भू-आकृति विज्ञान के विकास में भारतीय योगदान भू-आकृति वैज्ञानिक नाम geomorphology scientists and their inventions in hindi
geomorphology scientists and their inventions in hindi भू-आकृति विज्ञान के विकास में भारतीय योगदान भू-आकृति वैज्ञानिक नाम ?
भू-आकृति विज्ञान के विकास में भारतीय योगदान
भारत में भ्वाकृतिक अध्ययन लगभग 1958 ई० से प्रारम्भ किया गया है। तब से उत्तरोत्तर विकास होता चला आ रहा है, परन्तु इसमें आकारमितिक विश्लेषण तव प्रारम्भ होता है, जबकि 1960 ई० में बङ्गलौर में ‘भारतीय विज्ञान कांग्रेस‘ के समक्ष प्रथम आकारमितिक शोधपत्र पढ़ा गया। किसी क्षेत्र विशेष तथा प्रवाह-बेसिन के आकारमितिक विश्लेषणों में विद्वानों (आर० एल० सिंह, आर० पी० सिंह, ए० कुमार, सविन्द्र सिहं, रेनू श्रीवास्तव, के० एन० सिंह, एस० सी० खर्कवाल, वी० के० अस्थाना, ओ० पी० सिहं, एस० एस० ओझा, डी० पी० उपाध्याय, जी० प्रसाद, आर० आसरे, डी० रंगानी आदि) ने समय-समय पर अपना योगदान दिया है। विद्वानों ने पुस्तकों, पत्रों तथा शोध-प्रबन्धों के द्वारा आकारमितिक विश्लेषण करने का प्रयास किया। निम्न विद्वानों का योगदान विशेषरूप से उल्लेखनीय है-
1. अस्थाना, वी० के० – अस्थाना (1967 ई०) ने एक शोध-पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें क्षेत्रफल-ऊँचाई, सापेक्ष ऊँचाई, निरपेक्ष ऊँचाई, प्रवाह घनत्व, प्रवाह-गठन, सारिता-आवृत्ति आदि के सह-सम्बन्धों का अध्ययन प्रस्तुत किया था। इन्होंने 1968 ई० में स्थलरूपों का आकारमितिक विश्लेषण तथा बसावक्रम के अध्ययन के द्वारा पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्ति की। कुछ समय उपरान्त इन्होंने अल्मोड़ा की प्रवाह-बेसिन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया।
2. अग्रवाल, एम० – अग्रवाल (1972 ई०) ने जबलपुर पठार की प्रवाह-बेसिन का भौगोलिक अध्ययन प्रस्तुत किया है। 1973 ई० में इन्होंने जबलपुर पठार के सापेक्ष उच्चावच का गणितीय अध्ययन करने का प्रयास किया है।
3. बेताल एच० आर० – बेताल (1968 ई०) ने ‘दामोदर घाटी का ढाल विश्लेषण‘ का अध्ययन किया है।
1. अस्थाना, वी० के० 1967ः मार्कोमेट्रिक एक्लूशन ऑफ लैण्डफार्म इन अल्मोड़ा एण्ड इट्स इनवाएरन्स, नेशनल ज्योग्रैफिकल जनरल ऑफ इण्डिया, पृ० 37-54.
2. अस्थापना, यी० के० 1968ः लैण्डफार्स एण्ड सेटिलमेण्ट इन अल्मोड़ा एण्ड इट्स इन्वायरन्स, अप्रकाशित शोध प्रबन्ध
3. अस्थापना, बी० के० 1975ः दि ड्रेनेज करेक्टरिटिक्स ऑफ वेसिन्स एराउन्ड अल्मोड़ा एण्ड इट्स इन्वायरन्स, नेशनल ज्योग्राफर, बाल्यूम -10, पृ० 87-103.
4. अग्रवाल, एम० 1972ः मार्कोमेट्रिक एनॉलिसिस ऑफ सम ड्रेनेज ऑफ जवलपुर प्लेटो, नेशनल ज्योग्राफिकल जनरल ऑफ इण्डिया, पृ० 148-103.
5. अग्रवाल, एम० 1973ः मार्कोमेट्रिक एनॉलिसिस ऑफ रिलेटिव रिलीफ पार्ट ऑफ जवलपुर प्लेटो, उत्तर भारत भूगोल पत्रिका, वाल्यूम 2, पृ0 73-79.
4. चटर्जी, एस० पी०- इन्होंने सर्वप्रथम रॉची पठार के टोपोग्राफी का अध्ययन किया। इसके बाद राॅची पठाक के कुछ भ्वाकृतिक पहलुओं का अध्ययन किया है। 1948 ई० में ‘छोटा नागपुर पटार का विकास‘ का अध्ययन बड़े पैमाने पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया।
5. दीक्षित, के० आर० – इन्होंने 1976 ई० में कोंकण की प्रवाह-बेसिन के स्थलरूपों तथा इनके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन बड़े पैमाने पर करने का प्रयास किया है।
6. दुबे, आर० एस० – इन्होंने 1968 ई० में रीवा पठार की अपरदन-सतहों का निर्धारण तुगंतामिति तथा परिच्छेदिकाओं के
आधार पर किया है।
7. घोस, ए० के० – इन्होंने लूनी बेसिन का भ्वाकृतिक अध्ययन 1967 ई० में किया गया है। इसमें होने गणितीय विश्लेषण के लिए रिग्रेशन लाइन तथा सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात करने का प्रयास किया है।
8. घोस, बी० – इन्होंने सर्वप्रथम राजस्थान के मरुस्थली भागों के भ्वाकृतिक नियन्त्रक का अध्ययन 1968 ई० में प्रस्तुत किया तथा 1969 ई० में राजस्थान की अर्द्ध मरुस्थली सरिताओं का भ्वाकृतिक अध्ययन किया। राजस्थान की नदियों का मात्रात्मक अध्ययन 1974 ई० में प्रकाशित कराया। इस प्रकार इन्होंने मरुस्थलीय क्षेत्रों का अध्ययन करके भू-आकृति विज्ञान के सर्वांगीण विकास के लिये विद्वानों को प्रेरित किया।
9. खर्कवाल, एस० सी० – इन्होंने 1970 ई० में हिमालय की वेसिन का आकारमितिक अध्ययन किया तथा 1971 ई० में प्रवाह-बेसिन के औसत ढाल के अध्ययन में सांख्यिकीय विश्लेषण प्रस्तुत किया।
10. कुमार, ए०: इन्होंने सर्वप्रथम 1971 ई० में रॉची पठार के प्रवाह तथा उच्चावच का मात्रात्मक
1. चटर्जी, एस० पी० 1940ः जेनिसिस टोपोग्राफी ऑफ दि रॉची प्लेटो, कलकत्ता ज्योग्रैफिकल रिव्यू, वाल्यूम 3, नं० 1, पृ० 45-48.
2. चटर्जी एस० पी० 1945ः सम एसपेक्ट्स ऑफ ज्योमार्कोलॉजी ऑफ रॉची प्लेटो, कलकत्ता ज्योग्रैफिकल रिव्य, बाल्यूम 7, पृ० 33-35.
3. चटर्जी, एस० पी० 1948ः फिजिओग्रैफिक इवोलू न ऑफ छोटानागपुर, कलकत्ता ज्योग्रैफिकल रिव्यू, वाल्यूम 8, पृ० 39-49.
4. दिक्षित, के० आर० 1976ः ड्रेनेज बेसिन्स ऑफ कोंकड़ फार्मस एण्ड करेक्टरिस्टिक्स, नेशनल ज्योग्रैफिकल जनरल ऑफ इण्डिया, सि० – दिसम्बर, 79-105.
5. दुवे, आर० एस० 1968ः इरोजन सरफेस ऑन दि रीवा प्लेटो, मध्य प्रदेश, इण्डिया, सेलेक्टेड पेपर्स, बाल्यूम 1, कलकत्ता, पृ० 35-42.
6. घोस, ए० क० 1967ः क्वांटिटेटिव जिओमार्कोलॉजी ऑफ दि ड्रैनेज येसिन्स इन दि सेन्ट्रल लूनी वेसिन इन वेस्टर्न राजस्थान, एनाल्स ऑफ जियोमार्कोलॉजी वाल्यूम -11 पृ० 136-16
7. घोस, वी० 1968ः जिओमार्कोलॉजिकल कन्ट्रोल ऑन दि डिस्ट्रीब्यूशैन ऑफ इवापोरिटीज इन दि एरिड जोन ऑफ राजस्थान (इण्डिया).
8. घोस, वी० 1969ः क्यांटिटेटिव जिओमार्कोलॉजी ऑफ दि ड्रेनेज वेसिन्स इन सेनी एरिड इन्वायरन्मेण्ट. वाल्यूम 8, पृ० 37-44.
9. घोस, बी० 1974ः पेयर वाइज रिलेशन विट्वीन मार्कोमेट्रिक बैरीएवुल्स ऑफ ड्रेनेज नेटवर्क ऑफ जावी डैनेज बेसिन्स, काजरी जोधपुर, पृ० 36-37.
10. खर्कवाल, एस० सी० 1970ः माफोमेट्रिक स्टडी ऑफ हिमालयन वेसिन्स, एज सैम्पुल स्टडी, नेशनल
अध्ययन प्रस्तुत किया। इनके कई शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं – द० प० रॉची पठार की मिटीका आकारमितिक अध्ययन, बूरहा वेसिन का बेसिन क्षेत्रफल तथा सरिता लम्बाई के बीच सह-सम्बन्ध प्रवाह-बेसिन की आकारमितिक सम्पत्ति, ढाल परिच्छेदिका का गणितीय मापन। इस प्रकार इन्होंने भू-आकृति विज्ञान के क्षेत्र में काफी योगदान वर्तमान में प्रदान कर रहे हैं। नवीन अध्येताओं के लिए मार्ग प्रशस्त होगा। साथ-ही-साथ भू-आकृति विज्ञान अपना वैज्ञानिक स्वरूप प्राप्त कर लेगा।
11. कुमार, पी०: इन्होंने डी० फिल्० की डिग्री के लिये रॉची पठार की भू-आकारिकी तथा बसाव क्रम का अध्ययन किया।
12. पाल, ए० के०: इन्होंने 1968 ई० में बालसन वेसिन का ठपनितबंजपवद तंजपव, बेसिन क्षेत्रफल तथा बेसिन उच्चावच का अध्ययन किया है। चार वर्षों बाद 1972 ई० में आकरमितिक नियम का वर्गीकरण किया तथा अपना तीसरा शोध-पत्र – हिमालय की वेसिन का मात्रात्मक भ्वाकृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया।
13. सिन्यू, एस० ए०: इन्होंने प्रवाह प्रणाली का मात्रात्मक अध्ययन 1974 ई० में प्रस्तुत किया, जिसमें ढाल, प्रवाह-घनत्व, सापेक्ष उच्चावच आदि का अध्ययन किया है।
14. सिंह, डी० के० और शर्मा, एच० एन०: इन विद्वानों ने डंतहीमतपजं तथा नामरूप वेसिन के Sinuority Index का अध्ययन किया है।
15. सिंह, जे०: जे० सिंह (1971) ने छोटा नागपुर के प्रदेश का भ्वाकृतिक अध्ययन किया।
16. सिंह, के० एन०: पूर्वी उत्तर प्रदेश के स्थलरूप तथा बसाव क्रम का अध्ययन इन्होंने 1968 ई० में किया था।
1. कुमार, ए० 1971ः जियोमार्कोलॉजिकल स्टडी ऑफ ड्रेनेज एण्ड रिलीफ ऑफ दि इस्टर्न रॉची प्लेटो, उत्तर भारत भूगोल पत्रिका, वाल्यूम 8, पृ०.18-33.
2. कुमार, ए० 1972ः मार्कोलॉजिकल एनालिसिस ऑफ स्वायल इन साउथ-वेस्ट रॉची प्लेटो, दि जियोग्रैफिकल प्रोग्रेस, पृ० 75-80.
3. कुमार, ए०, 1973ः पेयर-वाइज रिलेशनशिप ऑफ बेसिन एरिया एण्ड स्ट्रीम लेंग्थः ए केस स्टडी ऑफ दि अपर बुरहा बेसिन, जियोग्रैफिकल आउटलुक, वाल्यूम-10, पृ०329-338.
4. कुमार, ए० 1975-76ः मार्कोलॉजिकल प्रापर्टीज ऑफ दि पोलीगोनिक ड्रेनेज बेसिन्स, जियोग्रैफिकल आउटलुक, वाल्यूम 37, पृ० 329-338.
5. कुमार, ए0 1975-76ः मार्कोलॉजिकल प्रापर्टीज ऑफ दि स्लोप प्रोफाइल्स ऑफ दि वेस्टर्न रॉची प्लेटो एस्कार्स, रॉची जियोग्रैफिकल आउटलुक, वाल्यूम 37, पृ० 239-338.
6. कुमार, पी० 1957ः रॉची प्लेटो, अप्रकाशित डि० फिल्० शोधप्रबन्ध, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद।
7. पाल, ए० के० 1972ः ए क्लासीफिकेशन ऑफ मार्कोमेट्रिक मेथड्स ऑफ एनालिसिस एन स्पारेसाल, जियोग्रैफिकल रिव्यू ऑफ इण्डिया, याल्यूम 34, पृ०61-84.
8. पाल, ए० के० 1973ः क्वांटिटेटिव जियोमार्कोलॉजी ऑफ दि वेसिन्स इन दि हिमालयाज, जियोग्रैफिकल रिव्यू ऑफ इण्डिया, बाल्यूम 35, पृ88-101.
9. सिन्धू, एस० ए०1974ः पैरामेटिक एनालिसिस ऑफ पाताल गॉड ड्रेनेज बेसिन्स, नेशनल जियोग्रैफिकल जनरल ऑफ इण्डिया, वाल्यूम 20, पृ० 232-235.
17. सिंह एल०: इन्होंने कांग्रा ट्रैक्ट के होशियारपुर की लघु वेसिन का ब्पतबनसंतपजल तंजपव का अध्ययन किया हैं।
18 सिंह, ओ० पी०: 1974 ई० में० 10 प्रवाह बेसिन (पलामू पठार) का मात्रात्मक अध्ययन प्रस्तुत का प्रयास किया। इन्होंने पुनः 1976 ई० में सापेक्ष उच्चावच, प्रवाह-घनत्व, प्रवाह-गठन, औसत ढाल आदि के द्वारा पलामू पठार को डंतचीव-न्दपज में बांटने का काफी अच्छा प्रयास किया।
19. सिंह, आर० एल०ः इन्होंने 1976 ई० में औसत ढाल, सापेक्ष उच्चावच, निरपेक्ष उद्यावच, वाह-गठन तथा सरिता आवृत्ति के आधार पर कुमाऊँ हिमालय, विन्ध्यन स्कार्प और राजस्थान उच्च भूमि का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। इस अध्ययन के बाद इन्होंने विभिन्न अवस्थाओं में नदी के विकासक्रम का विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया।
20. प्रो० सविन्द्र सिंह: ये बड़े पैमाने पर भू-आकृति विज्ञान में योगदान दे रहे हैं। स्वयं भू-आकृति विज्ञान के प्रांगण में भगीरथ परिश्रम कर रहे हैं तथा साथ-ही-साथ कई शोध-छात्रों का मार्गदर्शन भी कर रहे हैं। इन्होंने 1978 ई० में ।ळमवदवतचीवसवहपबंस ेजनकल व िेउंसस कतंपदंहम इंेपदे व ित्ंदबीप च्संजमंनण् का अध्ययन डि० फिल्० उपाधि के लिए किया। इसके पहले कई शोध-पत्रों के माध्यम से अपने विचारों को रखने का प्रयास किया है।
वर्तमान में प्रो० सिंह भू-आकृति विज्ञान की उच्चस्तरीय पाठ्य पुस्तक तथा अन्यान्य शोध पत्रों के माध्यम से इस अध्ययन को नई दिशा प्रदान कर रहे हैं।
21. सिंह, आर० पी०: छोटा नागपुर का भ्वाकृतिक विकास का अध्ययन प्रस्तुत किया है।
22. ओझा एस० एस०: इन्होंने ‘पलामू उच्च प्रदेश की लघु-प्रवाह बेसिन का भ्वाकृतिक अध्ययन‘ शोध प्रबन्ध पर डि० फिल्० की उपाधि प्राप्त की। इसमें गणितीय विश्लेषण द्वारा स्थलरूपों के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन प्रस्तुत किया। साथ-ही-साथ अध्ययन के दौरान पाटम जलप्रपात का निर्धारण तृतीयक एवं प्लेस्टोसीन युगीन उत्थान की भ्रंश-रेखा जो प्रपात से मिलती है, के आधार पर किया। भू-आकृति विज्ञान में स्थलरूपों के विश्लेषण-हेतु अनेक शोध-पत्रों को प्रकाशित किया।
वर्तमान में मैदानी लघु-स्थलरूपों का अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों के विश्लेषण में अध्ययन प्रस्तुत किया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रदत्त- ।द ।चचतंपेंस व िसंदक ंदक ॅंजमत त्मेवनतबमे व िच्तंजंचहंती क्पेजतपबजश् में सातवें एवं आठवें क्रम में स्थलरूपों का प्रक्रम तथा संरचना के सन्दर्भ में भू-आकृतिक अध्ययन तथा इसका जनपद की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इसके अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग में रीडर पद पर प्रतिष्ठित भू-आकृति विज्ञान में स्थलरूपों की अनेक जटिल समस्याओं के समाधान में संलग्न हैं।
1. सिंह एल० 1970ः बेसिन सरकुलर्टी रेसियो एज ए टेरिन टाइप इलीमेण्ट, इकन जियोग्राफर, याल्यूम 8, पृ० 119-128.
2. सिंह, ओ० पी० 1974ः ड्रेनेज ऑफ पलामू, उत्तर भारत भूगोल पत्रिका, गोरखपुर, याल्यूम 10, पृ०24.32.
3. सिंह, ओ० पी० 1976ः ए क्वांटिटेटिव एप्रोचेज टु दि क्लासीफिकेशन ऑफ मार्को-युनिट्सः ए केस स्टडी ऑफ पलामू अपलैण्ड, नेशनल जियोग्राफर, वाल्यूम 11, पृ० 79-87.
4. सिंह, आर० एल० 1967ः मार्कोमेटिक एनालिसिस ऑफ टेरीम, जियोग्रैफिकल सोसाइटीज ऑफ इण्डिया, वाराणसी पृ०1-24.
5. सिंह, एस0 1978ः ए जियोमार्कोलॉजिकल स्टडी ऑफ स्माल डेनेज बिसिन्स ऑफ रॉची प्लेटो, अप्रकाशित ० फिल्० शोध प्रबन्ध, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
6. सिंह, आर० पी० 1969ः जियोग्रैफिकल इवोल्यूशन ऑफ छोटा नागपुर हाईलैण्ड, नेशनल जियोग्रेफिकल
इन विद्वानों के अलावा रेनू श्रीवास्तव (1976), मुखर्जी पद्मजा (1975), वत्स (1976), एम० आज्व शाह (1978), डी० पी० उपाध्याय (1981), गायत्री प्रसाद (1984), देवकी रंगानी (1985), राम आसो (1986) आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। प्रयाग विश्वविद्यालय में दर्जनों शोध-छात्र-भू-आकृति विज्ञान में अध्ययनरत हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भू-आकृति विज्ञान के विकास के योगदान को ध्यान में रखकर इसे ‘इलाहाबादी स्कूल‘ की संज्ञा दी जा सकती है। जिसका श्रेय प्रो० आर० एन० तिवारी, पूर्व अध्यक्ष, भूगोल विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जिन्होंने प्रो० सविन्द्र सिंह को ‘रॉची पठार की लघु प्रवाह-बेसिन का भ्वाकृतिक अध्ययन‘ करा करके इसका कार्य-भार सौंपा, को है। साथ-ही-साथ स्थलरूपों के विकास की समस्याओं के समाधान-हेतु अनेक तथ्यों की जटिलताओं के समाधान किये। इनका विचार है कि भू-आकृति विज्ञान में स्थलरूपों का अध्ययन गणित, भौतिकशास्त्र, भू-विज्ञान, वनस्पति शास्त्र आदि विषयों के प्रामाणिक सिद्धान्तों के आधार पर करना आवश्यक है, परन्तु सत्यापन बिना क्षेत्र पर्यवेक्षण के सम्भव नहीं है। यही कारण है कि इन्होंने क्षेत्र-पर्यवेक्षण पर विशेष बल दिया है। भूगर्भिक इतिहास का स्थलरूपों पर प्रभाव स्थलरूपों के विकास की आधार शिला है, इनकी प्रमुख मान्यता है।
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