जीन प्रारूप किसे कहते हैं , Genotypes in hindi , जीनोटाइप की परिभाषा क्या है , चूहों में त्वचा का रंग (Skin colour in mice)
जाने जीन प्रारूप किसे कहते हैं , Genotypes in hindi , जीनोटाइप की परिभाषा क्या है , चूहों में त्वचा का रंग (Skin colour in mice) ?
उदाहरण 2 मटर के बीज में पीला रंग हरे रंग पर प्रभावी है तथा गोलाकार आकृति, झुर्रीदार लक्षण पर प्रभावी है। निम्न क्रॉस से प्राप्त होने वाली जीन प्ररूपी ( Genotype) एवं लक्षण प्ररूपी (Phenotypic) अनुपात ज्ञात कीजिए ।
हल (Solution)
YYRR x YY Rr
YyRR जनक द्वारा बनने वाले युग्मकों वाले युग्मकों की संख्या = 2n यहाँ N की संख्या है, अतः युग्मकों की संख्या = 2 x 1 = 2 इसलिए YyRR दो प्रकार के युग्मक उत्पन्न करेगा।
इस क्रॉस में प्राप्त जाइगोटिक संयोजनों की संख्या एक जनक द्वारा निर्मित युग्मकों की संख्या दूसरे जनक द्वारा बनाये युग्मकों की संख्या
= 2 × 4 = 8
इस प्रकार यहाँ 8 प्रकार के लक्षण प्ररूप या फीनोटाइप्स बनेंगे ।
जीन प्ररूप (Genotypes)
(1) समयुग्मजी पीले व गोल बीज वाला = YYRR = 1
(2) समयुग्मजी पीले व विषमयुग्मजी गोल बीज = YYRr = 1
(3) विषमयुग्मजी पीले व सम युग्मजी गोल बीज = YyRR = 3
(4) विषमयुग्मजी पीले व विषम समयुग्मजी गोल बीज = YyRR = 3
(5) समयुग्मजी हरे व गोलबीज वाला = yyRr = 1
(6) समयुग्मजी हरे व झुर्रीदार बीज वाला = yyrr = 1
अतः यहाँ जीन प्ररूपी अनुपात = 1 : 1 : 1 : 1 : 3 : 1 : 1 होगा
प्रश्न – Rr x Rr संकर में फीनोटिपिक जीनोटाइप अनुपात लिखिये ।
उत्तर-लक्षण प्ररूप (Phenotype) 3 गोल : झुर्रीदार बीज
जीन प्ररूप अनुपात ( Genotypics ratio) :
RR (25%) Rr (50%) rr (25%)
1 : 2 : 1
समयुग्मजी गोल : संकर गोल या विषम युग्मजी : शुद्ध झुर्रीदार
उदाहरण 4. Yy Rr × yyRr क्रॉस में कितने प्रकार के युग्मक बनेंगे यदि Y = पीले बीज, हरे बीज, R = गोल बीज, एवं r = झुर्रीदार बीज हो तो संतति पीढ़ी में लक्षण प्ररूपी एवं जीन प्ररूपी अनुपात क्या होंगे ?
हल (Solution)
जनक पौधों YyRr दोनों लक्षणों के लिए विषमयुग्मजी है, अतः यहाँ बनने वाले युग्मकों की = 2n यहाँ जनक 2 लक्षणों में हेटेरोजाइगस है, इसलिये n = 2
अत: YyRr से युग्मक बनेंगे = 2 × 2 = 4
दूसरा जनक पौधा yyRr हरे बीज वाले लक्षण के लिए होमोजाइगस तथा गोल बीज के लिए विषमयुग्मजी या हेटेरोजाइगस है, अतः यहाँ बनने वाले युग्मकों की संख्या
यहाँ जनक एक लक्षण में होमोजाइगस है, अत: n = 1
अतः यह जनक पौधो प्रकार के युग्मक बनायेगा 2 x 1 = 2
इस क्रॉस को चेकर बोर्ड के द्वारा निरूपित करने पर निम्न परिणाम प्राप्त होंगे-
लक्षण प्ररूपी अनुपात (Phenotypic ratio)
पीले व गोल : पीले झुर्रीदार : हरे व गोल : हरे झुर्रीदार
3 : 1 : 3 : 1
जीन प्ररूपी अनुपात (Genotypic ratio)
YYRR : YyRr : yyRr : Yyrr : yyRR : yyrr
1 : 2 : 2 : 1 : 1 : 1
उपरोक्त अध्ययनों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जीवधारियों की वंशागति के सम्बन्ध में निम्न तथ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं-
(1) प्राय: सजीवों की कायिक कोशिकाओं या सामान्य कोशिकाओं (Vegetative Cells) में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (2n) होती है, एवं जनन कोशिकाओं अर्थात् युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या अगुणित या (n) होती है ।
(2) जीन, सामान्य कोशिकाओं (Somatic Cells) में गुणसूत्रों के ऊपर युग्मक या जोड़े में पाई जाती है एवं युग्मक में इनका ऐलील या विकल्पी सदस्य ही उपस्थित होता है, क्योंकि युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी हाती है । अत: समजात गुणसूत्रों के जोड़े में से केवल एक गुणसूत्र ही युग्मक में उपस्थित होता है ।
(3) गुणसूत्रों पर मौजूद जीन्स अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा ही सामान्य अथवा परिवर्तित रूप में युग्मकों में पहुँचती हैं।
(4) युग्मकविकल्पी जोड़े या जीन के सदस्यों के दो विपर्यासी प्रारूप होते हैं- (i) प्रभावी एवं/ अथवा (ii) अप्रभावी। इनमें से युग्मक में केवल एक प्रकार का ऐलील या जीन पाई जाती है। प्रभावी जीन समयुग्मजी अथवा विषम-युग्मजी (Heterozygous) दोनों अवस्थाओं में किसी भी प्रभावी की अपने लक्षण को अभिव्यक्त करने के लिए जिम्मेदार होती है। वहीं दूसरी ओर अप्रभावी जीन समयुग्मजी (Heterozygous) अवस्था में ही अपने लक्षण को अभिव्यक्त आनेवाली पीढ़ी में कर सकती है।
(5) वह लक्षण विशेष जो सजीव प्रजाति की आबादी ( Population) में सर्वाधिक प्रदर्शित होता है, उसे प्रभावी लक्षण एवं जो लक्षण कम संख्या में निरूपित होता है उसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं ।
(6) सजीवों में लक्षणों की वंशागति या संचरण जीन एवं वातावरण दोनों की सक्रियता से होता है, खासकर जब कोई लक्षण विशेष अधिक जीन्स द्वारा नियन्त्रित होता हो ।
(7) जीन्स की प्रभाविता में वातावरण के अनुसार बदलाव हो सकता है।
(8) उचित वातावरण या माध्यम के प्राप्त होने पर ही जीन्स लक्षणों को नियन्त्रित या अभिव्यक्त करती है।
(9) किसी सजीव के कुछ लक्षण वातावरण के द्वारा केवल आगामी पीढ़ी में ही प्रभावित होते हैं, जबकि जीन्स के द्वारा लक्षणों का संचरण (Transmission) पीढ़ी दर पीढ़ी होता है। मेण्डल के आनुवंशिकी के नियमों का महत्त्व (Importance of Mendel’s Laws of Inheritance) (1) इन नियमों की जानकारी के द्वारा संकर (Hybrid) संतति पीढ़ी में सम्भावित नवीन संयोजन एवं इनकी आवृत्ति (Frequency) के बारे में पहले ही मालूम हो जाता है । (2) मेण्डल के नियमों की जानकारी से विभिन्न सजीवों में प्रभावी एवं अप्रभावी लक्षणों को मालूम कर सकते हैं।
(3) इन नियमों का उपयोग कर पौधों में उपयोगी लक्षणों का समावेश एवं हानिकारक लक्षणों का विस्थापन किया जा सकता है। यह तथ्य कृषि विज्ञान एवं पादप प्रजनन में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है ।
(4) रोग प्रतिरोधी पादप किस्मों को एवं अधिक उत्पादन वाले कृष्य पौधों (Cultivated plants) की किस्मों का विकास किया जा सकता है।
(5) ऐसे पौधों एवं फसलों को विकसित किया जा सकता है, जो कि अपने लक्षणों में शुद्ध (Pure) हो ।
मेण्डल के वंशागति के नियमों के अपवाद या मेण्डल के द्वारा प्राप्त परिणामों से विचलन (Exceptions of Mendel’s Laws of Inheritance or Deviations from Mendel’s findings)
मेण्डल के कार्यों की सन् 1900 में पुनर्खोज होने के पश्चात् कुछ ऐसे उदाहरण सामने आये हैं जिनसे विभिन्न लक्षणों की सजीवों में वंशागति के बारे में कुछ अन्य जानकारी प्राप्त होती है । अनेक ऐसे परिणाम भी प्राप्त हुए हैं जो मेण्डल के आनुवंशिकता के नियमों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। कुछ प्रमुख अपवाद (Exceptions) निम्न प्रकार से हैं-
(1) अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete Dominance ) — मेण्डल द्वारा प्रयुक्त विपर्यासी लक्षणों के सातों जोड़ों में से प्रत्येक जोड़े के लिये एक एलील को दूसरे ऐलील पर प्रभावी पाया गया, परिणामस्वरूप F, पीढ़ी में प्रभावी जनक का लक्षण प्ररूप ( Phenotype) ही उत्पन्न होता है । परन्तु कुछ उदाहरणों जैसे-मिराबिलिस जलापा (Mirabilis jalapa 4 o’clock plant) में संकरण के पश्चात् F, पीढ़ी में प्रभावी लक्षण प्ररूप के स्थान पर दूसरा लक्षण दिखाई देता है । यह प्राप्त लक्षण प्रभावी एवं अप्रभावी लक्षण प्ररूप के बीच का ( Intermediate ) या मध्यवर्ती होता है ।
मिराबिलिस जलापा ( Mirabilis jalapa ) या गुल – अब्बास में जब लाल पुष्प (RR) एवं सफेद पुष्प (TT) वाले दो जनक पौधों का क्रॉस करवाया गया तो F, पीढ़ी में गुलाबी रंग के पुष्प वाले पौधे (Rr) प्राप्त हुए। इन गुलाबी रंग के पुष्प वाले F, संतति के पौधों का स्वनिषेचन करवाने पर F पीढ़ी में प्राप्त लाल, गुलाबी एवं सफेद रंग के पुष्प वाले पौधों का अनुपात क्रमश: 1 2 1 था (चित्र
उपरोक्त उदाहरण में यह स्पष्ट है कि शुद्ध समयुग्मजी (Homozygous) स्थिति में प्रभावी लक्षण कारक के (RR) तथा अप्रभावी लक्षण कारक के (rr) क्रमश: लाल एवं सफेद पुष्पों वाले पौधे प्राप्त होते हैं। लेकिन संकर या विषमयुग्मजी (Heterozygous) संयोजन ( Rr) में प्रभावी लक्षण पूरी तरह अभिव्यक्त (Express) नहीं हो पाता, अपितु इसके स्थान पर मध्यवर्ती लक्षण (Intermediate character) गुलाबी रंग के पुष्प वाले पौधे प्राप्त होते हैं । इससे यह भी स्पष्ट होता है कि लाल रंग वाला कारक R, सफेद रंग वाले कारक पर पूरी तरह प्रभावी नहीं है। अतः इस परिघटना को अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete Dominance) कहते हैं । इस प्रक्रिया में F2 पीढ़ी के प्राप्त पौधों का जीन प्ररूपी (Genotypic) एवं लक्षण प्ररूपी अनुपात (Phenotypic ratio) समान ही अर्थात् 1 (लाल RR) : 2 (गुलाबी Rr): 1 (सफेद IT) होता है ।
(2) सहप्रभाविता (Co-dominance) – इस प्रक्रिया में युग्म-विकल्पी जोड़े में उपस्थित दोनों कारक सदस्य या जीन प्रभावी एवं अप्रभावी नहीं होते अपितु दोनों ही F पीढ़ी में अभिव्यक्त लक्षण को विकसित करने में समान रूप से योगदान देते हैं ।
इस परिघटना में भी F2 पीढ़ी में जीन प्ररूपी एवं लक्षण प्ररूपी अनुपात क्रमश: 1 : 2:1 ही होता है। सहप्रभाविता की प्रक्रिया को पालतू पशुओं में त्वचा के रंग की वंशागति (Skin colour inheritance in cattles) के उदाहरण से समझाया जा सकता है। जैसे गायों (Cows and other Bovine animals) में चमड़ी का रंग लाल (RR) एवं सफेद (r r ) होता है। इन दोनों प्रकार के पशुओं के बीच क्रॉस करवाने पर F, पीढ़ी में प्राप्त पशुओं की त्वचा चितकबरी (Rr) होती है।
“इस प्रकार यहाँ संकर पशु में दोनों जीन क्रमश: R व अपनी अभिव्यक्ति करते हैं, परिणामस्वरूप पीढ़ी में संकर पशु दोनों ही जीन्स को अभिव्यक्त करते हैं, इनके लक्षणों को दर्शाते हैं। F, पीढ़ी के पशुओं में आपस में क्रॉस करवाने पर लाल, चितकबरे एवं सफेद पशुओं का अनुपात क्रमश: 1 : 2 : 1 होता है । अतः सहप्रश्चाविता में भी अपूर्ण प्रभाविता के समान ही मेण्डेलियन फीनोटाइप अनुपात 3: 1 का अनुसरण नहीं होता ।
इस प्रकार यहाँ लक्षणप्ररूपी एवं जीनप्ररूपी अनुपात समान आता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि यद्यपि अपूर्ण प्रभाविता एवं सहप्रभाविता में पीढ़ी का जीन प्ररूपी एवं लक्षण प्ररूपी अनुपात (Phenotypic ratio) एक समान ही प्राप्त होता है, परन्तु उपरोक्त दो परिघटनाओं (Processes) में सक्रिय जीन्स या कारकों की कार्यशैली में पर्याप्त भिन्नता होती है । अपूर्ण प्रभाविता में जीन के दोनों ऐलीलों (Rar) की अर्न्तक्रिया (Interaction) के परिणामस्वरूप दोनों जनक जीवधारियों के लक्षणों का मध्यवर्ती ( Intermediate ) लक्षण प्ररूप (Phenotype) प्राप्त होता है। जबकि आनुवंशिकी-विज्ञानियों ● अनुसार सहप्रभाविता (Codominance) के अन्तर्गत F पीढ़ी के संकर (विषमयुग्मजी) लक्षण प्ररूप के विकसित होने में दोनों ऐलीलों की समान भूमिका होती है, इनका आपसी व्यवहार अवरोधी न होकर परस्पर सहयोगी होता है ।
(3) घातक जीन्स (Lethal genes) – सजीवों में उपस्थित जीन न केवल कुछ प्रमुख बाह्य को भी अत्यधिक प्रभावित करते हैं, जैसे- सफेद आँखों, एवं अवशेषी पंखों (Vestigial wings) वाली आकारिकीय लक्षणों का निर्धारण करते हैं, अपितु इसके साथ ही ये सजीवों की जीवनक्षमता (Viability) ड्रोसोफिला मक्खी की जीवनी क्षमता, सामान्य या वाइल्ड (Wild) प्रकार की ड्रोसोफिला मक्खी की तुलना में कम होती है । परन्तु इसके अतिरिक्त अनेक उदाहरणों में यह भी देखा गया है कि कुछ जीन सजीव के लक्षण प्ररूप ( Phenotype ) को तो बिल्कुल प्रभावित नहीं करते परन्तु उनकी जीवनी क्षमता (Viability) को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। जीवनी क्षमता पर इस प्रतिकूल प्रभाव के कारण वह सजीव जीवित नहीं रह पाता। अतः “इस प्रकार के जीन जिनकी उपस्थिति, सजीवों के लिए घातक होती है एवं जो जीनधारक की मृत्यु का कारण होते हैं, उनको घातक जीन (Lethal genes) कहते हैं । ”
यदि घातक जीन या इसका प्रभाव (Lethal effect) अपने दूसरे युग्मविकल्पी पर प्रभावी हो जाता है, तो प्रभावी समयुग्मजी जीन प्ररूप ( Homozygous Genotype) सजीव मर जाते है और ऐसा जीन आने वाली पीढ़ी में प्रविष्ट नहीं हो पाता। क्योंकि इस प्रकार के घातक जीन उसी सजीव पीढ़ी के साथ समाप्त हो जाते हैं, अत: घातक जीन (Lethal gene) प्राय: अप्रभावी ( Recessive) होते हैं। सामान्यतया ये पीढ़ी-दर- -पीढ़ी जीवों में विषमयुग्मजी (Heterozy gous) अवस्था में उपस्थित तो रहते हैं, परन्तु प्रकट नहीं होते, अतः ऐसे सजीव मरते नहीं हैं। अपितु घातक जीनों का प्रभाव तो प्रभावी समयुग्मजी (Dominant Homozygous) अवस्था में ही अभिव्यक्त होता है जिसके कारण जीव मर जाते हैं, और घातक जीन आने वाली पीढ़ी में संचरित ( Transmit) नहीं हो पाते। घातक जीनों (Lethal (genes) की कार्यशैली को निम्न उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है-
चूहों में त्वचा का रंग (Skin colour in mice)
घातक जीन्स (Lethal genes) की क्रिया चूहों में त्वचा के रंग के लक्षण की वंशागति के अध्ययन द्वारा समझी जा सकती है। ल्यूसीन क्यूनोट (Lucein Cuenot 1905) के अनुसार चूहों के त्वचा के रंग के लक्षण की वंशागति के परिणाम सम्भावित मेण्डेलियन एकसंकर अनुपात 3: 1 के अनुरूप नहीं थे। उनके अनुसार चूहों में त्वचा का पीला रंग (Yellow skin colour) त्वचा के अन्य रंगों जैसे भूरे रंग पर प्रभावी होता है । यह पीला रंग केवल एक जीन Y द्वारा नियन्त्रित होता है। यह कि समयुग्मजी अवस्था (YY) में पीला रंग चूहों के लिए घातक सिद्ध होता है और ये मर जाते हैं, अत: देखा गया समयुग्मजी अवस्था (YY) में पीले रंग के चूहे कभी प्राप्त नहीं होते, अपितु ये केवल विषमयुग्मजी अवस्था (Yy) में ही पीले रंग में मिलते हैं।
अत: जब पीले रंग के विषमयुग्मजी (Yy) में परस्पर क्रॉस करवाया गया तो इसके परिणामस्वरूप 1. पीढ़ी में पीले एवं भूरे रंग के चूहों का लक्षण प्ररूपी अनुपात (Phenotypic ratio) 2: | था। क्योंकि शेष एक-चौथाई प्रभावी समयुग्मजी (Dominant Homozygous) चूहे (YY) प्रभावी समयुग्मजी घातक जीन (Lethal gene) की उपस्थिति के कारण मर गये, जैसा कि निम्न क्रॉस से स्पष्ट होता है-
ल्यूसीन क्युनोट (1905) ने उपरोक्त परिणामों के आधार पर निम्न निष्कर्ष प्रस्तुत किये –
(1) चूहे (Mouse) में त्वचा का पीला रंग सामान्य भूरे रंग (Brown colour) पर प्रभावी (Dominant) होता है ।
(2) विषम युग्मजी अवस्था (Yy) में ही पीले रंग वाले चूहे जीवित रह सकते हैं, समयुग्मजी प्रभावी (YY) अवस्था में इनकी मृत्यु हो जाती है।
(3) अतः विषम युग्मजी पीले रंग (Yy) वाले चूहों का आपस में क्रॉस करवाने पर आगे वाली पीढ़ी में पीले व भूरे रंग के चूहों का लक्षणप्ररूपी अनुपात मेण्डल के एक संकर क्रॉस के अनुपात के अनुसार 3 : 1 न होकर, एक परिवर्तित प्रारूप 2: 1 में निरूपित होता है, क्योंकि प्रभावी समयुग्मजी (YY) पीला चूहा भ्रूण अवस्था में ही मर जाता है । अतः इस क्रॉस के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि Y जीन समयुग्मजी अवस्था (YY) में चूहे के लिए घातक होती है, और ऐसे चूहे मर जाते हैं । अतः जीन अगली पीढ़ी में संचरित नहीं हो पाते ।
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