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factors influencing antibody production in hindi , प्रतिरक्षी उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारक क्या है

जानें factors influencing antibody production in hindi , प्रतिरक्षी उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारक क्या है ?

प्रतिरक्षी उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors influencing antibody-production)

प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया जीन के नियन्त्रण में होती है। एक ही प्रतिजन के विरुद्ध अलग-अलग व्यक्तियों में प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया भिन्न प्रकार की होती है. इसका कारण आनुवंशिक विभिन्नता ही होती है। व्यक्ति की उम्र भी प्रतिरक्षी उत्पादन में महत्वपूर्ण कारक है। भ्रूण इस क्रिया हेतु अपरिपक्व होता है। 3-6 माह के बाद शिशु में यह क्रिया आरम्भ होती है व 4 वर्ष की उम्र में पूर्णता को प्राप्त करती है उचित पोषक पदार्थों की कमी होने पर प्रतिरक्षा में कमी का प्रभाव दर्शष्टगत होता है। सीरमीय पदार्थों प्रोटीन, अमीनो अम्लों तथा विटामिन्स की कमी होने पर प्रतिरक्षी संश्लेषण की गति धीमी होती है।

प्रतिजन के प्रवेश का माध्यम व मात्रा एवं एक साथ एक से अधिक मात्रा के प्रतिजन के प्रवेश का भी प्रभाव इस क्रिया पर होता है। एक से अधिक प्रतिजन के एक साथ प्रवेश करने का प्रभाव भिन्न-भिन्न प्रतिजन के प्रति भिन्न होता है। कुछ पदार्थ प्रतिजन के प्राप्त होने पर प्रतिरक्षी उत्पादन में गति लाते हैं। इन्हें वृद्धिकारक पदार्थ कहते हैं। इसमें एल्यूमिनियम हाइड्रोक्साइड या फॉस्फेट, प्रोटीन प्रतिजन का जल तेल में इम्लशन, सिलिका कारण प्रमुख हैं। इसी प्रकार कुछ पदार्थ इस क्रिया में विपरीत या रोधक प्रभाव रखते हैं इसका उपयोग प्रतिरोपण क्रियाओं में किया जाता है। इसमें X- किरणें, रेडियोधर्मी औषधियाँ कार्टिकोस्टिरॉइड्स, आदि सम्मिलित किये जाते हैं।

कोशिका मध्यवर्ती प्रतिरक्षा (Cell mediated immunity) CMI

कोशिका मध्यवर्ती प्रतिरक्षा से आशय यह वह विशिष्ट प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया है जिसमें प्रतिरक्षी भाग नहीं लेती। आरम्भ में CMI से आशय देह में अधिक संवेदनशीलता (hyper sensitivity) उत्पन्न करना मात्रा माना जाता था अतः इसे तरल प्रतिरक्षा से कम महत्वपूर्ण माना गया। इसे त्वक परीक्षण द्वारा जाँचा जाता था। पिछले कुछ वर्षों में इसके बारे में काफी शोध कार्य किया जा चुका है जिसके आधार पर इसका महत्व जीवन व स्वास्थय हेतु काफी बढ़ गया है। इसे अन्तर्गत होने वाली क्रिया में त्वचा पर गांठ बनना। सूजन आना, घाव होना, छोटी-छोटी फुन्सियाँ उत्पन्न होना जैसे घटनाएँ होती . हैं। लेन्डस्टेनर व चेज (Landsteiner and Chase) ने 1942 में प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया कि कोशिका मध्यवर्ती प्रतिरक्षा T- लिम्फोसाइट्स के द्वारा मध्यित होती है।

CMI अविकल्पी एवं वैकल्पिक परजीवी जीवाणुओं, कवक, प्रोटोजोआ, प्रतिरोपण केन्सर एवं रोपण जैसे क्रियाओं से होने वाली प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।

जब कोई परजीवी प्राणी की कोशिका को संक्रमणित करता है तो CMI हेतु प्रेरण (induction ) की क्रिया होती है। यह प्रतिरक्षा सूक्ष्मजीवों, परजीवियों, विषाणुओं एवं पोषक स्वयं की देह की कोशिकाएँ जो कमजोर अथवा दुर्बल हो गयी है या केन्सर प्रकृति की हो गयी है के प्रति सक्षम होती है। इसमें प्रतिजन स्वयं देह की कोशिकाओं के भीतर ही छिपा रहता है। अतः कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा निम्न क्रियाओं हेतु अपनायी जाती है-

(i) अन्तः कोशिकीय जीवों के प्रति

(ii) अबुर्द्ध कोशिकाओं को नष्ट किये जाने हेतु (ii) रोपित ऊत्तक को निष्क्रिय किये जाने हेतु

(iv) कुछ प्रतिजनों के प्रति अतिसंवेदनशील प्रतिक्रिया जैसे आविषों एवं स्थानीय औषधियों के प्रति जो देह के बाहर सम्पर्क में आती है। इन पर देर से किन्तु दूरगामी प्रभाव होता है। कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा देह की दो प्रकार से सुरक्षा प्रदान करती है।

(a) लिम्फोकाइन्स का स्त्रवण कर

(b) सीधे कोशिका माध्मित मारक क्षमता द्वारा।

कोशिका माध्यिक प्रतिरक्षा में निम्नलिखित प्रकार की कोशिकाएँ सहायक होती है सहायक T-कोशिकाओं से लिम्फोकाइन्स का स्त्रवण कराकर जो भारक क्षमता हेतु कोशिका अविषिय T-कोशिकाएँ सक्रियत मेक्रोफेजेज बड़ी लिम्फोसाइट्स कणिकाीय कोशिका द्रव्य युक्त होती है।

इनमें प्राकृतिक मारक क्षमता उपस्थित रहती है इन्हें Nk कोशिकाएँ भी कहते हैं। इनके अतिरिक्त मारक कोशिकाएँ (killer cells) भी पायी जाती हैं। इसके अन्तर्गत विशिष्ट प्रकार की संवेदी T- कोशिकाएँ प्रतिजन के विरुद्ध प्रेरित होती है। जब प्रतिजेनिक निर्धारक के सम्पर्क में संवदी कोशिका आती है यह स्फोटन रूपान्तरण एवं क्लोन बनाने का कार्य आरम्भ कर देती है। यह क्रिया लसिका पर्वों के परिवल्कुट क्षेत्र (pericortical region) में आरम्भ होती है। सक्रियत लिम्फोसाइट्स जैविक रूप से सक्रिय उत्पाद लिम्फोकाइन्स (lymphokines) को मुक्त करते हैं। इन लिम्फोकाइन्स के प्रभाव में ही मेक्रोफेज एवं अन्य एक क्लोनी कोशिकाएँ सूक्ष्मजीवों का नाश करना आरम्भ कर देती लिम्फोकाइन्स नियमनकारी प्रोटीन्स होते हैं जिनका कार्य प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं का नियमन करना, रेटिकुलोएन्डोथिलियल कोशिकाओं की वृद्धि व कार्य पर नियंत्रण करना होता है, मोनोसाइट्स (monocytes) एवं मेक्रोफेज से इसी प्रकार के प्रोटीन पदार्थ जिन्हें मोनोकाइन्स (monokines) कहते हैं। एवं कुछ अन्य कोशिकाएँ साइटोकाइन्स ( cytokines) का स्त्रावण करती हैं जो लिम्फोइसाइट्स को सक्रिय बनाती हैं तथा इनके द्वारा द्वितीय प्रकार के इन्टरल्युकिन का स्त्रावण करती है। ये भिन्न प्रकार के पहचाने जा चुके हैं।

T- कोशिका आविषि कोशिकाएँ (T-cells toxiccells)-

प्रतिजन की पहचान कर कोशिकालयन (cell lysis) की क्रिया द्वारा विषाणुओं द्वारा संक्रमणित कोशिकाओं का लयन करने लगती है। इस कार्य हेतु लक्ष्य कोशिकाएँ वही विषाण्विक प्रतिजन एवं वही MHC class I प्रतिजन युक्त होनी आवश्यक हैं। ये T-सहायता कोशिकाओं के उद्दीपन मिलने पर ही कोशिका आविषि बनती हैं। MHC class I की उपस्थिति आदर्श रूप में सभी कोशिकाओं पर पायी जाती है। T-कोशिका आविषि कोशिकाएँ कुछ विषाणुओं हेतु अधिक प्रभावी होती है। यह क्रिया विषाणुओं के कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए कुछ घन्टों बाद ही आरम्भ होती है. जिससे पहले कि विषाणु प्रतिकृतिकरण की क्रिया आरम्भ नहीं कर पाते।

सक्रियत मेक्रोफेजेज (Activated macrophages)

सक्रियत मेक्रोफेजेज CMI हेतु प्रमुख कार्यकारी कोशिकाएँ होती है। ये उन सूक्ष्मजीवों का भक्षण कर लेते हैं जिनकी सतह पर प्रतिजन उपस्थित होता है इन क्रिया में MHC class I! व सहायक T कोशिकाएँ भी सहायता करती हैं। उसी प्रतिजन के अन्य मेक्रोफेज के आने पर संवेदीकृत सहायक कोशिका अनेकों रसायनिक कारकों को छोड़ती है अतः अनेक मेक्रोफेजेज, गेन्युलोसाइट्स व लिम्कोसाइट्स इसी स्थल पर एकत्रित हो जाते हैं एवं पोषक को सूक्ष्मजीव से मुक्त करा लेते हैं।

लिम्फोकाइन्स मेक्रोफेजेज के एवं परिधीय ल्यूकोसाइट्स के विचरण में बाधा उत्पन्न करते हैं। ये मेक्रोफेजेज की भक्षाणुनाशन क्रिया, जैव रासायनिक क्रिया में वृद्धि करते हैं। इनकी संख्या में वृद्धि एवं समूहन की क्रिया को प्रभावित करते हैं। स्फोटन रूपान्तरणकारी क्रियाओं में वृद्धि करते हैं। यह क्रिया जीवाणुओं व विषाणुओं के प्रति भिन्न तरीके से की जाती है। उदाहरणतः तपैदित रोग का जीवाणु माइकोबैक्टीरियम (Mycobacterium) मैक्रोफेज द्वारा अन्तग्रहित कर लिया जाता है। यह यहाँ वृद्धि व गुणन करता है। अत: इस पर प्रतरक्षीकाय प्रभाव उत्पन्न करने में अक्षम रहती है। मेक्रोफेज कोशिकाएँ सुग्राहित होकर सक्रिय हो जाती हैं। ये लिम्फोकाइन्स का स्त्रावण कर इनका नाश करती है। कुछ मेक्रोफेज कोशिकाएँ एकत्रित होकर गाँठों (granuloma) का विकास करती हैं जो एक आवरण बना कर इन्हें सीमित रखती हैं। इस प्रकार रोग अन्य निकटवर्ती भागों में फैलने से रुक जाता है। कोढ़, ब्रुसेलिस, कवक से विकसित रोगों के प्रति भी यही प्रक्रिया की जाती है।

विषाणुओं के प्रति CMI भिन्न प्रकार से क्रियाशील होती है। विषाणु पोषक में प्रवेश कर जाते हैं ये विषाण्विक प्रोटीन बनाती हैं जो कोशिका की सतह पर आ जाते हैं। इन्हें T-धारक कोशिकाएँ पहचान लेती है एवं केवल उन्हीं पोषक कोशिकाओं का नाश करती हैं जिनमें विषण्विक प्रोटीन होते हैं। T-कोशिकाएँ इन्टरफेरान का निर्माण करती हैं जो जीवाणुओं का भी नाश करती हैं।

प्रतिरोपण द्वारा प्राप्त अंग वश्क्क, रेटीना, त्वचा, आदि के उपरान्त प्रति उत्तक कोशिका माध्यित । प्रतिरक्षा (anti tissue cell mediated immunity) जीवाणुओं के प्रति की जाने वाली क्रिया के समान ही की जाती हैं।

अंग प्रत्यारोपण के उपरान्त ग्राही व्यक्ति में प्रतिरक्षक अवरोधी औषधियाँ (immuno suppresant medicines) प्रत्यारोपित अंगों को बनाये रखती हैं जो अपना कार्य सामान्य रूप से करते रहते हैं।

प्रतिरक्षी अनुक्रिया के फलस्वरूप शोथ (inflammation) के उपरान्त साइटोकाइन्स ( cytokines) का स्त्रावण किया जाता है। लिम्फोसाइट्स द्वारा स्त्रावित पदार्थ लिम्फोकाइन्स (lymphokines) कहलाते हैं। मोनोसाइट्स या मेक्रोफेजेज द्वारा स्रावित पदार्थ मोनोकाइन्स (monokines) कहलाते हैं। साइटोकाइन्स कोशिकीय सिग्नल का कार्य कर वृद्धि, गमन व विभेदन जैसी क्रियाओं का नियमन करते हैं। प्रमुख साइटोकाइन्स इन्टरल्युकिन व इन्टरफेरान हैं । इन्टरल्युकिन I के दो कारक 1970 में पहचाने गये हैं ये मोनोसाइटस व मेकोफेजेज द्वारा स्त्रावित होते हैं । इन्टरल्युकिन- IT कोशिकाओं की वृद्धि को बढ़ाता है इनके गुणन में तीव्रता लाता है। यह इन्टरफेरान के साथ मिलकर T घातक कोशिकाओं की क्रिया में वृद्धि लाता है। यह B कोशिकाओं के गुणन, वृद्धि व विभेदनकारी क्रियाओं तीव्रता लाता है। यह B लिम्फोसाइटिक कोशिकाओं से प्रोस्टाग्लेन्डिन का स्त्रावण कराता है। यह घावों के भरने में सहायक होता है । इन्टरल्युकिन II यह Tcell की वृद्धि हेतु आवश्यक होता है इनके ग्राही से बन्धन बनाने, क्लोनिंग करने में सहायक होता है । इन्टरल्युकिन- III, IV, V, VIT VIII भी खोजे जा चुके हैं।

इन्टरफेरान की खोज 1957 में इजाक्स व लिन्डेनमान (Isaacs and Lindenmann) द्वारा की गयी ये प्रति विषाणु प्रोटीन होते हैं। ये तीन प्रकार के पाये गये हैं-

(i) इन्टरफेरान जो ल्यूकोसाइट्स से स्त्रावित होते हैं।

(ii) इन्टरफेरान B जो फाइब्रोब्लास्टस से स्त्रावित होते हैं। (ii) इन्टरफेरान y – जो T लिम्फोसाइट्स से स्त्रावित होते हैं।

इन्टरफेरान पुरर्योगज डी एन ए तकनीक द्वारा बनाये जाने लगे हैं। लगभग 15 विभिन्न इन्टरफेरान बनाने वाले जीन पहचाने गये हैं।

इन्टरफेरान कोशिका सतह पर विशिष्ट ग्राही बिन्दुओं पर बन्धन बनाते हैं। ये ग्राही माध्य कोशिकाषण (receptomediated endocytosis) क्रिया कराते हैं। ये T व B कोशिकाओं पर प्रतिरक्षा हेतु नियामक उत्पन्न करते हैं।

सामन्यः इन दोनों प्रकार की प्रतिरक्षी प्रतिक्रियाओं में सामंजस्य पाया जाता है किन्तु कभी-कभी इनमें विरोधाभास भी देखने को मिलता है। कई मामलों में किसी प्रतिजन के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं दर्शायी जाती है यह स्थिति उस समय होती है जब प्राणी में प्रतिजन के प्रति विशिष्टता दर्शाने के गुण का ह्रास हो जाता है। ऐसा एक ही प्रतिजन के बार-बार प्रवेश कराने पर होता है किन्तु ऐसा एक ही विशिष्ट प्रतिजन के साथ होता है। अन्य सभी के साथ सामान्य प्रतिक्रिया प्रदर्शित की जाती है। इसे प्रतिरक्षी सहनशीलता (immunological tolerance) या प्रतिरक्षी अनुउत्तरदायिता (immunological unresponsiveness) कहते हैं।

प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ (Natural killer cells)

ये बड़ी कणीय लिम्फोसाइट्स होती है इनकी कोशिका सतह पर CD56 व CD2. चिन्हक पाये जाते हैं। ये कोशिकाएँ अबुर्द्ध एवं सूक्ष्मजीवों के प्रति क्रियाशील होती हैं। NH कोशिकाओं को प्रतिजन से पूर्व परिचित व कोशिका आविषि होने की आवश्यकता नहीं होती । इन्हें MHC युक्त होना भी आवश्यक नहीं है। NK कोशिकाएँ साइटोकाइन (cytokine IL-1 व cytokine IL-2) का स्त्रवण कर अधिक प्रभावी सुपर किलर ( super killer) बन जाती है। T सहायक कोशिकाएँ NK- कोशिकाओं से इन्टरफेरान का स्त्रावण आरम्भ कराती है जो प्राकृतिक मारक क्षमता में वृद्धि करने की क्रिया में सहायक होता है।

NK कोशिकाओं को लक्ष्य कोशिकाओं से संलग्न होने हेतु कैल्शियम मुक्त कारक की आवश्यकता होती है। एक बार NK कोशिका के सक्रियत होने के उपरान्त ये लक्ष्य कोशिकाओं की कला को छिद्रित बना देते हैं। ये छिद्र बनाने वाले कण परफोरिन्स (perforins) कहलाते हैं।

K-कोशिकाएँ (K-cells)-

लिम्फोसाइट्स में अनेक प्रकार की कोशिकाओं में K – कोशिकाएँ पायी जाती हैं। ये प्रतिरक्षी के साथ मध्यस्थ का कार्य करते हैं। कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा यहाँ इन्हीं पर निर्भर रहती है। (Antibody dependent cell mediated cytotoxicity) यह ADCC कहलाती है। से NK कोशिकाओं के समान ही होते हैं। यह प्रतिरक्षी IgG k- कोशिकाओं के FC ग्राही से बन्धन बनाती है और लक्ष्य कोशिका से संलग्न होने में सहायक होती है। प्रतिरक्षी विशिष्ट प्रतिजन जो लक्ष्य कोशिका पर उपस्थित होती है से जुड़ने में मध्यस्थ ( bridge) का कार्य करती है। (चित्र 6.6) और लक्षित कोशिका का लयन हो जाता है।

प्रतिरक्षी आश्रित कोशिका माध्यित कोशिका आविषि

मारक कोशिकाओं की क्रियाविधि – (Mechanism of killer cell)-

मारक कोशिकाएँ किस प्रकार लक्ष्य कोशिका की प्लाज्मा झिल्ली को Cat+ की उपस्थिति में छिद्रित कर नष्ट करती है इस बारे में इतना ही ज्ञान है कि परफोरिन्स कण किलर कोशिका में उस स्थल पर एकत्रित हो जाते हैं जो लक्ष्य कोशिका के निकटतम बिन्दु पर होती है। लक्ष्य कोशिका के निकट मारक कोशिका के संलग्न होने के बाद किलर लिम्फोसाइट की गॉल्जी काय सक्रिय होती है। Ca” की उपस्थिति में बाह्य कोशिका पायन ( exocytosis) की क्रिया होती है। परपोरिन क मुक्त होकर लक्ष्य कोशिका की प्लाज्मा कला को भेद देते हैं। ये कण प्लाज्मा कला को मिसाइल की तरह भेद कर नष्ट कर देते हैं। इन कणों में घातक रस भरे रहते हैं इस क्रिया में कुछ मिनट का समय ही लिया जाता है।

थायमस ग्रन्थि के हार्मोन का प्रतिरक्षा अनुक्रिया पर प्रभाव (Effect of thymic hormones on immune response)

थायमस ग्रन्थि के हार्मोन कोशिका माध्यिम प्रतिरक्षा पर प्रभाव रखते हैं। इस ग्रन्थि कोशिकीय प्रतिरक्षा व तरल प्रतिरक्षा की अनुक्रियाओं हेतु आवश्यक होती है। यह रक्ताणुकोरक कत्तकों से स्तम्भ कोशिकाओं के T कोशिकाओं में विभेदन में भूमिका रखती है। यह B कोशिकाओं से प्रतिरक्षीग्लोबुलिन स्त्रवण कराने पर भी अपना प्रभाव रखती है।

प्रश्न (Questions )

  1. निम्नलिखित के अतिलघु/ एक शब्द में उत्तर दीजिये- Give very short/one word answer of the following-
  2. तरल प्रतिरक्षा का अन्य नाम बताइये ।

Write other name of humoral immunity.

  1. केन्सर से सुरक्षा कौनसी प्रतिरक्षी क्रिया द्वारा होती है।

Which provides defense against cancer in body.

  1. प्रतिजेनिक उद्दीपन के उपरान्त प्राथमिक या द्वितीयक प्रतिक्रिया में से तीव्र व लम्बी अवधि की प्रतिक्रिया कौनसी होती है।

Which is strong and of long duration out of primary and secondary response after antigenic stimulation.

  1. प्रोटीन या पॉलीकेसेराइड में से किस प्रतिजन का उपापचय धीमी गति से होता है।

Which antigen metabolises slowly out of protein or polysaccharide antigen.

  1. लिम्फोसाइट्स प्रतिरक्षा हेतु किस पदार्थ का स्त्रावण करते हैं?

For immunit which substance is secreted by lymphocytes?

  1. कोशिका मध्वर्ती रोधकक्षमता किस कोशिका के सक्रियन से उत्पन्न होती है।

By activation of which cell, cell mediated immunity is developed.

  1. तरल रोधक क्षमता किन कोशिकाओं के कारण होती है?

Humoral immunity is developed due to which cells?

  1. प्रथम अनुरक्षी प्रतिरक्षी क्रिया स्वरूप कौनसी प्रतिरक्षी बनती है?

Which type of anitibodies are formed as first immune response.

  1. द्वितीय अनुरक्षी प्रतिरक्षी क्रिया स्वरूप कौनसी प्रतिरक्षियाँ बनाई जाती हैं?

Which anibodies are formed as secondary immunity response.

  1. सहायक T कोशिकाएँ व निरोधक T कोशिकाएँ संयुक्त रूप से किस प्रकार की कोशिकाएँ कहलाती हैं?

For T-helper cells and T-suppressor cells which common name is used?

  1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिये ।

Write answers of the following questions in detail.

  1. तरल प्रकार की प्रतिरक्षा पर टिप्पणी कीजिये ।

Write short note on Hamoral immunity.

  1. प्रतिरक्षी उत्पादन को प्रभावित कारकों पर टिप्पणी लिखिये ।

Write short note on factors influencing antibody production.

  1. कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा पर निबन्ध लिखिये ।

Write an essay on cell mediated immunity

  1. इन्टरफेरान क्या है?

What are interferons ?

  1. प्रतिजन के प्रति द्वितीय अनुरक्षा क्रिया के महत्व की विवेचना कीजिये ।

Discuss the importance of the secondary response to an antigen.

  1. तरल रोधकक्षमता एवं कोशिका मध्यवर्ती प्रतिरक्षा का वर्णन

Describe the humoral and cell mediated immunity.

  1. कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा क्या है ? कोशिका मध्यवर्ती रोधकक्षमता में भाग लेने वाली कोशिकाओं के कार्यों का वर्णन कीजिये ।

What is cell mediated immunity deescrbe the functions of cells involed in cell mediated immunity.

  1. तरल प्रतिरक्षा व कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा क्या है? कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा में भाग लेने वाली कोशिकाओं के कार्यों का वर्णन कीजिये ।

What are humoral immunity and cell mediated immunity? Describe the functions of cells involved in cell mediated immunity.

  1. प्राथमिक एवं द्वितीय प्रतिरक्षा क्रिया में भेद संक्षिप्त में स्पष्ट कीजिये ।

Differentiate in brief between primary and secondary responses.