WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

परती भूमि किसे कहते हैं Fallow Land in hindi Definition meaning परती भूमि की परिभाषा क्या है

Fallow Land in hindi Definition meaning परती भूमि किसे कहते हैं परती भूमि की परिभाषा क्या है  ?

 परती भूमि (Fallow Land)
यह वह भूमि है जिस पर पहले कृषि की जाती थी परन्तु अब इस भूमि पर कृषि नहीं की जाती। इस भूमि पर यदि निरन्तर कृषि की जाए तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और ऐसी भूमि पर कृषि करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं रहता। अतः इसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। इससे भूमि में फिर से उपजाऊ शक्ति आ जाती है और यह कृषि के लिए उपयुक्त हो जाती है। परती भूमि दो प्रकार की होती हैः
(क) वर्तमान परती भूमि (Current Fallows) : यह वह भूमि है, जिसमें पहले कृषि की जाती थी परन्तु उपजाऊ शक्ति के कम होने से इसे वर्तमान समय में खाली छोड़ दिया गया है इस भूमि के विस्तार में परिवर्तन आता रहता है। सन् 2005-06 में भारत में 1.36 करोड़ हेक्टेयर (4.48%) परती भूमि थी।
(ख) वर्तमान परती भूमि के अतिरिक्त परती भूमि अर्थात् पुरानी परती भूमि (Fallow Land other than Current Fallows)ः यह भूमि पिछले कई वर्षों से परती पड़ी है। जमींदारों की स्वार्थपूर्ण नीति, कृषकों की निर्धनता, भूमि की उर्वरता का ह्रास, जल का अभाव, नदियों का मार्ग-परिवर्तन, जलवायु में परिवर्तन आदि कारणों से यह भूमि एक लम्बी अवधि से परती चली आ रही है। उत्तम बीज, पर्याप्त खाद, सिंचाई आदि की उचित व्यवस्था करके परती भूमि के विस्तार को कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त परती भूमि होने के मूल कारणों का पता लगाना अति आवश्यक है। शस्यावर्तन (Crop Rotation) तथा साहचर्य (Crop Combination) से भी भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाई जा सकती है और परती भूमि को कम करने में सहायता मिल सकती है। सन् 1960-61 के बाद परती भूमि के विस्तार में निरन्तर कमी आई है। राज्य स्तर पर परती भूमि के वितरण में काफी विषमताएं पाई जाती हैं। राजस्थान तथा तमिलनाडु में 11ः उसे अधिक भूमि परती है। आन्ध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, तथा उड़ीसा में 4 से 10ः भूमि परती है। असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, केरल, हरियाणा और त्रिपुरा आदि राज्यों में 4ः से कम भूमि परती है।
कृषित भूमि (Cultivated Land)
यह वह भूमि है जिस पर वास्तविक रूप में कृषि की जाती है। इसे कुल बोया गया क्षेत्र भी कहते हैं। भारत में लगभग आधी भूमि पर कृषि की जाती है, जो विश्व में सबसे अधिक भाग है। मन 1950-51 में भारत में कुल बोया गया क्षेत्र 11.96 करोड़ हेक्टेयर था जो 2005-06 में बढ़कर 1.4.19 करोड़ हेक्टेयर हो गया। इस प्रकार भारत की कुल भूमि का 46.46ः भाग कृषित है। कृषि भूमि के निम्नलिखित दो पहल हैं:
(क) बोया गया निवल क्षेत्र (Net Area Sown)ः यह क्षेत्र कृषि के अधीन होता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इसमें पर्याप्त वृद्धि हुई है। इस वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैंः
(i) रेह तथा ऊसर भूमि को उपजाऊ बनाना।
(ii) बेकार खाली पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाना।
(iii) कृषि भूमि को परती भूमि के रूप में न छोड़ना।
(iv) चरागाह तथा बागों के लिए उपयोग की भूमि को कृषि के लिए प्रयोग करना।
सबसे अधिक कृषित भूमि पंजाब तथा हरियाणा में पाई जाती है जहां लगभग 80% भूमि पर कृषि की जाती है। इन राज्यों में कृषि सम्बन्धी बहुत सुधार हुए हैं। बिहार व तमिलनाडु राज्यों में 48% भूमि पर कृषि की जाती है। आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में कुल भूमि के 40 से 45ः भाग पर कृषि की जाती है। असम, त्रिपुरा एव गोवा में 20 से 40% कृषित भूमि है। हिमाचल प्रदेश तथा जम्म-कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों में 10 से 15% कृषित भूमि है। मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश तथा अण्डमान-निकोबार में कुल भूमि का 10% से भी कम भाग कृषित है।
(ख) एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र (Area sown more than once)ः भारत में कुल कृषित भूमि का लगभग 25ः भाग ऐसा है, जिस पर वर्ष में एक से अधिक बार फसल प्राप्त की जाती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हम अपनी भूमि का उचित उपयोग नहीं कर रहे क्योंकि 75%, भूमि पर वर्ष में केवल एक ही फसल ली जाती है। यदि भूमि को उपजाऊ बनाकर वर्ष में एक से अधिक फसल प्राप्त करने का प्रयास किया जाए तो कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में रोजगार की समस्या को भी काफी हद तक हल किया जा सकता है। इसके लिए पर्याप्त सिंचाई, उचित खाद, उत्तम बीज तथा शीघ्र पकने वाली फसलों के प्रयोग की आवश्यकता है। हमारे देश में एक से अधिक बार बोए गये क्षेत्र में 1950-51 से 1976-77 तक कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई । परन्तु इसके बाद इस वृद्धि में कुछ तेजी आई है। सन् 2005-06 में 5.09 करोड़ हेक्टेयर भूमि को एक से अधिक बार बोया गया।

तालिका 2.1 भारत में भूमि उपयोग (2005-06)
उपयोग भूमि (हजार हेक्टेयर में)
कुल भूमि, जिसके आंकड़े उपलब्ध हैं 305269
वन प्रदेश 66785
कृषि के लिए अनुपलब्ध 42503
स्थाई चरागाह तथा अन्य चराई भूमि 10415
फुटकर वृक्षों, फसलों तथा उपवनों के अधीन भूमि, जो बोए गए निवल क्षेत्र में शामिल नहीं 3376
कृषि योग्य परन्तु बंजर भूमि 13123
वर्तमान परती भूमि के अतिरिक्त परती भूमि अर्थात् पुरानी भूमि 10504
वर्तमान परती भूमि 13672
बोया गया निबल क्षेत्र 141891
एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र 50904
कुल कृषित भूमि 192795
स्त्रोत :  Statistical Abstract, India, 2007p.p. 108-09

जल संसाधन (Water Resources)
जल बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है और देश के सामाजिक-आर्थिक विकास का मूल आधार है। मनुष्य भोजन के बिना एक महीने तक जीवित रह सकता है परन्तु जल के बिना एक सप्ताह से अधिक जीवित नहीं रह सकता। आधुनिक जीवन के लिए जल अत्यन्त आवश्यक है। मानव इसका प्रयोग पीने, स्नान करने, वस्त्र तथा अन्य वस्तुओं को धोने, सिंचाई, उद्योग, यातायात तथा अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करता है। अतः राष्ट्रीय योजना के लिए जल संसाधनों का अनुकूलतम विकास तथा उपयोग अति आवश्यक है।
भारत में ताजे जल का मुख्य स्रोत वर्षा है। वर्षा (हिमपात सहित) से भारत में 4000 घन किमी. जल प्राप्त होता है। अकेले मनसून द्वारा 3000 घन किमी. जल प्राप्त होता है। इसका बहुत सा भाग वाष्पीकरण तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमंडल में चला जाता है। बहुत सा भाग भूमि में रिसकर भूमिगत जल का भाग बन जाता है।
विभिन्न विद्वानों तथा संस्थाओं ने भारत के जल संसाधनों के भिन्न-भिन्न अनुमान लगाए है। फोर्ट फाउण्डेशन टीम (Ford Foundation Team) ने 1959 में अनुमान लगाया कि भारत में औसत वार्षिक जल प्रवाह (Runffo) 1633 अरब घन मीटर (Billion Cubeic Metre BCM) है। डॉ. के.एल. राव (क्त. ज्ञ.स्. त्ंव 1975) के अनुसार, हमारे नदी तन्त्रों में 1644.5 अरब घन मीटर जल है। जल संसाधन मन्त्रालय द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार, हमारे देश में कुल 1869 घन किलोमीटर (अथवा 1869 अरब घन मीटर) जल उपलब्ध है। परंतु भू-आकृतिक परिस्थितियों तथा जल संसाधनों के असमान वितरण के कारण उपयोग के योग्य कुल 1123 अरब घन मीटर जल ही उपलब्ध है। इसमें से 690 अरब घन मीटर धरातलीय जल तथा शेष 433 अरब घन मीटर भूजल है। स्पष्ट है कि भारत में उपलब्ध कुल जल को दो विभिन्न वर्गों में बाटा जाता है, जिन्हें क्रमशः धरातलीय जल तथा भूजल कहते हैं।
1. भारत 2010, वार्षिक संदर्भ ग्रंथ, पृ. 1056

सतही (Surface) जल संसाधन
सतही जल हमें नदियों, झीलों, तालाबों तथा अन्य जलाशयों के रूप में मिलता है। नदियों में जल वर्षा होने अथवा बर्फ के पिघलने से प्राप्त होता है। सबसे अधिक सतही जल नदियों में पाया जाता है। डॉ. के.एल. राव के अनुसार, भारत में कम-से-कम 1.6 कि.मी. की लंबाई वाली 10,360 नदियां और सहायक नदियां हैं। ये भारत के समस्त भागों में फैली हई हैं। भारत की नदियों का अनुमानित औसत वार्षिक प्रवाह 1,869 अरब घन मीटर है, परंतु स्थलाकृतिक, जल विज्ञान संबंधी तथा अन्य बाधाओं के कारण केवल 690 अरब घन मीटर (32 प्रतिशत) धरातलीय जल ही उपयोग के लिए उपलब्ध है। कुल धरातलीय जल का लगभग 60 प्रतिशत भाग भारत की तीन प्रमुख नदियों-सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र में से होकर बहता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि, ब्रह्मपुत्र और गंगा, संसार की 10 बड़ी नदियों में से हैं। संसार की बड़ी नदियों में ब्रह्मपुत्र तथा गंगा का क्रमशः आठवां तथा दसवां स्थान है। भारत की नदियों में विश्व की नदियों में बहने वाले जल का लगभग 6 प्रतिशत भाग प्रवाहित होता है। तालिका 2.2 में भारत की प्रमुख नदियों में जल प्रवाह की मात्रा को दर्शाया गया है।
भारत में निर्मित तथा निर्माणाधीन जल भंडार की क्षमता स्वतत्रता के समय केवल 18 अरब घन मीटर थी, जो अब बढ़कर 147 अरब घन मीटर हो गई है। यह भारतीय नदी द्रोणियों में प्रवाहित होने वाली कुल जलराशि का 8.47 प्रतिशत है।

तालिका 2.2 भारतः नदियों की द्रोणियों के अनुसार उपयोग के योग्य धरातलीय जल का वितरण
नदी वार्षिक प्रवाह उपयोग भंडारण जल
द्रोणी (अ.घ.मी.) योग्य क्षमता (अ.घ.मी.) (अ.घ.मी.)
1. सिंधु 73 46 14.52
2. गंगा 501 250 37.40
3. ब्रह्मपुत्र 537 24 1.09
4. गोदावरी 119 76 17.27
5. कृष्णा 68 58 32.23
6. कावेरी 21 19 7.25
7. पेन्नार 6.8 6.8 2.37
8. महानदी 67 50 8.93
9. ब्राह्मणी 36 18.1 4.29
10. साबरमती 3.8 1.9 1.30
11. माही 11.8 3.1 4.16
12. नर्मदा 41 34.5 3.02
13. तापी 18 14.5 8.69
14. स्वर्णरेखा 10.8 – –
योग 1,869 690 –
अ.घ.मी. = अरब घन मीटर ’ इसमें अन्य नदी द्रोणियां भी सम्मिलित है।
स्त्रोत्र: India: A Reference Annual 1991.p.418