(half life period of a reaction in hindi) अभिक्रिया का अर्द्ध आयु काल क्या है , सूत्र का व्यंजक ज्ञात करो : जब कोई अभिक्रिया शुरू होती है तो प्रारंभ में अभिकारकों की
सांद्रता का मान अधिकतम होता है जैसे जैसे अभिक्रिया संपन्न होती जाती है अभिकारक की सांद्रता का मान कम होता जाता है क्यूंकि अभिकारक उत्पाद में परिवर्तित होता रहता है।
एक स्थिति ऐसी आती है जब अभिकारक (क्रियाकारक) की सांद्रता का मान प्रारंभ से आधा रह जाता है , किसी अभिक्रिया को शुरू से इस स्थिति में पहुचने में जितना समय लगता है उसे अर्द्ध आयु काल कहते है।
अर्थात
“वह समय जिसमें अभिकारक की सान्द्रता का मान प्रारंभिक सांद्रता से आधा रह जाता है उसे उस अभिक्रिया का अर्द्ध आयु काल कहते है। “
याद रखिये की यदि किसी अभिक्रिया को पूर्ण में यदि 10 मिनट का समय लग रहा है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि इसका अर्द्ध आयुकाल का मान 5 मिनट होगा , अर्थात किसी अभिक्रिया का अर्द्ध आयु काल मान अलग अलग कारकों पर निर्भर करता है इसलिए इसे सीधे बिना किसी गणना के नहीं बताया जा सकता है।
इसका कारण यह है कि किसी अभिक्रिया का वेग उसके क्रियाकारक की सांद्रता पर निर्भर करता है और चूँकि किसी भी क्रिया में प्रारंभ में क्रियाकारको की सांद्रता अधिक या अधिकतम होती है इसलिए प्रारंभ में अभिक्रिया का वेग अधिक होता है और समय के साथ क्रियाकारक की सांद्रता का मान कम होता जाता है इसलिए
अभिक्रिया का वेग भी कम होता जाता है।
अभिक्रिया के वेग को सामान्यतया t1/2 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
किसी भी रासायनिक अभिक्रिया का अर्द्ध आयुकाल का मान उस
अभिक्रिया की कोटि पर निर्भर करता है।
वह अभिक्रिया जिसमें अभिक्रिया का वेग अभिकारकों की सांद्रता के शून्य घात पर निर्भर करती है अर्थात अभिक्रिया का वेग अभिकारक की सांद्रता पर निर्भर नहीं करती है या वह अभिक्रिया जो एक स्थिर
वेग से संपन्न होती है उसे शून्य कोटि की अभिक्रिया कहते है।
माना एक शून्य कोटि की अभिक्रिया निम्न है –
A → B
माना अभिक्रिया का वेग स्थिरांक k है तथा अभिक्रिया की प्रारंभिक सांद्रता का मान[A]0 है तो इस अभिक्रिया का अर्द्ध आयु काल अर्थात शून्य कोटि की अभिक्रिया के लिए अर्द्ध आयु काल का मान निम्न सूत्र के द्वारा ज्ञात किया जाता है –
सूत्र के आधार पर हम कह सकते है कि शून्य कोटि की अभिक्रिया का अर्ध आयु काल का मान वेग स्थिरांक और अभिक्रिया के क्रियाकारक की प्रारंभिक सांद्रता पर निर्भर करता है।
प्रथम कोटि की अभिक्रियाओं में अभिक्रिया का वेग क्रियाकारक (अभिकारक) की सांद्रता के प्रथम घात पर निर्भर करता है।
माना एक प्रथम कोटि की अभिक्रिया निम्न है –
A→B
माना अभिक्रिया का वेग स्थिरांक k है तो प्रथम कोटि की अभिक्रिया के समाकलित वेग समीकरण से समय t पर अभिक्रिया के क्रियाकारक की सांद्रता को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जाता है –
किसी भी प्रथम कोटि की अभिक्रिया के लिए अर्द्ध आयु काल का मान निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है –
प्रथम कोटि की अभिक्रिया के अर्द्ध आयु काल के सूत्र समीकरण को देखकर हम कह सकते है कि प्रथम कोटि की अभिक्रिया का अर्द्ध आयु काल का मान केवल वेग स्थिरांक या नियतांक पर निर्भर करता है , अभिक्रिया के क्रियाकारक की सांद्रता पर निर्भर नहीं करता है।