कुल और वंश में अंतर क्या है | कुल की परिभाषा , वंश किसे कहते है अर्थ मतलब genus and species difference in hindi
genus and species difference in hindi कुल और वंश में अंतर क्या है | कुल की परिभाषा , वंश किसे कहते है अर्थ मतलब बताइये ?
वंश संकल्पना (the concept of the genus) : यह प्रजाति से उच्चतर स्तर की वर्गिकी इकाई (taxonomic unit) है।
परिभाषा : ऐसी अनेक प्रजातियाँ जो एक दुसरे से अधिकांश लक्षणों में समानता दर्शाती है , वंश या जिनस का गठन करती है।
जब किसी वंश में केवल एक ही प्रजाति सम्मिलित होती है तो ऐसे वंश को एकलप्ररुपी कहा जाता है।
एक ही वंश में सम्मिलित करने के लिए दो या दो से अधिक प्रजातियों के विभिन्न लक्षणों में कितनी कम अथवा अधिक असमानतायें होनी चाहिए , यह सुनिश्चित करना पादप वर्गीकरण विज्ञानियों के पर्यवेक्षण , अध्ययन और विवेक पर निर्भर करता है। इसकी सीमारेखा स्थापित करने में थोड़ी बहुत मतवैभिन्यता हो सकती है लेकिन पुष्पीय लक्षणों की समानता निर्धारण में निश्चित ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
समस्त विवादों के बावजूद वंश की परिकल्पना मनुष्य द्वारा संभव अति प्राचीन काल से की जा रही है , शायद तब से , जब पादप वर्गिकी का विधिवत क्रमबद्ध वैज्ञानिक अध्ययन प्रारंभ भी नहीं हुआ था। विभिन्न पादप वंशो के उल्लेख हेतु हिंदी और संस्कृत भाषाओँ के प्राचीन साहित्य से प्रचलित नामों जैसे बांज , चीड़ और तुलसी का उदाहरण लिया जा सकता है। यहाँ इन नामों की स्थापना वंश के सन्दर्भ में की गयी है और बांज (Oak) की समस्त प्रजातियाँ क्यूरकस वंश में , तुलसी की समस्त प्रजातियाँ ओसिमस वंश में और चीड की समस्त प्रजातियाँ पाइनस वंश में सम्मिलित की गयी है।
उपरोक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वंश की संकल्पना मनुष्य द्वारा जाने अनजाने ही अति प्राचीन काल से निर्धारित कर ली गयी थी और इसे स्वीकृत करने और विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करने का कार्य पादप वर्गीकरण विज्ञानियों द्वारा संपन्न किया गया।
आधुनिक वनस्पतिशास्त्र में पादप नामकरण के लिए प्रचलित लैटिन नामों के चलन और विभिन्न पादप वंशो के विधिवत लक्षणों के वर्णन का श्रेय प्रसिद्ध पादप वर्गीकरण विज्ञानी टॉर्नफोर्ट (1700) को दिया जाता है। इसके अनुसार किसी पादप वंश की स्थापना और निर्धारण के लिए इसमें सम्मिलित पादप प्रजातियों के पुष्पीय और फल सम्बन्धी लक्षणों को सर्वश्रेष्ठ मानदंड के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त उपयुक्त और सटीक निर्धारण हेतु यदि आवश्यक हो तो अन्य आकारिकी और कायिक लक्षणों की सहायता भी ले सकते है। यही नहीं , टॉर्नफोर्ट (1716) ने अपनी पुस्तक इंस्टीट्यूशन री हरबेरी में लगभग 700 वंशों का वर्णन किया है।
पादप वर्गीकरण विज्ञान के जनक लिनियस के द्वारा वंश परिकल्पना के अंतर्गत वंश निर्धारण में पुष्पीय लक्षणों के साथ अन्य लक्षणों का प्रयोग भी किया गया है।
आगे चलकर जैसे जैसे पादप वर्गिकी का अध्ययन क्षेत्र और अधिक विस्तृत हुआ तो इसके साथ ही , पौधों के बाह्य आकारिकी लक्षणों के अतिरिक्त अन्य पादप संरचनाओं जैसे आन्तरिक संरचना , कोशिका संरचना , भ्रौणिकी और अन्य तत्सम्बन्धी संरचनाएँ जैसे भ्रूण और बीजाण्ड संरचना आदि , परागकण संरचना की विशेषताओं की सहायता भी पादप वर्गीकरण और वंश निर्धारण हेतु प्रयुक्त की जाने लगी। हेडबर्ग (1946) के द्वारा बाह्य आकारिकी , गुणसूत्र संख्या और परागकण संरचना के आधार पर वंश पोलीगोनम को 7 नए वंशों में विभेदित करना , जौहरी (1963) के द्वारा भ्रूणविज्ञान अध्ययन के आधार पर ब्यूटोमोप्सिस , पिओनिया और ट्रापा नामक पादप वंशों की व्याख्या , पादप वर्गिकी और वंश निर्धारण में वानस्पतिकी की अन्य विधाओ के सक्रीय सहयोग के उपयुक्त उदाहरण है। यही नहीं , विभिन्न पादप भागों के अध्ययन से प्राप्त सूचनाओं का उपयोग आज पादप वर्गीकरण सम्बन्धी अनेक जटिल समस्याओं के सफलतापूर्वक निराकरण में किया जा रहा है। एक वंश को दो या दो से अधिक उपवंशों और इसके आगे उपवंश को पुनः खण्ड और उपखण्ड आदि में विभेदित किया जा सकता है।
कुल की संकल्पना (the concept of family)
यह वंश से एक सोपान उच्च स्तर पर स्थापित वर्गिकी श्रेणी है। सामान्यतया दो या दो से अधिक वंश जो कुछ प्रमुख लक्षणों में एक दुसरे से समानता प्रदर्शित करते है , उनको सम्मिलित कर , एक कुल का गठन किया जाता है।
जिस कुल में केवल एक ही वंश होता है तो ऐसे कुल को एकल प्रारूप अथवा (monotypic) एकल वंशीय कुल कहा जाता है , जैसे कस्क्यूटेसी और टाइफेसी।
पादप वर्गिकी के अध्ययन में , कुल का निर्धारण करते समय प्रमुख प्रश्न यह उठता है कि , एक ही कुल में सम्मिलित सभी पादप वंशो के लक्षणों में किस स्तर तक समानता होनी चाहिए। वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार इसका निर्णय पादप वर्गीकरण विज्ञानियों के द्वारा किये गए अध्ययन और पर्यवेक्षण और विवेक पर निर्भर करता है , वैसे इस बारे में गौण मतभेद हो सकते है फिर भी कुल की सीमा रेखा का निर्धारण सामान्यतया विभिन्न वंशो के प्रमुख लक्षणों के आधार पर ही किया जाता है।
प्राचीन साहित्य और प्रलेखों द्वारा प्राप्त विवरण से ज्ञात होता है कि कुल की अवधारणा वर्गिकी के वैज्ञानिक अध्ययन से पूर्व भी प्रचलित थी। पादप कुल की पहचान और निर्धारण प्रमुख पुष्पीय और फल सम्बन्धी लक्षणों के आधार पर ही की जाती है। उदाहरणतया मालवा पारवीफ्लोरा , हिबिस्कस रोजा साइनेन्सिस , एल्थिया रोजिया और गोसीपियम आरबोरियम आदि पौधों को एक ही कुल माल्वेसी में रखा जा सकता है क्योंकि इनके पुष्पीय लक्षण एकसमान है। जैसे –
(1) पुष्प पंचतयी
(2) अनुबाह्य दलपुंज की उपस्थिति
(3) पुमंग की एकसंघी अवस्था
(4) दलपुंज विन्यास व्यावर्तित।
उपरोक्त सभी समान लक्षणों के कारण इन पादप वंशों को माल्वेसी कुल में रखा गया है। कुछ वनस्पतिशास्त्रियों जैसे वाल्टर्स (1961) के अनुसार उच्चवर्गीय बीजधारी पौधों में दो प्रकार के पादप कुल निर्धारित किये जा सकते है। ये है –
- सुपरिभाषित : अर्थात ऐसे कुल जो विकास के क्रम में प्रगत या आधुनिक है और इनमें अधिकांश पुष्पीय लक्षण एकसमान होते है जैसे एस्टेरेसी और पोएसी।
- अल्प परिभाषित – ऐसे कुल पादप विकास के क्रम में अपेक्षाकृत पुरातन अथवा पुरोगामी समझे जाते है। इनमें सम्मिलित वंशो में अनेक लक्षणों की विभिन्नता पायी जाती है , संभवत: इसी लिए इन कुलों से विकास की अनेक प्रवृतियाँ आगे बढती है , उदाहरण – रेनन कुलेसी और मेग्नोलियेसी।
पादप वर्गीकरण विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में विस्तार के साथ ही अनेक पूर्व निर्धारण कुलों में सम्मिलित सदस्यों की स्थिति के बारे में मतवैभिन्यता एक सामान्य प्रक्रिया है और संभवत: अनेक कुलों से , कुल पादप वंशो को अलग करके और नए कुलों की स्थापना की गयी है , जैसे निलम्बो को निम्बिफियेसी से पृथक कर नीलम्बोनेसी , कस्क्यूटा को कोनवोल्वुलेसी से पृथक कर कस्क्यूटेसी का निर्माण किया गया है। यही कारण है कि आज अधिकांश कुलों का आकार छोटा होता जा रहा है और इनकी सदस्य संख्या कम हो गयी है।
गण , संवर्ग और संघ की संकल्पना (the concept of order class and phylum)
ऐसे सभी कुल जिनके सदस्यों में आपस में अनेक समानतायें , समान विकासीय प्रवृत्तियाँ , समान बन्धुता और जातिवृतीय सम्बद्धता पायी जाती है , मिलकर एक गण की स्थापना करते है।
एक ही गण में सम्मिलित कुलों की समानता के लिए आवश्यक लक्षणों की संख्या वर्गीकरण विज्ञानियों की मान्यताओं और विवेक पर निर्भर करती है। यही कारण है कि विभिन्न वर्गीकरण पद्धतियों में गणों की संख्या भी अलग अलग पायी गयी है , उदाहरणार्थ , हचिन्सन (1926) ने अपनी प्रतिपादित पादप वर्गीकरण पद्धति में जहाँ छोटे छोटे गणों का गठन किया है वही दूसरी तरफ बैन्थस और हुकर (1862) और अन्य पादप वर्गीकरणी विज्ञानियों द्वारा गणों का गठन अपेक्षाकृत अधिक कुलों को सम्मिलित करके किया गया है।
उदाहरणतया गण माल्वेल्स में 3 कुल क्रमशः माल्वेसी , स्टेरक्युलियेसी और टिलीयेसी सम्मिलित किये गए है , इन तीनों कुलों में निम्नलिखित लक्षण एकसमान पाए जाते है –
- पुष्प नियमित
- बाह्यदलपत्र 5 , दलपत्र -5
- पुंकेसर – असंख्य
- जायांग त्रि से बहुअंडपी और युक्तांडपी
- अधिकांश सदस्यों में काष्ठीय प्रवृत्ति
दो या दो से अधिक गण जो प्रमुख लक्षणों में एक समान होते है , मिलकर एक संवर्ग का गठन करते है जो वार्गिकी के अन्तर्गत गण से एक सोपान ऊँचा वर्गक है।
इसी प्रकार समान लक्षणों वाले संवर्ग मिलकर संघ का गठन करते है।
पूर्व में दिए गए सरसों के पौधे के उदाहरण को सामने रखते हुए विभिन्न वर्गिकी इकाइयों के अंतर्गत , इसका सम्पूर्ण वर्गीकरण (बैंथस और हुकर 1862-1883 की वर्गीकरण पद्धति के अनुसार) निम्नलिखित प्रकार से होगा –
वार्गिकी इकाई | नाम |
प्रभाग | एंजियोस्पर्मी |
उप प्रभाग | डाइकोटीलिडनी |
वर्ग | पोलीपेटेली |
श्रृंखला | थैलेमीफ्लोरी |
गण | पेराइटेल्स |
उपगण | केपेरिडिन |
कुल | क्रुसीफेरी |
वंश | ब्रेसीका |
प्रजाति | ब्रेसीका केम्पेस्ट्रिस |
किस्म | ब्रेसिका केम्पेस्ट्रिस वेरा , सरसों |
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 : समान लक्षणों वाले संवर्गो को मिलाकर गठन होता है –
(A) संघ का
(B) वंश का
(C) गण का
(D) कुल का
उत्तर : (A) संघ का
प्रश्न 2 : सुपरिभाषित कुल है –
(A) जो विकास के क्रम में पुरातन है
(B) प्रगत
(C) विचित्र है
(D) मध्यवर्ती है
उत्तर : (B) प्रगत
प्रश्न 3 : ऐसे कुल जिनके सदस्यों में अनेक समानता होती है वे गठन करते है –
(A) वर्ग का
(B) श्रृंखला
(C) गण का
(D) उपगण का
उत्तर :: (C) गण का
प्रश्न 4 : वर्गिकी शब्द की उत्पत्ति हुई है –
(A) लैटिन भाषा
(B) अंग्रेजी
(C) फ़्रांसिसी
(D) ग्रीक भाषा से
उत्तर : (D) ग्रीक भाषा से
प्रश्न 5 : पादप प्रदर्शो का परिरक्षण किया जाता है –
(A) पादप संग्रहालय में
(B) पुस्तकालय में
(C) संग्रहालय में
(D) कला विधि में
उत्तर : (A) पादप संग्रहालय में
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