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function of fimbriae in bacterial cell in hindi , फिम्ब्री के कार्य क्या है ?

फिम्बिए के कार्य (Functions of fimbriae)

फिम्ब्रिए तथा पिलि अनेक कार्य करते हैं।

  1. ये मुख्यतः आसंजन अंग (adhesive organ) के रूप में कार्य करते हैं। इनके द्वारा ये अन्य प्राकृतिक पदार्थों या सजीव कोशिकाओं की सतह पर संलग्न हो सकते हैं। जबकि यह गुण अफिब्रिए युक्त जीवाणुओं में अनुपस्थित रहता है।
  2. फिम्ब्रिए में प्रतिजनी गुण (antigenic properties) पाये जाते हैं। अत: फिम्ब्री युक्त विभेदों में समूहन (agglutination) का गुण पाया जाता है।
  3. अनेकों फिम्ब्रिए युक्त जीवाणुओं को द्रवीय माध्यम में रखे जाने पर एक प्रकार का तनुत्वक (pellicle) उत्पन्न करने की क्षमता पायी जाती है । सम्भवतः यह क्रिया श्वसन हेतु अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध करती है।
  4. लैंगिक पिलि संयुग्मन (conjugation) के दौरान गुणसूत्र स्थानान्तरण में संयुग्मन नलिका (conjugation tube) के रूप में कार्य करती है जो नर विभेद में उपस्थित रहते हैं।

कुछ ग्रैम ग्राही जीवाणु में स्पिने (spinae) पाये जाने का वर्णन कुछ वैज्ञानिकों ने किया है। ये नलीकार, परिकोशिकीय दृढ़ उपांग हैं जो स्थिनिन् (spinin) नामक एकल प्रोटीन से बने होते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है कि ये जीवाणुओं को विभिन्न वातावरणीय परिस्थितियों में अनुकूलन में मदद करते हैं।

(b) कशाभ (Flagella)

स्पायरोकीट समूह की जीवाणुओं को छोड़कर अन्य सभी चल जीवाणुओं (motile bacteria) में एक या अधिक अशाखित, लम्बा, सर्पिल, गतिशील कशाभ पाया जाता है जो (locomotory rogan) के रूप में कार्य करता है। प्रत्येक कशाभ चाबुक के समान मोटाई का जीवद्रव्य से बना अंगक होता है। इसकी लम्बाई 4-5p प्रायः जीवण्विक कोशिका से अधिक होती हैं। ये जीवद्रव्य कला से उत्पन्न होकर कोशिका भित्ति से बाहर निकलती है। यह अधिकतर छड़ाकार (bacilli) तथा सर्पिल (spirilli) जीवाणुओं में पाये जाते हैं एवं तरल माध्यम में जीवाणु के गमन में सहायक होते हैं। जीवाण्विक कशाभ दूरस्थ सिरे पर वृद्धि करता है।

प्रत्येक कशाभ के तीन भाग होते हैं: (i) तन्तु या काण्ड ( filament or shaft), (ii) हुक (hook) तथा (iii) आधारी काय (basal body).

(i) तन्तु का काण्ड (Filament of shaft) – यह देह से बाहर जीवाणु सतह पर पाया जाता है और हुक द्वारा सतह से संलग्न रहता है। यह 3-20p लम्बा और 0.01-0.13u व्यास का होता है। इसका व्यास पूरी लम्बाई के दौरान एक समान होता है। तन्तु का काण्ड का दूरस्थ सिरा वर्गाकार शीर्ष (tip) के रूप में होता है। एक प्रारूपिक कशाभ 4-5 लम्बा व 120A मोटा होता है, इसका अणुभार 4000 होता है।

जीवाणु में कशाभ किरेटिन या मायोसिन जैसे ही प्रोटीन फ्लेजिलिन (flagellin) से बना होता है। इसके अनुप्रस्थ काट के इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शिक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि यह 8 फ्लैजिलिन अणुओं से रचित होता है जो एक खोखली बेलनाकार अक्ष को घेरे रहते हैं (चित्र 2.5 b)। प्रत्येक फ्लैजिलिन श्रृंखला में लगभग 1000 गोल सूक्ष्म फ्लैजिलिन अणु पाये जाते हैं जो 40A व्यास के होते हैं। इनके निर्माण में लिपिड भाग नहीं लेते अतः ये यूकैरियोटिक कोशिकाओं से भिन्न होते हैं। इनमें 9 परिधीय व 2 केन्द्रीय तन्तु व्यवस्था भी अनुपस्थित होती है। यह केवल एक ही पतले तन्तु (fibril) से बना होता है।

जीवाण्विक एवं यूकैरियोटिक कशाभ में अन्तर

क्र.सं.

 

जीवाण्विक कशाभ यूकैरियोटिक कशाभ
1. यह एक तन्तुमयी रचना है जो अनेक प्रोटीन समानान्तर रेशों से बनी होती है। यह खोखली कुण्डलाकार अनावरित रचना होती है। यह एक्सोनीम (axoneme) व आवरण युक्त रचना है। यह 9 परिधीय एवं 2 केन्द्रीय रज्जुकों से बना होता है।
2. यह 4-5 लम्बा व 200 A व्यास का होता है। यह 200 तक लम्बे व 2000A व्यास के होते हैं।
3. इनकी प्रकृति प्रतिजैविक (antigenic ) प्रकार की होती है। ये प्रतिजैविक प्रकृति के नहीं होते हैं।
4. ये केवल प्रोटीन से रचित होते हैं। ये 70% प्रोटीन, 20% वसा व 10% पॉलिसेकेराइड से बने होते हैं।

 

(ii) हुक (Hook)—– यह मुख्य तन्तु या काण्ड को आधार काय से जोड़ता है ग्रैम अग्राही जीवाणु हुक की लम्बाई ग्रैम ग्राही जीवाणु में उपस्थित हुक की अपेक्षा छोटी होती है। कुछ जीवाणुओं जैसे क्लोस्ट्रीडियम स्पोरोजीन्स (Clostridium sporogenes) में “पाश” (grommet) व बियरिंग (bearing) की भाँति कार्य करने वाला भाग भी हुक के साथ उपस्थित रहता है।

(iii) आधार काय (Basal body) – ग्रैम अग्राही जीवाणुओं के कशाभ में उपस्थित आधार काय वलय (ring) के दो समूह (set) रखती हैं जो एक शलाखा द्वारा जुड़े रहते हैं। प्रत्येक समूह वलय पाये जाते हैं। इन चारों वलयों को झिल्लियों के नाम से भी जाना जाता है। इनका निम्न प्रकार से नामकरण किया जाता है-

(1) M-झिल्ली (Membrane)

(2) S-अधिझिल्ली वलय (Super membrane ring)

(3) P-पेप्टीडोग्लाइकन वलय (Peptidoglycan ring)

(4) L-लॉइपोपॉलीसेकेराइड वलय (Lipopolysaccharide ring)

M-वलय प्लाज्मा कला में धंसी रहती है S-वलय भीतरी कला एवं बाहरी कला के मध्य अर्थात् पेरीप्लाज्मिक स्थान में स्थित होती है। P-वलय पेप्टीडोग्लाइकन स्तर से संलग्न रहती है तथा L – वलय बाह्य कला के लॉइपोपॉलीसेकेराइड पर्त से संयोजित रहती है । (चित्र 8.5 a)

ये वलय क्रमशः भीतर से बाहर की ओर एक क्रम से व्यवस्थित होती हैं। P तथा L वलय वलय तन्तुया काण्ड के लिये बियरिंग की भाँति की रचना बनाती है तो कोशिका झिल्ली से बाहर निकली रहती हैं। ग्रैम ग्राही जीवाणुओं के कशाभ में बाह्य वलय के समूह P एवं L नहीं पाये जाते हैं।

कशाभिक व्यवस्था (Flagellar arrangement)

कशाभिक जीवाणुओं (flagellar bacteria) की देह पर कशाभ के उपस्थित होने की व्यवस्था hi चित्र 8.6 द्वारा निम्नलिखित प्रकार से दर्शाया जाता है:

जीवाणुओं की देह पर कशाभ के उपस्थित अथवा अनुपस्थित होने के आधार इन्हें दो वर्गों में विभक्त करते हैं।

A अशूक (Atricous)-इन जीवाणुओं की देह पर कशाभ नहीं पाये जाते

उदाहरण-डिप्थिरिया बैसिली (Diptheria bacilli) लेक्टोबैसलाई (Latobacilli), पास्चुरैला (Pasteurula)

B कशाभिक (Trichous) – इन जीवाणुओं की देह पर एक या अधिक कशाभ पाये जाते हैं जो इसके गमन में सहायक होते हैं। इनकी संख्या, स्थिति तथा व्यवस्था में भिन्नता पायी जाती है। इस आधार पर इन्हें निम्न प्रकार से वर्णित किया जाता है-

(1) ध्रुवीय (Polar)- जब कशाभ जीवाणु कोशिका के एक या दोनों ध्रुवों पर पाये जाते हैं।

(2) एक कशाभी ध्रुवीय (Polar Monotrichous) – जब एक कशाभ जीवाणु कोशिका के केवल एक ध्रुव पर उपस्थित होता है। उदाहरण- विब्रियो कॉलेरा

(3) द्विध्रुवीय (Bipolar)- जब जीवाणु कोशिका के दोनों ध्रुवों पर एक से अधिक कशाभ पाये जाते हैं।

(4) शिरोपुच्छकशाभी (Cephalotrichous) – जब जीवाण्विक कोशिका के एक सिरे पर दो या अधिक कशाभिकाओं का समूह या गुच्छ उपस्थित होता है।

(5) गुच्छकशाभी (Lophotrichous) – जब अनेक कशाभ जीवाणु कोशिका के एक ध्रुव पर एक गुच्छ रूप में पाये जाते हैं। उदाहरण- स्पाइरिलम वाल्यूटेन्स (Spirillium volutans)

(6) उभयकशाभी (Amphitrichous) – जब जीवाणु कोशिका के दोनों ध्रुवों पर कम से कम एक कशाभ पाया जाता है उदाहरण – नाइट्रोसोमोनास ( Nitrosomonas )

(7) परिकशाभी (Peritrichous) – जब कशाभ जीवाणु कोशिका की देह पर समान रूप से विस्तृत दशा में उपस्थितं रहते हैं। इसे अध्रुवीय कशाभ विन्यास (non.polar flagellation) बेसिलस टाइफोसस (Bacillus typhosus) भी कहते हैं। उदाहरण-बेसिलस टाइफोसस (Bacillus typosus)

कशाभिक गति (Flagellar movement)

कशाभिक गति बेसिलस सबटिलिस (Bacillus subtillis) में 200 प्रति सेकेन्ड होती हैं। क्लिफट्न (Clifton) ; 1975) के अनुसार कशाभिक गति कशाभ के आवर्तीय संकुचन (periodic contraction) का परिणाम होती है जो कशाभ में एक सिरे से दूसरे तक सम्पन्न होते हैं।

कशाभिक गति (flagellar movement) कुण्डलीय तरंगों (hilical waves) के रूप में पायी जाती हैं।

स्पाइरोकीट गति (Spirochaetal movement)

स्पाइरोकीट में जीवाणुओं की देह अत्यन्त लचीली (flexible) होती है, अत: देह की नम्यता के कारण जीवाणु घूर्णन द्वारा गमन करता है।

विसर्पण गति (Gliding movement)

कुछ जीवाणु कोशिकाएँ किसी ठोस तथा नम सतह पर विसर्पण द्वारा गति करने में सक्षम होती है। (मिक्सोबैक्टीरिया )

III. कोशिका आवरण (Cell envelope )

एक प्रारूपी जीवाणु कोशिका (चित्र 8.2) में बाह्य स्तर अर्थात् कोशिका आवरण (cell- envelope) उपस्थित होता है। कोशिका आवरण दो घटकों से निर्मित होता है:

(i) कोशिका भित्ति (Cell-wall)

(ii) कोशिका झिल्ली (Cell-membrance)

कोशिका भित्ति बाह्य दृढ़ रचना होती है इसके नीचे कोशिका झिल्ली उपस्थित होती है। दोनों घटकों से मिलकर बना कोशिका आवरण जीवद्रव्य को परिबद्ध करता है। जीवद्रव्य में राइबोसोम (ribosome), मीजोसोम (mesosome), रिक्तिकाएँ ( vacuoles), केन्द्रक काय (nuclear body) तथा कणिकाएँ (granules) उपस्थित होती हैं। इन सभी आवश्यक घटकों के अतिरिक्त अनेक जीवाणुओं में कुछ अतिरिक्त संरचनाएँ भी जायी जाती हैं इनमें श्लेष्मिक स्तर, सम्पुट, कशाभ (flagellum), फिम्ब्रिए (fimbriae) तथा लैंगिक पिलि (sexual pili) आदि हैं। कुछ जीवाणुओं में क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) व भोजन के संग्रहित कण भी पाये जाते हैं।

(i) कोशिका भित्ति (Cell-wall)

कोशिका भित्ति जीवाणुओं की कोशिकाओं का बाह्य दृढ़ भाग बनाती है, यह जीवाणु की आकृति को बनाये रखने का कार्य करती है। कोशिका भित्ति में दृढ़ता तथा तन्यता (ductility) पायी जाती है। यह लगभग 20 वायुमण्डलीय दाब को सहन करने की क्षमता रखती है तथा जीवाणु को उच्च परासरीय दाब से सुरक्षित बनाये रखती है। जीवाणुओं की कोशिका भित्ति न तो सामान्य प्रकाश सूक्ष्मदर्शी से देखी जा सकती है तथा न ही वह सामान्य अभिरंजकों द्वारा अभिरंजित की जा सकती है। कोशिका-भित्ति को विभेदी तकनीक (differential technique) द्वारा अभिरंजन देने पर यह अभिरंजन ग्रहण करती है तथा इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है। (चित्र 8.8)

जीवाणु कोशिका भित्ति लगभग 10-25 mm मोटाई की होती है। यह कोशिका के शुष्क भार का 20 से 30% भाग होती है। कोशिका भित्ति की उपस्थिति जीवद्रव्य-कुंचन (plasmolysis) के परिणाम द्वारा भी दर्शायी जाती है। यदि जीवाणुओं को लवणीय हाइपरटोनिक विलयन (hypertonic solution) में कुछ समय रखा जाये तो जीवाणु कोशिका के भीतर का कोशिकाद्रव्य का तरल भाग (cell-fluid) बाहर निकल जाता है तथा जीव द्रव्य सिकुड़ जाता है इस स्थिति में कोशिका भित्ति स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगती है।