henderson hasselbalch equation in hindi हेंडरसन हेजल बेंच समीकरण क्या है सूत्र लिखिए
हेंडरसन हेजल बेंच समीकरण क्या है सूत्र लिखिए henderson hasselbalch equation in hindi ?
सीसा संचायक सेल (Lead Storage Cell)
सीसा संचायक सेल शक्ति के स्त्रोत के रूप में उपयोगी है। सामान्य भाषा में इसे बैटरी कहते हैं। इस सेल में ऐनोड़ सीसे (Pb) की प्लेट है तथा कैथोड़ लेड़ डाईऑक्साइड (PbO2) की परत चढ़े हुये सीसे की प्लेट होती है। विद्युत अपघट्य 38% सल्फ्युरिक अम्ल (H2SO4 ) का विलयन होता है, जिसका घनत्व 1.30 gm/ml रखा जाता है। सेल में इलेक्ट्रोड अभिक्रियायें निम्न प्रकार होती है। ऐनोड़ पर Pb ( s) विलयन में उपस्थित सल्फेट आयनों से क्रिया करके निम्न ऑक्सीकरण क्रिया देते हैं।
थोड़ पर लेड डाईऑक्साइड का सल्फेट आयनों की उपस्थिति में अपचयन होता है और निम्नलिखित अपचयन अभिक्रिया होती हैं।
सम्पूर्ण सेल अभिक्रिया निम्न प्रकार भी लिखी जाती है-
जब सेल से ऊर्जा प्राप्त होती है तो यह अभिक्रिया होती है, और 25°C पर 2.0V सेल विभव प्राप्त होता है। जैसे-जैसे H2SO4 की सान्द्रता अथवा सक्रियता घटती जाती है सेल विभव कम हो जाता है, यह प्रक्रिया सेल अथवा बैटरी का डिस्चार्ज (Discharge) होना कहलाती है। सेल से पुनः ऊर्जा प्राप्त करने के लिये चार्ज (Charge) किया जाता है। चार्ज करने की प्रक्रिया में से किसी बाह्य स्त्रोत से विद्युतधारा विपरीत दिशा में प्रवाहित की जाती है, अर्थात् विपरीत दिशा में सेल से अधिक विभव लगाया जाता है। इस प्रकार इलेक्ट्रॉनों को कैथोड़ से एनोड की ओर वापस भेजा जाता है और प्रारम्भिक अवस्था निम्न अभिक्रियाओं के परिणाम स्परूप प्राप्त हो जाती है।
इस प्रकार चार्जिंग प्रक्रम की अभिक्रिया डिस्चार्जिंग प्रक्रम की विपरीत होती है। दोनों को एक साथ इस प्रकार लिखा जा सकता है।
सीसा संचायक सेल की वोल्टेज क्षमता (Voltage efficiency) 80% होती है। वोल्टेज क्षमता को औसत डिस्चार्ज वोल्टेज तथा औसत चार्ज वोल्टेज के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जाता है। सीसा संचायक सेल शक्ति के एक अच्छे श्रोत के रूप में कार्य करता है इस प्रकार के अन्य सेलों के अतिरिक्त इसमें निम्नलिखित विशेषताऐं और पायी जाती है:-
(1) इस सेल की कार्यक्षमता अत्यधिक हैं।
(2) यदि सावधानीपूर्वक काम में लिया जाये तो सेल की आयु 20 से 30 वर्ष तक हो सकती है।
(3) अपने आयु काल में सेल को हजारों बार चार्ज किया जा सकता हैं अनेक विशेषताओं के होते हुए भी इस सेल में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं-
(i) इसका भार अत्यधिक होता है, दूसरे शब्दों में कहा जा सकता हैं कि इस सेल की ऊर्जा एवं भार का अनुपात निम्न होता है।
(ii) यदि चार्ज सेल को कुछ दिनों काम में न लिया जाये तो यह खराब हो जाता है क्योंकि रखे रहने पर PbSO4 के बड़े क्रिस्टल जमा हो जाते हैं, जिन्हें चार्जिंग विभव द्वारा न तो ऑक्सीकृत और न ही अपचयित किया जा सकता है। क्रिस्टल बनने की यह प्रक्रिया “सल्फेटीकरण’ (Sulphatation) कहलाती है।
हाइड्रोजन आयन सान्द्रता तथा pH मापक्रम (Hydrogen lon Concentration and pH Scale) हाइड्रोजन आयन सान्द्रताः- जल के आयनिक गुणनफल (K) का 25°C पर मान
अतः शुद्ध जल में [H’]= [OH-] = 1 × 107 मोल प्रति लिटर यदि शुद्ध जल में कुछ बूंदे अम्ल की डाल दें तो विलयन की [H] बढ़ जाती है और [OH ] घट जाती है। क्योंकि [H] [OH ] का मान
(Kw) स्थिर है। इस प्रकार विलयन की [H].1 x 107 मोल प्रति लिटर से अधिक हो जाती है। अतः अम्लीय विलयन के लिए [H] > 1 × 107 मोल प्रति लिटर ।
यदि शुद्ध जल में कुछ बूंदे क्षार की डाल दें तो विलयन में [OH ]. 1 x 107 मोल प्रति लिटर से अधिक हो जाती है तथा इस विलयन की [H] 1 10 – 7 मोल प्रति लिटर से कम हो जाती है।
अर्थात क्षारीय विलयन की [H] < 1 × 107 मोल प्रति लिटर
किसी भी उदासीन, अम्लीय या क्षारीय विलयन की प्रकृति को हाइड्रोजन आयन सान्द्रता के रूप में ही व्यक्त किया जा सकता है।
pH मापक्रम जैसा ऊपर बताया गया है कि-
उदासीन विलयन में [H+] = [OH] = 1 × 107 ग्राम मोल प्रति लिटर
अम्लीय विलयन में [H+]> [OH-]> 1 × 10-7 ग्राम मोल प्रति लिटर
क्षारीय विलयन की [H+]< [OH] <1 × 107 ग्राम मोल प्रति लिटर
किसी विलयन की [H] तथा [OH-] मे से एक ज्ञात होने पर दूसरी ज्ञात की जा सकती है क्योंकि दोनों सान्द्रताओं का गुणनफल 25°C पर 1× 10-14 होता है। इस प्रकार किसी भी विलयन की अम्लीयता या क्षारीयता को केवल [H] के रूप में व्यक्त करना सरल है। अतः किसी विलयन की [H+] = 1 ग्राम मोल प्रति लिटर से (जैसे IN HCI में) 1 × 10-14 ग्राम मोल प्रति लिटर तक हो सकती है। जैसे (IN NaOH में)। सोरेन्सन (Sorensen) ने सन् 1909 में [H] को व्यक्त करने के लिए एक नया सरल मापक्रम दिया जिसे pH मापक्रम कहते हैं। इसके अनुसार-
‘किसी विलयन की pH उसमें उपस्थित हाइड्रोजन आयनों की ग्राम मोल प्रति लिटर में सान्द्रता का ऋणात्मक लॉगेरिथ्म होता है।’
किसी विलयन की [H+] सान्द्रता ग्राम मोल प्रति लिटर में व्यक्त करने के लिये 10 के ऊपर जो ऋणात्मक घात लगाई जाती है, उस ऋणात्मक घात का संख्यात्मक मान pH के बराबर होता है।
दूसरे लॉगरेथेमिक व्यंजक (Some Other Logarithamic Expressions) जिस प्रकार pH को हाइड्रोजन आयन सान्द्रता व्यक्त करने के लिए उपयोग में लेते हैं इसी प्रकार हॉइड्रोक्सील आयन की सान्द्रता व्यक्त करने के लिए POH काम में लेते हैं।
इसी प्रकार अम्ल व क्षार के वियोजन स्थिरांक (K, तथा Kg) को भी निम्न व्यंजक के रूप में लिख सकते हैं।
उभय प्रतिरोधी विलयन ( Buffer Solutions ) किसी विलयन में कुछ बूंदे अम्ल या क्षार की मिलाने पर उसकी pH परिवर्तित हो जाती है। उदाहरणार्थ- उदासीन विलयन की pH = 7 होती है। यदि इस विलयन में कुछ बूदे अम्ल जैसे HCI की मिला दें तो इस विलयन की pH < 7 हो जाती है। इसी प्रकार यदि विलयन में कुछ बुदे NaOH जैसे क्षार की मिला दें तो इसकी pH > 7 हो जाती है। परन्तु कुछ विलयन ऐसे होते हैं जिनमें अम्ल व क्षार की थोड़ी मात्रा मिला देने पर उनकी DH में कोई परिवर्तन नहीं होता, वे विलयन pH परिवर्तन का विरोध करते हैं। ऐसे विलयन उभय प्रतिरोधी विलयन कहलाते हैं। किसी विलयन की PH परिवर्तन के विरोध की क्रिया विधि उभय प्रतिरोधी क्रिया कहलाती है ।
उभय प्रतिरोधी विलयन दो प्रकार के होते हैं-
(1) सरल उभय प्रतिरोधी (Simple Buffers )
(2) मिश्रित उभय प्रतिरोधी (Mixed Buffers )
सरल उभय प्रतिरोधी विलयन:- ये दुर्बल अम्ल तथा दुर्बल क्षार से बने लवण जैसे CH3COONH4. (NH4)3 PO4 (NH4)2 CO 3 आदि के विलयन होते हैं। अमोनियम ऐसीटेट (CH3COONH4) विलयन की उभय प्रतिरोधी क्रिया को निम्न प्रकार समझाया जा सकता है- अमोनियम ऐसीटेट लवण होने के कारण जल में लगभग पूर्णतया अपघटित हो जाता है और निम्न साम्यवस्था स्थापित हो जाती है।
CH3COONH4 ===== CH3COO + NH4+
यदि इसके विलयन में अम्ल HCI मिलाया जाए तो HCI द्वारा दिए गए H+ आयन CH3COO- आयनों से संयोग करके दुर्बल आयनित ऐसीटिक अम्ल का अणु बना देंगे।
चूंकि प्रबल अम्ल HCI द्वारा प्रदत्त सभी H+ आयन दुर्बल आयनित CH3COOH बना देते हैं । अतः विलयन की H’ सान्द्रता ( अर्थात् pH ) पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।
इसी प्रकार यदि बफर – अमोनियम ऐसीटेट के विलयन में प्रबल क्षार NaOH की थोड़ी मात्रा मिलायी जाए तो इसके द्वारा प्रदत्त OH- आयन विलयन में उपस्थित NH ‘आयनों से संयोग कर दुर्बल आयनित NH4OH बनाते हैं।
चूंकि NaOH द्वारा दिए गये अधिकतम OH- आयन NH4+ के साथ संयोग कर लेते हैं जो कि बहुत कम आयनित होता है अतः विलयन की H+ आयन सांद्रता या pH पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता ।
मिश्रित उभय प्रतिरोधी विलयन:– साधारणतया सरल उभय प्रतिरोधी विलयनों की अपेक्षा मिश्रित उभय प्रतिरोधी विलयन अधिक महत्पपूर्ण है और इन्हें ही अधिक प्रयुक्त किया जाता है। ये pH परिवर्तन का अधिक प्रतिरोध करते हैं। मिश्रित उभय प्रतिरोधी विलयन दो प्रकार के होते है-
(i) अम्लीय उभय प्रतिरोधी विलयन
(ii) क्षारीय उभय प्रतिरोधी विलयन
अम्लीय उभय प्रतिरोधी विलयन यह एक दुर्बल अम्ल और उसके प्रबल क्षार के साथ बने लवण के सम आण्विक विलयनों के मिलाने से बनता है।
उदाहरणार्थ- CH3OOH + CH3COONa का विलयन। इस वियलन की pH < 7.0 होती है। इस विलयन में CH3COONa तो पूर्णतया आयनित हो जाता है। ऐसीटिक अम्ल का आयनन बहुत कम होता है क्योंकि एक तो यह दुर्बल विद्युत अपघट्य है और दूसरे सम आयन प्रभाव के कारण। अतः ऐसीटिक अम्ल अणु के रूप में होता है इस प्रकार विलयन में CH3COO, Na’ तथा आण्विक CH3COOH उपस्थित होते है।
अम्लीय उभय प्रतिरोधी की क्रियाः- माना कि उभय प्रतिरोधी CH3COOH + CH3COON का विलयन है। इसमें CH3COO, Na+ तथा आण्विक ऐसीटिक अम्ल होता है यदि इसमें प्रबल अम्ल की थोड़ी मात्रा मिला दें तो इसके द्वारा प्रदत्त H+ आयन तुरन्त CH3COO- आयनों से संयोग करके बहुत कम आयनित CH3COOH बना देते हैं। CH3COOH का आयनन सम आयन प्रभाव के कारण और भी कम हो जाता है।
इस प्रकार प्रबल अम्ल द्वारा दिए गए H+ आयनों का प्रभाव नष्ट हो जाता है। और विलयन की [H] या pH में कोई परिवर्तन नहीं होता। यदि इसमें प्रबल क्षार जैसे NaOH मिला दें तो इसके द्वारा प्रदत्त OH- आयन विलयन में उपस्थित आण्विक ऐसीटिक अम्ल द्वारा उदासीनीकृत हो जाते हैं ।
इस प्रकार बफर के pH में कोई परिवर्तन नहीं होता । (2) क्षारीय उभय प्रतिरोधी विलयन- यह एक दुर्बल क्षार और उसके प्रबल अम्ल के साथ बने लवण के समआण्विक विलयनों का मिश्रण होता है।
उदाहरणार्थ- NH4OH + NH4CI का विलयन इस विलयन की pH > 7 होती है। इस विलयन में NH4CI पूर्ण आयनित होकर NH+ तथा CI-देता है और NH4OH का आयनन (दुर्बल विद्युत अपघट्य होने तथा समआयन प्रभाव के कारण ) बहुत कम होने के कारण यह आण्विक NH4OH के रूप में उपस्थित होता है।
उभय प्रतिरोधी क्रियाः- इस विलयन में क्षार जैसे NaOH मिलाने पर इसके द्वारा प्रदत्त OH- आयन विलयन में उपस्थित NH,’आयनों से संयोग करके बहुत कम आयनित NH4OH बनाते हैं। HO का आयनन सम आयन प्रभाव के कारण और भी निरूद्ध हो जाता है।
इस प्रकार क्षार मिलाने पर इससे प्राप्त OH- आयनों का प्रभाव नष्ट हो जाता है और विलयन के PH में कोई परिवर्तन नहीं आता। यदि विलयन में प्रबल अम्ल मिला दें तो इससे प्राप्त H’ आयन विलयन में उपस्थित NH, OH द्वारा उदासीनीकृत हो जाते हैं।
अतः विलयन के PH में कोई परिवर्तन नहीं होता।
उभय प्रतिरोधी विलयन की हाइड्रोजन आयन सांद्रता तथा pH का परिकलन- हण्डरसन हैजलबेन्च समीकरण (Calculation of hydrogen ion Concentration and pH of buffer solutions- Hunderson Hasselbalch equation) :-
एक अम्लीय उभय प्रतिरोधी पर विचार कीजिए जो दुर्बल अम्ल CH3COOH तथा इसके प्रबल क्षार के साथ बने लवण CH,COONa का मिश्रण है। उभय प्रतिरोध विलयन में निम्न दो साम्य होंगे-
CH3COOH एक दुर्बल अम्ल है। अतः इसका आयनन बहुत कम होता है। CH3COON द्वारा प्रदत्त CH3COO- आयन इसके आयनन को समआयन प्रभाव के कारण और भी कम कर देते हैं। अतः उभय प्रतिरोधी विलयन में CH, COOH की सांद्रता उसकी प्रारम्भिक सांद्रता ( अनायनित) के बराबर मानी जा सकती है।
इसी प्रकार उभय प्रतिरोधी विलयन में CH3COO आयनों की सांद्रता लवण CH3COON के बराबर होती है क्योंकि लवण CH3COON का पूर्ण आयनन हो जाता है। CH3COOH से प्राप्त CH3COO- आयनों की सांद्रता को नगण्य मान लिया गया है। अतः व्यंजक (i) से-
व्यंजक (iii) को अम्लीय बफर विलयन का हैण्डरसन – हैजलबैन्च (Henderson Hasselbalch) या हैण्डरसन समीकरण कहलाती है। क्षारीय उभय प्रतिरोधी विलयन की H+ आयन सान्द्रता तथा pH इसी प्रकार क्षारीय उभय प्रतिरोधी विलयन जैसे NH4OH + NH4CI के विलयन के लिए-
POH के मान को 14.0 में से घटाने पर pH का मान प्राप्त होता है।
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