WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

ऊष्मा का स्थानांतरण क्या है , Heat transfer in hindi , ऊष्मा स्थानांतरण की कौन-कौन सी विधियां है उनके नाम लिखिए

ऊष्मा स्थानांतरण की कौन-कौन सी विधियां है उनके नाम लिखिए , ऊष्मा का स्थानांतरण क्या है , Heat transfer in hindi ? किस प्रक्रिया में ऊष्मा स्थानांतरण की दर अधिकतम होती है ?

ऊष्मा स्थानान्तरण : ऊष्मा का स्थानान्तरण निकायों के मध्य एक निकाय के अलग अलग भागो में या निकाय निकाय व परिवेश के मध्य होता है।

भिन्न तापान्तर वाली वस्तुओ के मध्य ऊष्मा का आदान प्रदान होना ऊष्मा स्थानान्तरण कहलाता है।

ऊष्मा स्थानान्तरण के लिए तापान्तर आवश्यक होता है।

अर्थात ऊष्मा का स्थानान्तरण उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है।

वस्तुओ के मध्य तापान्तर का मान जितना अधिक होता है , ऊष्मा का स्थानान्तरण उतना ही अधिक होता है।

ऊष्मा स्थानान्तरण की तीन विधियाँ है –

  1. चालन
  2. संवहन
  3. विकिरण
  4. चालन: चालन विधि में ऊष्मा का स्थानान्तरण एक अणु से दूसरे अणु की ओर होता है। जब छड के एक सिरे को गर्म किया जाता है तो सिरे के अणु ऊष्मा पाकर कम्पन्न करने लगते है जिसके कारण पास स्थित अणु में ऊष्मा स्थानान्तरण होता है , इस प्रकार चालक छड में प्रत्येक अणु के पास ऊष्मा का स्थानान्तरण होता है और कुछ देर बाद चालक छड का दूसरा सिरा भी गर्म हो जाता है इसे ऊष्मा स्थानान्तरण की इस विधि को चालन कहते है।

चालन विधि के द्वारा ऊष्मा का स्थानान्तरण केवल ठोस पदार्थो में होता है।

चालन विधि के द्वारा ऊष्मा का स्थानान्तरण गैसों व द्रवों में नहीं होता है।

उदाहरण : लोहार के द्वारा छड के एक सिरे को गर्म करने पर छड़ का दूसरा सिरा भी गर्म हो जाता है।

माना L लम्बाई और A अनुप्रस्थ काट की धातु की एक छड लेते है जिसके दोनों सिरों के मध्य तापान्तर उत्पन्न किया जाता है। माना दोनों सिरों का ताप Te व Td है। अब एक ऐसी आदर्श स्थिति की कल्पना करते है जिसमे छड के दोनों सिरे पूर्णतया ऊष्मारोधी है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि छड के सिरों व परिवेश के बीच ऊष्मा का स्थानान्तरण न हो कुछ समय बाद दोनों सिरों का ताप समान हो जाता है।

छड में ऊष्मा प्रवाह की दर छड के अनुप्रस्थ काट A व तापान्तर (Tc – Td) के समानुपाती होती है।

जबकि छड की लम्बाई के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

H ∝ A . . . . . .  समीकरण-1

H ∝ (Tc – Td)  . . . . . .  समीकरण-2

H ∝ 1/L  . . . . . .  समीकरण-3

समीकरण-1 , 2 , व 3 से –

H ∝ A(Tc – Td)/L

H = K A(Tc – Td)/L

यहाँ K एक स्थिरांक है जिसे पदार्थ की ऊष्मा चालकता कहते है।

ऊष्मा चालकता का मात्रक –

H = K A(Tc – Td)/L

K = HL/A(Tc – Td)

K = Jm1/m2K1

K = Jm-1K-1

  1. संवहन: ऊष्मा स्थानान्तरण की एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा ऊष्मा का स्थानान्तरण तरल पदार्थो में होता है।

संवहन के द्वारा ऊष्मा स्थानान्तरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है।

माना एक बीकर में पानी भरा हुआ है , जब इसे गर्म किया जाता है तो बर्नर के द्वारा ऊष्मा का स्थानान्तरण बीकर में भरे हुए जल के अणुओं तक होता है।

बीकर के पैंदे में उपस्थित जल के अणु ऊष्मा ग्रहण करके ऊपर की ओर गति करते है।

क्योंकि ताप का मान बढाने के कारण इनकी सघनता कम हो जाती है और ये हल्के हो जाते है , द्रव की सतह पर उपस्थित ठण्डे पानी की बुँदे घनत्व अधिक होने के कारण नीचे की ओर गति करते है और ऊष्मा पाकर हल्की हो जाती है , इस प्रकार द्रव का प्रत्येक अणु ऊष्मा ग्रहण करता है , अंत में पानी गर्म हो जाता है। ऊष्मा स्थानान्तरण की इस विधि को संवहन कहते है।

संवहन विधि में ऊष्मा का स्थानान्तरण गुरुत्व के प्रभाव के कारण होता है।

  1. विकिरण: विकिरण ऊष्मा स्थानान्तरण की ऐसी विधि है जिसमे ऊष्मा स्थानान्तरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।

सूर्य से उत्सर्जित होने वाली विकिरणों को विद्युत चुम्बकीय तरंगो के रूप में उत्सर्जित होती है तथा ये निर्वात में प्रकाश की चाल C = 3 x 108 m/s से संचरित होती है।

विकिरण के द्वारा ऊष्मा का स्थानान्तरण तीव्र गति से होता है , प्रत्येक गर्म वस्तु से अर्थात प्रत्येक उच्च ताप वाली वस्तु से ऊष्मा का उत्सर्जन विकिरणों के रूप में होता है।

जब विकिरण किसी कृष्णिका (ब्लैक बॉडी) पर आपतित होती है तो कृष्णिका के द्वारा सबसे अधिक ऊष्मा का अवशोषण होता है। एक आदर्श कृष्णिका ऊष्मा की सबसे अधिक अवशोषण व उत्सर्जक होती है।

यही कारण है कि सर्दियों में पहने जाने वाले कपडे सामान्यतया गहरे व काले रंग के होते है क्योंकि काली वस्तु ऊष्मा का सबसे अधिक अवशोषण करती है जिसके कारण शरीर का तापमान बना रहता है।

गर्मियों में सामान्यतया सूती व सफ़ेद रंग के वस्त्र पहने जाते है क्योंकि सफ़ेद रंग ऊष्मा को कम अवशोषित करता है जिसके कारण गर्मी का एहसास नहीं होता है।

पकाई क्रिया में काम आने वाली धातु के बर्तनों अर्थात भोजन पकाने के लिए जिन बर्तनों का उपयोग किया जाता है उनकी नीचे वाली सतह पर सामान्यतया काली पोत दी जाती है जिसके कारण ऊष्मा का स्थानान्तरण भोज्य पदार्थो में अधिक हो पाता है और भोजन कम समय में ही पक जाता है।