WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

एंजाइम की क्रियाविधि को प्रभावित करने वाले तीन कारक लिखिए factors affecting enzyme activity in hindi

factors affecting enzyme activity in hindi एंजाइम की क्रियाविधि को प्रभावित करने वाले तीन कारक लिखिए ?

अभिप्रेरित अनुरूपता मॉडल (Induced Fit Model)
यह मॉडल कोशलैण्ड (Koshland) ने 1971 में दिया। उसके अनुसार एन्जाइम यद्यपि ताला व सबस्ट्रेट चाबी की तरह कार्य करते हैं परन्तु एन्जाइम का सक्रीय स्थल दृढ़ नहीं होता। अधिकांश एन्जाइम सबस्ट्रेट की संरचना के अनुसार अपने विन्यास में परिवर्तन कर लेते हैं ताकि सबस्ट्रेट उसमें फिट हो सके। सबस्ट्रेट एन्जाइम के सक्रिय स्थल पर आयनिक हाइड्रोजन या वान्डर वॉल बंध से जुड़ते हैं। ये बल कम दूरी के होते हैं, अतः एन्जाइम – सबस्ट्रेट समिश्र तभी बन सकता है जबकि एन्जाइम का सक्रिय स्थल अपनी संरचना सबस्ट्रेट के अनुरूप परिवर्तित कर ले।
अतः संपूर्ण अभिक्रिया दो चरणों में पूर्ण होती है-.
(अ) यौगिक का निर्माण तथा
(ब) उत्प्रेरण क्रिया जिसमें विभिन्न प्रक्रियाएँ जैसे जलायोजन, निर्जलीकरण, समूह स्थानांतरण आदि होते हैं।
चित्र 14.2: अभिप्रेरित अनुरूपता मॉडल-चित्र में दर्शाया गया है कि एन्जाइम में सक्रिय स्थल की संरचना
एन्जाइम अभिक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Effecting the Enzyme reaction)
एन्जाइम अभिक्रियायें कई कारकों द्वारा प्रभावित होती हैं। जिनमें निम्न प्रमुख हैं-
1. तापमान (Temperature) : प्रत्येक एन्जाइम का एक अनुकूलतम तापमान (Optimum temeprature) होता है, जिस पर यह अधिकतम क्रिया करता है। एन्जाइम अभिक्रिया की गति प्रति 10° तापमान अनुकूलतम तापमान के बढ़ाने पर दुगुनी हो जाती है। इस तथ्य को वान्ट हॉफ (Vant Hoff) ने ज्ञात किया था। साधारणतया एन्जाइम 10° से 50°C के मध्य सक्रिय होते हैं। अधि ाकतर एन्जाइम 40° पर उच्चतम रूप से अभिक्रियाशील होते हैं। बहुत कम तापमान पर अथवा अधि ाक तापमान पर एन्जाइम निष्क्रिय हो जाते हैं, क्योंकि इनके प्रोटीन का विकृतीकरण हो जाता है। और अभिक्रिया की दर घट जाती है। 60°C से अधिक ताप पर एन्जाइम विकृत या नष्ट हो जाते है। ऐसा माना जाता है कि प्रति 10°C ताप बढ़ने पर 1000 गुणा तेज से एन्जाइम में विकृतीकरण हो जाता है।

चित्र 14.3 : एन्ज़ाइम क्रिया एवं तापमान में सम्बन्ध
2. pH : यह देखा गया है कि एन्जाइम विभिन्न pH वाले घोलों में अलग-अलग प्रकार से प्रतिक्रिया करते हैं किन्तु प्रत्येक प्रतिक्रिया का अपना एक अनुकूलतम मान (Optimum Value) होती है। pH के परिवर्तन होने से एन्जाइम अभिक्रिया वेग पर प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक एन्जाइम का अलग-अलग अनुकूलतम – pH होता है। उदाहरणार्थ पेप्सिन – DH2 (अम्लीय) पर अधिक अभिक्रियाशील होता है। जबकि ट्रिप्सिन pH9 (क्षारीय) पर अधिक अभिक्रियाशील होता है। इसी प्रकार कार्बोसी पेप्टाइडेज pH8 पर अधिक अभिक्रियाशील होता है।
चित्र 14.4: एन्जाइम क्रिया एवं PH में सम्बन्ध
3. एन्जाइम की सान्द्रता (Concentration of Enzyme) : एन्जाइम अभिक्रिया में सबस्ट्रेट की मात्रा स्थिर रहे व एन्जाइम की मात्रा को बढ़ाया जाये तो अभिक्रिया की गति बढ़ती है परन्तु एक इष्टतम (Optimum) के पश्चात् अभिक्रिया की गति में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
चित्र 14.5 एन्जाइम सान्द्रता व एन्जाइम क्रिया में सम्बन्ध (सबस्ट्रेट अत्याधिक मात्रा में उपस्थित)

4. सबस्ट्रेट की सान्द्रता (Concentration of Substrate) : एन्जाइम की सान्द्रता के समान ही अन्य परिस्थितियों को स्थिर रखने पर, निश्चित सान्द्रता के पहुँचने तक सबस्ट्रेट की सान्द्रता में वृद्धि एन्जाइम उत्प्रेरक अभिक्रिया को प्रभावित करती है और अन्तिम उत्पादों के निर्माण में वृद्धि होती है। एक निश्चित बिन्दु के बाद सबस्ट्रेट की सान्द्रता में वृद्धि से अन्तिम उत्पादों के निर्माण की गति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
इसे हम द्रव्यमान अनुपात के नियम (Law of mass action) से समझ सकते हैं।
किसी एन्जाइम व सबस्ट्रेट की निश्चित मात्रा के लिये सबस्ट्रेट की वह सान्द्रता, जिस पर उच्चतम गति (Maximum velocity) की आधी गति हो, एक निश्ति मान होती है जिसे माइक स्थिरांक (Michael’s Constant km) कहते हैं। जितना Km की मात्रा कम होगी उतना ही एन्जाइम का सबस्ट्रेट के प्रति लगाव (Affinity) अधिक होगा। Km का मान अग्र व पश्च (Forward and backward) अभिक्रियाओं पर निर्भ करता है। ये अभिक्रियाएँ एन्जाइम, E-S समिश्र (Complex) तथा समिश्र व उत्पाद (Products) के मध्य होती है। बहुएन्जाइम तंत्र (Multienzyme system) में एन्जाइम काइनेटिक (Enzyme Kinetics) वास्तव में अति जटिल (Complex) होती है।
• माइकिल मेन्टन के सिद्धान्त के अनुसर एनजाइम जिस सबस्ट्रेट पर किया करता है, उससे संयोग कर एक मध्यवर्ती यौगिक बनता है। इस संयोग के कारण सबसस्ट्रेट की संरचना पर तिबल पडता है जिसके पफलस्वरूप सबस्ट्रेट के कुछ बंध विभक्त हो जाते हैं। एन्जाइम तथा सबस्ट्रेट के संयोग से बना यह समिश्र (Complex) अस्थायी होता है जो शीघ्र ही उत्पादों तथा एन्जाइम में पृथक जाता है।
चित्र 14.6 : सबस्ट्रेट सान्द्रता व एन्जाइम क्रिया में सम्बन्ध (एन्जाइम निश्चित मात्रा में उपस्थित)
5. उत्पादक प्रभाव (Effect of the Product) : एन्जाइम क्रिया के फलस्वरूप बनने वाले उत्पाद की मात्रा जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, एजाइम क्रिया उसी अनुपात में घटती जाती हैं तथा पूर्ण • उत्पाद बनने पर क्रिया का पूर्णतया संदमित हो जाती है। इसके दो मुख्य कारण है (1) एन्जाइम क्रिया का उत्क्रमणीय होना तथा (2) क्रिया के कुछ उत्पादों की संरचना सबस्ट्रेट के समरूप होने के
कारण इन उत्पादों का एन्जाइम से संयोग कर एन्जाइम का संदमित कर देना है।
एक तो सक्रिय स्थल जिस पर सबस्ट्रेट- एन्जाइम संयोग करता है तथा दूसरा एलोस्टैरिक स्थल 6. एलोस्टैरिक प्रभाव (Allosteric Effect) : एन्जाइम की संरचना में दो मुख्य स्थल होते हैं।

जिससे या तो एन्जाइम क्रिया के उत्पाद संयोजत हो, एन्ज़ाइम को अस्थायी रूप से निष्क्रिय अर्थात् संदमित कर देते हैं। वरन् संदमक इस स्थान पर एन्जाइम से संयोजित हो इसकी (एन्जाइम) आणविक संरचना में परिवर्तन कर, संदमन कर देता हैं। दूसरे शब्दों में एन्जाइम की संरचना में एलोस्टारक स्थल वह है जिससे सबस्ट्रेट के अतिरिक्त कोई भी वह पदार्थ संयोजित होता है जो कि एन्जाइम को या तो सदमित करे या फिर इसे सक्रिय कर दे।
एन्जाइम संदमक (Enzyme Inhibitors)
जीवद्रव्य में अभिक्रियाओं में एन्जाइम महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। जीवद्रव्य में कोई भी अभिक्रिया एन्जाइम की अनुपस्थिति में नहीं हो सकती है। जब भी एन्जाइम, सबस्ट्रेट के अलवा किसी अन्य से क्रिया कर, एन्जाइम की अभिक्रिया करने की क्षमता खो देता है तो क्रिया को एन्जाइम संदमन कहते हैं। अधिकतर आविष व भारी धातु का एन्जाइम संदमन कहते हैं। अधिकतर आविष व भारी धातु, एन्जाइम संदमन करने का कार्य करते हैं। पोटैशिय सायनाइड एक अत्यन्त उच्च कोटि का आविष है जिसके प्रभाव से कोई भी जीवित पदार्थ जीवित नहीं रह सकता है। यह यौगिक साइटोक्रोम ऑक्सीडेज (Cytochrome Oxidase) के अभिक्रियाशील धात्विक केन्द्र Active metallic centre) के •साथ बद्ध होकर, जैव प्रणाली के महतवपूर्ण एन्जाइम की अभिक्रिया को पूर्ण रूप से संदमित कर देता है। इसी प्रकार का कार्बन मोनोक्साइड, हीमोग्लोबीन में स्थित लोह धातु के साथ मिलकर श्वसन की क्रिया को रोक देता है। आर्सेनिक (संखिया) भी एक शक्तिशाली विष है, यह फॉस्फेट एन्जाइम को संदमन करता है। एन्जाइम संदमित को दो प्रकारों में विभक्त किया जाता है। 1. प्रतिस्पर्धी संदमन (Competitive Inhibition)
2. अप्रतिस्पर्धी संदमन (Non Competitive Inhibition)
1. प्रतियोगिक संदमन (Competitive Inhibition): इस प्रकार के एन्जाइम संदमन में संरचना में समान सबस्ट्रेट एन्जाइम के क्रियाशील स्थान पर जुड़ जाते हैं जहाँ सामान्यतया सबस्ट्रेट जुड़ता है |
चित्र 14.7 : प्रतिस्पर्धी संदमन का अभिक्रिया

इस प्रकार एन्जाइम क्रियाशील नहीं रहता है। अतः इस प्रकार के संदमन का प्रतिस्पधी संदमन कहते हैं। इस प्रकार के संदमन को सबस्ट्रेट की सान्द्रता बढ़ा कर दूर किया जा सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण सक्सिनिक डी- हाइड्रोजिनेज है जो सक्सिनिक अम्ल को फ्यूमेरिक अम्ल में परिवर्तित करता है। मैलोनिक अम्ल जो कि संदमक का कार्य करता है। रासायनिक संरचना में सक्सिनिक अम्ल के समान ही होता है। यह आकार सक्रिय केन्द्र पर जुड़ जाता है जहाँ सामान्यः सक्सिनिक अम्ल जुड़ता है व एन्जाइम को संदमन कर देता है । ;
12. अप्रतिस्पर्धी संदमन (Non competitive Inhibition) : इस प्रकार के एन्जाइम संदमक, एन्जाइम के अन्य भाग से क्रिया करता है जो उत्प्रेरण अभिक्रिया में भाग नहीं लेता है। इसमें संदमक सक्रिय केन्द्र से हट कर जुड़ता है फिर भी यह अभिक्रियाशील केन्द्र को प्रभावित करता है। इस प्रकार का संदमन अधिकतम धातु आयन द्वारा होता है तथा सबस्ट्रेट की मात्रा बढ़ा कर, संदमन को दूर नहीं किया जा सकता है।
E+I→ ET E+S+T → ESTप्रोएन्जाइम या जाइमोजन (Proenzyme or Zymogen)
कई एन्जाइम ऐसे पाये जाते हैं जो पूर्ववर्ती (Precursor) द्वारा प्राप्त होते हैं। इन्हें प्रोएन्जाइम या जाइमोजन कहते हैं। आहार नाल में पाये जाने वाले पाचक एन्जाइम इस समूह में रखे जाते हैं। उदाहरणार्थ पेप्सिन ( Pepsin), ट्रीप्सिन (Tripsin) व काइमोट्रीप्सिन (Chymotrypsin) आदि ।’ इन जाइमोजन एन्जाइमों का सक्रिय एन्जाइमों में परिवर्तन एक या अधिक जाइमोजन पेप्टाइड बन्छ के विदलन से होता है। इसमें एन्जाइम के प्रोटीन का कुछ भाग अलग हो जाता है।
– पेप्सिन एक प्रमुख प्रोटीन पाचक एन्जाइम है जो आमाशय में प्रोटीन का पाचन करता है। यह पोलीपेप्टाइड पेप्सिनोजन से प्राप्त होताहै। इसका अणु भार 42,000 होता है। जब यह आमाशय के रस के अम्ली माध्य में प्रवेश करता है तो पेप्सिनोजन कई स्थानों पर जल अपघटन मेंजाता है व कई छोओ पेप्टाइडों का निर्माण होता है साथ ही सक्रिय एन्जाइम पेप्सिन बनता है जिसका अणु भार 35,000 होता है। पेप्सिन स्वयं भी पेप्सिनोजन को पेप्सिन में बदल सकता है। इसी प्रकार ट्रीप्सिन
पेप्सिनोजन प्रोएन्जाइम → पेप्सिन सक्रिय एन्जाइम
दूसरा पाचक एन्जाइम है जो अग्नाशय में बनता है तथा यह ट्रीप्सिनोजन प्रोएन्जाइम के रूप में बनता है। यह अग्नाशय रस के साथ ग्रहणी के अग्र भाग में आता है। ग्रहणी में दूसरा एन्जाइम एन्ट्रोकाइनेज (Enterokinase), ट्रिप्सिनोजन के N-छोर से 6 एमीनों अम्लों को अलग करने की अभिक्रिया को उत्प्रेरित करता है तथा ट्रिप्सिन का निर्माण होता है। ट्रीप्सिन स्वयं भी ट्रीप्सिनोजन को ट्रीप्सिन में परिवर्तित कर सकता है।
• इसी प्रकार काइमोट्रीप्सिन (Chymotrypin) एन्जाइम भी आहारनाल में प्रोटीन का पाचन करता, है।यह भी अग्नाशय में निष्क्रिय अवस्था में प्रोएन्जाइम काइमोट्रीप्सिनोजन (Chymotrypsinogen) के रूप में उत्पन्न होता है। काइमोट्रिप्सिनोजन का सक्रिय काइमोट्रीप्सिन में परिवर्तन कई पेप्टाइड बन्ध में विदलन से होता है। यह क्रिया ट्रीप्सिन एन्जाइम की उपस्थिति में होती है जो ग्रहणी में पहले से ही उपस्थित होता है। यह क्रिया काइमोट्रीप्सिन की उपस्थिति में भी हो सकती है।