पादप रोग विज्ञान के जनक कौन है ? भारत में पादप रोग विज्ञान के पितामह कौन है father of bacterial plant pathology in hindi
father of bacterial plant pathology in india hindi phytopathology पादप रोग विज्ञान के जनक कौन है ? पादप रोग विज्ञान के पितामह कौन है ?
उत्तर : Sir Edwin John Butler FRS को पादप रोग विज्ञान के जनक कहते है |
प्रस्तावना
हाल ही के कुछ वर्षों में फसल-संरक्षण-विज्ञानों- कीटविज्ञान (कीटों का अध्ययन), पादप रोग विज्ञान, (पादप रोगों का अध्ययन) और
अपतृण विज्ञान – में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों को अनेक कारकों से प्रेरणा मिली है, जिसमें ये शामिल हैं रू पर्यावरण के गुण के प्रति व्यापक चिंता, खाद्य और रेशा-उत्पादन-तंत्रों में बढ़ती हुई पीड़क-क्षति का खतरा, फसलसंरक्षण के परंपरागत प्रोग्रामों की बढ़ती हुई लागत, कीटनाशियों के अविवेकपूर्ण इस्तेमाल से होने वाले विषाक्त खतरे, और फसल-संरक्षण की स्वतंत्र विधियों तथा प्रायरू संकीर्ण आधारों पर टिकी विधियों के बीच ऋणात्मक पारस्परिक क्रियाएँ। अब फसल-संरक्षण और संबद्ध विषयों मे ंपारिस्थितिक-उपागमों का फिर से उपयोग किया जा रहा है। समाकलित पीड़कप्रबंधन (IPM) का उद्देश्य है फसल-संरक्षण के सभी विषयों में प्रयुक्त विधियों को इस प्रकार समाकलित करना ताकि वे फसल-उत्पादन-तंत्र के अनुकूल हो जाय। IPM वास्तव में अनुप्रयुक्त पारिस्थितिक विज्ञान है।
वर्तमान पादप-संरक्षण और पीड़क-नियंत्रण के भविष्य के लिए पीड़क-प्रबंधन को अपनाना नितांत आवश्यक है। वर्तमान कीट- पीड़क- प्रबंधन एक ऐसा पीड़क-प्रबंधन है जो गहन जीववैज्ञानिक जानकारी और जीववैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। आज, जबकि हमारे पास तीव्र संचारण, और आवागमन के साधन, अत्यधिक प्रभावी चयनात्मक पीड़कनाशी, कंप्यूटर और अन्य वैज्ञानिक सहायताएँ उपलब्ध हैं तब हम पीड़क-नियंत्रक की उन बाधाओं पर सफलता प्राप्त कर सकते हैं जिन पर हम अभी तक विजय नहीं पा सकते थे। कीटनाशियों पर अत्यधिक निर्भरता के लिए बढ़ती हुई जानकारी के कारण नियंत्रण के ठोस मूलभूत सिद्धांतों के प्रति उत्साह पुनरू जागृत हो उठा है और इस प्रकार पीड़क- प्रबंधन प्रोग्रामों के लिए जन-साधारण की स्वीकृति और सफलता के अवसरों में अत्यधिक वृद्धि हो गई है। पीड़क-नियंत्रण का यह उपागम, जो नियंत्रण-हस्तक्षेपों के साथ संगतता का प्रयत्न करता है, अनेक नामों से जाना जाता है। समाकलित नियंत्रण जिसका उद्भव मूलतरू रासायनिक नियंत्रण क्रियाओं के साथ जीव वैज्ञानिक कारकों को मिलाने के लिए किया गया था अब अपेक्षाकृत-व्यापक अर्थ धारण का चुका है।
उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययन करने के बाद आप :
ऽ समाकलित पीड़क-प्रबंधन की परिभाषा और व्याख्या कर सकेंगे,
ऽ पीड़क-प्रबंधन की संकल्पनाओं का वर्णन कर सकेंगे, और
ऽ पीड़क-प्रबंधन के इतिहास का मूल्यांकन कर सकेंगे।
सारांश
इस इकाई का अध्ययन करने के पश्चात् आपने यह सीखा कि रू
ऽ मनुष्य अपने निजी फायदे के लिए प्रकृति को प्रभावित कर लेता है जिसके कारण संकट अवस्था उत्पन्न हो जाती है।
ऽ क्षतिग्रस्त पारितंत्र को फिर से स्थापित करके ही पीड़क-प्रबंधन-प्रोग्राम को अंत में मदद मिलेगी।
पीड़क-प्रबंधन-प्रोग्रामों में इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न साधनों पर गंभीरतापूर्वक सोच-विचार करना चाहिए, और पीड़कनाशियों के इस्तेमाल को अंतिम विकल्प के रूप में प्रयोग करना चाहिए। ऐसे अनेक कारण हैं जिनकी वजह से पीड़क-प्रबंधन-कार्यक्रमों का समाकलन विरले ही होता हो। समाकलित कार्यक्रमों की कमी इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि इसमें कितनी कठिनाइयाँ आती हैं।
ऽ पीड़क-प्रबंधन-विशेषज्ञ को कीट-पीड़क की सही क्षतिकारक अवस्था की पहचान सही समय पर करने की समर्थता होनी चाहिए
और यह निर्णय लेने की समर्थता होनी चाहिए कि कब और कैसे नियंत्रण उपाय लिए जाएँ और साथ ही यह कि विद्यमान स्थितियों
में किस प्रकार का नियंत्रण-उपाय अधिक उपयुक्त होगा।
ऽ सभी पीड़क नुक्सानदेह नहीं होते और न ही पीड़क से होने वाली सभी प्रकार की क्षति असहय होती है। कीटों से निपटा जासकता है, लेकिन उनका प्रबंधन जनसाधारण के अनुकूल होना चाहिए, और सफल पीड़क-प्रबंधन प्रधानतरू उन लोगों को प्रभावित करने पर निर्भर करता है जो पीड़क-नियंत्रण करते हैं।
ऽ पीड़क-प्रबंधन की विभिन्न संकल्पनाएँ हैं रू कृषि पारितंत्र को समझना, कृषि पारितंत्र की योजना तैयार करना, पीड़क से होने वाली क्षति को बर्दाश्त करना, पीड़क-अवशेष छोड़ना, कीटनाशियों का सही समय करना, और जनसाधारण का विवेक और स्वीकृति।
ऽ आर्थिक क्षति-स्तर वह न्यूनतम पीड़क-समष्टि-सघनता है जिससे आर्थिक क्षति हो सकती है।
ऽ आर्थिक आंरभन-स्तर वह सघनता है जिस पर नियंत्रण उपाय लेना आरंभ कर देना चाहिए ताकि वृद्धिमान पीड़क-समष्टि को आर्थिक क्षति-स्तर तक पहुँचने से रोका जा सके।
ऽ सामान्य संतुलन स्थिति किसी कीट समष्टि की दीर्घ काल तक स्थिर बनी रहने वाली वह माध्य समष्टि-सघनता है जिस पर पीड़क-नियंत्रण के अस्थायी हस्तक्षेपों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। म्प्स्ए म्ज्स् और ळम्च् पर आधारित, पीड़कों को विरल, अवसरिक, गंभीर और नियमित पीड़कों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
ऽ किसी पीड़क-प्रबंधन के लिए नियंत्रण उपायों का चुनाव प्रधानतरू दो कारकों से स्पष्ट किया जा सकता है, पीड़क की किस्म और
विभिन्न नियंत्रण उत्पादों और तकनीकों की उपलब्धता को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक निरोध।
ऽ पीड़क-प्रबंधन के इतिहास की तीव्र स्पष्ट प्रावस्थाएँ हैं, परंपरागत उपागम का काल, पीड़कनाशियों का काल और IPM का काल।
IPM के काल का आरंभ सन् 1976 से हुआ।
ऽ IPM तंत्र में जो घटक शामिल हैंरू वे इस प्रकार हैं जीववैज्ञानिक सूचना, समष्टि गतिकी, प्रतिचयन तकनीकें, और नियंत्रण रणनीतियाँ ।
ऽ पीड़क की किस्म नियंत्रण के चुनाव को उन विकल्पों तक सीमित कर देगी जो प्रभावी होंगे, जबकि उत्पादों और तकनीकों की उपलब्धता को प्रभावित करने वाला एक निरोध अंतिम प्रबंधन कार्यक्रम में नियंत्रण-उपायों के कार्यान्वयन की संभाव्यता होगी।
ऽ निर्णय लेने की विधियों और किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली प्रक्रियाओं को समझना चाहिए, इसके साथ ही नए विचारों और तकनीकों को अपनाने में जोखिमों के प्रति उनके रवैए को भी समझने की जरूरत है।
अंत में कुछ प्रश्न
1. वह कौन-से महत्वपूर्ण पहलू हैं जो IPM की सभी परिभाषाओं में शामिल होते हैं ?
2. IPM कार्यक्रम के मूलभूत घटक कौन-कौन-से हैं ?
3. पीड़क-प्रबंधन प्रोग्राम का प्रतिपादन करने में कौन-सा सीमाबंधन हैं ?
4. अवसरिक, बारहमासी और गंभीर पीड़कों में आप किस प्रकार अंतर करेंगे?
5. किसी पीड़क-प्रबंधन कार्यक्रम में पीड़क-अवशेष छोड़ने का क्या अभिप्राय है?
6. ऐतिहासिक दृष्टि से प्च्ड का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर
बोध प्रश्न
2. i) पीड़क-प्रबंधन की विभिन्न संकल्पनाएँ इस प्रकार हैं रू
क) कृषि पारितंत्र को समझना
ख) कृषि पारितंत्र की योजना तैयार करना
ग) पीड़क से होने वाली क्षति को बर्दाश्त करना
घ) पीड़क-अवशेष को छोड़ना
ड़) पीड़कनाशियों का सही-सही समय पर इस्तेमाल
च) जनसाधारण का विवेक और स्वीकृति
पप) प्राकृतिक पारितंत्रों की अपेक्षा, कृषि पारितंत्रों में जंतु और पादप स्पीशीज की विविधता कम होती है। कृषि पारितंत्र में आमतौर
से कुछेक प्रमुख स्पीशीज और अनेक अप्रमुख स्पीशीज होती हैं, और किसी पीड़क-प्रकोप के दौरान, आमतौर से एक समय पर केवल एक पीड़क-स्पीशीज (प्राय: एक प्रमुख स्पीशीज) बड़ी संख्या के मौजूद होती है। कृषि पारितंत्र मनुष्य द्वारा व्यापक रूप से प्रभावित किया जाता है और उसमे आकस्मिक परिवर्तन किए जाते हैं जैसे जुताई करना, कटाई करना और पीड़कनाशियों का इस्तेमाल करना। कृषि पारितंत्र में और अधिक पीड़क-क्षति और आपात प्रकोप हो सकते हैं, और इसका कारण होता है पादप और कीट-स्पीशीज की कमी और मौसम तथा मानव द्वारा होने वाले आकस्मिक परिवर्तन ।
पपप) कीट पीड़क-प्रबंधन में, अनुप्रयुक्त कृषि पारितंत्र की योजना तैयार करते समय पीड़क-समस्याओं का और उनसे बचने के तरीकों का पूर्वानुमान लगाना चाहिए। उदाहरण के लिए फसल की ऐसी किस्म नहीं उगानी चाहिए जो पीड़क के आक्रमण के लिए अपसामान्य रूप से प्रभाव्य अथवा संभावित रूप से सुभेद्य हो, अन्यथा नियंत्रण-क्रिया की आवश्यकता तीव्र करनी पड़ती। इसके विपरीत, फसल को इस प्रकार उगाना चाहिए ताकि गंभीर पीड़क-समस्याएँ न हो अथवा कम हो जाएँ। यह संकल्पना फसल-उत्पादन और फसल-संरक्षण तंत्रों के समाकलन पर जोर देती है।
पअ) कीट पीड़क-प्रबंधन की आर्थिकी एक महत्वपूर्ण विषय है और पीड़क-नियंत्रण कार्यक्रम में उस पर भलीभांति ध्यान देना चाहिए। क्योंकि एक कृषि वैज्ञानिक को केवल लागत और लाभों के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए, बल्कि पर्यावरण पर होने वाले दुष्प्रभावों पीड़क-नियंत्रण के लाभोंध्जोखिमों के बारे में भी सोचना चाहिए।
क) लागतध्लाभ रू कृषि में पैदावार में वृद्धि का अर्थ प्राय: नियंत्रण उपायों से होने वाले लाभ से लगाया जाता है, जो आमतौर से गलत है,। पीड़कनाशियों के इस्तेमाल से पैदावार शायद ही कभी बढ़ती होय बल्कि, इनके इस्तेमाल से पैदावार में कमी रुक जाती है। अधिकांश कृषि-संबंधी पीड़क-नियंत्रण क्रियाओं में, बचाव करने में लागत उत्पादन की लागत बन जाती है। पीड़क-समस्याओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए और आर्थिक आरंभनों को परिभाषित करने के लिए बेहतर होती जा रही समर्थताएँ लागतों और लाभों पर अधिक जोर देंगी।
ख) लाभध्जोखिम रू लाभध्जोखिम के विश्लेषण से संबंद्ध आर्थिक लाभों बनाम पीड़क-नियंत्रण में आने वाले जोखिमों का निर्धारण करने के लिए एक माध्यम मिल जाता है। फसल उगाने वाला अत्यधिक विषैले पीड़कनाशी के खतरों पर विचार करता है और ऐसा उपाय करता है ताकि स्वयं कीटनाशियों का इस्तेमाल करते समय उसे अथवा उसके आदमियों की सुरक्षा बनी रहें। इसी प्रकार फसल उगाने वाले को इस्तेमाल किए जाने वाले किसी पीड़कनाशी के कारण समाज पर अथवा पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों पर भी विचार करना चाहिए।
अ) आर्थिक क्षति-स्तर की परिभाषा इस रूप में की जा सकती है : वह निम्नतम पीड़क-समष्टि-सघनता जिसमें आर्थिक हानि हो सकती हैश्श्, वह स्तर जिसपर हानि को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और इसलिए वह स्तर जिस पर अथवा जिससे पहले जानबूझ कर नियंत्रण कार्यक्रमों का शुरू करना वांछित हो जाता है, अथवा अधिक संकटपूर्ण सघनता जिस पर पीड़क द्वाराहोने वाले नुकसान का मूल्य उपलब्ध नियंत्रण-उपायों पर आने वाली लागत के बराबर होता है।
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अप) आर्थिक आरंभन-स्तर की परिभाषा इस रूप में की जा सकती है रू वह सघनता जिस पर बढ़ती हुई पीड़क-समष्टि के आर्थिक क्षति-स्तर तक पहुँचने से रोकने के लिए नियंत्रण उपाय लागू कर देने चाहिए।
अपप) सामान्य संतुलन स्थिति किसी कीट समष्टि की दीर्घ काल तक स्थिर बनी रहने वाली वह माध्य समष्टि-सघनता है जिस पर
पीड़क-नियंत्रण के अस्थायी हस्तक्षेपों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। समष्टि-सघनता, सघनता पर निर्भर कारकों, जैसे विभिन्न
परजीव्याभ, परभक्षी और रोग, के प्रभाव के कारण इसी माध्यम स्तर पर घटती-बढ़ती रहती है।
अंत में कुछ प्रश्न
1. IPM की सभी परिभाषाओं में शामिल किए जाने वाले तीन महत्वपूर्ण तत्व हैं रू
ऽ बहु रणनीतियों के बीच संगतता
ऽ पीड़क-समष्टियों को उस स्तर से नीचे रखना जिस पर वे आर्थिक क्षति पहुँचा सकती हैं।
ऽ पर्यावरण की गुणवत्ता का संरक्षण
2. भाग 5.2.4 देखिए
3. पीड़क-प्रबंधन में एक प्रमुख समस्या आती है कि आर्थिक हानियों का पूर्वानुमान किस प्रकार किया जाए, और व्यष्टि पीड़कों और विशिष्ट रूप से पीड़क सम्मिश्रों के लिए आर्थिक आरंभन-स्तर का निर्धारण किस प्रकार किया जाए। आर्थिक आरंभन स्तर का प्रतिपादन करना एक जटिल प्रक्रिया है, और पीड़क-नियंत्रण के आर्थिक पहलुओं, विशेष रूप से लाभों और खतरों, शोध विकल्पों और सामाजिक रणनीतियों के बारे में और अधिक जानकारी की आवश्यकता पड़ती है। नियंत्रणकारी विधियों का समाकलन इस बात की अनुमति पर आधारित होना चाहिए कि व्यष्टि स्पीशीज एक जटिल कृषि पारितंत्र का केवल एक घटक होती है और यह कि घटकों के बीच परस्पर क्रियाएँ फसल-संरक्षण में अंतनिर्हित वर्गिकी-अनुकूलित वैज्ञानिक विषयों द्वारा खींची गई कृत्रिम रेखाओं को लांघ जाती हैं। अतरू समाकलित पीड़क-प्रबंधन के विकास और कार्यान्वयन में विषयी और अंतर विषयी दोनों ही उपागमों की आवश्यकता होती है।
4. अवसरिक पीड़क – अपसामान्य मौसम-परिस्थितियों के अथवा पीड़कनाशियों के अविवेकी प्रयोग के कारण जब कीट-समष्टि-सघनता आर्थिक-क्षति स्तर के ऊपर पहुँच जाए तब कीट पीड़क बन जाता है।
बारहमासी पीड़क – जब किसी कीट का आर्थिक क्षति-स्तर सामान्य संतुलन स्थिति से केवल लेशमात्र रूप से बढ़ जाता है, तब समष्टि के हर बार ऊपर बढ़ने पर हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है। इन कीटों को बारहमासी कीड़क कहते हैं। गंभीर पीड़क वे होते हैं जो कीटों के एक समूह में मिलते हैं जिनका आर्थिक क्षति-स्तर सामान्य संतुलन स्थिति से कम होता है।
5. स्थायी तौर पर पीड़क अवशेष छोड़ने का अर्थ है उस क्षेत्र में, आर्थिक आरंभन-स्तर से नीचे, पीड़कनाशियों का इस्तेमाल करना, जिसमें नियंत्रण-उपाय लागू किए जाते हैं। इस संकल्पना का अर्थ है पीड़क का अस्तित्व मिटाना नहीं बल्कि उसका संदमन करना।
6. देखिए भाग 5.3 ।
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