जैल किसे कहते हैं , जेलीकारक या जेलीकरण की परिभाषा क्या है , प्रकार गुण GELS in hindi
GELS in hindi जैल किसे कहते हैं , जेलीकारक या जेलीकरण की परिभाषा क्या है , प्रकार गुण ?
ठोसों में द्रव जैल (LIQUIDS IN SOLIDS : GELS)
ऐसे कोलॉइडी तन्त्र जिनमें ठोस पदार्थ वितरण माध्यम (dispersion medium) और द्रव वितरित प्रावस्था (dispersed phase) का गठन करते हों, जेल (gel) कहलाते हैं। उदाहरणार्थ यही (कैसीन में जल), टेबल जेली (जिलैटिन में जल), ठोस ऐल्कोहॉल (कैल्सियम ऐसीटेट में जल) साबुन, बूट पॉलिश आदि कई पदार्थ जेल की श्रेणी में आते हैं। यदि जिलेटिन का 5% गर्म विलयन एक पात्र में लेकर उसे ठण्डा किया जाए। तो एक अर्धठोस सा पदार्थ प्राप्त होता है वह जेल होता है। जिलेटिन के अणु ठण्डा होने के समय एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं और परस्पर एक-दूसरे के साथ जुड़ते जाते हैं अन्ततः इनके सिरे आपस में जुड़ जाते है और । एक खोल सा बन जाता है जिसके मध्य में द्रव के अणु । फंस जाते हैं (चित्र 6.15) और इस प्रकार जेल बन जाते हैं। जेल बनने के प्रक्रम को जेलीकरण (gelation) कहते हैं, जेली जैसे समस्त पदार्थ इस वर्ग में आते हैं।
वर्गीकरण (Classification)-
जेल को निम्न तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है :
- प्रत्यास्थ जेल (Elastic gels) इनमें प्रत्यास्थता का गुण होता है। थोड़ा-सा भी बल लगाने पर इनकी मूल आकृति बदल जाती है और बल हटाते ही ये अपनी मूल आकृति में लौट जाते हैं। स्टार्च, जिलेटिन, फलों के जैम, जेली आदि पदार्थ इस प्रकार के प्रत्यास्थ जेल के उदाहरण हैं। इनके अणु परस्पर स्थिर विद्युत् आकर्षण बल के कारण बंधे रहते हैं जो इनके आयनिक अथवा ध्रुवी सिरों के मध्य कार्य करता है।।
(ii)दढ जेल (Rigid gels) इसका सबसे बढ़िया उदाहरण सिलिका जेल का होते हैं जिसमें रासायनिक बन्ध द्वारा एक जाल सा बन जाता है जो एक दृढ़ संरचना को निर्मित करता है। । (iii).थिक्सोटोपिक जेल (Thixotropic gels)-इस प्रकार के जेल स्थिर अवस्था में तो अर्धठोस होते हैं लेकिन यदि इन्हें तेजी से हिलाया जाए तो ये द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं। कीजेलगुहर (kieselguhr) | को जब पानी में धीरे-धीरे मिलाया जाता है तो एक पतला सा पेस्ट बनता है, यह मिश्रण बहता नहीं है लेकिन यदि इस विलयन को तेजी से हिलाया जाए तो ये बढ़ने लगता है। कुछ उच्च बहुलकों के विलयनों में इस प्रकार के गुण पाए जाते हैं। इस अवस्था में अणु परस्पर दुर्बल आकर्षण बल द्वारा बंधे रहते हैं। वस्तुतः जेल शब्द उन पदार्थों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिनकी भौतिक अवस्था ठोस व द्रव के मध्य की हो और साथ ही निम्न शर्तों का पालन करते हों :
ये एक प्रकार से चिपके हुए से कोलॉइडी तन्त्र होते है जिनमें कम से कम दो अवयव होते। हैं—जेलीकारक (gelling agent) व द्रव (fluid)|
(2) इनमें यान्त्रिक गुण पाए जाते हैं जो कि ठोस पदार्थों के अभिलक्षणिक गुण होते हैं।
(3) पूरे तन्त्र में प्रत्येक अवयव लगातार रहता है। जिलैटिन.ऐगर (agar) तथा बेल्टोनाइट जल में जेल बनाते हैं जिनमें उपर्युक्त समस्त शर्तों का पालन होता है।
कई जेल ऐसे होते हैं जो द्रव के हट जाने पर सिकुड़ जाते हैं और द्रव के सम्पर्क में आने पर पुनः। फूल जाते हैं, ऐसे जेल को जीरोजेल (Xerogel) कहते हैं। जिलेटिन शीट्स, अकेशिया टीयर्स, स्टार्च तथा चमड़ा (leather) ये सब जीरोजेल के उदाहरण हैं। बनाना (Preparation)
(1) पर्याप्त सान्द्रता वाले सॉल को ठण्डा करके (By cooling the sols of moderate concentrations) इसकी व्याख्या हम ऊपर कर चुके हैं जिसमें जिलेटिन के गर्म विलयन को ठण्डा करके। जेल बनाए जाते हैं।
(2) द्विक विघटन की रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा (By the chemical reactions of double decomposition) इस विधि द्वारा जल विरोधी (hydrophoric) जेल बनाए जाते हैं। उदाहरणार्थ सिलिसिक अम्ल (सिलिका जेल) व ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड (ऐलुमिना जेल) इस विधि द्वारा बनाए जाते हैं।
Na2SiO3 (aq.) + 2HCID —— H2SiO3nH2O + 2NaCl
(सोडियम सिलिकेट का जलीय विलयन) जलयोजित सिलिसिक अम्ल
रखा रहने पर जेल के रूप में जम जाएगा इसी प्रकार
AICl3 +3NaOH ——— AI(OH)3nH2O +3NaCl
रखा रहने पर यह भी पूरा जमकर जेल बना देगा।
गुण (Properties)
(1) संकोच पार्थक्य या रुदन (Syneresis or Weeping)-कुछ जेल अपने आप रखे-रखे संकुचित हो जाते हैं और उनमें भरा हुआ द्रव स्वतः बाहर आ जाता है ऐसे लगता है जैसे आंसुओं की बूंदें निकल रही हों इस कारण इस गुण को संकोच पार्थक्य या रुदन कहते हैं। यह संकुचन इस बात पर निर्भर करता है कि जेलीकारक की सान्द्रता कितनी है, जेलीकारक की सान्द्रता जितनी अधिक होती है उतना ही अधिक संकुचन होता है और उतना ही अधिक द्रव बाहर आता है। रक्त का थक्का बनना इस प्रक्रम का एक सामान्य उदाहरण है।
(2) प्रवाहिकीय गुण (Rheological properties) जेल में दृढ़ता तनन सामर्थ्य तथा प्रत्यास्थता के गुण होते हैं जो कि ठोस पदार्थों का अभिलाक्षणिक गुण हैं। थिक्सोट्रोपिक जेल में ये गुण उसके यील्ड मानों (vield | values) के नीचे ही ये गुण प्रदर्शित होते हैं, उसके ऊपर तो ये निलम्बन की भांति बहते हैं या प्रवाह करते हैं।
(3) समय का प्रभाव (Ageing)—समय के साथ धीरे-धीरे इनके जेल गुण नष्ट होते जाते हैं। इनमें जेली कारक के अणु परस्पर जुड़कर घना जाल बना लेते हैं और संयुक्त हो जाते हैं। ।
(4) फूलना (Swelling)—सूखे हुए जलस्नेही जेल को यदि पानी में छोड़ दिया जाए तो ये पानी को अवशोषित करके फूल जाते हैं।
(5) अन्तःशोषण (Imbibition)—यदि किसी जीरोजेल (Xerogel) को ऐसे द्रव के सम्पर्क में रख दिया जाए जो उसका विलायकन कर सके तो जीरोजेल बहुत अधिक फूल जाता है और उसके आयतन में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है। आयतन की यह वृद्धि दो बातों पर निर्भर करती है :
(i) जेलीकारक (gelling agent) के अणुओं और द्रव के अणुओं के मध्य बने हुए बन्धों की संख्या और
(ii) जेलीकारक विलायक अणुओं के मध्य बने बन्धों की प्रबलता। बन्धों की संख्या और उनकी प्रबलता जितनी अधिक होगी उसके आयतन में उतनी ही अधिक वृद्धि होगी। उदाहरणार्थ समविभव बिन्दु (Isoelectric nointm पर प्रोटीन जीरोजेल के अणुओं के मध्य अन्तराण्विक बन्ध प्रबलतम होते हैं. अतः उस स्थिति में वे द्रव के साथ बन्ध नहीं बना पाते इस कारण समविभव बिन्दु पर, प्रोटीन जीरोजेल के आयतन में वृद्धि न्यूनतम होती है। इसके अतिरिक्त आयनों की उपस्थिति से भी जेल के आयतन की वृद्धि प्रभावित होती है।। I
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