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एंट्रोपी (entropy in hindi) एन्ट्रॉपी , गिब्स मुक्त ऊर्जा , गिब्स मुक्त ऊर्जा परिवर्तन , समीकरण , gibbs free energy equation

(entropy in hindi) एंट्रोपी : 1. किसी तंत्र की अस्त व्यस्तता या यादृच्छिकता के माप को एंट्रोपी कहते है।

2.  एन्ट्रॉपी को ‘s’ से व्यक्त करते है।
3. एन्ट्रॉपी तंत्र की प्रारंभिक व अंतिम अवस्था पर निर्भर करती है न कि उस पथ पर जिस पथ के द्वारा तंत्र एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाता है अत: एंट्रोपी ऊष्मागतिकी फलन है।
4. किसी तंत्र द्वारा उत्क्रमणीय रूप से अवशोषित की गयी ऊष्मा में परम ताप का भाग देने पर जो मान प्राप्त होता है उसे एंट्रोपी परिवर्तन द्वारा व्यक्त करते है।
△S = q/T
5. एन्ट्रॉपी की इकाई J K-1 या Cal K-1 होती है।
एन्ट्रॉपी एक मात्रात्मक गुण है , अत: इसकी इकाई में पदार्थ की मात्रा को भी सम्मिलित किया जाता है।
उदाहरण : 1 मोल पदार्थ की एन्ट्रॉपी मोलर एन्ट्रॉपी कहलाती है तथा इसकी इकाई JK-1mol-1 या CalK-1mol-1 होती है।
6. 25 डिग्री सेल्सियस ताप तथा 1 वायुमण्डलीय दाब पर एक मोल शुद्ध पदार्थ की एंट्रोपी को मानक एंट्रोपी कहते है। इसे S0 से व्यक्त करते है।
7. जब दो गैसों को मिश्रित किया जाता है तो उनकी एंट्रोपी बढ़ जाती है।
8. ठोस पदार्थ के कण व्यवस्थित रहते है जबकि द्रव के कण अव्यवस्थित रहते है तथा गैसों के कण अधिक अव्यवस्थित रहते है। अत: इनकी एंट्रोपी निम्न क्रम में बढती जाती है –
ठोस < द्रव < गैस
9. वे अभिक्रियाएँ जिनमें △S का का मान धनात्मक होता है वे स्वत: होती है , △S का मान धनात्मक होना एंट्रोपी के बढने को प्रदर्शित करता है।
10. △S के मानों की सहायता से किसी अभिक्रिया के स्वत: या अस्वत: या साम्यावस्था की ओर होने वाली प्रवृति को बताया जा सकता है।
△S = धनात्मक = स्वत: अभिक्रिया
△S = ऋणात्मक = अस्वत: अभिक्रिया
△S = 0 = साम्यावस्था
11. किसी खुले तंत्र की एंट्रोपी में कुल परिवर्तन निम्न सूत्र द्वारा दिया जा सकता है –
Stotal = S(तंत्र) + S(परिवेश)

गिब्स मुक्त ऊर्जा (प्रक्रम की तात्कालिकता की कसौटी)

किसी खुले तंत्र की एंट्रोपी में कुल परिवर्तन की गणना निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात की जा सकती है –
Stotal S(तंत्र) + S(परिवेश)
परन्तु तंत्र तथा परिवेश की कुल एंट्रोपी का मान आसानी से ज्ञात नहीं किया जा सकता अत: किसी अभिक्रिया के स्वत: परिवर्तित होने की दिशा का निर्धारण करने के लिए वैज्ञानिको ने दो फलनों का समावेश किया इन फलनो को G तथा A द्वारा प्रदर्शित करते है।
G = H – TS
A = H – TS
यहाँ G = गिब्स मुक्त ऊर्जा
A = हेल्महोल्त्ज़ मुक्त ऊर्जा
H = एन्थैल्पी
T = परम ताप
S = एंट्रोपी
समीकरण 1 और समीकरण 2 , H , T , S एक अवस्था फलन है अत: G व A भी अवस्था फलन होंगे।
अत: ये तंत्र की प्रारंभिक व अंतिम अवस्था पर निर्भर करते है न की पथ पर।
माना किसी समतापी प्रक्रम के लिए तंत्र की प्रारंभिक व अंतिम अवस्थाओं की गिब्स मुक्त ऊर्जा G1 व G2 है तो गिब्स मुक्त ऊर्जा में परिवर्तन –
G = G2 – G1
चूँकि G1 = H1 – TS1

G2 = H2 – TS2

दोनों मान रखने पर
G = (H2 – TS2– (H– TS1)
G = (H2 –H1) – T (S– S1)
G = △H – T △S
उपरोक्त समीकरण को गिब्स मुक्त ऊर्जा समीकरण या गिब्स हेल्म होल्टज समीकरण कहते है।

गिब्स मुक्त ऊर्जा परिवर्तन (स्वत: परिवर्तन या तात्कालिकता की कसौटी)

किसी खुले तंत्र की एंट्रोपी में कुल परिवर्तन की गणना निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात की जाती है –
Stotal = S(तंत्र) + S(परिवेश)
S(परिवेश) की गणना H(परिवेश) तथा ताप की सहायता से की जा सकती है।
S = q(उत्क्रमणीय)/T
 S = H/T
S(परिवेश) = H(परिवेश)/T

S(परिवेश) = –H(तंत्र)/T

△S का मान समीकरण में रखने पर 
S(total) = S(तंत्र) – [H(तंत्र)/T]

 

S(total) = {TS(तंत्र)H(तंत्र)}/T
TS(total) = {TS(तंत्र)H(तंत्र)}
(-) से दोनों
ओर गुणा करने पर

 -TS(total) = H(तंत्र) – TS(तंत्र)

चूँकि G(तंत्र) = H(तंत्र) – TS(तंत्र)
इसलिए 
-TS(total) = G(तंत्र)
G(तंत्र) -TS(total)
वे अभिक्रियायें जिनमें △S का मान धनात्मक होता है वे स्वत: होती है।
उपरोक्त समीकरण में △S का मान धनात्मक रखने पर G का  मान ऋणात्मक में आता है अत: वे अभिक्रियाएँ जिनके लिए △G का मान ऋणात्मक होता है वे स्वत: होती है।
नोट 1 : वे अभिक्रियाएँ जिनके लिए △G का मान धनात्मक होता है वे स्वत: नहीं होती है अर्थात अस्वत: होता है अत:  △G > 0
नोट 2 : वे अभिक्रियाएं जिनके लिए △G का मान ऋणात्मक होता है वे स्वत: होती है अर्थात △G <  0
नोट 3 : वे अभिक्रियायें जिनके लिए △G का मान शून्य होता है वे साम्यावस्था में होती है अर्थात △G = 0

गिब्स ऊर्जा समीकरण

G = △H – T △S
यहाँ  = गिब्स ऊर्जा में परिवर्तन
△H =  एन्थैल्पी में परिवर्तन
△S  = एंट्रोपी में परिवर्तन
T = परम ताप
नोट 1 : यदि △H धनात्मक तथा △S ऋणात्मक है तो धनात्मक तथा प्रक्रम अस्वत: होगा।
नोट 2 : यदि △H ऋणात्मक तथा △S धनात्मक  हो तो ऋणात्मक तथा प्रक्रम स्वत: होगा।
नोट 3 : यदि △H ऋणात्मक तथा △S ऋणात्मक हो तो G :-
यदि H > △S तो ऋणात्मक तथा प्रक्रम स्वत: होगा।
यदि H < △S तो धनात्मक तथा प्रक्रम अस्वत: होगा।
नोट 4 : यदि △H धनात्मक तथा धनात्मक  हो तो G :-
यदि H > △S तो धनात्मक तथा प्रक्रम अस्वत: होगा।
यदि H < △S तो ऋणात्मक तथा प्रक्रम स्वत: होगा।
नोट 5 : यदि H = △S हो तो G = 0 होगा और प्रक्रम साम्यावस्था में होगा।

अभिक्रिया के स्वत: परिवर्तित होने की आवश्यक शर्तें

किसी अभिक्रिया के स्वत: परिवर्तित होने की दिशा का निर्धारण निम्न कारकों पर निर्भर करता है –
1. एन्थैल्पी में परिवर्तन : वे अभिक्रियाएँ जिनमें क्रियाकारको की ऊष्मा क्रियाफलों की ऊष्मा से अधिक होती है अर्थात H का मान ऋणात्मक होता है उन्हें उष्माक्षेपी अभिक्रिया कहते है , ये अभिक्रियाएँ स्वत: होती है।
H = HP – HR
यहाँ HP = उत्पाद (प्रोडक्ट) की एन्थैल्पी
HR = क्रियाकारक (reactant) की एन्थैल्पी
= एन्थैल्पी में परिवर्तन
नोट : कुछ अभिक्रियाएँ जिनमें H का मान धनात्मक होने पर अर्थात अभिक्रिया ऊष्माशोषी होने पर वे स्वत: होती है अत: H के मानो की सहायता से किसी अभिक्रिया के स्वत: होने का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
2. एंट्रोपी में परिवर्तन : किसी तंत्र की अस्तव्यवस्तता के माप को एंट्रोपी कहते है।  वे अभिक्रियायें जिनकी एंट्रोपी बढती है अर्थात H का मान धनात्मक होता है वे स्वत: होती है।
नोट : कुछ अभिक्रिया अभिक्रियाओं में △S का मान ऋणात्मक होते हुए भी वे स्वत: होती है अत: △S के मानों की सहायता से किसी अभिक्रिया के स्वत: होने निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
3. गिब्स मुक्त ऊर्जा में परिवर्तन : किसी विशेष अवस्था में तंत्र द्वारा प्राप्त ऊर्जा की वह मात्रा जो उपयोगी कार्यो में प्रयुक्त होती है उसे गिब्स मुक्त ऊर्जा कहते है।
वे अभिक्रियाएँ जिनके लिए G का मान ऋणात्मक होता है वे स्वत: होती है।
वे अभिक्रियाएं जिनके लिए G का मान धनात्मक होता है वे अस्वत: होती है।
वे अभिक्रियाएँ जिनके लिए G का मान शून्य होता है वे साम्यावस्था में होती है।
उदाहरण : NH3
(g) + HCl (g) = NH4Cl (S) +
ऊर्जा
  • उपरोक्त अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी है अत: △H का मान ऋणात्मक होगा।
  • इस अभिक्रिया में क्रियाकारक गैसीय अवस्था में तथा क्रियाफल ठोस अवस्था में है अत: △S का मान ऋणात्मक होगा।
  • उपरोक्त अभिक्रिया के स्वत: होने के लिए G का मान ऋणात्मक होना चाहिए तथा G का मान ऋणात्मक तभी होगा जब :  △H > △S
  • △S  का मान कम करने के लिए ताप कम होना चाहिए अत: यह अभिक्रिया कम ताप पर स्वत: होगी।
  • इस अभिक्रिया में जैसे जैसे ताप बढ़ाया जाता है △S  का मान धनात्मक होता जाता है जिससे G का मान धनात्मक होता जाता है अत: क्रिया विपरीत दिशा में होने लगती है।

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