॉस्टल पेशियाँ (internal intercostal muscles) में एक साथ संकुचन की क्रिया होती है जिससे स्टर्नम पुनः ऊपर की ओर आ जाता है। इसी के साथ डायफ्राम की रेडियल पेशियों में शिथिलन की क्रिया होती है जिससे पसलियाँ पीछे खिसक जाती है तथा डायफ्राम पुनः गुम्बादाकार dome shaped) हो जाता है। (चित्र 4.4 B) इस प्रकार स्टर्नम एवं डायफ्राम अपनी वास्तविक स्थिति आ जाते हैं। इस स्थिति में वक्ष गुहा (thoracic cavity) का आयतन पहले की अपेक्षा उपस्थित वायु का दाब बाहरी वातावरण में उपस्थित वायु से अधिक से हो जाता है। इस समय का भी आयतन कम होता है। आयतन कम होने से फेफड़ों फेफड़ों में कार्बन डाईऑक्साइड रहती है जो अधिक दाब के कारण श्वसन मार्ग द्वारा बाहर की भी गमन करने लगती है तथा अन्त में बाह्य नासा छिद्रों (external nasal apertures) द्वारा बाहर निकाल दी जाती है। श्वसन के समय वक्षीय गुहा एवं डायाफ्राम की गति की सीमा वास्तव में विभिन प्राणियों में तथा अलग-अलग समय में भिन्न-भिन्न होती है।
विश्रामावस्था (resting stage) में औसत मनुष्य प्रायः श्वसन चक्र ( respiratory cycle) के साथ लगभग 7500 मि.ली. वायु को फेफड़ों में ग्रहण करता है और फेफड़ों से बाहर निकालता है।। वायु के इस परिमाण को ज्वारीय आयतन (tidal volume) कहते हैं। प्रत्येक बार मन के उपरान्त फेफड़े पूर्णतया रिक्त नहीं होते इनमें कुछ वायु उपस्थिति रहती है। अत्यधिक बलपूर्ण उच्छवसन के पश्चात् भी फेफडों में लगभग / 1000 मि.ली.) वायु रह जाती है। इस अवशिष्ट आयतन (residual volume) कहते हैं।
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