चोल कालीन स्थापत्य कला के दो प्रमुख उदाहरण दीजिए give example of chola architecture in hindi
give example of chola architecture in hindi चोल कालीन स्थापत्य कला के दो प्रमुख उदाहरण दीजिए ?
चोल कालीन मंदिर स्थापत्य
उत्तर: चोलवंशी शासक उत्साही निर्माता थे और उनके समय में कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। चोलयुगीन कलाकारों ने अपनी
कुशलता का प्रदर्शन पाषाण-मंदिर एवं मूर्तियां बनाने में किया है। द्रविड़ वास्तु शैली का जो प्रारम्भ पल्लव काल में हुआ उसका चरमोत्कर्ष इस काल में देखने को मिलता है। चोलकाल दक्षिण भारतीय कला का स्वर्ण युग कहा जा सकता है। कलाविद् फर्गुसन के अनुसार चोल कलाकारों ने दैत्यों के समान कल्पना की तथा जौहरियों के समान उसे पूरा किया। (They Conveived Like Gaints and Finished Like Jewellers)। चोलकालीन मंदिरों के दो रूप दिखाई देते हैं। प्रथम के अंतर्गत प्रारंभिक काल के वे मंदिर हैं जो पल्लव शैली से प्रभावित हैं तथा बाद के मंदिरों की अपेक्षा काफी छोटे आकार के हैं। दूसरे रूप के मंदिर अत्यन्त विशाल तथा भव्य हैं। इनमें हम द्रविड़ शैली की पूर्णता पाते हैं।
नारट्टामलाई का चोलेश्वर मंदिर – चोल शासकों ने अपनी राजधानी में बहुसंख्यक पाषाण मंदिरों का निर्माण करवाया। चोल काल के प्रांरभिक स्मारक पुडुक्कोट्टै जिले से प्राप्त होते हैं। इनमें विजयालय द्वारा नारट्टामलाई में बनवाया गया चोलेश्वर मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। यह चोल शैली का एक सुन्दर नमूना है। इसमें एक वर्गाकार प्राकार के अन्तर्गत एक वृत्ताकार गर्भगृह बना हुआ है। प्राकार तथा गर्भगृह के ऊपर विमान है। यह चार मंजिला है। प्रत्येक मंजिल एक दूसरे के ऊपर क्रमशः छोटी होती हुई बनायी गयी है। नीचे की तीन मंजिले वर्गाकार तथा सबसे ऊपरी गोलाकार है। इसके ऊपर गुम्बदाकार शिखर तथा सबसे ऊपरी भाग में गोल कलश स्थापित है। सामने की ओर घिरा हआ मण्डप है। बाहरी दीवारों को सुन्दर भित्तिस्तम्भों से अलंकृत किया गया है। मुख्य द्वार के दोनों ओर ताख में दो द्वारपालों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। मुख्य मंदिर के चारों ओर खुले हुए बरामदे में सात छोटे देवस्थान हैं जो मंदिर ही प्रतीत होते हैं। ये सभी पाषाण-निर्मित हैं।
कन्नूर का बालसुब्रह्मण्यम मंदिर – इस प्रकार का दूसरा मंदिर कन्ननूर का बालसुब्रह्मण्य मंदिर है जिसे आदित्य प्रथम बनवाया था। इसकी समाधियों की छतों के चारों कोनों पर हाथियों की मूर्तियाँ हैं। विमान के शिखर के नीचे बना हुआ हाथी सुब्रह्मण्यम् का वाहन है। इसी समय का एक अन्य मंदिर कुम्बकोनम् में बना श्नागेश्वर मंदिरश् है। इसका बार दीवारों की ताखों में सुन्दर मूर्तियाँ बनाई गयी हैं। गर्भगृह के चारों ओर अर्द्धनारी, ब्रह्मा, दक्षिणामूर्ति के साथ-सा बहुसंख्यक मनुष्यों की मूर्तियाँ ऊँची रिलीफ में बनी हैं जो अत्यधिक सुन्दर हैं। मानव मूर्तियाँ या तो दानकर्ताओं का है समकालीन राजकुमारों तथा राजकुमारियों की हैं।
आदित्य प्रथम के ही समय में तिरुक्कट्टलै के सुन्दरेश्वर मंदिर का भी निर्माण हुआ। इसके परकोटे में गोपुरम् । हुआ है।, विमान दुतल्ला (Double Storeyed) है तथा इसमें एक अर्द्धमण्डप भी है। इस मंदिर में द्रविड़ शैला का विशेषतायें देखी जा सकती है।
श्रीनिवासनल्लूर का कोरंगनाथ मंदिर – परान्तक प्रथम के राज्य-काल में निर्मित श्रीनिवासनल्लूर का कोरंगनाथ मंदिर चाल मंदिर निर्माण-कला के विकास के द्वितीय चरण को व्यक्त करता है। यह कल मिलाकर 50 फीट लम्बा है। इसका 28ग29 फीट का है तथा सामने की ओर का मण्डप 25Û20′ के आकार का है। मण्डप के भातर चार स्तम्भा पर आधारित एक लघु कक्ष है। मण्डप तथा गर्भगह को जोडते हए अन्तराल (टमतजपइनसम) बनाया गया है। मंदिर का शिखर 50 फीट ऊंचा है। गर्भगढ़ की बाहरी दीवार में बनी ताखों में एक पेड़ के नीचे भक्तों. सिंहो तथा गणा के साथ दुगा का दक्षिणामूर्ति तथा विष्णु एवं ब्रह्मा की खडी हई मूर्तियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं। दर्गा के साथ लक्ष्मी तथा सरस्वती का मूर्तियां भी मिलती हैं। सभी तक्षण अत्यन्त सन्दर हैं। इस प्रकार वास्तु तथा तक्षण दोनों की दृष्टि से यह एक उत्कृष्ट कलाकृति है।
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