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अर्ध शक्ति बिंदु किसे कहते हैं परिभाषा क्या है , Half power points in hindi Parallel Circuit

पढ़िए अर्ध शक्ति बिंदु किसे कहते हैं परिभाषा क्या है , Half power points in hindi Parallel Circuit ?

(1). L-C-R समान्तर परिपथ (L-C-R Parallel Circuit)

चित्रानुसार (10) किसी परिपथ में प्रतिरोध R तथा प्रेरकत्व L वाली कुण्डली के समान्तर क्रम में सयोजित धारिता C सधारित्र पर प्रत्यावर्ती वि.वा. बल E = E0ejωt लगाया जाता है तो इसमें भी विद्युत लन उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार के परिपथ को समान्तर परिपथ कहते हैं।

E=E0 ejωt

माना प्रत्यावर्ती वि. वा. बल E=E0 ejωt के कारण कुण्डली तथा संधारित्र में धारा के मान क्रमशः ,IL तथा IC हैं।

E- L dl/L/dt  = RIL

L + dIL/dt  = E=E0 ejωt …………………………..(1)

तथा   E = q/C = 1/C IC dt

जिससे  IC = C de/dt = C d/dt (E=E0 ejω )

IC = JωCE0 ejωt  ……………………….(2)

अब समीकरण (1) को eRt/L से गुणा करने पर

DiL/dt ert/l + R/L ILeRT/L = E0/L e(jω+R/L) t

d/dt (ILeRT/L) = E0/L e(jω+R/L) t

समाकलन करने पर

IL = E0ejωt /(R + jωL) ……………………………(3)

परिपथ में प्रवाहित कुल धारा

I = IL + IC

I = (1/R + jωL + JωC) E0ejωt

= R – jω{L – C (R2 + ω2L2}/R2 + ω2L2 E0ejωt ………………………….(4)

समीकरण (4) की ओम के नियम से तुलना करने पर ज्ञात होता है कि परिपथ का अवरोध एक समिश्र फलन (complex function) आता है। इसे परिपथ की प्रतिबाधा (impedance) कहते हैं।

Z = R2 + ω2L2/R – jω{L – C(R2 + ω2L2)}

चूँकि, परिपथ की प्रतिबाधा Z का व्युत्क्रम प्रवेश्यता (admittance) कहलाता है इसलिए,

प्रवेश्यता Y = R – jω{L – C (R2 + ω2L2)} ………………………….(5)

तथा  |Y| = { (1 – ω2 LC)2 + ω2C2R2/R2 + ω2L2}1/2 ………………………………….(6)

 (a) समान्तर या प्रति अनुनाद (Parallel or Antiresonance)

परिपथ में कुल धारा I तथा आरोपित वि.वा. बल E समान कला में रहने के लिए आवश्यक है कि परिपथ की प्रतिबाधा (अथवा प्रवेश्यता) वास्तविक होना चाहिए। समीकरण (5) से यह ज्ञात होता है कि प्रवेश्यता का मान वास्तविक होगा जब

L-C (R2 + ω2L2) = 0

ω = 1/CL – R2/L2 ωR ………………………………..(7)

इस आवृत्ति पर परिपथ का शक्ति गुणांक एंकाक होता है और प्रवेश्ता Y का मान न्यूनतम या प्रतिबाधा Z का मान अधिकतम होता है। यह आवृत्ति ωR समान्तर परिपथ की अनुनादी आवृत्ति कहलाती है। समान्तर परिपथ में अनुनाद की स्थिति (न्यूनतम धारा, अधिकतम प्रतिबाधा) श्रेणी परिपथ में अनुनाद की स्थिति (अधिकतम धारा, न्यूनतम प्रतिबाधा) के विपरीत होती है। इसलिए समान्तर परिपथ के अनुनाद को प्रति-अनुनाद (antiresonance) भी कहते हैं।

अनुनादी आवृत्ति ωR पर परिपथ की प्रवेश्यता

Ymin = R/R2 + ωR2L2

समीकरण (7) से ωR, का मान रखने पर

Ymin = R/R2 + (1/LC – R2/L2)L2

= RC/L ………………………….(8)

Zmax = 1/Ymin = L/RC

इसी प्रकार अनुनादी आवृत्ति ωR पर धारा का आयाम

I0 min = RE0/R2 + ω2 rL2

= RCE0/L ………………………………(9)

यदि समान्तर परिपथ में प्रवाहित धारा I या प्रतिबाधा Z का आवृत्ति ω के सापेक्ष आरेख खीचे तो  चित्र (11) के अनुसार वक्र प्राप्त होते हैं। अनुनादी आवत्ति पर धारा का मान अन्य आवृत्तियों पर धारा के मानों की अपेक्षा बहुत कम होता है। इसलिए भिन्न-भिन्न आवृत्तियों वाली धाराओं में से अनुनादी आवृत्ति वाली धारा का परिपथ अस्वीकार कर देता है। अतः इस प्रकार के परिपथ को अस्वीकारी परिपथ (rejector circuit) भी कहते हैं।

(b) L-C-R परिपथ अनुनादी परिपथ के समान कार्य करने के लिए आवश्यक है कि अनुनादी आवृत्ति ωr  का मान वास्तविक हो इसलिए समीकरण (7) से यह प्रकट होता है कि L>R2C या अल्प प्रतिरोध के लिए ही इस प्रकार का परिपथ अनुनाद उत्पन्न करता है।

(b) अर्ध शक्ति बिन्दु (Half power points)

श्रेणी परिपथ के समान समान्तर परिपथ में भी विशेषता गुणांक को परिभाषित करते हैं। समान्तर परिपथ के लिए प्रतिबाधा Z तथा आवृत्ति ω के मध्य खींचे गये अनुनाद वक्र में भी ऐसे बिन्दु, माना A व B होते हैं जिन पर प्रवेश्यता का मान अपने न्यूनतम मान Ymin का 2 गुना होता है।

बिन्दु A तथा B पर

|Y] = 2 Ymin …………………………………(10 )

समीकरण (6) तथा (8) रखने पर

[(1 – ω2 LC)2 + ω2C2R2/R2 + ω2L2]1/2  = 2 RC/L

(1 – ω2 LC)2 + ω2 C2R2 = 2 ω2C2R2 + 2 R4C2/L2

(1 – ω2LC)2 = ω2C2R2 + 2 R4C2/L2

अल्प प्रतिरोध की स्थिति में L>> CR2 होता है अतः R4C2/L2 को उपेक्षणीय मान सकते हैं तथा

Ωr = 1/LC

(1 – ω2/ ωR2)2 = ω2C2R2

1 – ω2/ ωR2 = ωCR

1/ ω – ω/ ωR2 = CR ………………………………….(11)

माना A और B बिन्दुओं पर आवृत्तियाँ ω1 तथा ω2 हैं तो समीकरण (11) से

1/ ω1 – ω1/ ωR2 = CR ……………………………(12)

1/ ω2 – ω2/ ωR2 = – CR ……………………(13)

समीकरण (12) तथा (13) को जोड़ने पर

Ω1 + ω2/ ω1 ω2 – ω1 + ω2/ ωR2 = 0

ω1 ω2 = ωR2 ……………………………………….(14)

अब समीकरण (12) में से (13) घटाने पर

ω2 – ω1/ ω1 ω2 + ω2 – ω1/ ωR2 = 2CR ………………………………(15)

समीकरण (15) से ω1 ω2 = ωR2 रखने पर

2 – ω1) = ωR2 CR

अतः बैंड विस्तार  (ω2 – ω1) = ωR2 CR ………………………………….(16)

विशेषता गुणांक Q = 1/ ωRCR = ωR/( ω2 – ω1) …………………………..(17)

(c) धारा प्रवर्धन (Current amplification) अनुनादी अवस्था में प्रवाहित धारा का आयाम न्यूनतम होता है।

Ior = lo min – Ymin E0

IOR = RC/L E0

तथा संधारित्र में प्रवाहित धारा

Ier = ωr CE0 = ωrL/R Ior = QI0r

अतः अनुनादी अवस्था में संधारित्र में से प्रवाहित होने वाली धारा का मान कुल धारा का Q गुना होता है अथात् गुणता गुणांक Q संधारित्र में से प्रवाहित होने वाली धारा के प्रवर्धन के तुल्य होता है।

निम्नलिखित सारिणी में श्रेणी अनुनादी तथा समान्तर अनुनादी परिपथों का तुलनात्मक अध्ययन प्रदर्शित किया गया है:

क्र. सं. श्रेणी अनुनादी परिपथ

 

समान्तर अनुनादी परिपथ

 

1.

 

 

 

2.

 

 

 

 

3.

 

 

 

4.

 

 

 

5.

 

 

 

6.

 

अनुनादी आवृत्ति

ωr = 1/LC

प्रतिरोध पर निर्भर नहीं करती है।

 

अनुनाद स्थिति में शक्ति गुणांक एंकाक तथा प्रतिबाधा शुद्ध प्रतिरोध होता है।

ZR = R

 

अनुनाद की अवस्था में प्रतिबाधा न्यूनतम प्रतिबाधा तथा प्रवेश्यता अधिकतम होती है।

 

अनुनादी आवृत्ति पर धारा का मान अधिकतम होता है।

 

अनुनादी आवृत्ति पर धारा ग्रहण करने के गुण के कारण यह परिपथ ग्राही परिपथ होता है।

 

अनुनाद की अवस्था में परिपथ का विशेषता गुणांक प्रेरक कुण्डली में  प्रवर्धन के तुल्य होता है।

अनुनादी आवृत्ति

ωr = 1/LC – R2/L2

प्रतिरोध पर निर्भर करती है।

 

इसमें भी शक्ति गुणांक एकांक परन्तु प्रतिबाधा L.C.R तीनों पर निर्भर करता  है

 

अनुनाद की अवस्था में प्रतिबाधा अधिकतम तथा प्रवेश्यता न्यूनतम होती है।

 

अनुनादी आवृत्ति पर धारा का मान न्यूनतम होता है।

 

अनुनादी आवृत्ति पर धारा अस्वीकार करने के गुण के कारण यह परिपथ अस्वीकारी परिपथ होता है।

 

अनुनाद की अवस्था में परिपथ का विशेषता गुणांक संधारित्र में धारा प्रवर्धन के तुल्य होता है।