ऊष्मा बजट क्या है आईएएस को समझाइये ऊष्मा बजट किसे कहते है परिभाषा heat budget of earth in hindi
heat budget of earth in hindi ऊष्मा बजट क्या है आईएएस को समझाइये ऊष्मा बजट किसे कहते है परिभाषा लिखिए ?
ऊष्मा बजट (Heat Budget)
ऽ पृथ्वी द्वारा प्राप्त सूर्यताप की मात्रा एवं इससे निकलने वाले पार्थिक विकिरण के बीच संतुलन को ‘पृथ्वी का ऊष्मा बजट‘ कहते हैं।
दाब कटिबंध एवं पवन संचार
ऽ वायु का अपना एक भार होता है। इस कारण धरातल पर वायु अपने भार द्वारा दबाव डालती है। धरातल पर या सागर तल पर क्षेत्रफल की प्रति इकाई पर ऊपर स्थित वायुमंडल की समस्त परतों द्वारा पड़ने वाले भार को ही ‘वायुदाब‘ कहा जाता है। वायुमंडल लगभग 1 किग्रा/वर्ग सेमी का औसत दाब डालता है।
ऽ सागर तल पर गुरूत्व के प्रभाव के कारण वायु संपीड़ित होती है अतरू पृथ्वी की सतह के समीप यह घनी होती है। ऊंचाई बढ़ने के साथ यह तेजी से कम होती है। परिणामतः आधा वायुमंडलीय दाब 5500 मीटर के नीचे संपीड़ित होता है। 75ः दाब 10,700 मीटर के नीचे और 90% ट्रोपोपॉज (1600 मी) के नीचे संपीडीत होता है।
ऽ वायुदाब का मापन बैरोमीटर नामक यंत्र से किया जाता है जिसे टॉरिसेली ने विकसित किया था ।
ऽ एक मीटर लंबी पारे की नली के बिना काम करने वाला एक अधिक ठोस (संक्षिप्त) यंत्र अनेरॉयड बैरोमीटर है।
ऽ वायुमंडलीय दाब के वितरण को आइसोबार के मानचित्र से दर्शाया जाता है।
नोट: आइसोबार समुद्रतल पर लिए गए समान वायुमंडलीय दाब वाले स्थानों से होकर खीची गई आभासी रेखा है।
ऽ इस उद्देश्य हेतु मौसम विज्ञानियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली इकाई मिलिबार कहलाती है।
ऽ समुद्रतल पर सामान्य दबाव 76 सेंटीमीटर माना जाता है।
ऽ एक मिलिबार 1 ग्राम द्वारा एक सेंटीमीटर क्षेत्र पर लगने वाला बल है।
पृथ्वी के दाब कटिबंध
(ंअ) विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब
ऽ इस वायुदाब की पेटी का विस्तार एक संकीर्ण पट्टी के रूप में है। यहां सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं। अत्यधिक तापमान के कारण हवाएं गर्म होकर फैलती हैं तथा ऊपर उठती हैं। शीघ्र ही ‘ट्रोपोपॉज‘ तक बादल का उर्ध्वाधर स्तंभ पहुंच जाता है तथा घनघोर मूसलाधार वर्षा होती है।
ऽ इसी पेटी में वायु के अभिसरण के कारण अन्तरा-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) का निर्माण होता है।
ऽ इस पेटी में हेडली कोशिका का निर्माण होता है।
ऽ यह व्यापारिक पवन प्रचुर मात्रा में नमी धारण करती है। जब यह हेडली संचरण के सहारे आरोहित होती है।
ऽ ITCZ के अन्तर्गत हवाओं में गति कम होने के कारण शान्त वातावरण रहता है। इसी कारण इस पेटी को डोलड्रम कहा जाता है।
(ब) उपोष्णकटिबंधीय उच्च वायुदाब की पेटी
ऽ दोनों गोलार्धा में 30° से 35° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य यह पेटी पाई जाती है। इस क्षेत्र में शुष्क एवं उष्ण वायु पाई जाती है। यहां आकाश बिल्कुल साफ एवं बादल रहित होता है।
ऽ यद्यपि इस पेटी के निर्माण का गतिकी कारण अत्यंत जटिल है, तथापि सामान्यतया इसका निर्माण हेडली कोशिका के सहारे वायु के अवरोहण एवं अवतलन से होता है।
ऽ जब वायु का अवतलन इन क्षेत्रों में होता है तो वायु गर्म हो जाती है तथा सतह पर आकर इनका अपसरण होता है। इन क्षेत्रों में प्रतिचक्रवातीय दशा पाई जाती है। धरातल पर यह मरूस्थलों का क्षेत्र है जो अफ्रीका और एशिया में सर्वाधिक विस्तृत हैं।
(स) उपधुवीय निम्नवायुदाब की पेटी
ऽ इस पेटी का विकास 60° और 65° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के आसपास होता है।
ऽ इस क्षेत्र में दो भिन्न तापमानों वाली वायुराशियों के मिलने से ध्रूवीय वाताग्र का निर्माण होता है।
ऽ दक्षिणी गोलार्ध में इस पेटी में अंटार्कटिका के चारों ओर एक उपध्रूवीय चक्रवातीय व्यवस्था का निर्माण होता है।
(द) ध्रूवीय उच्च वायुदाब की पेटी
ऽ कम तापमान के कारण इस पेटी का विकास होता है। यहां पर शुष्क एवं ठंडी हवाओं का अपसरण क्षेत्र होता है, जिससे यहां प्रतिचक्रवातीय दशा पाई जाती है। यहां पर वायु की दिशा उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की विपरीत दिशा में होती है।
विभिन्न दाब कटिबंध
नाम कारण अवस्थिति तापमान/
आर्द्रता
विषुवतरेखीय तापजनित 10°N से 10°S उष्ण/आर्द्र
निम्न वायुदाब
उपोष्ण कटिबंधीय गतिकी 20° से 35 उष्ण/आर्द्र
उच्च वायुदाब
उपध्रूवीय तापजनित 60°N,60°S शीत/आर्द्र
निम्न वायुदाब
ध्रूवीय उच्च गतिकी 90°N, 90°S शीत/आर्द्र
वायुदाब
वायु संचरण (Wind System)
वायु के क्षैतिज प्रवाह को पवन (Wind) कहते हैं। इसका आविर्भाव वायुदाब में क्षैतिज अन्तर के कारण होता है। वायुदाब में क्षैतिज अन्तर के कारण वायु का प्रवाह उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर होता है। उर्ध्वाधर वायु परिसंचरण ‘वायुधारा‘ कहलाती है। पवन एवं वायुधारा अर्थात क्षैतिज एवं उर्ध्वाधर परिसंचरण मिलकर संपूर्ण वायुमंडलीय परिसंचरण का निर्माण करते हैं । पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण हवाएं समदाब रेखाओं को सीधे समकोण पर नहीं प्रतिच्छेद कर पाती हैं, बल्कि यह अपने मुख्य पथ से कुछ विचलित हो जाती हैं। यह विचलन पृथ्वी के घूर्णन का परिणाम है तथा इसे कोरिऑलिस बल कहा जाता है।
कोरिऑलिस बल के कारण वायु की दिशा में विचलन उत्तरी गोलार्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाई ओर होता है। इसे फेरेल का नियम भी कहते हैं।
पवनों के प्रकार
इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है:
1. प्रचलित पवन: ऐसी हवाएं वर्षभर प्रायः एक ही दिशा में एक अक्षांश से दूसरे अक्षांश की ओर चला करती हैं। इनमें से प्रमुख है-व्यापारिक हवाएं, पछुवा हवाएं तथा ध्रूवीय हवाएं।
2. मौसमी पवन: इन हवाओं की दिशा में मौसमी परिवर्तन होता है। जैसे-मानसून, स्थलीय तथा सागरीय समीर, पर्वत तथा घाटी समीर आदि।
3. स्थानीय पवन: ये हवाएं विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्रों में स्थानीय रूप से चला करती हैं। इनकी अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं। इनका नामकरण भी स्थानीय भाषाओं से संबंधित होता है।
प्रचलित पवनें (Planetary winds)
प्रचलित पवनें दो प्रकार की होती हैं:
1. व्यापारिक पवन (Trade winds)ः इस पवन का प्रवाह उपोष्णकटिबंधीय उच्च वायुदाब के क्षेत्र से विषुवत रेखीय निम्न वायुदाब की ओर होता है। ये पवनें वर्षभर प्रायः नियमित एवं स्थायी रूप से प्रवाहित होती हैं। ये पवनें दोनों गोलार्धा में विषुवत रेखा के समीप अभिसरित होती हैं तथा अभिसरण क्षेत्र में इसके ऊपर उठने से भारी वर्षा होती है।
2. पछुआ पवन (Westerlies)ः पछुआ पवन उपोष्णकटिबंधीय उच्च वायुदाब की पेटी से उपध्रूवीय निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती है। उत्तरी गोलार्ध में इसकी दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिण गोलार्ध में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व की ओर होती है।
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